दैनिक भास्कर, 20 जनवरी 2011 : क्या यह संभव है कि एक बेरोजगार नवयुवक गुस्से में आकर आत्महत्या करे और उसके फलस्वरूप किसी देश के राष्ट्रपति का तख्ता उलट जाए ? जी हॉ, ट्यूनीसिया नामक अरब राष्ट्र में यही हुआ है| एक सुशिक्षित नौजवान ठेले पर रखकर सब्जियॉं बेच रहा था, क्योंकि उसे कोई नौकरी नहीं मिल रही थी| उसकी गलती यही थी कि उसके पास सब्जी बेचने का लाइसेंस नहीं था| पुलिस ने उसे धर दबोचा, सब्जियॉं छीन लीं और बुरी तरह से पीटा| वह क्या करता ? उसने आत्महत्या कर ली| यह लगभग एक माह पहले की बात है| तुरंत कुछ नहीं हुआ| कोई तूफान क्या, लहर भी नहीं उठी| वह नौजवान कोई नाम-गिरामी नेता या कलाकार या अफसर नहीं था| वह तो अनाम कुल-शील था| उसे बाद में मुहम्मद बौजिजी के नाम से जाना गया| लेकिन धीरे-धीरे उसकी मौत की खबर ट्यूनीसिया के घर-घर पहुंच गई| राष्ट्रपति जीन अल-अबीदीन बिन अली का शिकंजा इतना तगड़ा कसा हुआ था कि अखबार और टीवी चैनल्स उस नौजवान के बारे में सांस भी नहीं ले सकते थे लेकिन इस मौके पर सैकड़ों साल पुराना परंपरागत माध्यम उस नौजवान के काम आया| उसकी मौत की खबर आंधी की तरह फैल गई और कानोंकान फैल गई| हजारों लोगों ने अपने आप जमा होकर राजधानी ट्रयूनिस का हुक्का-पानी बंद कर दिया| 23 साल से लोगों की छाती पर सवार तानाशाह बिन अली के होश फाख्ता हो गए| प्रशासन ठप्प हो गया| शुरू में कुछ लोग मारे गए लेकिन बढ़ते हुए जनाक्रोश से उद्वेलित सेनापति रसीद अम्मार ने गोली चलवाने से मना कर दिया| ट्रयूनिसिया के प्रमुख अखबर और चेनल राष्ट्रपति की विरूदावलियॉं गाते रहे लेकिन बगावत की आग इतनी तेज फैली कि जनता तो जनता, कैदियों ने जेलें तोड़ दीं और उनमें आग लगा दी| अब तक साठ से ज्यादा लोग मारे गए हैं|
राष्ट्रपति के सारे हिंसक हथकंडे जब बेअसर सिद्घ हो गए तो उन्होंने दुबारा चुनाव करवाने की घोषणा की और यह भी वादा किया कि वे 2014 का चुनाव नहीं लड़ेंगे याने 23 साल पहले उन्होंने तख्ता-पलट से जो सत्ता हासिल की थी, उसे वे हमेशा के लिए छोड़ देंगे लेकिन वे समझ गए कि जनाक्रोश इतना तीव्र हो चुका है ि कवे एक दिन भी राष्ट्रपति भवन में टिक गए तो लोग उन्हें मार डालेंगे| वे भाग खड़े हुए| अपने परिजनों और लगभग आधा टन सोने के साथ वे मध्य-रात्र्ि में सउदी अरब पहुंच गए| उनका अत्यंक सतर्क जासूस-तंत्र्, पुलिस और फौज, कोई भी उनके काम नहीं आया| ट्रयूनीसिया में केाई विरोधी दल भी नहीं है, जिसे वे पटा पाते| उनके राजनीतिक सिपहसालार पहले तो बिल्कुल तटस्थ रहे लेकिन ज्यों ही तख्त हिलने लगा, संसद के आज्ञाकारी अध्यक्ष फउद कोबज्जा अंतरिम राष्ट्रपति बन गए और प्रधानमंत्री मुहम्मद ग़नौची ने नई सरकार की घोषणा कर दी| जनता को पता है कि ये सब लोग भी पूर्व तानाशाह बिन अली के चमचे हैं| अपनी साख जमाने के लिए इन नेताओं ने अगले 60 दिन में नए चुनाव करवाने की घोषणा की है| जिस मंहगाई, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और तानाशाही के आगे ये सब लोग कल तक नतमस्तक थे, उनके विरूद्घ भी उन्होंने बोलना शुरू कर दिया है|
