राष्ट्रीय सहारा, (15 मार्च 2007) : पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश को जनरल मुशर्रफ ने जिस बेरहमी से निकाल बाहर किया है, उसने पाकिस्तान के संविधान और लोकतंत्र् की धज्जियाँ उड़ा दी हैं| पिछले एक दशक में तीन बार मुख्य न्यायाधीशों को अपने पद छोड़ने पड़े हैं लेकिन इस बार मुख्य न्यायाधीश का जाना पाकिस्तान के सर्वोच्च शासक को जितना महँगा पड़ रहा है, पहले कभी नहीं पड़ा| प्रधानमंत्र्ी नवाज़ शरीफ की प्रचंड विजय के तुरंत बाद उनके दादाओं ने अदालत में घुसकर इतना जबर्दस्त हंगामा खड़ा किया था कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने इस्तीफा देकर अपना पिंड छुड़ाया| मियाँ नवाज़ को मिले अपूर्व बहुमत की आँधी में वह इस्तीफा कहीं खो गया| इसी प्रकार जनरल मुशर्रफ ने भी तख्ता-पलट के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को हटने के लिए मजबूर कर दिया| उन्होंने माँग की कि उनके द्वारा किए गए तख्ता-पलट की संवैधानिकता तय करने के पहले सारे न्यायाधीश मुशर्रफ के प्रति वफादारी की शपथ लें| मुख्य न्यायाधीश हट गए| उनके बाद आए नए न्यायाधीश के नेतृत्व में मुशर्रफ के तख्ता-पलट को संविधानसम्मत घोषित कर दिया गया| मुख्य न्यायाधीश के पद-त्याग ने भी ज्यादा आँधी नहीं उठाई, क्योंकि नवाज़ शरीफ से लोग तंग आ चुके थे और मुशर्रफ को वे ‘त्रता’ की तरह मान रहे थे|
लेकिन न्यायमूर्ति इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी की मुअत्तिली ने पाकिस्तान में तूफान खड़ा कर दिया है| चौधरी ने न तो इस्तीफा दिया है और न ही उन्होंने अपनी मुअत्तिली पर मौन धारण किया है| वे कमर कसकर समरांगण में कूद पड़े हैं| उन्होंने मुशर्रफ के दुस्साहस को खुली चुनौती दी है| उन्होंने कहा है कि मुशर्रफ ने संविधान की धारा 180 का उल्लंघन किया है| धारा 180 के मुताबिक कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तब ही नियुक्त किया जा सकता है जबकि मुख्य न्यायाधीश का पद खाली हो| अभी चौधरी सिर्फ मुअत्तिल हुए हैं| हटे नहीं हैं| इसके अलावा धारा 209 के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश का मामला केवल सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश ही सुन सकता है| पाकिस्तान के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति भगवानदास राणा हैं, जो कि 22 मार्च तक छुट्टी पर हैं और संयोग है कि भारत में हैं| अब जो सुप्रीम ज्यूडिशियल कौंसिल उनके मामले पर विचार कर रही है, उसकी प्रामाणिकता और वैधता भी संदेहास्पद है| इस कौंसिल के दो सदस्यों के विरुद्घ पहले से भ्रष्टाचार के मामले अधर में लटके हुए हैं और न्यायमूर्ति चौधरी के वे धुर विरोधी रहे हैं| इसके अलावा मुशर्रफ को कोई अधिकार नहीं है कि वह मुख्य न्यायाधीश को मुअत्तिल कर सकें| संविधान में इस बात का दूर-दूर तक कोई संकेत नहीं है| सुप्रीम ज्युडिशियल कौंसिल ही सर्वोच्च न्यायाधीश को हटा सकती है| उन्हें मुअत्तिल करके मुशर्रफ ने कौंसिल के अधिकार अपने हाथों में ले लिये हैं|
मुशर्रफ ने चौधरी पर जो आरोप लगाए हैं, उन पर पाकिस्तान में कोई विश्वास नहीं कर रहा है| उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने बेटे को पुलिस की नौकरी दिलाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया है| सरहदी सूबे के किसी खार खाए हुए जज की चिट्ठी के आधार पर मुशर्रफ ने चौधरी को मुअत्तिल कर दिया| पूरा पाकिस्तान पूछ रहा है कि क्या चौधरी की मुअत्तिली का कारण यही है ? असली कारण बहुत गहरे हैं|
