R Sahara, 20 June 2005 : ईरान में कमाल हो गया| वहां पहली बार ऐसा राष्ट्रपति चुना गया है, जो न आयतुल्लाह न हुज्जतुल्लाह है| सरल हिंदी में कहें तो यह कहेंगे कि वह न तो कोई मुल्ला हैं, न मौलाना हैं, न मौलवी ! वह एक 49 साल का सीधा-साधा नेता है, जो दो साल तक तेहरान का महापौर रह चुका है| उसका नाम है, महमूद अहमदीनिजाद ! उसने जिन्हें हराया है, वे प्रसिद्घ धर्मध्वजी आयतुल्लाह हाशिम रफसंजानी हैं| रफसंजानी न केवल ईरान के दो बार राष्ट्रपति रह चुके हैं बल्कि वे इमाम खुमैनी के साथ भी काम कर चुके हैं| ईरान ही नहीं, सारे विश्व में उनकी ख्याति है| मतदान के पहले दौर में रफसंजानी सबसे आगे थे और दूसरे नम्बर पर अहमदीनिजाद थे| अनेक दिग्गज उनके पीछे रह गए| रफसंजानी को कुल मतदान का स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था| इसीलिए दुबारा चुनाव हुए| सबसे आगे रहनेवाले दो उम्मीदवारों के बीच हुई दुबारा टक्कर में रफसंजानी की जीत आसान मालूम पड़ रही थी, क्योंकि वे प्रसिद्घ और अनुभवी थे, उन्हें लगभग 30 प्रतिशत मत मिले थे जबकि अहमदीनिजाद को लगभग 20 प्रतिशत ! इसके अलावा राष्ट्रपति के लगभग सभी सुधारवादी उम्मीदवारों ने अपनी ताकत रफसंजानी के लिए झांेक दी थी| ईरान के धनाढ्रय लोगों और शिक्षित भद्रलोक ने भी रफसंजानी का समर्थन किया था लेकिन इसके बावजूद दूसरे दौर में भी रफसंजानी जहां थे, वहीं रह गए| उनके वोट 30 प्रतिशत के आस-पास ही टिके रहे जबकि अहमदीनिजाद के वोट कूदकर 62 प्रतिशत पर पहुंच गए| यह तीन गुना वृद्घि कैसे हुई?
इसके कई कारण हैं| पहला कारण तो अमेरिका ही है| अमेरिका के प्रवक्ताओं और मीडिया ने रफसंजानी को लगभग अपना ही उम्मीदवार घोषित कर दिया| उन्होंने ईरानी जनता को बार-बार कहा कि रफसंजानी सुधारवादी हैं| वे ईरान को मुल्लाओं की गिरफ्त से बाहर निकालेंगे, उग्र विदेश नीति पर लगाम लगाएंगे और अमेरिका के साथ चल रहे परमाणु-विवाद पर नरम रुख अपनाएंगे| ईरान की जनता भड़क गई| जब से इस्लामी क्रांति हुई है, ईरान में अमेरिका को ‘शैतान-ए-बुजुर्ग’ (बड़ा शैतान) कहा जाता है| रफसंजानी को शैतान-ए-बुजुर्ग का दलाल माना गया और रद्द कर दिया गया| दूसरा, ईरान की कुंजी अब भी शिया मुल्लाओं के हाथ में है| सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामैनी हैं| इन शिया नेता को पता है कि रफसंजानी भी उन्हीं की तरह आयतुल्लाह हैं और बड़े नेता हैं| वे उनके कहे में नहीं चलेंगे| वे सुधारवादी बन गए हैं| वे यदि राष्ट्रपति बन गए तो सर्वोच्च नेता और संसद के साथ रोज़ भिड़ंत होगी| इसीलिए बेहतर है कि ऐसा गैर-मुल्ला चुना जाए जो सुदृढ़ इस्लामवादी तो हो लेकिन आयतुल्लाहों की हां में हां मिलानेवाला भी हो| अहमदीनिजाद इस पैमाने पर खरे उतरते हैं, क्योंकि वे इस्लामी लड़ाकू संगठन ‘पासदारान’ के सदस्य रहे हैं, तेहरान के अमेरिकी राजदूतावास (जासूसखाना) पर हुए कब्जे में उनकी सक्रिय भूमिका रही है और महापौर के तौर पर उन्होंने तेहरान की अनेक गैर-इस्लामी गतिविधियों पर पाबंदी लगाकर अनुदार आयतुल्लाहों का दिल जीत लिया था| तीसरा, रफसंजानी की छवि धनाढ्रय राजनेता की है जबकि अहमदीनिजाद को ईरान के मध्यवर्गीय संघर्ष का प्रतिनिधि माना जाता है| ईरान में फैले भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और