Nav Bharat Times, 15 Feb 2005 : माओवादी शब्द काफी गलतफहमी पैदा करता है| नेपाल के माओवादियों का न माओ त्से दुंग से कुछ लेना-देना है और न ही चीन से ! यह बात चीनी सरकार ने भी कई बार खुलकर कही है| अगर माओवादी किसी के बहुत समान दिखते हैं तो वे हमारे नक्सलवादी हैं| उनसे भी ज्यादा वे पेरू के ‘शाइनिंग पाथ’ आंदोलन के निकट हैं| इस आंदोलन को ‘प्रचंड पाथ’ भी कहा जाता है| माओवादियों के नेता पुष्पकमल दहाल का उपनाम ‘प्रचंड’ है| इस आंदोलन के दूसरे नेता और सिद्घांतशास्त्री हैं, डॉ.बाबूराम भट्टराई, जो कि जवाहरलाल नेहरू वि.वि. के छात्र रहे हैं, नेपाल के ये युवा माओवादी राजा और राजतंत्र से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहते| उनकी मुख्य मॉंग यही है कि नेपाल से राजशाही का खात्मा हो और नया लोकतांत्रिक संविधान बनाया जाए| 2003 में सरकार से चली वार्ता के दौरान माओवादियों ने अपनी पहली मॉंग पर ज्यादा जोर नहीं दिया लेकिन यही मॉंग उनके आंदोलन की आत्मा है| यही मॉंग उन्हें नेपाल के अन्य समझौतावादी कम्युनिस्टों से अलग करती है|
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी चुनाव लड़कर सरकार बनाने का अनुभव ले चुकी हैं लेकिन माओवादी चुनाव लड़कर नहीं, सिर्फ लड़कर सत्ता हथियाना चाहते हैं| उन्होंने हिंसा को अपना मूल माध्यम बनाया है| माओ की यह कहावत वे चरितार्थ कर रहे हैं कि राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से पैदा होती है| फरवरी 1996 से चले इस आंदोलन में 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं| पिछले नौ वर्षों में माओवादियों ने आधे से ज्यादा नेपाल पर जबरन कब्जा कर लिया है| माओवादियों ने अपने प्रारंभिक दौर में नेपाली कॉंगे्रस और अन्य दलों के कार्यकर्ताओं को ही मारा| प्रधानमंत्री गिरिजाप्रसाद कोइराला ने मुझे सन्र 2000 में बताया कि माओवादियों के डर के मारे उनके मंत्री और सांसद अपने चुनाव-क्षेत्रों में ही नहीं जाते| फौज और पुलिस उन्हें देखते ही उल्टे पॉंव भागने लगती है| मुठभेड़ में जितने माओवादी मरते हैं, उनसे ज्यादा फौजियों को अपनी जान से हाथ धोने पड़ते हैं| उनसे छीने हुए हथियार ही माओवादी छापामारों का सप्लाय डिपो है| बैंकों, सरकारी खजानों और मालदारों को लूटकर माओवादी अपनी समानांतर सरकार चला रहे हैं और बाहर से हथियार भी खरीद रहे हैं| वे बाहरी सहायता पर निर्भर नहीं हैं| उनका जनाधार भी तगड़ा है| नेपाल के गॉंवों में रहनेवाले मगर, गुरूंग राय, लिम्बू, किराती, दलित आदि लोग उनके साथ हैं, हालॉंकि दोनों सर्वोच्च नेता, भट्टराई और प्रचंड, ब्राह्मण हैं| अपने संगठन के प्रस्तावों और प्रचार-साहित्य में वे नेपाल के दबे-पिसे, पिछड़े, गरीब वर्गों की हिमायत करते हैं| वे नरेश और राजनीतिक दलों को ऊॅंची जातियों और मालदारों का प्रतिनिधि कहते हैं|
जहॉं तक विदेश नीति का प्रश्न है, वे भारत को शत्रु-राष्ट्र और विस्तारवादी कहते हैं| वे 1950 की संधि को रद्द करने, महाकाली आदि परियोजनाओं को समाप्त करने, नेपाल में बसे भारतीयों की सुविधाऍं खत्म करने आदि के प्रस्ताव पारित करते रहते हैं| भारत से उनका सुतीक्ष्ण विरोध इसी मुद्दे पर है कि भारत नेपाल को हथियार क्यों दे रहा है| भारत के लगभग 400 करोड़ रू. के हथियारों का इस्तेमाल माओवादियों को मारने के लिए किया जा रहा है| उनका आरोप है कि नेपाल नरेश अपनी गद्दी पर भारत की वजह से टिके हुए हैं| माओवादियों ने सारे दक्षिण एशिया में हिंसापूर्वक सत्ता हथियाने की सैद्घांतिक और संगठनात्मक तैयारी भी कर रखी है| भारत बड़ी दुविधा में है| उसे पल्ले नहीं पड़ रहा कि वह क्या करे? माओवादी, नरेश और लोकतंत्र में से वह किसका समर्थन करे? किसी एक का करे या दो का करे या तीनों का करे या तीनों का न करे| या करने और न करने का केवल नाटक करे| भारत जो भी करे, वह चुप नहीं बैठ सकता|
