Jansatta, 21 Aug 2005 : चीनियों के बारे में हम भारतीयों की धारणा यह है कि वे सब कुछ खा जाते हैं| कोई ऐसा प्राणी नहीं, जिसे वे न खाते हों| जमीन पर चलनेवाला हर प्राणी, पानी में तैरनेवाला हर प्राणी और आसमान में उड़नेवाला हर प्राणी चीनियों के पेट में आसानी से समा जाता है| चार बार चीन आकर और यहां दस दिन से एक माह तक प्रवास करके मैंने यह जान लिया कि भारतीयों की उक्त धारणा कमोबेश ठीक ही है| चीन के भोजनालयों में जो खाना परोसा जाता है, अक्सर उसका चित्र छापकर ग्राहकों के सामने रख दिया जाता है| उस चित्रावली में से आप चुन-चुनकर जिन पर निशान लगा दें, वे ही व्यंजन आपकी मेज़ पर परोस दिये जाते हैं| इस तरह की चित्रावली प्राय: विदेशियों के लिए रखी जाती हैं, क्योंकि चीनी नामों के आधार पर किसी व्यंजन की पहचान करना उनके लिए लगभग असंभव है| ये चित्रावलियां चीनी लोगों के भी काम आती हैं, क्योंकि दूर-दराज के गांवों के लोग चीन की राष्ट्रभाषा पू तुंग व्हा (मेंडारिन) समझ नहीं पाते| व्यंजनों के चित्र देखते ही वे फरमाइश कर देते हैं|
यदि कोई भारतीय, चीनी भोजन की इस चित्रावली को पहली बार देखेगा तो घबरा जाएगा| या तो उसे उल्टी हो जाएगी या उसकी भूख ही मारी जाएगी| इसके विपरीत साथ में गए चीनी जन के मुंह में पानी भर-भर आता है| चित्र बड़े सुंदर जो बने होते हैं| इन चित्रों में क्या होता है? किसका मांस नहीं होता? घोड़े, गधे, कुत्ते, बिल्ली, सांप, छिपकली से लेकर मोर, बाज़, उल्लू तथा सभी तरह के जीव-जंतुओं और यहां तक कि कीड़े-मकोड़े खाने में भी चीनियों को कोई संकोच नहीं होता| चटनी और अचार, ऐसे-ऐसे जीव-जंतुओं का बना होता है कि हम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते| चीनी कहते हैं कि वे सवा अरब लोग है| अगर वे सब कुछ न खाएं तो क्या भूखे नहीं मर जाएंगे? गांवों में तो लोग घर के जीव-जंतुओं को ही पकड़ लेते हैं| उसी समय मार देते हैं और पकाकर खा लेते हैं| रेस्तरां और होटलों में जिंदा जीव-जंतुओं को पिंजरों में और सांपों, मछलियों, झींगों को पानीभरे शीशों के बक्सों में रखकर ग्राहकों को पसंद करवाया जाता है| वे जिसे भी पसंद करते हैं, उसे उसी वक्त मारकर पका दिया जाता है और परोस दिया जाता है| यह दृश्य देखकर शाकाहारी की बात जाने दीजिए, किसी भी भारतीय मांसाहारी का भी दिल दहल जाएगा| सुना है, चीन की सरकार ने इस तरह के तौर-तरीकों पर कानूनी प्रतिबंध भी लगाया है लेकिन उसका पालन कोई भी नहीं करता|
