पिछले सवा साल में अमेरिका की छवि कई स्तरों पर धूमिल हुई है| बि्रटेन को छोड़ दें| वह अपवाद है| फ्रांस और जर्मनी ने अमेरिकी हमले का डटकर विरोध किया था| अमेरिकी फौजी कार्रवाई के विरुद्घ जितने प्रचंड प्रदर्शन सारे विश्व में हुए पहले कभी नहीं हुए| टोनी ब्लेयर ने बुश का साथ जरूर दिया लेकिन इसी कारण वे इतने कमजोर हो गए हैं कि इस बार वे चुनाव हार जाऍंगे| बुश भी हार सकते हैं और ब्लेयर भी ! हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबेंगे| दूसरा, अमेरिका की जनता को चिन्ता है कि एराक बेपैंदे की बाल्टी सिद्घ होगा| 80 बिलियन से ज्यादा डॉलर तो पहले ही खर्च हो चुके हैं| अभी अमेरिकी खजाने में कितने खंजर और लगेंगे, जरा भी पता नहीं| बुश प्रशासन का गणित यह था कि सद्दाम के खत्म होते ही एराक के तेल पर अमेरिकी कब्जा होगा और ईस्ट इंडिया कम्पनी की तरह अमेरिकी कम्पनियॉं एराक की संपूर्ण अर्थ-व्यवस्था को अपनी जेब में डाल लेंगी| पॉल ब्रेमर ने बुश के इस हसीन सपने को अमली जामा पहनाने की भरपूर कोशिश भी की लेकिन उनका सफलता नहीं मिली | ‘क्रिश्चियन ऐड’ नामक बि्रटिश संस्था ने आरोप लगाया है कि लगभग 20 बिलियन डॉलर की तेल की आमदनी का ब्रेमर प्रशासन ने क्या उपयोग किया है, कुछ पता नहीं| इस प्रशासन की आमदनी और खर्च पर संयुक्तराष्ट्र ने लेखा-परीक्षक नियुक्त करने का प्रावधान किया था, जिसका पालन साल भर बाद किया गया और उसकी रपट अभी तक नहीं आई है| ब्रेमर प्रशासन ने एराकी व्यापार, कारखानों और खनिज-स्रोतों पर अमेरिकी कम्पनियों को एकाधिकार देने की भी बहुत कोशिश की लेकिन घोर अराजकता और हिंसा के कारण लेने के देने पड़ गए| एराक को अमेरिका चूस डालना चाहता था लेकिन एराक अब उसका खून पी रहा है| तीसरा, अमेरिका के सैकड़ों सिपाहियों और कुछ पत्रकारों की हत्या के कारण बुश प्रशासन के विरुद्घ अमेरिका में कोहराम मचा हुआ है तो अरब देशों में इस अवैध कब्जे की निरंतर निंदा हो रही है| अरब सरकारों के मॅुंह पर चाहे ताले लगे हुए हों लेकिन साधारण अरब के मॅुंह में हजारों जुबानें उग आई हैं, जो अमेरिका पर तेजाब बरसा रही हैं| चौथा दुष्परिणाम यह हो रहा है कि एराक के कारण नए आतंकवादी हमलों की आशंका बढ़ रही है| एराक के कारण अमेरिकी आजकल जैसे भयभीत हैं, वैसे वे वियतनाम के कारण और रूसी अफगानिस्तान के कारण भी कभी नहीं हुए| पॉंचवॉं, संप्रभुता के इस नकली हस्तांतरण के बाद अगर अमेरिका चाहेगा कि वह अपनी बंदूक तीसरी दुनिया के गरीब देशों के कंधों पर रख दे तो उसकी यह हसतर भी पूरी नहीं हो पाएगी, क्योंकि एशिया और अफ्रीका के देशों को पता है कि एराक पर असली कब्जा किसका है और संप्रभुता की असली लगाम किसके हाथ में है|
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