दै. भास्कर, 16 जून 09 : ओबामा के एतिहासिक क़ाहिरा-भाषण में भारत के लिए क्या है ? उसमें कहीं भारत है या नहीं, यह सवाल अगर भारतीय लोग पूछते हैं तो इसमें गलत क्या है ? ओबामा का काहिरा-भाषण इस्लाम और अमेरिका के संबंधों पर था| लेकिन इस्लाम क्या नील और दज़ला-फरात नदियों तक ही सीमित है ? क्या वह सिंधु, गंगा और मेकांग को पार नहीं करता ? वास्तव में इस्लाम की पहुंच तो स्पेन से फिलिपीन्स तक रही है| वह सिर्फ अरब देशों तक सीमित नहीं है| कोई भी अरब देश दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामी देश नहीं है| दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामी देश तो इंडोनेशिया है| आबादी के हिसाब से देखें तो कोई भी अरब देश, बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत का मुकाबला नहीं कर सकता| यदि ओबामा का भाषण इस्लाम पर केंदि्रत था तो इन देशों की उपेक्षा क्यों हो गई ?
इस सवाल का जवाब ओबामा यह कहकर दे सकते हैं कि उन्होंने इस्लाम और मुसलमानों से संबंधित केवल उन्हीं मुद्रदों को छुआ है, जिनका अमेरिका से सीधा सरोकार है| दूसरे शब्दों में उन्होंने अकेले इस्लाम पर कोई बहस नहीं छेड़ी है| न तो इस्लाम के दर्शन, न इतिहास, न संस्कृति और न ही उसके विविध रूप ओबामा के मुख्य विषय थे| अगर होते तो ओबामा को भारतीय उप-महाद्वीप ही नहीं, चीन के सिंक्यांग और पुराने रूस के मुस्लिम गणतंत्रें आदि पर भी विचार करना पड़ता| लेकिन उन्होंने अपना सारा भाषण अब्राहम की संतानों – अरब देशों के मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों पर केंदि्रत किया| ये तीनों मज़हब वहीं से निकले हैं| यों तो ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और इंडोनेशिया भी मुसलमान राष्ट्र हैं लेकिन उन्हें अब्राहम की संतान कौन कहेगा और कह भी दे तो इस कहे को मानेगा कौन ? इन राष्ट्रों को अपने आर्याई मूल पर काफी गर्व है|
ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान का जि़क्र भी ओबामा ने इसलिए नहीं किया कि वे मुस्लिम राष्ट्र हैं बल्कि इसलिए किया है कि अमेरिका इन देशों के दलदल में बुरी तरह फॅंसा हुआ है| एराक़ और अफगानिस्तान की तरह ईरान पर कब्जा करने की हिम्मत अमेरिका में नहीं है| पिछले तीन दशक में ईरान ने अमेरिका को जितना कोसा है, शीतयुद्घ के दिनों में सोवियत संघ ने भी नहीं कोसा था| इसी प्रकाश शीतयुद्घ के साढ़े चार दशकों में अमेरिका कभी अफगान-पाक क्षेत्र् में सीधा नहीं उलझा था लेकिन आजकल उसके सैनिक वहॉं रोज मर रहे हैं| एराक और अफगानिस्तान अमेरिका के गले के हार बन गए हैं| एराक से 2012 तक पिंड छुड़ाने की घोषणा तो ओबामा ने कर दी है लेकिन अफगानिस्तान के चक्र-व्यूह में अमेरिकी अभिमन्यु फंस गया लगता है| उसे निकल भागने का कोई रास्ता ही दिखाई नहीं पड़ रहा है| वह अब भी उसी पाकिस्तान के भरोसे है, जिसकी करतूतों के कारण वह अफगानिस्तान में फंसा है| मीर त़की मीर के शब्दों में कहे तो अमेरिका, जिसके चलते हुआ बीमार, उसी अत्तार के लौंडे से दवा लेता है| ओबामा को अब भी पाकिस्तान की चिंता सताए जा रही है| उन्होंने भारत की व्याधि पर मुंह तक नहीं खोला| न्यूयार्क के ट्रेड टावर का तो उन्होंने जोरदार जि़क्र किया, जहां तीन हजार लोग मरे थे लेकिन वे उस भारत को भूल गए, जहां इस्लाम के नाम पर आतंकवादियों ने एक लाख से भी ज्यादा लोग मौत के घाट उतार दिए| मरनेवालों में मुसलमानों की संख्या बहुत ज्यादा है| कम से कम इन बेकसूर मुसलमानों की खातिर ही वे कुछ बोलते| वे कुछ नहीं बोले, क्योंकि अमेरिकी खून खून है, भारतीय खून पानी है| जो आतंकवाद अमेरिका पर चोट करे, वह आतंकवाद और जो भारत को घायल करे, वह उसका अपना सिरदर्द है| क्या ओबामा के नीति-निर्माता लोग इन दोनों आतंकवादों में वही फर्क करते नहीं दिखाई पड़ रहे, जो बुश के लोग कर रहे थे| ओबामा अगर अमेरिका के समान भारत के घावों को भी सहलाते तो कुछ गलत नहीं होता|
