Dainik Bhaskar(Bhopal), 29 June 2011 : भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों की बैठक को सफल माना जाए या विफल, यह निर्भर होगा देखने वाले की दृष्टि पर। अगर आप हथेली पर सरसों उगी देखने के शौकीन हैं तो यह बैठक आपको बिल्कुल निर्थक मालूम पड़ेगी, क्योंकि असली मुद्दों पर न पाकिस्तान टस से मस हुआ है और न ही भारत। लेकिन जिन्हें भारत-पाक संबंधों के पेचो-खम का पता है, वे मानेंगे कि काठ के इस घोड़े ने कुछ हिलना-डुलना तो शुरू किया है।
26/11 के आतंकियों की गिरफ्तारी, सीमा-पार आतंकवाद और सूचीबद्ध आतंकवादियों की शिनाख्त आदि जिन मुद्दों पर भारत सबसे ज्यादा खफा है, उन सब पर पाकिस्तान ने लीपा-पोती कर दी। कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं की और न ही वैसा करने के कोई संकेत दिए। यह तो दोनों पक्षों ने माना कि आतंकवाद से दोनों त्रस्त हैं, लेकिन पाकिस्तान ने यह नहीं बताया कि वह भारत विरोधी आतंकवादियों की जड़ उखाड़ने के लिए क्या-क्या कदम उठा रहा है।
यह तो ठीक है कि उसकी फौजें आतंकवादियों से लड़ रही हैं और भारत से ज्यादा पाकिस्तान के लोग आतंकवाद के शिकार हो रहे हैं, लेकिन ये आतंकवादी कौन हैं? किन आतंकवादियों से पाकिस्तान की फौज लड़ रही है? ये भारत विरोधी आतंकवादी नहीं हैं। ये अमेरिका विरोधी हैं। ये करजई विरोधी हैं।
भारत विरोधी आतंकियों को तो पाकिस्तानी फौज अभी तक शह दे रही है। उनके अड्डे पाकिस्तानी जमीन पर बेखौफ दनदना रहे हैं। इन्हें तो पाकिस्तानी सरकार स्वतंत्रता सेनानी कहती रही है, क्योंकि उन्होंने कश्मीर को आजाद करने की कसम खाई है। उन्हें आजकल वह गैर-राज्यीय कार्मिक (नॉन-स्टेट एक्टर्स) कहकर बरी हो जाती है। इस झूठ का पर्दाफाश करने में यह विदेश सचिव वार्ता निश्चय ही सफल नहीं हुई।
इसी प्रकार कश्मीर पर पाकिस्तान ने अपनी रटी-रटाई शब्दावली दोहरा दी है। भारत ने इतनी रियायत जरूर दी कि कश्मीर को बातचीत का विषय मान लिया है। पहले तो भारत सरकार कश्मीर का नाम सुनते ही बौखला जाती थी। उसने यह रहस्य कभी नहीं जाना कि कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान के मुकाबले भारत की स्थिति बहुत ज्यादा मजबूत है।
कश्मीर का मसला जितना पाकिस्तान उठाता है, उससे ज्यादा भारत को उठाना चाहिए। कब्जाए हुए कश्मीर को लौटाने का आग्रह भारत की तरफ से जमकर होना चाहिए। इस बार यह अच्छा हुआ कि विदेश सचिव निरुपमा राव ने इस्लामाबाद के सिर पर कुछ उपदेशात्मक वाक्य वहीं झाड़ दिए। उन्होंने कह दिया कि ये 21वीं सदी है। अपनी शब्दावली बदलिए। बंदूक के साये में क्या कोई बात हो सकती है?
