दैनिक भास्कर, 12 फरवरी 2009 : पाकिस्तान को लेकर कई घटनाएँ इधर एक साथ हुईं| ए.क्यू. खान की रिहाई, भारत को अल-क़ायदा की नई धमकी, मुंबई-हमले पर पाकिस्तान की टालू प्रतिकि्रया, अमेरिका के विशेष दूत रिचर्ड हॉलब्रुक की पाकिस्तान-यात्र, बि्रटेन द्वारा पाक-अफगान मामलों के विशेष दूत की नियुक्ति ! राष्ट्रपति ओबामा की पहली पत्र्कार परिषद में पाकिस्तान का जमकर उछलना ! इन सब घटनाओं का सार क्या है ? अखबारों के मुखपृष्ठों पर पसरने के अलावा ये घटनाएँ क्या कर सकती हैं ? क्या ये पाकिस्तान की चाल-ढाल में कोई फेर-बदल कर सकती हैं ? शायद नहीं| यदि सचमुच पाकिस्तान पटरी पर चलने लगेगा तो वह दुनिया का आठवाँ आश्चर्य होगा| कहा जाता है कि ढाक के सदा तीन पात होते हैं| यहां ढाक की जगह पाक कह दे तो कुछ गलत नहीं होगा| ऐसा क्यों ? इसके कई कारण हैं| पहला तो यही कि पाकिस्तान सहज राष्ट्र-राज्यों की तरह राष्ट्र-राज्य नहीं है| वहाँ यही पता नहीं चलता कि असली सरकार कौन है ? राज्य की सत्ता राष्ट्रपति के पास है या प्रधानमंत्री के पास ? सेना के पास है या आईएसआई के पास ? या ‘गैर-सरकारी तत्वों’ के पास ? याने आतंकवादियों, तालिबान और मुल्लाओं के पास ? यह कहना भी कठिन है कि सरकारी तत्व पाकिस्तान में अधिक शक्तिशाली हैं या ‘गैर-सरकारी तत्व’ ? खुद आसिफ ज़रदारी और युसूफ रज़ा गिलानी ‘गैर-सरकारी तत्व’ मालूम पड़ते हैं| वे सुबह जो बात कहते हैं, शाम को उसी से इंकार कर देते हैं| पाकिस्तान की सरकार मुंबई-हमले की जाँच क्या खाकर करेगी, जबकि वह अपने आपको इस लायक भी नहीं समझती कि बेनज़ीर भुट्टो की हत्या की जाँच कर सके| उसे खुद पर शक है| अपने ही कर्मचारियों पर उसे भरोसा नहीं है| ऐसी सत्वहीन सरकार भारत के फायदे के लिए कोई जाँच करने की हिमाकत कैसे करेगी, क्यों करेगी ? उसे निष्पक्ष जाँच कोई क्यों करने देगा ? भारत सरकार अगर पाकिस्तान सरकार से किसी जाँच की उम्मीद कर रही हो तो उसके भोलेपन पर मौन रहना ही बेहतर होगा| पाकिस्तान सरकार का एक मात्र् लक्ष्य है, मुंबई-हमले पर पर्दा डालना ! भारत की रपट के जवाब में पाकिस्तान ने जो प्रतिकि्रया दी है, वह कितनी हास्यास्पद है| मुंबई-षडयंत्र् पाकिस्तान की ज़मीन पर नहीं हुआ है| बांग्लादेश या कहीं और हुआ है| ढाई महिने बीत गए लेकिन पाकिस्तान सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है| उल्टे, वह अपने साथ अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को घसीटने की कोशिश कर रहा है| ओबामा-प्रशासन के कड़े तेवरों को ढीले करने के लिए उसने नए शिगूफे छेड़ दिए हैं| इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने ए.क्यू. खान पर से प्रतिबंध उठा लिये हैं| ए.क्यू. खान तो खतरे की घंटी नहीं, घंटा हैं| उनके घंटनाद से पूरा पश्चिमी जगत थर्राता है| इस्लामी बम का पिता अब पता नहीं क्या करेगा ? कहीं वह तालिबान को परमाणु-बम की तकनीक न सिखा दे| पाकिस्तानी नेताओं ने बिना बोले ही पश्चिम को संदेश पहुँचा दिया कि मुंबई को भूलो| मुंबई-हमले में क्या धरा था ? असली चिंता का विषय तो ए.क्यू. खान है| वह तुरूप का पत्ता है| पहले उसे संभालो ! क्या यह कम मज़ेदार बयान है कि रिचर्ड हॉलब्रुक ने मुंबई का जि़क्र तक नहीं किया ? पाकिस्तानी प्रधानमंत्री मद्रगद् हैं| अमेरिकी प्रशासन अब पाकिस्तानी सरकार की खुशामद करेगा कि वह ए.क्यू. खान को कैसे भी दड़बे में बंद करे| खान का पैंतरा मारकर पाकिस्तान-सरकार ओबामा की प्राथमिकता बदलने की कोशिश कर रही है| नई सरकार भी मुर्शरफवाला दांव मार रही है| जैसे मुशर्रफ ने खान को नज़रबंद करके बुश को बुद्घू बनाया था, अब ज़रदारी-सरकार भी वही करेगी बल्कि ज़रदारी उसके बदले में पैसे भी मांगेंगे| उनकी सरकार का खजाना खाली है| सरकारी कर्मचारियों को देने के लिए वेतन नहीं हैं| ज़रदारी का बस चलेगा तो वे ए.