नया इंडिया, 14 सितंबर 2011 : एहसान जाफरी के मामले में उच्चतम न्यायालय ने जो निर्णय किया है, उस पर कांग्रेस और भाजपा दोनों की प्रतिकि्रया सही मालूम पड़ती हैं| कांग्रेस का यह कहना सही है कि उच्चतम न्यायालय ने नरेन्द्र मोदी और उनके साथियों को दोषमुक्त घोषित नहीं किया है| अब सारे मामले पर अहमदाबाद की निचली अदालत विचार करेगी| वह यह तय करेगी कि अभी तक जितनी जॉंच रपटें आई हैं, उनमें कुछ दम भी है या नहीं?
जाहिर है कि अहमदाबाद की अदालत यह फैसला भी कर सकती है कि 2002 में गुलबर्ग सोसायटी में जो हत्याकांड हुआ, उसकी सारी और आखिरी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके साथी मंत्रियों की है| यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस की तो लॉटरी ही खुल जाएगी| इसी आशा में कांग्रेस यदि उच्चतम न्यायालय का फैसला सुनकर संज्ञाहीन नहीं हुई तो इसमें आश्चर्य क्या है?
लेकिन स्व. एहसन जाफरी की पत्नी और बेटे के बयानों को पढ़ें तो किसी भी कांग्रेसी का दिल बैठ जाएगा| उन्हें जबर्दस्त धक्का लगा है| वे जाफरी के मामले को अहमदाबाद से उठाकर दिल्ली आखिर क्यों लाए थे? इसीलिए न कि उन्हें न तो अहमदबाद की अदालत पर भरोसा था और न मोदी सरकार की जांच पर! उच्चतम न्यायालय ने अपनी देखरेख में विशेष जॉंच बिठा दी थी| अब अदालत ने सारी जॉंच बंद कर दी है| इतना ही नहीं, सारा मामला अहमदाबाद लौटा दिया है| और यह भी कह दिया है कि वह निचली अदालत जॉंच रपटों को देखने के बाद यदि मामले को बंद करना चाहे तो स्व. जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी को एक बार अपनी बात कहने का मौका जरूर दे|
इसका अर्थ क्या हुआ ? क्या यह नहीं कि गुजराती अदालत पर अविश्वास करने का मामला चारों खाने चित हो गया? प्रकारांतर से मोदी-प्रशासन की निष्पक्षता पर खिंची तलवार चुपचाप फिर से म्यान में चली गई| उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत को यह स्पष्ट निर्देश भी दे दिया कि वह ठीक समझे तो इस मामले को बंद कर दे याने खारिज कर दे| इसके अलावा यह मामला निचली अदालत में अब कितना लंबा खिंचेगा, इसका भी किसी को पता नहीं| तब तक मोदी तीसरी बार मुख्यमंत्री बन जाएंगें और शायद ज्यादा वोटों से बन जाएं| इसीलिए भाजपा गदगद् है|
भाजपा इसलिए भी गदगद् है कि मोदी के विरूद्घ चले अभियान के कारण उसे बिहार, ओडि़सा और आंध्र जैसे राज्यों में पसोपेश का सामना करना पड़ा है| अब वह इस जलालत से मुक्त होने की पूर्ण संभावना देख रही है| यदि अहमदाबाद की अदालत मोदी को सर्वथा निर्दोष घोषित कर देगी तो वे अपने आप अगले प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन जाएंगें| भाजपा के आंतरिक द्वंद्व का भी समाधान हो जाएगा| अखिल भारतीय राजनीति को भी नई दिशा मिलेगी|
उच्चतम न्यायालय के इस फैसले से भारत के राजनीतिक दलों को जो लाभ-हानि हो, असली बात दरकिनार नहीं होनी चाहिए| वह है, गुलबर्ग सोसायटी के हत्यारों को उचित सजा का मिलना| इस नृशंस हत्याकांड के दोषी अगर बच निकले तो यह भारत की न्याय और शासन-प्रणाली का कलंक होगा| यदि गुजरात के नरमेध का राजनीतिकरण नहीं किया गया होता तो अभी तक कुछ न कुछ हत्यारे जरूर पकड़े जाते| दलगत राजनीति की खींचातानी ही वह वजह है, जिसके चलते आज तक न तो कार-सेवकों के हत्यारे पकड़े गए और न ही बेकसूर मुसलमानों के| वे उसी तरह छुट्टे घूम रहे हैं, जैसे 1984 के सिखों के हत्यारे ! हमारे सेक्यूलरवादियों और मानव अधिकार-योद्घाओं ने इस न्याय-प्रकि्रया को इतना पेचीदा और संदिग्ध बना दिया है कि दोनों तरफ के सांप्रदायिक, अपराधी और मूढ़ तत्व निरापद हो गए हैं| राजनेता अपनी गोटियॉं चलते रहेंगे और गुजरात के असली हत्यारे निरंतर अपनी खैर मनाते रहेंगे|
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