दैनिक भास्कर, 12 जनवरी 2006 : ईरान ने अपनी परमाणु भट्टी दुबारा सुलगा ली है| उसने 30 माह पहले यूरोपीय देशों के आग्रह पर अपना यूरेनियम संवर्द्घन का कार्यक्रम बंद कर दिया था| उसका कहना है कि उसने अपनी मर्जी से यह कार्यक्रम बंद किया था और अब अपनी मर्जी से उसे वह चालू कर रहा है| वह किसी से भी कोई अनुमति क्यों ले? क्या वह संप्रभु राष्ट्र नहीं है? क्या अपनी नीति वह स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता ? ज्यों ही उसने तय किया कि वह नतंज नामक स्थान पर बने अपने परमाणु-संस्थान की सील तोड़ेगा, उसने वियना के अंतरराष्ट्रीय परमाणु अभिकरण को सतर्क कर दिया और जब मंगलवार को सील तोड़ी जा रही थी तो अभिकरण के इंस्पेक्टर मौजूद थे| ईरान ने यह कदम उठाते हुए दो महत्वपूर्ण बातें और भी कहीं| एक तो यह कि उसकी सारी परमाणु गतिविधि इन इंस्पेक्टरों की देखरेख में चलेगी| वह चोरी-चोरी कोई काम नहीं करेगा| दूसरा, नतंज में वह यूरेनियम का बहुत सीमित संवर्द्घन करेगा याने उससे केवल बिजली बनाएगा, बम नहीं| और परमाणु-शोध के अपने सीमित कार्यक्रम को, जो ढाई साल से बंद पड़ा है, पुन: शुरू करेगा|
ईरान के इस तेवर में बड़ा भोलापन दिखाई देता है, क्योंकि वह किसी अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि का उल्लंघन नहीं कर रहा है| उसने परमाणु अप्रसार सधि पर दस्तखत किए हैं| इस नाते उसे अधिकार है कि वह परमाणु-ऊर्जा का शांतिपूर्ण दोहन करे लेकिन ईरान के इस तेवर ने टैक्स, सीन और हडसन की खाड़ी में ज्वालाएँ लपका दी हैं| वाशिंगटन, लंदन, पेरिस और बॉन गुस्से से पागल हुए जा रहे हैं| वे ईरान के इस कदम को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के मुंह पर करारा तमाचा मान रहे हैं| ईरान को अभी तक सुरक्षा परिषद के कठघरे में खड़ा नहीं किया गया, इसके बावजूद उसके तेवर ढीले नहीं पड़े| उसके नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने पहले तो इस्राइल का नामो-निशान मिटा देने की धमकी दी और बाद में यह भी कहा कि अगर ईरान पर किसी ने हमला कर दिया तो वह उसे कड़ा सबक सिखाएगा| ईरानी संसद ने परमाणु गतिविधिया दुबारा शुरू करने के लिए प्रस्ताव भी पारित कर दिया था| अब जबकि नतंज की सील टूट गई है, यह मानकर चला जा रहा है कि ईरान ने अपनी गर्दन खुद ही जॉर्ज बुश के शिकंजे में फंसा दी है| अब मामला वियना तक सीमित नहीं रहेगा| यह न्यूयार्क पहुंचेगा और सुरक्षा परिषद्र ईरान पर वैसे ही प्रतिबंध थोप देगी, जैसे कि उसने कभी तालिबान और सद्दाम पर ठोके थे| अगर उनके बावजूद ईरान थमा नही तो उसकी गति एराक जैसी होगी याने ईरान पर, संयुक्तराष्ट्र या अमेरिका सैन्य-कार्रवाई कर देगा|
जाहिर है कि ईरान इन धमकियों को गीदड़भभकियों से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा| अगर उसे ज़रा भी डर होता तो वह अभी कुछ माह तक चुप बैठ रह सकता था| उसका उत्तरी पड़ौसी रूस उसके लिए आसान रास्ता तैयार कर रहा था| रूस ने यहां तक कह दिया था कि ईरान अपने परमाणु-ईंधन का संवर्द्घन ईरान नहीं, रूस में कर ले ताकि किसी को भी कोई शक न रह जाए| इस प्रस्ताव को पश्चिमी समर्थन भी मिल सकता था लेकिन ईरान का रवैया ढुलमुल ही रहा| अभी तक उसने अपनी कोई साफ प्रतिक्रिया नहीं दी है| उसे शायद लगा कि रूसी प्रस्ताव भी उसकी संप्रभुता का क्षरण है| दूसरे शब्दों में ईरान चंग पर चढ़ गया है| उसने सिर पर कफन बांध लिया है| वह हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए कटिबद्घ है| इसका मतलब यह नहीं कि उस पर पागलपन सवार हो गया है| उसके कड़े तेवर के