राष्ट्रीय सहारा, 12 दिसम्बर 2004: ढाका पहली बार नहीं आया हॅूं| पहले भी दो बार आ चुका हॅूं| पहली बार प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव और दूसरी बार प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा के साथ| इन दोनों यात्राओं के बाद ऐसा लगा कि बांग्लादेश आकर भी मैं यहॉं नहीं आया| दोनों यात्राओं में हम लोग होटल सोनारगांव और शेराटन में घिरे रहे| ढाका कैसा है, क्या है, कुछ पता नहीं चला| इस बार बांग्लादेश के सामरिक और अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के निमंत्रण पर तीसरी बार ढाका आना हुआ| चार दिन में कोई ढाका कितना देख सकता है? डेढ़ दिन तो सेमिनार में लग गया और आधा दिन विदेश मंत्री मुर्शीद खान और सूचना मंत्री शम्शुल इस्लाम के साथ चाय-पानी और गपशप में बीत गया| संयोग की बात है कि बांग्लादेश में ये दो ही पुराने मित्र हैं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तरह यहॉं सैकड़ों मित्रों का मेला नहीं है| पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना से भी अच्छा परिचय है| लेकिन सरकारी मेहमान हॅूं, इसलिए उन्हें खबर तक नहीं कर पाया| यहॉं आज वे 900 किलोमीटर की मानव-श्रृंखला के जरिए बेगम खालिदा की सरकार को घेरेंगीं|
ढाका की आबादी लगभग एक करोड़ है| शहर छोटा है, आबादी बड़ी है| हर चप्पा लोगों से भरा पड़ा है| कंधे से कंधा भिड़ाए बिना आप फुटपाथ पर चल नहीं सकते| ज्यादातर सड़कें संकरी हैं| कारों और स्कूटरों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि कई मिनट तक आप सड़कें पार नहीं कर सकते| लगभग रोजाना कई सड़कों पर यातायात ठप्प हो जाता है| ढाकावासियों को कई बार घंटों सड़क पर ही बिताने पड़ते हैं| इसी कारण उच्चतम स्तर के कार्यक्रम भी समय पर नहीं होते| दिल्ली की तरह यहॉं न तो शानदार पुल बने हुए हैं और न ही चौड़ी-चौड़ी सड़कें हैं| लेकिन “गुलशन” नामक इलाके में बड़े शानदार आधुनिक भवन भी दिखाई पड़े| लगभग हर सड़क पर बहुमंजिले सुपर बाजार भी देखे जा सकते हैं| पहले कहा जाता था कि ढाका मस्जिदों का शहर है, अब कहा जाता है कि यह सुपर बाजारों का शहर है| सुपर बाजार यहॉं कितने ही हों, ढाका की जान यहॉं की छोटी-छोटी दुकानें ही हैं| इन हजारों दुकानों में मिठाई, जूते, साड़ी, जेवर, पान, परचूनी, चीनी बर्तनों आदि की दुकानें देखने लायक हैं| छोटी-छोटी दुकानें भी खूब सजी-धजी रहती हैं| दुकानदारों और ग्राहकों के बीच वैसी ही सौदेबाजी चलती है, जैसी कि हमारे यहॉं होती है लेकिन बड़ी दुकानों में एक दाम होता है| यदि आप हजारों रूपये की चीजें खरीदें तो भी वे एक पैसा कम करने को तैयार नहीं होते| विदेशियों का समय खराब न हो और चुनी हुई चीजें उन्हें मिल जाऍं, इस दृष्टि से साडि़यों, मिठाइयों और सिरेमिक्स की कुछ दुकानों पर उन्हें ले जाया जाता है| ये दुकानें महंॅगी हैं लेकिन इनमें बिकनेवाली चीजें सचमुच लाजवाब होती हैं| सूती साड़ी 20 हजार रूपये और सूती कुर्ता क्या पॉंच हजार रूपये हो सकता है| बिल्कुल हो सकता है| क्या हम इतिहास की किताबों में ढाका की विश्व प्रसिद्घ मलमल के बारे में नहीं पढ़ते? वही मलमल गर्मियों में जिसके रोम पहॅुंचने