ऐसे चीन में कोई भी शाकाहारी अपना पेट कैसे भर सकता है? इसी भय के मारे जब दस साल पहले मैं सपत्नीक चीन आया तो अपने साथ लगभग पांच किलो खाने का सामान लेकर आया था| हम दोनों के लिए प्रतिदिन आयोजित सरकारी राज-भोजों में भी हम किसी तरह छिपाकर पूड़ी और अचार खा लिया करते थे| सुबह-सुबह लड्डुओं का नाश्ता कर लेते थे| दिन में अगर कहीं तरबूज़ और नारियल के दूध के डिब्बे दिखाई पड़ते थे तो उन्हें फटाफट खरीद लेते थे| पांच-सितारा होटलों में भी दूध, दही, मक्खन या मट्ठा उपलब्ध नहीं होता था| न रोटी न ब्रेड ही कहीं दिखाई पड़ती थी| सिर्फ उबले हुए चावल से कैसे काम चलाया जाएगा, पहले हफ्ते हम यही सोचते रहे| धीरे-धीरे हमारे साथ यात्रा कर रहे दुभाषिए-युगल ने हमारे लिए पहले उबले हुए आलुओं और फिर कुछ हरी सब्जियों का इंतजाम कर दिया| फिर भी लगभग एक माह में हमारा 7-7 किलो वज़न कम हो गया| उस समय हम पूरे चीन में घूमे थे लेकिन शांघाइ का वह भोजन जीवन भर याद रहेगा, जो हमें एक भारतीय राजनयिक ने करवाया था| उस समय चीन के बड़े शहरों में भी भारतीय रेस्तरां नहीं के बराबर ही थे| इतने कम भारतीय चीन आते थे कि कहीं भी पहुंचने पर चीनी लोग पूछते थे कि क्या आप पाकिस्तान से आए हैं? पाक-चीन संबंधों में गर्मजोशी थी और भारत-चीन संबंध बर्फ में जमे हुए थे| लेकिन पिछले दस वर्षों में काफी बर्फ पिघल चुकी है| अब लगभग रोज़ ही कोई न कोई उड़ान भारत से चीन आती है और उसमें भारतीय व्यापारी, व्यावसायिक और अन्य लोग भरे होते हैं| उनमें से बहुत-से शुद्घ शाकाहारी होते हैं| वे चीनी भाषा भी नहीं जानते| आखिर उनका गुजारा कैसे होता है?
मेरा निवेदन है कि दुनिया का सबसे बढि़या शाकाहारी भोजन चीनमें ही मिलता है और जितने प्रकार की शाक-सब्जियां चीनमें बनती हैं, दुनिया के किसी देश में भी नहीं बनतीं| भारत में भी नहीं| जैसे चीनी लोग सभी प्रकार के जीव-जंतु खा जाते हैं, वैसे ही लगभग हर प्रकार की उगनेवाली शाक-सब्जी, फूल-पत्ती, अनाज और फल खाते हैं| जैसी सब्जियां, फल, फूल, पत्तियां और अनाज मैंने चीन में देखे, दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं देखे| चीन भारत से तीन गुना बड़ा देश है| यहां सभी प्रकार की जलवायु और जमीनहै| यहां क्या नहीं उगता? समुद्री पेड़-पौधों को जोड़ लिया जाए तो शाकाहारी व्यंजनों की संख्या हजारों में पहुंच जाती है| अकेले कुकुरमुत्ते (मशरूम) की मैंने कम से कम पचास प्रजातियां देखी हैं| पालक और हरी मैथी जैसी 15-20 हरी पत्तियों की सब्जियां तो मैं स्वयं खा चुका हॅूं| मूली जैसे दर्जनों कंद-मूल यहां बाजारों में सजे होते हैं| उन्हें सब्जियों की दुकान पर लगा देखकर अंदाज किया जा सकता है कि वे हमारे लिए खाने योग्य वस्तु हैं, वरना पके हुए रूप में तो उन्हें छूना या देखना भी मुश्किल है| उनके रंग और आकार-प्रकार अजीबो-गरीब होते हैं| यही हाल फलों का है| जैसे और जितने फल मैंने चीनमें देखे, वैसे और उतने अफगानिस्तान, ईरान और उजबेकिस्तान में भी नहीं देखे| पेइचिंग और शांघाइ में सिंक्यांग, लद्दाख, तिब्बत औरभीतरी मंगोलिया के फल भी आते हैं| लेकिन चीनी फलों में वैसा मिठास नहीं होता, जैसा कि भारतीय फलों में होता है| फिर भी