यह ठीक है कि जून 2005 में जब चौधरी को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया तो वे कोई क्रांतिकारी न्यायाधीश के तौर पर नहीं जाने जाते थे| वैसे तो इसी तरह के लुंज-पुंज दिखाई पड़नेवाले लोगों को अक्सर प्रधानमंत्र्ी, मुख्य सेनापति और मुख्य न्यायाधीश जैसे पदों पर बिठाया जाता है लेकिन एक बार वे पदारूढ़ हुए नहीं प्राय: वे चंग पर चढ़ जाते हैं| स्वयं मुशर्रफ इस तथ्य के प्रमाण हैं| यही बात न्यायमूर्ति चौधरी पर लागू हो रही है| मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद उन्होंने कई ऐसे फैसले दे दिए हैं, जिनसे मुशर्रफ सरकार की किरकिरी हो गई और चौधरी की छवि चमकने लगी| उन्होंने पाकिस्तान की सरकारी स्टील मिल की बिक्री रोक दी, लाहौर में पतंगबाजी पर रोक लगा दी, औरतों के विरुद्घ हो रहे अपराधों पर कड़ा रूख अपनाया और सबसे महत्वपूर्ण निर्णय उन्होंने उन ‘गुमशुदा लोगों’ के बारे में दिया, जिनके परिवारजन सरकार के कान उमेंठ रहे थे| जिन मुकदमों का सरकार उल्लेख तक नहीं चाहती, चौधरी की अदालत ने उन्हें राष्ट्रीय विवाद का विषय बना दिया| चौधरी जनता के जज बन गए| उन्होंने तानाशाही के महल में लोकतंत्र् को पिछले दरवाजे़ से प्रवेश करवाना शुरू कर दिया| वे न्यायिक जुझारूपन का परिचय देने लगे| वे भारत की न्यायपालिका का अनुसरण करने लगे|
इसीलिए चौधरी की मुअत्तिली, अन्य जजों की मुअत्तिली से अलग साबित हो रही है| पाकिस्तान के लगभग सभी विरोधी दलों को जबर्दस्त मुद्दा हाथ लग गया है| 9 मार्च से लेकर अब तक चौधरी के साथ शासन जो भी दुर्व्यवहार कर रहा है, सारे पाकिस्तान में उसकी निंदा हो रही है| टी वी चैनल और अखबार सरकार की भर्त्सना कर रहे हैं| सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद प्रचारतंत्र् दहाड़ रहा है| चौधरी का मामला बुगती के मामले से अलग रंग ले रहा है| नवाब अकबर बुगती की हत्या का असर सिर्फ बलूचिस्तान में हुआ है जबकि इस न्यायिक हत्या का असर सारे पाकिस्तान में हो रहा है| चौधरी पाकिस्तानी जनता के महानायक बनते चले जा रहे हैं| जैसे जनरल अयूब के शासन के आखिरी दिनों में जुल्फिकार अली भुट्टो छात्रें, वकीलों और विरोधी दलों के नायक बन गए थे, वैसे ही न्यायमूर्ति चौधरी एक राजनीतिक हस्ती बनते जा रहे हैं| पाकिस्तान की संसद और राष्ट्रपति के चुनाव अगले वर्ष होने हैं| यदि चौधरी सर्वोच्च न्यायिक पद पर रह जाते तो भी खतरनाक सिद्घ होते और अब नहीं रहकर वे ज्यादा खतरनाक सिद्घ हो रहे हैं| यह असंभव नहीं कि वे चुनाव के पहले जनरल मुशर्रफ को या तो सेनापति-पद छोड़ने के लिए मजबूर करते या राष्ट्रपति-पद छोड़ने को| 24 मार्च को लंदन में हो रही सर्वदलीय बैठक में भी चौधरी का मामला उठे बिना नहीं रहेगा| यदि पाकिस्तान के छात्र्, वकील, मानव-अधिकार कार्यकर्त्ता, पत्र्कार और विरोधी दल एकजुट हो गए तो मुशर्रफ सरकार के होश ढीले पड़ जाएँगे|
चौधरी की मुअत्तिली मुशर्रफ को इस दृष्टि से भी महँगी पड़ेगी कि पश्चिमी राष्ट्र उसका समर्थन नहीं कर पाएँगे| बलूचिस्तान और पख्तून-क्षेत्र् तो मुशर्रफ की गिरफ्त से पहले ही बाहर हैं, अब पश्चिमी राष्ट्रों को मुशर्रफ के आतंकवाद-विरोध पर भी शंका हो गई है| उन्हें पता चल गया है कि दूध में पानी कितना है| यदि अमेरिका ने हाथ खींच लिया तो कराची और लाहौर को भी कँपकँपी चढ़ जाएगी| प्रधानमंत्र्ी शौकत अजीज, जिस आर्थिक प्रगति का ढोल पीट रहे हैं, उसके फूटने में देर नहीं लगेगी| इधर पाँच-छह वर्षों में अमेरिका से झाड़े गए 10 बिलियन डालर (लगभग 50 हजार करोड़ रु.) की हरियाली अब सूखने लगेगी| चौधरी को हटाकर मुशर्रफ ने फिजूल की मुसीबत मोल ले ली है| यह ठीक है कि चौधरी के कारण तुरंत मुशर्रफ का तख्ता-पलट नहीं होगा, लेकिन इस मामले ने तख्ता-पलट की नींव मजबूत कर दी है| यदि शीघ्र ही कोई व्यापक जन-आंदोलन भड़क गया तो अमेरिकी प्रशासन या तो किसी वैकल्पिक जनरल के कंधे पर हाथ रखना चाहेगा या लोकतांत्र्िक दलों को पटाने की कोशिश करेगा| मुशर्रफ ने अपने खिलाफ़ एक साथ कई मोर्चे खोल लिये हैं| वे अपने ही नियुक्त किए हुए जज के फंदे में फँस रहे हैं| कहीं उनके दिन तो पूरे नहीं हो रहे हैं ?
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