योगी आदित्यनाथ को उप्र का मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया है, इस तथ्य ने सबको आश्चर्य में डाल दिया है, जैसा कि वहां के चुनाव-परिणामों ने डाल दिया था लेकिन उप्र के चुनाव-परिणाम और योगी की नियुक्ति में सहज-संबंध का एक अदृश्य तार जुड़ा हुआ है। आप पूछें कि उप्र में भाजपा कैसे इतना चमत्कार दिखा सकी तो इसका एक ही बड़ा उत्तर है कि वहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ। हिंदुओं ने नोटबंदी की तकलीफों को भुला दिया। उन पर फर्जीकल स्ट्राइक का भी कोई फर्क नहीं पड़ा। मोदी विकास के नाम पर भी शून्य थे लेकिन फिर भी बाजी मार ले गए।
आखिर कैसे? इसी सवाल का जवाब है- योगी आदित्यनाथ ! इस अपूर्व विजय का सेहरा उसी के माथे बांधना चाहिए था, जो इसका हकदार था। श्मशान और कब्रिस्तान की बहस मोदी से पहले योगी ने चलाई थी। तबलीग और धर्म-परिवर्तन के खिलाफ अभियान किसने चलाया था? ‘अल्पसंख्यक ब्लेकमेल’ के विरुद्ध किसने आवाज बुलंद की थी? योगी ने!
इसीलिए योगी इस पद के स्वाभाविक हकदार बन गए। कोई आश्चर्य नहीं कि यह योगी अयोध्या में राम मंदिर भी खड़ा कर दें लेकिन आदित्यनाथ की खूबी तभी मानी जाएगी जबकि यह पवित्र कार्य वे सर्वसम्मति और सर्वसद्भावना से करें। मैं तो कहता हूं कि उस 60 एकड़ के परिसर में सभी धर्मों के पूजा-स्थल वे बनवा सकें तो वे सच्चे संन्यासी कहलाएंगे।
अखिलेश की तरह योगी भी युवा हैं। वे कट्टर हैं लेकिन विनम्र भी हैं। साधु का अहंकार सम्राट से भी ज्यादा होता है लेकिन आदित्यनाथ में साधुओं के अक्खड़पन से ज्यादा नेताओं की-सी चतुराई है। उम्मीद है कि अब मुख्यमंत्री बनने पर वे संयम और सावधानी से काम लेंगे। अखिलेश के अधूरे कामों को पूरा करेंगे। वे पांच बार सांसद रहे हैं लेकिन पहली बार सत्ता में आए हैं। अभी सत्ता के दांव-पेंच सीखने में ही उन्हें काफी समय लगेगा। वे मूलतः आंदोलनकारी रहे हैं। उनके साथ दो उप-मुख्यमंत्री इसीलिए जोड़े गए हैं कि ये तीनों मिलकर इस 20 करोड़ लोगों के उप्र को संतोषजनक ढंग से चलाएंगे।
जाहिर है कि योगीजी अन्य मंत्रियों को अपना चेला समझने की गलती नहीं करेंगे। उन्हें मुख्यमंत्री इसलिए भी बनाया गया है कि वे साधु हैं। उनसे भ्रष्टाचार की आशंका बिल्कुल नहीं है लेकिन जैसा कि आचार्य कौटिल्य ने सत्य ही कहा कि मछली नदी में रहे और पानी न पीए, यह कैसे हो सकता है?
किसी संन्यासी का मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनना अपने आप में अजूबा है लेकिन संघ और भाजपा ने यह अपूर्व प्रयोग किया है कि मोदी, मनोहरलाल, आदित्यनाथ और त्रिवेंद्र रावत जैसे लोगों को पदारुढ़ किया है। ये लोग भगवा पहनें या न पहनें, संन्यासियों के कुछ गुण तो इनमें हैं ही। इनसे देश आशा करता है कि ये लोग कुछ चमत्कार करेंगे वरना इनकी दुर्गति नेताओं से भी ज्यादा हो सकती है।
Leave a Reply