पाकिस्तान के पूर्व सेनापति राहील शरीफ को दुनिया के इस्लामी राष्ट्रों की फौजों के गठबंधन का प्रमुख नियुक्त किया गया है। पाकिस्तान सरकार ने उन्हें इसकी इजाजत भी दे दी है। इस 39 मुस्लिम राष्ट्रों के फौजी गठबंधन का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से लड़ना है। इसकी पहल सउदी अरब ने की है। यह पहल 2015 में हुई थी लेकिन यह परवान अब चढ़ रही है। यदि वास्तव में यह गठबंधन खड़ा हो गया और इसने आतंकियों के सफाए की ठान ली तो कोई आश्चर्य नहीं कि यह संसार साल भर में ही लगभग आतंकमुक्त हो सकता है, क्योंकि दुनिया यही कहेगी कि तुम्ही ने दर्द दिया, तुम ही दवा देना।
आतंकवाद का जन्म, फैलाव, और दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा इस्लामी देशों में ही है। यदि वे हाथ धोकर इसके पीछे पड़ गए तो आतंकवादियों को टिकने की कोई जगह दुनिया में नहीं मिलेगी। यह भी संतोष का विषय है कि इस आतंक-विरोधी इस्लामी गठबंधन का मुखिया दक्षिण एशिया के एक जनरल को चुना गया है। मुझे विश्वास है कि जनरल शरीफ सबसे पहले पूरे दक्षिण एशिया से आतंकवाद को खत्म करने पर ध्यान देंगे।
जनरल शरीफ ने ही दो साल पहले पाकिस्तान के आतंकवादियों के खिलाफ जबरदस्त अभियान चलाया था।
जनरल शरीफ के इरादे तो नेक हैं उन्हें आतंकवाद से लड़ने का अच्छा अनुभव भी है लेकिन असली सवाल यह है कि वे जिस गठबंधन के प्रमुख बन रहे हैं, उसके सिद्धांत, आदर्श, लक्ष्य और नीति क्या हैं? यह कौन नहीं जानता कि इस्लामी आतंकवादियों को मदद और उकसावा देने का काम सउदी अरब ही करता है? वहाबी इस्लाम को जन्म किस देश ने दिया है? सीरिया के ‘निजामे-मुस्तफा’ ;इस्लामी स्टेटस को सबसे पहले किसने मदद की? पश्चिम एशिया के शिया शासकों को आतंकित करने का काम किसने किया?
अब जबकि डोनाल्ड ट्रंप ने आतंक के खिलाफ युद्ध का खुले-आम एलान कर दिया है और ‘इस्लामी राज्य’ के आतंकी सउदी अरब के खिलाफ ही सक्रिय हो गए हैं तो सउदी अरब को यह इस्लामी गठबंधन खडा करने की बात सूझी है। जनरल शरीफ को सावधान रहना होगा। इस्लाम के नाम पर वे कहीं सउदी मोहरे का रोल अदा न करने लगें। कहीं ऐसा न हो कि सारे इस्लामी राष्ट्रों के फौजी जवानों को सउदी अरब-जैसे कुछ मालदार देशों की रक्षा में ही झोंक दिया जाए? जनरल शरीफ को एक और बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए। इस्लामी आतंक सिर्फ फौजी कार्रवाई से नहीं मिटेगा। उसके लिए इस्लाम और उसके इतिहास की पुर्नव्याख्या करनी होगी।
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