दुराचरण की जिम्मेदारी उस वर्ग के मत्थे मढ़ी जाती है, जिसका प्रतिनिधित्व रफसंजानी करते हैं| इस वर्ग के लोग मतदान की कतारों में खड़े होना अपमानजनक मानते हैं| इसीलिए दूसरे दौर में मतदान तीन प्रतिशत घट गया| जबकि अहमदीनिजाद को मत देनेवाले गरीब और मध्यवर्गीय लोगों ने क़तार बांधकर मतदान किया| अहमदीनिजाद ने अपने चुनाव-अभियान में अमेरिकी धमकियों का यथोचित उत्तर देने का वायदा तो किया ही, गरीब लोगों के लिए रोज़गार और रोटी के इंतजाम का भी नारा दिया| यह कैसा संयोग है कि दक्षिणपंथी कहे जानेवाले अनुदार खेमे का एजेंडा वामपंथी था और प्रगतिशील कहे जानेवाले रफसंजानी ने आम आदमी के दुख-दर्द पर कोई ध्यान नहीं दिया|
अहमदीनिजाद की जीत पर सबसे ज्यादा कोई बौखलाया हुआ है तो वह है, बुश प्रशासन ! उसका पहला आरोप तो यह है कि चुनावों में धांधली हुई है| लगभग एक हजार उम्मीदवारों का नामांकन गलत तरीके से रद्द कर दिया गया| किसी भी महिला को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं बनने दिया गया| मतदान केंद्रों पर भी दादागीरी की गई| दूसरा, यह कि आयतुल्लाहों ने अहमदीनिजाद को जिताने में अपनी धर्मसत्ता का दुरुपयोग किया है| रफसंजानी पर इस्लाम विरोधी होने के निराधार आरोप लगाए गए हैंं| उन्हें आधुनिकता के नाम पर पश्चिम की गुलामी करनेवाला बताया गया है| तीसरा, बुश-प्रशासन ने घोषणा की है कि अहमदीनिजाद का शासन लोकतंत्रविरोधी होगा और अब ईरान पश्चिम एशिया में बह रही लोकतंत्र और आज़ादी की हवा के विरुद्घ तैरेगा| चौथा, अब ईरान की आर्थिक-सामरिक कठिनाइयां बढ़ती चली जाएंगी| ईरान का मुल्लावादी अनुदार प्रशासन उसकी अर्थ-व्यवस्था को खुलने नहीं देगा| गरीबी मुक्ति के अभियान के बजाय जनता के इस्लामीकरण पर जोर होगा| पड़ोसी देशों में इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों को हवा देने में ईरान की नई सरकार विशेष उत्साह दिखाएगी| एराक़ और अफगानिस्तान के ठीक होने के बाद अब ईरान इस्लामी आतंकवादियो का गढ़ बन जाएगा| जाहिर है कि ये उसी तरह की गीदड़भभकियां हैं, जैसे कि बुश और रम्सफेल्ड ने उत्तर कोरिया को दी थीं| अमेरिकी यह भूल रहे हैं कि ईरान एराक़ नहीं है| यदि वे गल्ती से ईरान से उलझ गए तो वियतनाम से भी ज्यादा दुर्दशा हो जाएगी| जो ईरानी उनकी छाती पर सवार शहंशाह को उखाड़ फेंक सकते हैं, वे बुश के छक्के भी छुड़ा सकते हैं| अभी तो एराक़ ने ही अमेरिकियों की नाक में दम कर रखा है, अब वे ईरान के छत्ते पर क्यों हाथ डालना चाहते हैं? अहमदीनिजाद को अगर वे तंग करेंगे तो एराक़ के शियाओं को भड़काने में ईरान कोई क़सर नहीं छोड़ेगा| ईरान से अगर अमेरिका ने पंगा ले लिया तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत को भी सोचना पड़ेगा कि वे किधर जाएं| जीतने के बाद अहमदीनिजाद ने मध्यमार्ग पर चलने की बात कही है| उन्होंने अतिवाद को अनुचित बताया है| इस पर अमेरिका को ध्यान देना चाहिए, वरना यह मानना पड़ेगा कि ईरान में भी अब एक अमेरिकी टाइम-बम टिक-टिक करने लगा है| ईरानी राष्ट्रपति के चुनाव को अपनी हार मानने की बजाय अमेरिका को नई ईरानी सरकार के साथ ऐेसे संबंध बनाने चाहिए कि दक्षिण और पश्चिम एशिया में युद्घ की बजाय शांति और सहयोग का वातावरण बने|
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