लीची, आडू और संतरे कभी-कभी काफी मीठे मिल जाते हैं| चीनी फल दिखने में काफी अच्छे होते हैं| आजकल अंगूर 50 से 100 रु. किलो तक और चेरी 300 रु. किलो तक बिक रही है| अंगूर डेढ़-दो इंच लंबा है लेकिन घास की तरह फीका है जबकि चेरी स्वादिष्ट है| चेरी में पैसा बोलता है| तरबूज चार-पांच रु. किलो है| यह गरीबपरवर फल है| इसे लोग जमकर खाते हैं| दुकानों और सुपर बाजारों में फलों को काफी सजाकर बेचा जाता है लेकिन सड़कों पर लोग बड़ी-बड़ी टोकरियों में भी फल बेचते हैं| यहां फलों के ठेले कहीं नहीं दिखे, जैसे कि भारत या अफगानिस्तान में दिखाई पड़ते हैं| सड़कों पर बिकनेवाले फल भी काफी अच्छे होते हैं और सस्ते भी ! फलों से ही सूखे मेवे बनते हैं| मेवों की पहचान करनेलगें तो दिमाग चक्कर खा जाए, इतनी तरह के मेवे दुकानों में रखे रहते हैं| कुछ मेवों को देखकर यह संकोच होता है कि उन्हें छुएं कि नहीं? कहीं वे कोई कीड़े-मकोड़े तो नहीं है? चांग शा शहर की एक दुकान में छिली हुई लाल रंग की गीली अदरकदेखकर मुझे काफी अटपटा-सा लगा था| मैं सोच में पड़ गया कि मेवों के बीच में ये गुलाबी झींगे मारकर क्यों पटके हुए हैं? इसी तरह पिस्ते इतने ज्यादा सफेद, छोटे और गोल-गोल हैं कि उन्हें पहचाननेमें कुछ पल लग गए| तिलगोजों को बार-बार छीलता हूं, खाता हूं और खुद को समझाता हूं कि हां, ये तिलगोजे ही हैं| उनका आकार-प्रकार अजीब-सा है| उनका चीनी नाम मेरे पल्ले नहीं पड़ता और हिंदी नाम न तो दुभाषिया कन्या समझती है और न ही दुकानदार ! इसी प्रकार फलों और सब्जियों के असंख्य बीज भी यहां बिकते हैं| भुने हुए और तले हुए भी ! ये सब काफी सस्ते हैं|
अनाज, दालों और फलियों के दानों से चीनी कमाल की चीनें बनाते हैं| सबसे काम की चीज है – सोयाबीन ! सोयाबीनसे दूध, दही, पनीर, रोटी और पता नहीं क्या-क्या चीजें बनाई जाती है| सोया में प्रोटीन बहुत होता है| इससे जो पनीर बनता है, उसे यहां तोफू कहते हैं| दर्जनों तरह का तोफू मैंने खाया है| वह सफेद झक, काला, मटमैला, लाल आदि कई रंगों में होता है| उसके स्वाद भी कई प्रकार के होते हैं| तरह-तरह के अनाजों के व्यंजन बनाए जाते हैं| वे न तो चपाती की तरह होते हैं और न ही तंदूरी रोटियों की तरह| वे या तो पराठे या दोसे या केक या समोसे की तरह होते हैं| आश्चर्य है कि सिंक्यांग चीन का हिस्सा है और लोग यहां तंदूरी खाने से परिचित नहीं हैं| किसी सांवले रंग के अनाज से आटे के उबले हुए गोले भी बनाये जाते हैं| उनका स्वाद बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसा कर्नाटक के ‘मुद्दे’का ! आटे के इन गोलों को चीनी भाषा में ‘नोंग च्या पापा’ कहते हैं| ये माओ त्से तुंग को काफी पसंद थे| ये पहली बार मैंने चांग शा शहर के उसी अग्नि-मंदिर रेस्तरां में खाए, जिसमें माओ खुद खाया करते थे| ये गोले हमारे देवगौड़ाजी को भी