जिन विद्वानों ने ओबामा का काहिरा-भाषण लिखा है, उनकी ऩजर में भारत का कितना महत्व है, यह इसी बात से जाहिर हो जाता है कि फलस्तीनियों को अहिंसा का उपदेश देते हुए उन्होंने भारत या गांधी का जि़क्र तक नहीं किया| उन्होंने ईरान के परमाणु-कार्यक्रम के संदर्भ में विश्व परमाणु निरस्त्रीकरण का जबर्दस्त विचार जरूर उछाला लेकिन यह नहीं बताया कि यह प्रस्ताव सबसे पहले 1959 में जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्तराष्ट्र महासभा में रखा था|
आतंकवाद ने अगर सबसे ज्यादा किसी देश को नुकसान पहुंचाया है तो वह भारत को पहुंचाया है| ओबामा इतने डरे हुए-से लगे कि उन्होंने अपने पूरे भाषण में कहीं भी आतंकवाद शब्द का प्रयोग तक नहीं किया है| जैसे ओबामा फलस्तीनियों के साथ-साथ इस्राइल के साथ भी न्याय की गुहार लगाते रहे, उन्होंने पाकिस्तान के मुकाबले भारत के साथ न्याय का मुद्दा छुआ तक नहीं है| कश्मीर के नक़ली मुद्दे पर ओबामा मौन साधे रहे| कश्मीर की ओट में पाकिस्तान 60 साल से जो शिकार खेल रहा है, उसकी पोल खोलना क्या ओबामा का कर्तव्य नहीं था ? ओबामा भी उसी मृग-मरीचिका में फंसे हुए हैं, जिसमें आइज़नहावर से बुश तक सारे अमेरिकी राष्ट्रपति फंसे हुए थे| इसीलिए लोकतंत्र् के सवाल पर भी ओबामा ने वैसी ही लीपापोती की, जैसा कोई पॉंचवी कक्षा का बच्चा कर सकता है| उन्होंने घुमा-फिराकर फौजी तानाशाहियों की तरफदारी की| ओबामा को अब भी गलतफहमी है कि पाकिस्तान के बिना वे आतंकवाद से नहीं लड़ पाएंगे| वे भूल गए कि आतंकवाद की असली अम्मा पाकिस्तान ही है| पाकिस्तान की बनावट और बुनावट ही कुछ ऐसी है कि उसे जिंदा रहने के लिए कश्मीर, इस्लामी बम, जिहाद, आतंकवाद जैसे मुद्दों का लगातार आविष्कार करते रहना पड़ेगा| यह उसकी नियति है कि वह कभी चैन से नहीं बैठ सकता| अपने पड़ौसियों-अफगानिस्तान और भारत को सदा तंग करते रहना ही उसकी मजबूरी है| इस मजबूरी के चलते ही फौज और गुप्तचर विभाग, दोनों ही पाकिस्तान की छाती पर सवार रहते हैं| इस सवारी को आज तक अगर किसी देश ने सबसे ज्यादा मजबूत किया है तो उसका नाम है, अमेरिका ! आज भी अमेरिका अपने डॉलर और हथियार पाकिस्तान पर उलीचे जा रहा है| अपने काहिरा-भाषण में ओबामा ने दुबारा पाकिस्तान की पीठ ठोकी है| ओबामा से कोई पूछे कि अमेरिका के कौनसे हवाई जहाजों या मिसाइलों या टैकों या तोपों का इस्तेमाल तालिबान के खिलाफ होता है| उनके बहाने मिलनेवाले हथियार सदा भारत के खिलाफ इस्तेमाल होते हैं|
यदि अपने क़ाहिरा-भाषण में ओबामा अपने सीनेटरों की इस इच्छा को दोहरा देते तो उनका क्या बिगड़ जाता कि पाकिस्तान सचमुच तालिबान से नहीं लड़ेगा तो उसका हुक्का-पानी बंद कर दिया जाएगा ? यह कितनी अजीब बात है कि मुंबई हमले के अपराधियों पर छतरी ताननेवाले पाकिस्तान से भारत को बात करने के लिए अमेरिका मजबूर कर रहा है लेकिन वह खुद उसामा बिन लादेन से बात नहीं करना चाहता| उसे जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहता है| ओबामा से कोई पूछे कि जैसा हमला मुंबई के ताज होटल पर हुआ, वैसा न्यूयार्क के हिल्टन या मेरियट पर हो जाता तो अमेरिका पाकिस्तान के साथ क्या सलूक करता ? ओबामा ज़रा बताऍं कि ट्रेड टॉवर बड़ा है कि संसद ? ट्रेड टॉवर पर हमला हुआ तो अमेरिका अफगानिस्तान पर चढ़ बैठा, हमारी संसद पर हमला हुआ तो हम सिर्फ गीदड़भभकियॉं देते रहे| ओबामा इस्लाम और मुसलमानों से अमेरिका के रिश्ते सुधारने के लिए जो भी कदम उठाऍं, उसका भरपूर स्वागत होना चाहिए लेकिन ओबामा यह नहीं भूलें कि इस्लाम के नाम का बेजा इस्तेमाल करके कुछ स्वार्थी तत्वों ने भारत और अफगानिस्तान की नाक में दम कर रखा है|
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