पीछे ठोस कारण भी हैं| वह जानता है कि एराक में लहूलुहान हुआ अमेरिका ईरान पर झपट्टा मारने के पहले हजार बार सोचेगा| उसका साथ कौन देगा ? यदि वह सुरक्षा-परिषद्र के जरिए आना चाहेगा तो चीनी और रूसी वीटो ही चट्टान बन जाएंगे| यदि अमेरिका अकेला ही ईरान पर हमला बोलेगा तो भी एराक और ईरान से शिया मिल जाएंगे| उनकी मिली-जुली बगावत इतनी तगड़ी होगी कि सारे पश्चिम एशिया से अमेरिका के तंबू उखड़ने की नौबत खड़ी हो जाएगी| अमेरिकी सैन्य कब्जे की तीखी प्रतिक्रिया अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी होगी| रूस और मध्य एशिया के देश अमेरिकी सैन्य-उपस्थिति का विरोध करेंगे| इस्लामी जगत खुद पर काबू नहीं रख पाएगा| अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा के खतरे बढ़ जाएंगे| बुश को यह भी पता है कि ईरान, एराक नहीं है| वहां सद्दाम की तरह किसी अल्पसंख्यक तानाशाह का राज नहीं है| ईरान इस्लामी लोकतंत्र् है| वहां लोकपि्रय सरकार और जनता द्वारा निर्वाचित संसद काम कर रही है| यदि अमेरिका ने हमला कर दिया तो सारी दुनिया उसका एराकी हमले से भी ज्यादा विरोध करेगी| भारत और पाकिस्तान जैसे मित्र् देश भी उसका समर्थन नहीं करेंगे| अमेरिका इतने गहरे दलदल में फंस जाएगा कि उसे फिर संयुक्तराष्ट्र भी नहीं उबार पाएगा| विश्व-प्रसिद्घ अमेरिकी गायक हैरी बेलाफांते ने जैसे कहा है कि जार्ज बुश दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी की तरह जाने जाएंगे| इसीलिए लगता है कि ईरान के सवाल पर अमेरिका जल्दबाजी नहीं करेगा| यों भी परमाणु शस्त्रस्त्रें के मामले में अमेरिका का अपना रेकार्ड इतना खराब रहा है कि किसी अन्य राष्ट्र को दंडित करने का नैतिक अधिकार वह खो चुका है|
चंग पर चढ़ा ईरान और बेबस अमेरिका
दैनिक भास्कर, 12 जनवरी 2006 : ईरान ने अपनी परमाणु भट्टी दुबारा सुलगा ली है| उसने 30 माह पहले यूरोपीय देशों के आग्रह पर अपना यूरेनियम संवर्द्घन का कार्यक्रम बंद कर दिया था| उसका कहना है कि उसने अपनी मर्जी से यह कार्यक्रम बंद किया था और अब अपनी मर्जी से उसे वह चालू कर रहा है| वह किसी से भी कोई अनुमति क्यों ले? क्या वह संप्रभु राष्ट्र नहीं है? क्या अपनी नीति वह स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता ? ज्यों ही उसने तय किया कि वह नतंज नामक स्थान पर बने अपने परमाणु-संस्थान की सील तोड़ेगा, उसने वियना के अंतरराष्ट्रीय परमाणु अभिकरण को सतर्क कर दिया और जब मंगलवार को सील तोड़ी जा रही थी तो अभिकरण के इंस्पेक्टर मौजूद थे| ईरान ने यह कदम उठाते हुए दो महत्वपूर्ण बातें और भी कहीं| एक तो यह कि उसकी सारी परमाणु गतिविधि इन इंस्पेक्टरों की देखरेख में चलेगी| वह चोरी-चोरी कोई काम नहीं करेगा| दूसरा, नतंज में वह यूरेनियम का बहुत सीमित संवर्द्घन करेगा याने उससे केवल बिजली बनाएगा, बम नहीं| और परमाणु-शोध के अपने सीमित कार्यक्रम को, जो ढाई साल से बंद पड़ा है, पुन: शुरू करेगा|
ईरान के इस तेवर में बड़ा भोलापन दिखाई देता है, क्योंकि वह किसी अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि का उल्लंघन नहीं कर रहा है| उसने परमाणु अप्रसार सधि पर दस्तखत किए हैं| इस नाते उसे अधिकार है कि वह परमाणु-ऊर्जा का शांतिपूर्ण दोहन करे लेकिन ईरान के इस तेवर ने टैक्स, सीन और हडसन की खाड़ी में ज्वालाएँ लपका दी हैं| वाशिंगटन, लंदन, पेरिस और बॉन गुस्से से पागल हुए जा रहे हैं| वे ईरान के इस कदम को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के मुंह पर करारा तमाचा मान रहे हैं| ईरान को अभी तक सुरक्षा परिषद के