क्यू. खान और डॉलरों की अदला-बदली कर लेंगे| खान को मोहरा बनाकर पाकिस्तान सरकार पैसे भी खड़े करेगी और मुंबई को भी हाशिए में सरकाएगी| हॉलब्रुक के पाकिस्तान में रहते हुए ही अल-क़ायदा के तीसरे प्रमुख सरगना का बयान जारी हुआ है| मुस्तफा अबू अल-यज़ीद ने भारत-विरोधी बयान क्यों दिया है ? उसका लक्ष्य क्या है ? सीधा-सादा है| अमेरिका का ध्यान मुंबई पर से हटाओ| यज़ीद का कहना है कि भारत पाकिस्तान पर हमला बोलनेवाला है| अगर ऐसा हुआ तो अल-क़ायदा के मुजाहिद भारतीय सेना के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे| वे भारत के अर्थतंत्र् को नष्ट कर देंगे| भारत को सबक सिखाएँगें| यज़ीद से यह बयान आईएसआई ने दिलवाया होगा| आईएसआई को पता है कि अगर वह भारत का हव्वा खड़ा नहीं करेगा तो उसे अमेरिका की सहानुभूति नहीं मिलेगी| पाकिस्तानी फौज और गुप्तचर संगठन (आईएसआई) ने आतंकवादियों के साथ हाथ मिला लिया है| वे उन्हें देशभक्त और बहादुर बता रहे हैं| पाकिस्तानी सरकार को इतनी शर्म भी नहीं है कि वह बेनज़ीर भुट्टो के हत्यारों को अपने सिर पर न बिठाए| 10 हजार तालिबान और 7 हजार अल-क़ायदा के आतंकवादी पाकिस्तान में सकि्रय हैं लेकिन पाकिस्तानी सरकार शतुर्मुग बनी हुई है| इन सब आतंकवादियों को पैसा, हथियार और प्रशिक्षण आईएसआई दे रही है| इन्हें दबाने के नाम पर पाकिस्तानी सरकार अमेरिकियों से पैसा खा रही है|
इन आतंकवादियों और पाकिस्तान सरकार के सोच में कितनी समानता है| ओबामा के विशेष दूत से पाकिस्तान के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने क्या कहा ? यही कि हमारा ‘पूर्वी सीमांत’ (भारत-पाक सीमा) शांत और सुरक्षित रहना चाहिए| याने आप भारत की कोई बात न करें| मुंबई की चर्चा तक न करें| वह तो कोई समस्या ही नहीं है| असली मसला तो अफगानिस्तान है| यदि आप चाहते हैं कि हम पाक-अफगान सीमांत पर आपकी लड़ाई लड़ें तो आप भारत को काबू किये रहिए| हमें भारत की तरफ से कोई खतरा नहीं होना चाहिए| विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि हॉलब्रुक का कश्मीर से कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री गिलानी ने कहा कि कश्मीर को हल किए बिना दक्षिण एशिया में शांति कैसे हो सकती है| दूसरे शब्दों में पाकिस्तान की सरकार की पूरी कोशिश है कि मुंबई-हमला बिल्कुल दरकिनार हो जाए| पाकिस्तान सरकार अगर मुंबई-हमले को दरकिनार करे तो यह आश्चर्य की बात नहीं है लेकिन क्या वह अफगान-मोर्चे पर भी ईमानदारी से काम कर रही है ? वह हॉलबु्रक को समझा रही है कि अफगानिस्तान में नए 30 हजार जवान मत भेजिए| इससे कोई फायदा नहीं है| कबाइली इलाकों में हवाई हमले मत कीजिए| नरम तालिबान से बातचीत शुरू कीजिए| इन सब तर्को में थोड़ा-बहुत दम जरूर है लेकिन वह तभी है, जबकि अफगानिस्तान की अपनी राष्ट्रीय सेना अपनी पांवों पर खड़ी हो या कोई क्षेत्रीय सेना उसकी सकि्रय सहायता कर रही हो| जब ऐसा कुछ नहीं हो रहा है तब अमेरिका क्या करे ? क्या अफगान लोगों को वह आतंकवादियों के भरोसे छोड़ दे ? क्या पाकिस्तान सरकार से वह बुद्घू बनता रहे ? क्या वह निरंतर ठगाता चला जाए ? ओबामा प्रशासन को अब और अधिक ठगना आसान नहीं होगा| ओबामा को तय करना होगा कि अमेरिका पाकिस्तान सरकार के झाँसे में कब तक फंसा रहेगा| अफगानिस्तान तक अपनी सैनिक और आर्थिक सहायता पहुँचाने के लिए अब अमेरिका सिर्फ पाकिस्तान पर निर्भर नहीं है| भारत द्वारा निर्मित जरंज-दिलाराम मार्ग खुल गया है| ईरान से भी अमेरिकी संवाद कायम हो रहा है| ईरान से होकर जानेवाले इस मार्ग का इस्तेमाल सभी राष्ट्र कर सकते हैं| इसी तरह रूसी और मध्य एशियाई मार्ग भी खुल रहे हैं| ऐसी स्थिति में अमेरिका को अपनी पाक-अफगान नीति में बुनियादी फेर-बदल करना होगा| उसे पाकिस्तान के वर्तमान दर्जे पर पुनर्विचार करना होगा| यदि पाकिस्तान सचमुच आतंकवाद-विरोधी विश्वमोर्चे का विश्वसनीय सदस्य बनना चाहता है तो उसे अपनी ईमानदारी का सबूत देना होगा वरना ओबामा प्रशासन को पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद करने के लिए तैयार होना पड़ेगा| लगता है, आसिफ ज़रदारी को इसकी भनक पड़ गई है| शायद इसीलिए अगले सप्ताह वे दुबारा चीन जा रहे हैं लेकिन चीन भी आखिर कब तक टेका लगाएगा ?
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