उक्त दोनों मुद्दों पर गाड़ी जहां खड़ी थी, अब भी वहीं है। 64 साल का कचरा 64 मिनट में कैसे साफ हो सकता है? इस मौके पर भारत चाहता तो पाकिस्तान का टेंटुआ कस सकता था। उसकी आर्थिक स्थिति डावांडोल है। नेताओं के साथ-साथ फौज की इज्जत भी पेंदे में बैठ गई है। अमेरिका का मोहभंग हो चुका है। लेकिन भारत में इस समय राजनीतिक दिवालिएपन का आलम है।
हमारे पास आज कोई इंदिरा गांधी या अटलबिहारी वाजपेयी जैसा नेता नहीं है। पक्ष और विपक्ष दोनों ही उजड़े हुए हैं। ऐसी विकट स्थिति में हमारे सुयोग्य अफसर विदेश नीति के क्षेत्र में जितना उचित और बेहतर कर सकते हैं, कर रहे हैं। इस नजर से देखें तो इस वार्ता ने अनेक स्वागतयोग्य संकेत छोड़े हैं।
हमारा सबसे ज्यादा ध्यान तो इस बात पर गया कि दोनों विदेश सचिवों ने अलग-अलग प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। पाकिस्तान ने समझौता एक्सप्रेस का सवाल उठाया तो भारत ने २६/११ का। दोनों पक्षों ने जांच पूरी होने पर एक-दूसरे को सारी बात बताने का संकल्प प्रकट किया। दोनों पक्षों ने अगले माह ऐसी बैठक करने की भी घोषणा की, जो तय करेगी कि कश्मीर की नियंत्रण रेखा के आर-पार व्यापार और आवागमन कैसे बढ़ाया जाए।
स्थानीय रास्तों की संख्या बढ़ाना, कम से कम 21 स्थानीय वस्तुओं को व्यापार के लिए छूट देना, दोनों कश्मीरों में बैंक सुविधाएं शुरू करना, कारगिल-स्कादरु बस सेवा शुरू करना, श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस की आवृत्ति बढ़ाना, दो दिन के बजाय हर हफ्ते चार दिन व्यापार चलाना आदि मुद्दों पर काम किया जाएगा। दूसरे शब्दों में दोनों सरकारें मनमोहन सिंह की ‘सीमाविहीन सीमा’ की अवधारणा को साकार करने में संलग्न होंगी। यह रचनात्मक पहल कश्मीर को समाधान की दिशा में अवश्य ले जाएगी।
वार्ता के दौरान दोनों विदेश सचिवों ने सामुद्रिक सुरक्षा के बारे में भी चर्चा की। भारत और पाकिस्तान के जहाजों की हाल ही में अचानक हुई टक्कर ने दोनों मुल्कों के कान खड़े कर दिए थे। मामले ने तूल नहीं पकड़ा और उससे भी अच्छी और शानदार बात यह हुई कि सोमाली समुद्री डाकुओं से छह भारतीयों को छुड़वाने में पाकिस्तान के स्वनामधन्य नेता अंसार बर्नी ने उच्च मानवीय भूमिका निभाई। उन्हें इस बार पद्मविभूषण जैसा कोई भारतीय सम्मान दिया जाना चाहिए।
यह भी अच्छा निर्णय हुआ कि दोनों देशों के प्रतिरक्षा संस्थानों में सीधा संवाद होगा और विशेषज्ञों का आदान-प्रदान होगा। दोनों पड़ोसी राष्ट्रों ने जापान की सुनामी से सबक सीखा है। वे परमाणु सुरक्षा के पूर्व प्रयत्नों को अब और मजबूत करेंगे। हो सकता है कि किसी दिन दोनों देश इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए परमाणु आयुध संधि कर डालें। दोनों राष्ट्र अब बाह्य अंतरिक्ष में भी पारस्परिक सहयोग के कार्यक्रम चलाएंगे।
दोनों देशों ने राज्य संबंधों के साथ-साथ लोक संबंधों को मजबूत बनाने पर भी जोर दिया है। दोनों देशों के नागरिकों को यात्रा सुविधाएं, वीजा छूट और खिलाड़ियों के आदान-प्रदान को भी अधिक प्राथमिकता मिलेगी। यदि पाकिस्तान अपनी सीमा में से भारत को माल लाने-ले जाने की सुविधा दे तो दोनों देशों का अपूर्व लाभ होगा।
यदि दोनों देशों में सैन्य संवाद वैसे ही खुल जाए, जैसे कि चीन के साथ भारत का खुल रहा है तो अराजक अफगानिस्तान और आतंकवाद दोनों खतरों से निपटना कठिन नहीं होगा। दोनों विदेश सचिवों ने दो-तीन साल से जमी बर्फ को थोड़ा पिघला दिया है। भारत-पाक संबंध काठ के घोड़े की तरह निर्जीव-से दिखाई पड़ने लगे थे, लेकिन अब जो हलचल उनमें पैदा हुई है, वही कुछ दिनों बाद उनमें प्राण-प्रतिष्ठा भी करवा सकती है।
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