दैनिक भास्कर, 25 दिसम्बर, 2004 : नरसिंहरावजी से अधिक अभागा प्रधानमंत्री कौन रहा होगा? लोग उन्हें न तो जीते जी समझ पाए और न ही मरने के बाद| वे एक अबूझ पहेली थे| उनके बारे में क्या-क्या छवियाँ बनी हुई हैं| मौनी बाबा, अकर्मण्य -दीर्घसूत्री, भ्रष्टाचार-पे्रमी, निर्मम, कुटिल आदि-आदि! प्रधानमंत्रियों को जो सम्मान मिलता है, वह उन्हें न तब मिला और न अब मिल रहा है| वे चाहते तो जरूर मिलता| उन्हें चाहत ही नहीं थी| क्या उन्होंने प्रधानमंत्र्ी पद भी चाहा था? बिल्कुल नहीं चाहा था| 1991 में उन्होंने सांसद का चुनाव तक नहीं लड़ा था| वे प्रेस एनक्लेव और सफदरजंग एनक्लेव जैसी बस्तियों में अपने लिए किराए का मकान ढूँढ रहे थे| जिस रात राजीव गाँधी की हत्या हुई, वे नागपुर में थे| दूसरे दिन दोपहर जब वे दिल्ली पहुँचे तो सदमे में थे| लंच में उन्होंने दो टोस्ट खाए ओर सो गए| उन्हें जरा भी अंदाज नहीं था कि पहले वे काँग्रेस अध्यक्ष बनेंगे और फिर प्रधानमंत्री! प्रधानमंत्री पद भी उन्होंने ऐसे धारण किया, जैसे रोज़ कुर्ता पहनते हैं| पाँच साल तक यह पता ही नहीं चला कि कौन बड़ा है, नरसिंहराव या प्रधानमंत्री-पद? प्रधानमंत्री की प्रभुता का मद उन पर चढ़ा ही नहीं! वही शिष्टाता, वही सौजन्य, वही संभ्रातता, वही मृदुता अंत तक बनी रही, जो हैदरबाद से नए-नए दिल्ली आए नरसिंराव में दिखाई पड़ती थी| उन्होंने प्रधानमंत्री-पद के आने का न उत्सव मनाया और न जाने का मातम! चदरिया में चाहे जितने दाग लग गए, उन्होंने उसे जस की तस धर दीन्ही! प्रधानमंत्री बने अभी कुछ ही दिन हुए थे कि 28 जून आ गया| प्रधानमंत्री का जन्मदिन! बेले कि देखिए, हमारे काँगे्रसियों को! आज कैसी जबर्दस्त खुशामद होगी! गाजा-बाजा और ढोंग-धतूरा! इसीलिए उनकी बिदाई के लिए काँग्रेस मुख्यालय के बाहर जब सिर्फ दस-बारह नेता दिखाई पड़े तो फिर महसूस हुआ कि नरसिंहराव मानव-स्वभाव के कितने गहरे पारखी थे| उनकी इस परख ने ही उन्हें असाधारण मानव बना दिया था|
वे नितान्त एकांतपि्र्रय और अन्तर्मुखी व्यक्ति थे| यदि उनकी शव-यात्र में हजारों लोग उमड़ पड़ते तो वे खुद पूछते, मामला क्या है? मामला क्या है, का मतलब है, कारण में उतरना! हर कार्य के पीछे कारण होता है| अगर आपको असली कारण मालूम पड़ जाए तो फिर कार्य कैसा भी हो, घटना कैसी भी हो, उसके प्रति राग-द्वेष नहीं रह जाता| कोई पि्रय और अपि्रय उत्तेजना नहीं रह जाती! इस तरह के लोग प्राय: नेता नहीं बन पाते| नरसिंहरावजी इस अर्थ में नेता थे भी नहीं| नेताओं का काम उत्तेजित होना और उत्तेजित करना ही होता है| इसीलिए वे अन्नेता की तरह दिखाई पड़ते थे| बिल्कुल ठंडे और चुप! उनकी ठंडाई लोहे की ठंडाई थी| ठंडे लोहे से उन्होंने पता नहीं राजनीति के कितने गर्म पहाड़ों को काट दिया| पार्टी में, प्रतिपक्ष में और दुनिया में उनके दुश्मनों की कमी नहीं थी लेकिन पूरे पाँच साल वे सबको अँगूठा दिखाते रहे| उनका मौन कर्णभेदी होता था| मौनी बाबा के पेट का रहस्य मालूम करना उनके निकटतम मित्रें के लिए असंभव था| मौन उनकी मजबूरी नहीं थी| वह उनका पैंतरा था, वरना नरसिंहराव से बेहतर बात करनेवाला कौनसा प्रधानमंत्री हुआ है? दुनिया का कौनसा विषय है, जिस पर वे बात नहीं करते थे| वे जितनी बढि़या और गहरी बात कर सकते थे, क्या वह राजनीतिज्ञों के बूते की बात है? दिन भर मिलनेवाले नेताओं से उस तरह का आदमी आखिर कितनी बात कर सकता है|