काफी पसंद हैं| फर्क इतना है कि चीनी इन्हें चबाकर खाते हैं और जब मैं इन्हें चबाकर खाता हूं तो देवगौड़ाजी जोर-जोर से हंसते हैं और कहते हैं, यह चबाने की नहीं, सीधे निगलने की चीज हैं| अपने अनाजों से चीनी लोग सैकड़ों प्रकार के व्यंजन बनाते हैं लेकिन मुझे उनकी जानकारी ठीक से नहीं मिलती, क्योंकि मेरे बारे में यह प्रसिद्घ हो गया है कि मैं शाकाहारी हूं याने केवल साग-सब्जी और फल खाता हूं| फिर भी पेइचिंग विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष च्यांग चिंग खुई की कृपा से मेरा अनेक नए चीनी व्यंजनों से परिचय हो गया है| दस साल पहले जब चीन के महान नेता तंग श्याओ फिंग जीवित थे, एक व्यंजन को लेकर हमारे साथ काफी हंसी-ठठ्रठा हुआ| पेइचिंग में किसी फुटपाथ पर एक आदमी को हमने आलू की टिकिया बनाते देखा| उस टिकिया का नाम चीनी भाषा में हमने नोट कर लिया| स्याओ पिंग ! केंटन के एक रेस्तरां में जब मेरी पत्नी वेदवतीजी ने बालाओं से कहा कि ”दो प्लेट स्याओ पिंग लाओ” तो पहले तो वे असमंजस में पड़ गईं और फिर हमारे आग्रह करने पर जोर-जोर से हंसने लगीं| हमारे दुभाषिए-द्वय चांग और च्यो, दोनों, जैसे ही लौटे, सारा वृत्तांत सुनकर वे भी हंसने लगे, क्योंकि हमारे मुंह से ‘पिंग’ नहीं, ‘फिंग’ शब्द निकल रहा था| ‘प’ और ‘फ’ के फर्क ने सारा खेल बिगाड़ दिया| यहां श्याओ पिंग का अर्थ आलू की टिकिया नहीं, सर्वोच्च नेता तंग श्याओ फिंग होता है| वे बालाएं बार-बार हम दोनों को चीनी भाषा में समझा रही थीं कि उनके महान नेता तो मृत्यु-शय्या पर लेटे हुए हैं| उन्हें दो प्लेटों में रखकर मेज़ पर कैसे लाया जाए|
वास्तव में जैसे चीन में हजारों प्रकार की शाकाहारी चीजें उपलब्ध हैं, उन्हें पकाने और बनाने की भी असंख्य विधियां हैं| यों तो चीन में चार प्रकार के मुख्य पाकशास्त्र प्रचलित हैं – शानदोंग, सिचुआन, केन्टन और यांगजू| इसमें फूजियन-ताइवान को पांचवां मानकर जोड़ा जा सकता है| भोजन बनाने की ये पद्घतियां भूगोल, जलवायु, शारीरिक क्षमता, चीजों की उपलब्धि आदि अनेक तत्वों पर आधारित हैं| चीन काफी लंबा-चौड़ा देश है और इसका इतिहास सदियों पुराना है| इसीलिए अलग-अलग क्षेत्रों में अपने-अपने ढंग का भोजन बनने लगा है| हर शहर और गांव को अपनी भोजन-पद्घति पर गर्व है| बड़े शहरों में तो चारों-पांचों पद्घतियों का मिला-जुला भोजन भी मिलता है| चीनी भोजन में उबला हुआ, तला हुआ, भुना हुआ और सिका हुआ – सभी तरह का भोजन होता है| कच्चा सलाद भी काफी होता है| चीन के शाकाहारी भोजन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह अत्यंत सुपाच्य होता है| उसे इतना कम उबाला या भूना जाता है कि उसके सारे मूल गुण नष्ट नहीं होते| उसके रेशे भी कायम रहते हैं| मसाले इस तरकीब से डाले जाते हैं कि भोजन तो स्वादिष्ट तो हो ही जाता है, वह स्वास्थ्यप्रद