1956 में फ्रांस से आज़ाद होने के बाद इस समुद्र तट पर बसे सुंदर अरब देश को प्रसिद्घ नेता हबीब बोर्गिबा का नेतृत्व मिला| 98 प्रतिशत की मुस्लिम आबादी के देश में न तो इस्लामी अतिवाद कभी प्रभावशाली हुआ और न ही अनेक अफ्रीकी देशों की तरह अकाल और गरीबी का तांडव मचा| इस देश में सांप्रदायिक और कबाइली मतभेद भी कभी ज्यादा नहीं उभरे लेकिन 1987 में राष्ट्रपति बोर्गिबा के स्वास्थ्य ने जवाब दे दिया| उनकी कमजोरी का फायदा उठाकर उनके प्रधानमंत्र्ी अल-अबीदीन बिन अली ने तख्ता-पलट कर दिया| तख्ता-पलट तो अब भी हुआ है लेकिन यह न तो फैाज ने किया है और न ही राजमहल की अंदरूनी साजिशों ने| अरब और अफ्रीकी देशों के हिसाब से देखा जाए तो यह अपने ढंक का अनन्य तख्ता-पलट है| इसकी तुलना एराक, घाना, केन्या, लीब्या आदि देशों से नहीं की जा सकती| यह तो कुछ-कुछ ईरान और किगिजि़स्तान जैसा है| ईरान में अब से 35 साल पहले शाहंशाह के खिलाफ फैली बगावत को मैंने प्रत्यक्ष देखा है और पिछले साल किरगीज़ राजधानी बिश्केक में भी तेहरान और मशद जैसी आग फैल गई थी| इन देशों में आयतुल्लाह रूहल्ला खुमैनी और रोज़ा अतनूबायेवा-जैसे नेताओं ने जनता की रहनुमाई की और बगावत को धीरे-धीरे सुलगाया लेकिन ट्यूनीसिया में तो यह बगावत जंगल की आग की तरह फैली है| एक मामूली-सी चिंगारी पहले से बिछे हुए बारूद के ढेर पर गिरी और पूरी ट्यूनीसिया धधक पड़ा| ट्यृनीसिया की इस बगावत को ‘रजनीगंधा क्रांति’ भी कहा जा रहा है| इस रजनीगंधा की मादक सुंगध ने सारे अरब जगत को सम्मोहित कर दिया है|
यह बारूद सिर्फ ट्यूनीसिया में ही नहीं बिछी हुई थी| अफ्रीका और अरब देशों में लगभग सर्वत्र् यही हाल है| चुनाव को ढोंग कई देशों में होता है| सोवियत संघ की तरह ट्रयूनीसिया में भी बिन अली ने लगातार पांच चुनाव जीते और 99 प्रतिशत वोटों तक से जीते| 2009 के पिछले चुनाव में उन्हें 88 प्रतिशत वोट मिले| यह उनके लिए बड़ा धक्का था लेकिन असली धक्का तो उन्हें अब मिला है| इस तरह के धक्के की ज़मीन अभी इन देशों में धीरे-धीरे तैयार हो रही है| मिस्र, सूडान, मौरिटानिया और अल्जीरिया जैसे देशों में ट्रयूनीसिया की कंपकपाहट पहुंच गई है| आत्महत्या की इक्की-दुक्की घटनाओं ने तानाशाहों और परिवारशाहों के पसीने छुड़ा दिए हैं|
तेल और खनिजों की आमदनी को कवच के तौर पर इस्तेमाल करनेवाले ये तानाशाह मानकर चलते हैं कि इन्टरनेट के इस युग में भी वे सुरक्षित है, क्योंकि उनके भूखे-नंगे लोगों पर वे अपनी अकूत आमदनियों की जूठन फेंकते रहते हैं, जिसके कारण उनके मुंह बंद रहते है| इस बार ट्यूनीसिया ने दिखा दिया है कि अरब और अफ्रीकी नौजवान अब सिर्फ जूठन पर जिंदा रहनेवाला नहीं है| उसे अपना पेट भरने के साथ-साथ अपने आत्म-सम्मान और नागरिक अधिकार की भी पूरी चिंता है| इस चिंता का समाधान यदि गुलाम अदालतें और संसदें नहीं करेंगी तो बारूद के ढेर पर पड़नेवाली वह चिंगारी करेगी, जिसका नाम आत्महत्या है|
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