की प्रतीक्षा यूरोप की सुंदरियॉं किया करती थीं और जिसे सोने से तौला जाता था| राजशाही और टंगाइल रेशम के भी क्या कहने? कुछ किस्में तो ऐसी हैं कि चीनी रेशम को भी मात दे दे| इस प्रकार चीनी मिट्टी के बर्तनों में बांग्लादेश शायद दक्षिण एशिया का सबसे प्रगत देश बन गया है| बीस से पच्चीस हजार रूपये तक के डिनर सैट देखे| एक-एक मग ढाई-ढाई सौ रूपये का है| ‘बोन-चाइना’ के सफेद-झक बर्तन फूल की तरह हल्के और कागज की तरह पारदर्शी हैं| ‘बांग्ला मिष्टी’ मिठाई तो लाजवाब है| शुक्रवार की रात ढाका की सर्वश्रेष्ठ दुकानों में गए और मिठाइयों से ही पेट भरा| मन तब भी नहीं भरा| बंगाली मिठाइयॉं शायद दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मिठाइयॉं हैं| यदि शीघ्र खराब नहीं होतीं तो बंगाली मिठाइयों से भारत और बांग्लादेश अरबों डॉलर कमा सकते थे| दुनिया की कोई चॉकलेट या मिठाई उसका मुकाबला नहीं कर सकती| सुपर बाजार से डिब्बा बंद ‘संदेस’ एक माह तक रखे जा सकते हैं|
मिठाई की बात चली तो याद आया कि ढाका के लोग बड़े ही दरियादिल हैं| एक सुपर बाजार में इडली जैसी चीज दिखी तो मैंने दुकानदार से अपनी टूटी-फूटी बांग्ला में उसके बारे में (जिज्ञासा) पूछा| न वह मेरी बात समझ पा रहा था और न ही मैं उसकी| हमारे दुभाषिये और सुरक्षाकर्मी कहीं और अटके हुए थे| एक अनजान महिला ने हमारी परेशानी भांपी और मुझे हिंदी में बताया कि यह इडली नहीं ‘पीठा’ है| ऊपर से इडली अंदर से पनीर या मावा| मैं उसे खरीदता उसके पहले ही उस महिला ने पीठा खरीदकर मेरी प्लेट में रख दिया| इसी प्रकार एक अन्य प्रमुख बाजार में एक अनजान युवक से जब मैंने बांग्ला में होटल का रास्ता पूछा तो वह आग्रहपूर्व अपनी दुकान में ले गया और कुछ खाने या पीने के लिए मजबूर करने लगा| जब मैंने कुछ नहीं लिया तो वह माना नहीं| उसने तरह-तरह के बिस्किट, नमकीन और परमल (मूड़ी) की थैली भरकर मुझे पकड़ा दी| वह हिंदी बोल रहा था और दिल्ली में रह चुका था| पिछले चार दिनों में इस तरह के कई छोटे-मोटे अनुभव हुए| इससे यह जाहिर होता है कि पड़ोसी देश में भारत का भय तो है| लेकिन उसके प्रति घृणा नहीं| ढाका की जिस बात ने मुझे प्रभावित किया, वह है बांग्लादेशियों का स्वभाव-प्रेम| यहॉं मैंने एक भी वाहन ऐसा नहीं देखा, जिसकी नंबर प्लेट अंग्रेजी में हो, ज्यादातर नामपट्ट भी बांग्ला में हैं| विदेश मंत्री मुझसे जहॉं मिले, वहॉं केवल बांग्ला में लिखा था ‘अतिथिकक्ष’ ! मैंने किसी भी मंत्री, अफसर या विद्वान को एक-दूसरे से अंग्रेजी में बात करते नहीं सुना| सब बातें बांग्ला में होती हैं| अफसरों ने बताया कि अपनी सारी लिखा-पढ़ी भी वे बांग्ला में ही करते हैं| दुकानदारों की पावतियॉं वगैरह भी बांग्ला में होती हैं| सुपर बाजारों और होटलों में अंग्रेजी लिखा-पढ़ी होने लगी है| बांग्लादेश के मुसलमान अपने-आप में अजूबा हैं| उन्हें अपनी भाषा और संस्कृति पर बड़ा गर्व है| भाषा के नाम पर बनने वाला यह दुनिया का पहला देश है| वे कह सकते हैं हम तलवार के जोर पर मुसलमान नहीं बने हैं| इस्लाम हमारे यहॉं सूफी रास्ते से आया है| हमलावर के कंधे पर बैठकर नहीं|
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