भी बन जाता है| सब्जियों को तेल में भूनने की बजाय उन्हें तेल डालकर कढ़ाई में फिरा लिया जाता है| कई रेस्तरां में तो हरी सब्जियों की कतार लगी होती है| आप सब्जियां चुन लें और बता दें| रसोइया उन्हें तुरंत प्लेट के हिसाब से उठाकर गर्मागर्म उबलते पानी में छोड़ देता है| दो-तीन मिनिट में उन्हें चिमटी से निकालकर आपकी प्लेट पर रख देता है| आप मसाले डालकर उसे मज़े से खा सकते हैं| इसके अलावा हर रेस्तरां में शीशे के बड़े शो-केस में सब्जियों की 10-12 से लगाकर 40-50 प्लेटें तक सजी रखी रहती हैं| आपको जो भी पसंद हो, उसकी तरफ आप इशारा कर दें, भोजबाला अपने छपे हुए सूचीपत्र पर निशान लगा लेगी और सभी चिन्हित प्लेटें लाकर आपकी मेज़ पर रख देगी| उबला हुआ चावल तो हर रेस्तरां में मिलता ही है| अब दही, छाछ और दूध भी मिलने लगा है| दर्जनों प्रकार की रोटी-जैसी चीजें भी मिलती हैं| आप चाहें तो सब्जियों को रोटी में लगाकर भारतीय ढंग से भी खा सकते हैं| वैसे आम चीनी लोग औपचारिक भोजों में चावल और रोटी-जैसी चीजों को खाना जरूरी नहीं समझते| चीन का शाकाहारी भोजन इतना स्वास्थ्यप्रद और सुपाच्य होता है कि जो बौद्घ भिक्षु और अन्य साधारण लोग ऐसा भोजनकरते हैं, उनकी आयु 120 साल तक हो जाती है| चीनियों के भोजनकासमय हमारे शास्त्रोक्त समय के अनुसार ही होता है| वे दिन का भोजन मध्यान्ह के पहले और रात का भोजन सूर्यास्त के पहले कर लेते हैं|
चीनियों का भोजन करने का तरीका भी अनूठा है| वे मेज़-कुर्सी पर बैठकर भोजन करते हैं| गोलमेज पर शीशे की चकरी लगी होती है| उस पर तरह-तरह के छोटी-बड़ी दर्जनों प्लेटें रखी होती हैं| यह चकरी मेज़ की सतह से लगभग एक इंच ऊचंी होती है| चकरी को कुर्सी पर बैठे खानेवाले यथावश्यक घुमाते रहते हैं ताकि हर व्यंजन-प्लेट हर मेहमान के सामने अपने आप पहुंच जाए| गोलमेज़ के चारों तरफ लोगों को बिठाते समय महत्वक्रम का बड़ा ध्यान रखा जाता है| मुख्य अतिथि को मुख्य आतिथेय के पास ही बैठना होता है| अतिथि और शीशे की चकरी के बीच लगभग एक-डेढ़ फुट का फासला होता है| इसी अंतरिम स्थान में खाने की प्लेट रखी होती है| यह प्लेट हमारी पूरी प्लेट की एक-चौथाई होती है| कभी-कभी उससे भी छोटी| इतनी छोटी कि एक पूड़ी के बराबर ! इतनी छोटी प्लेट में खाना कैसे खाया जाए? क्या परोसा जाए और क्या खाया जाए? लेकिन इसी तरह की छोटी प्लेट में सारा चीन रोज़ भोजन करता है| कैसे करता है? इस प्लेट में सब चीजें एक साथ नहीं रखी जातीं| एक साथ इसलिए नहीं रखी जातीं कि वे एक साथ खाई नहीं जातीं| हम लोग रोटी के एक ग्रास से चार-पांच तरह की सब्जी लगाकर खाते हैं| चीन में ऐसा नहीं होता| यहां हर व्यंजन अलग खाया जाता है| एक बार में एक व्यंजन ही लिया जाता है और उसे खत्म करने के बाद अगला व्यंजन लिया जाता है| हर भोज में कम से कम 10 व्यंजन होते हैं, अंत