माओवादियों के विरूद्घ भारत ने अभी तक कोई सीधी कार्रवाई नहीं की है, हालॉंकि वे भी हमारे नक्सलवादियों का विस्तार मात्र हैं| नेपाल से आंध्र तक वे एक ऐसा स्वायत्त बरामदा चाकू की नोक से उकेरना चाहते हैं, जहॉं अपने पैर जमाकर वे सारे दक्षिण एशिया में रक्त-रंजित क्रांति कर सकें| वे जानते हैं कि दक्षिण एशिया की यथास्थिति को भारत भंग नहीं होने देगा| इसीलिए भारत के प्रति माओवादियों का भाव शत्रुतापूर्ण है| कुछ विश्लेषकों की मान्यता है कि माओवादियों के कठोर बयानों से भारत को नाराज़ नहीं होना चाहिए, क्योंकि नेपाल के लगभग सभी राजनीतिक दलों, नेताओं और नरेशों ने कभी न कभी भारत-विरोध में अपनी जबान जरूर चलाई है| भारत के पड़ौसी देशों में भारत-विरोध शाश्वत-भाव की तरह है| यह ऐसी नाव है, जिस पर कौन सवार नहीं हुआ है? यदि भारत माओवादियों से बात करे तो वे उसकी जरूर सुनेंगे| नेपाल के कुछ तबकों में यह शक भी फैला हुआ है कि राजा को अधर में लटकाए रखने के लिए भारत माओवादियों की अनदेखी करता रहता है और उन्हें समय-समय पर सक्रिय मदद भी देता है| यह आरोप उतना ही निराधार है, जितना यह कि नेपाल-नरेश लोकतंत्र-वादियों की नाक में नकेल डाले रखने के लिए माओवादियों को उकसाते रहते हैं| यह ठीक है कि 2003 में नरेश के कहने पर माओवादियों ने नेपाल सरकार से बातचीत शुरू कर दी थी और यह भी कहा था कि यदि नरेश तैयार हों तो कम्बोडिया की तरह नेपाल में भी नाममात्र का राजतंत्र बर्दाश्त किया जा सकता है| पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री देउबा ने बातचीत की पहल की तो माओवादियों ने कहा था कि वे नरेश के दलालों से नहीं, सीधे, नरेश से बात करेंगे|
अब एक फरवरी के तख्ता-पलट के बाद उन्होंने नरेश के विरूद्घ सीधा अभियान छेड़ दिया है| उन्होंने नरेश को हत्यारा कहा है और राजतंत्र के खात्मे का आह्नान किया है| वे नई संविधान सभा और अंतरिम सरकार की मॉंग कर रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि वे नरेश से कोई बातचीत नहीं करेंगे| ऐसी स्थिति में नरेश क्या कर सकते हैं? माओवादियों पर टूट पड़ने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है लेकिन उन्होंने आपात्काल ठोककर भारत, अमेरिका, बि्रटेन और यूरोप को नाराज़ कर दिया है तथा अपने लोकतंत्रवादियों के हाथ में भी खंजर थमा दिए हैं| माओवादियों ने इस स्थिति का लाभ उठाने की पूरी कोशिश की है| उन्होंने राजनीतिक दलों से मिलकर व्यापक मोर्चा बनाने की अपील की है, जिसे लोकतांत्र्िाक नेताओं ने स्वीकार नहीं किया है| माओवादी शायद यह चाहते हैं कि नरेश ज्ञानेंद्र अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए यदि कोई अंतरिम सरकार बना दें, जिसमें माओवादियों की प्रमुखता हो तो वे अपनी मनमर्जी का संविधान बनवा सकते हैं और अंततोगत्वा चुनाव का नाटक करवाकर नेपाल की सत्ता अपने हाथ में ले सकते हैं| माओवादी शायद यह भूल रहे हैं कि उनका विरोध नरेश से भी ज्यादा लोकतंत्रवादी ही करेंगे| उनके कट्टर विरोधी वे साम्यवादी दल होंगे, जो नरेश और लोकतंत्रवादियों के साथ सत्ता-सुख भोगते रहे हैं| यह आश्चर्य की बात है कि माओवादियों ने पिछले नौ वर्षों में नरेश और लोकतंत्रवादियों से सॉंठ-गॉंठ की कोशिश तो जब-तब की लेकिन भारत के साथ कभी कोई सम्वाद नहीं किया| क्या माओवादी यह नहीं जानते कि यदि काठमांडो में नरेश, नेपाली फौज और राजनीतिक दल गुड़क गए तो भी उसे एक और ताकत से भिड़ना पडे़गा| क्या यह कम बड़ी बात है कि वह ताकत अभी तक तटस्थ रवैया अपनाए हुए है? यदि माओवादी लोकतंत्र और अहिंसा का वरण कर लें तो भारत को उनसे भी बात करने में क्या आपत्ति हो सकती है? भारत का लक्ष्य केवल इतना है कि नेपाल में शांति और सुशासन कायम रहे|
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