वे दीर्घसूत्री जरूर थे लेकिन अकर्मण्य नहीं थे| दीर्घ सूत्री इसलिए थे कि विचारवान थे| हर समस्या पर वे बहुत दूर तक सोच सकते थे| अगर वे बहुत सोचे हुए आदमी नहीं होते तो क्या वे शीतयुद्घ की समाप्ति और आर्थिक उदारवाद की प्रचंड आँधी को हजम कर सकते थे| उनके कर्मण्य ने ही भारत की नव-आर्थिक शक्ति का मार्ग-निर्धारण किया| डाँ. मनमोहनसिंह उनकी ही देन हैं| गिरती हुई बाबरी मस्जिद को नरसिंहराव क्या, परमात्मा भी नहीं बचा सकता था| उसके गिरने का अंदेशा उन्हें क्या, भाजपा नेताओं को भी नहीं था| विशेष सावधानी और अगि्रम इंतजाम की कमी रह गई| बताने पर भी वे अनागत को भाँप नहीं पाए लेकिनइसे बदनीयती कहना सज्जनता का अपमान है| क्या चीनी हमले और कारगिल को हम भाँप पाए थे?
भ्रष्टाचार की अनेक घटनाएँ हुईं लेकिन भ्रष्ट पैसे से चलनेवाले नेताओं के जीवन और नरसिंहराव के निजी जीवन में कोई फर्क लोगों को दिखाई देता है या नहीं? कौन-सी सरकार है, जो भ्रष्टाचार की गगा में गोता लगाए बिना पार हुई है? कौन-सी राजनीति है, जो बड़े पैसे के बिना चलती है? असली दोष नरसिंहरावजी का यह है कि उन्होंने हवाला और दूसरे मामलों में फँसे अपने साथियों के लिए कुछ नहीं किया| उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया| लेकिन हम यह न भूलें कि उन्होंने अपने लिए भी कुछ नहीं किया| वे अपने हाल पर छूट गए| यह निर्ममता का चरमोत्कर्ष था| लोगों ने अपूर्व दृश्य देखे| पूर्व प्रधानमंत्री को छोटी अदालतों में चक्कर लगाते हुए! अदालतों ने उन्हें मुक्त कर दिया लेकिन उनके साथियों ने उन्हे अब तक माफ़ नहीं किया है| मनमोहनसिंह अपवाद हैं| पता नहीं, इतिहास श्री नरसिंहराव को माफ़ करेगा या नहीं|
स्वयं नरसिंहरावजी का इतिहास-बोध अत्यंत प्रखर था| प्रखर न होता तो वे ‘इनसाइडर’ नहीं लिखते| जिन्हें इतिहास लिखना आता है, वे प्राय: इतिहास बनाना नहीं जानते और जो इतिहास बनाना जानते हैं, वे प्राय: इतिहास लिखना नहीं जानते लेकिन नरसिंहरावजी ने सिद्घ किया है कि वे दोनों जानते थे| पता नहीं, अपनी आत्मकथा के दूसरे भाग में वे अपने प्रधानमंत्र्ी काल की कितनी पहेलियों को बुझा पाएँगे लेकिन यह निश्चित है कि ज्यों-ज्यों समय बीतता जाएगा, नरसिंहराव नामक महान तेलुगु प्रतिभा की चमक उभरती जाएगी, क्योंकि तब तक वे सब राग-द्वेष इतिहास के नेपथ्य में चले जाएँगे, जिनके रहते नरसिंहरावजी ने अपना अंतिम दशक राजनीतिक बनवास में काटा|
(लेखक श्री पी.वी.नरसिंहराव के अभिन्न मित्र् रहे हैं)
Leave a Reply