में सूप और फल होते हैं| बिना दूध और चीनी की चाय आदि से अंत तक साथ देती है| ठंडा पानी कोई नहीं पीता| किसी को पानी ही पीना है तो वह गर्म पानी ही पिएगा| मैंने ऐसे अनेक भोजों में भाग लिया है, जिनमें 40-50प्रकार के व्यंजन परोसे जाते थे| चीनी भोजन करते समय यह पता नहीं चलता कि कुल कितने व्यंजन पेश किए जाएंगे| इसीलिए शुरू से ही बड़ी सावधानी रखनी होती है| हर व्यंजन पहली बार उतना ही लेना चाहिए जितना चिडि़या चुग्गा चुनती है| व्यंजन उठाकर अपनी प्लेट में रखने के भी दो तरीके हैं| एक तो यह कि अपनी प्लेट के पास कप में जो चीनी का चौड़ा चम्मच रखा होता है, उसे उठाकर शीशे के चक्कर की बड़ी प्लेट में से सामान निकाला जाए और अपनी प्लेट में डाल लिया जाए| इससे जूठन नहीं लगती| लेकिन दूसरा तरीका यह है कि बड़ी प्लेट में से जो भी उठाना हो, अपने ‘क्वाय ज़ी’ (चॉपस्टिक) से उठाइए और अपनी छोटी प्लेट में रख लीजिए| यह सबसे सरल तरीका है लेकिन इसकी कमी यह है कि इसी चॉपस्टिक या डंडियों से लोग खाना मुंह तक ले जाते हैं| याने अगर डंडियों से खाना उठाएंगे तो वह जूठा तो होगा ही ! डंडियों से खाना खाना जबर्दस्त कला है| मैंने पिछली यात्राओं में बहुत कोशिश की लेकिन डंडियों से मैं एक बार भी खाना नहीं उठा सका| इस बार मैंने चांग शा शहर के ‘अग्निमंदिर रेस्तरां’ में संकल्प किया कि कांटे-छुरी का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करूंगा और न ही अपनी उंगलियों का ! जैसे-तैसे कुछ सफलता मिली| यह वही रेस्तरां है, जहां बैठकर रेबेका होंग और मदाम ली ने मुझे डंडियां पकड़ना सिखाया| दोनों महिलाओं ने आग्रह किया कि इस अवसर पर मैं उन्हें भारतीय नाम दे दूं| रेबेका का नाम रखा, मीरा और ली का नाम रखा, सीता| दोनों महिलाएं बहुत खुश थीं कि उन्हें भेंटस्वरूप भारतीय नाम मिल गए और मैं खुश था कि मैंने डंडियों से खाना सीख लिया|
चीनमें कांटे-छुरी का इस्तेमाल कोई नहीं करता| वे केवल विदेशियों के लिए रख दिए जाते हैं| हर रेस्तरां में लकड़ी या बांस की डंडियां दी जाती हैं| वे एकदम नई होती हैं| आप उन्हें काम में लें या फेंक दें| घरों में उन्हें बर्तनों की तरह धोकर दुबारा इस्तेमाल किया जा सकता है| ये 8-10 इंच लंबी होती हैं और अपनी उंगलियों से आधी मोटी होती हैं| ऊपर थोड़ी चौड़ी, नीचे ज़रा संकरी| मालदार लोग सोने-चांदी, हाथी दांत, यशभ-मंूगे आदि की डंडियां इस्तेमाल करते हैं| डंडियों के सिरों पर सुंदर कलाकृतियां भी बनी होती हैं| चीनी लोग कहते हैं कि जो आप उंगलियों से उठा सकते हैं, वह सब इन दो डंडियों से भी उठा सकते हैं| यह तो अतिशयोक्ति ही है| फिर भी मंूग का दाना तो उठा ही सकते हैं और चाहें तो 50-60 ग्राम तक सब्जी या अन्य पदार्थ भी डंडियों से पकड़कर प्लेट या मुंह में डाल सकते हैं| चीनी लोग रोटीनुमा चीजें और फल भी इन्हीं