कठघरे में खड़ा नहीं किया गया, इसके बावजूद उसके तेवर ढीले नहीं पड़े| उसके नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने पहले तो इस्राइल का नामो-निशान मिटा देने की धमकी दी और बाद में यह भी कहा कि अगर ईरान पर किसी ने हमला कर दिया तो वह उसे कड़ा सबक सिखाएगा| ईरानी संसद ने परमाणु गतिविधिया दुबारा शुरू करने के लिए प्रस्ताव भी पारित कर दिया था| अब जबकि नतंज की सील टूट गई है, यह मानकर चला जा रहा है कि ईरान ने अपनी गर्दन खुद ही जॉर्ज बुश के शिकंजे में फंसा दी है| अब मामला वियना तक सीमित नहीं रहेगा| यह न्यूयार्क पहुंचेगा और सुरक्षा परिषद्र ईरान पर वैसे ही प्रतिबंध थोप देगी, जैसे कि उसने कभी तालिबान और सद्दाम पर ठोके थे| अगर उनके बावजूद ईरान थमा नही तो उसकी गति एराक जैसी होगी याने ईरान पर, संयुक्तराष्ट्र या अमेरिका सैन्य-कार्रवाई कर देगा|
जाहिर है कि ईरान इन धमकियों को गीदड़भभकियों से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा| अगर उसे ज़रा भी डर होता तो वह अभी कुछ माह तक चुप बैठ रह सकता था| उसका उत्तरी पड़ौसी रूस उसके लिए आसान रास्ता तैयार कर रहा था| रूस ने यहां तक कह दिया था कि ईरान अपने परमाणु-ईंधन का संवर्द्घन ईरान नहीं, रूस में कर ले ताकि किसी को भी कोई शक न रह जाए| इस प्रस्ताव को पश्चिमी समर्थन भी मिल सकता था लेकिन ईरान का रवैया ढुलमुल ही रहा| अभी तक उसने अपनी कोई साफ प्रतिक्रिया नहीं दी है| उसे शायद लगा कि रूसी प्रस्ताव भी उसकी संप्रभुता का क्षरण है| दूसरे शब्दों में ईरान चंग पर चढ़ गया है| उसने सिर पर कफन बांध लिया है| वह हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए कटिबद्घ है| इसका मतलब यह नहीं कि उस पर पागलपन सवार हो गया है| उसके कड़े तेवर के पीछे ठोस कारण भी हैं| वह जानता है कि एराक में लहूलुहान हुआ अमेरिका ईरान पर झपट्टा मारने के पहले हजार बार सोचेगा| उसका साथ कौन देगा ? यदि वह सुरक्षा-परिषद्र के जरिए आना चाहेगा तो चीनी और रूसी वीटो ही चट्टान बन जाएंगे| यदि अमेरिका अकेला ही ईरान पर हमला बोलेगा तो भी एराक और ईरान से शिया मिल जाएंगे| उनकी मिली-जुली बगावत इतनी तगड़ी होगी कि सारे पश्चिम एशिया से अमेरिका के तंबू उखड़ने की नौबत खड़ी हो जाएगी| अमेरिकी सैन्य कब्जे की तीखी प्रतिक्रिया अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी होगी| रूस और मध्य एशिया के देश अमेरिकी सैन्य-उपस्थिति का विरोध करेंगे| इस्लामी जगत खुद पर काबू नहीं रख पाएगा| अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा के खतरे बढ़ जाएंगे| बुश को यह भी पता है कि ईरान, एराक नहीं है| वहां सद्दाम की तरह किसी अल्पसंख्यक तानाशाह का राज नहीं है| ईरान इस्लामी लोकतंत्र् है| वहां लोकपि्रय सरकार और जनता द्वारा निर्वाचित संसद काम कर रही है| यदि अमेरिका ने हमला कर दिया तो सारी दुनिया उसका एराकी हमले से भी ज्यादा विरोध करेगी| भारत और पाकिस्तान जैसे मित्र् देश भी उसका समर्थन नहीं करेंगे| अमेरिका इतने गहरे दलदल में फंस जाएगा कि उसे फिर संयुक्तराष्ट्र भी नहीं उबार पाएगा| विश्व-प्रसिद्घ अमेरिकी गायक हैरी बेलाफांते ने जैसे कहा है कि जार्ज बुश दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी की तरह जाने जाएंगे| इसीलिए लगता है कि ईरान के सवाल पर अमेरिका जल्दबाजी नहीं करेगा| यों भी परमाणु शस्त्रस्त्रें के मामले में अमेरिका का अपना रेकार्ड इतना खराब रहा है कि किसी अन्य राष्ट्र को दंडित करने का नैतिक अधिकार वह खो चुका है|
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