डंडियों से खाते हैं| मैंने डंडियों से पहले सब्जियां उठाईं और फिर मंूगफली के दाने| एक भोज में मैंने बड़ी प्लेट के मूंगफली के सारे दाने एक-एक करके दूसरे प्लेट में रख दिए| मैं खुद चकित था कि यह कैसे संभव हो रहा है| चीनी लोग हर दाने के तबादले पर ताली बजा रहे थे| डंडी-भोज की सफलता का रहस्य शायद मेरा संकल्प ही था| यह संकल्प कि खाऊंगा तो सिर्फ डंडी से ही खाऊंगा| दो डंडियों में से नीचे की डंडी को अंगूठे के जोर से स्थिर रखना होता है| सिर्फ ऊपर की डंडी शेष दो उंगलियों की चतुराई से घूमती है| पता नहीं, दुनिया के लोग भारतीयों की तरह उंगलियों का इस्तेमाल क्यों नहीं करते? उंगलियां गंदी जरूर हो जाती हैं, इसीलिए भोजन के पहले और बाद में हाथों को धोया जाता है| लेकिन इसके अलावा उंगलियों से खाने में क्या दोष है? हमारे दक्षिण भारतीय लोग तो चम्मच का काम भी उंगलियों से ही ले लेते हैं| उंगलियों से खानेवाले लोग शायद ऊंठे-जूठे का ध्यान ज्यादा रखते हैं लेकिन यह प्रथा मैंने सिर्फ भारत में ही देखी है| मुस्लिम देशों में भी उंगलियों का ही प्रयोग होता है लेकिन उन्हें मैंने जूठन-ऊंठन के बारे में कभी सतर्क नहीं देखा|
चीनी भोजन के साथ चाय और शराब लगभग अनिवार्य हैं| चाय की छोटी-सी प्याली लगातार भरी रहे, यह देखना मेजबान या भोजबाला का कर्तव्य है| चाय भी पचासों तरह की हैं| काली, पीली, हरी के अलावा अनेक फूलों और पत्तों की चाय भी होती है| चीनी चाय का अर्थ है, सुगंध और स्वाद का एक भरा-पूरा संसार| एक किलो चाय की पत्ती का दाम कई हजार रु. भी हो सकता है| चाय जिन डिब्बों में बंद करके बेची जाती है, वे ज़ेवरों के डिब्बों से भी ज्यादा खूबसूरत होते हैं| यदि आपके मेजबान मालदार या सत्ताधीश हैं तो आपको खुश करने के लिए पहले वे किसी शानदार रेस्तरां में आपके लिए गोलमेज़ वाला बड़ा कमरा आरक्षित करेंगे और बैठते ही कोई न कोई बहुत ही खुशबूदार चाय पेश करेंगे| चाय कैसे प्याले में पिलाई जा रही है और भोजन कैसे बर्तनों में परोसा जा रहा है, इससे भी मेज़बान की हैसियत का पता चलता है| चीन तो चीनी बर्तनों की खदान है| एक-एक प्याले और एक-एक तश्तरी की क़ीमत कई हजार रु. तक होती है| ऐसे ही क़ीमती प्यालों में शराब के दौर चलते हैं| बात-बात में जाम टकराना और पूरा का पूरा गुड़क जाना साधारण-सी बात है| कुल भोजन पर जितना खर्च होता है, उससे ज्यादा पैसा तो अकेली शराब खा जाती है| इस्लामी देशों की तरह यहां शराब पीना बुरा नहीं माना जाता| साधारण बौद्घ लोग भी सब कुछ खाते-पीते हैं| जो भिक्खु मांस-मदिरा से दूर रहते हैं, समाज में उनका काफी आदर होता है| चीन में रहते हुए अगर आप शाकाहारी हैं तो लोग आपको स्वर्गिक व्यक्तित्व का धनी समझते हैं| यों भी चीनी लोग भारत को ‘पश्चिमी स्वर्ग’ बोलते हैं|
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