मेरे पिछले दो-तीन दिन इंदौर और जोधपुर में बीते। लगभग आधा दर्जन समारोहों में मैंने भाग लिया। जिन तीन खास समारोहों में जाकर मुझे विशेष प्रेरणा मिली और जो देश के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं, उनका यह जिक्र करना जरुरी है। इंदौर में कुछ नौजवानों ने मिलकर एक संगठन बनाया है, मिशन-21 । याने शादी-विवाह में 21 से ज्यादा चीज़ें न परोसी जाएं। मैंने कहा, 21 की बजाय इसे 11 क्यों न कर दें, जैसा कि जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने नियम बना दिया है? इसके साथ-साथ मेहमानों से कहा जाए कि वे जूठन बिल्कुल न छोड़ें। मैंने इंदौर की विभिन्न जातियों के नेताओं से संकल्प भी करवाया। मुझे खुशी है कि इस मामले का समर्थन देश के सबसे बड़े अखबार ‘भास्कर’ ने भी बड़े जोर-शोर से कर दिया है। उसने आंकड़े देकर सिद्ध किया है कि यदि भारतीय लोग जूठन गिराना बंद कर दें तो देश में लाखों टन अनाज की बचत हो सकती है और कोई भी नागरिक भूखा सोने को मजबूर नहीं होगा। जहां ‘भास्कर’ ने मुखपृष्ठ पर इस विचार को छापकर हमारे आंदोलन को बल प्रदान किया है, वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कल की ‘मन की बात’ में हमारे इस संकल्प को दोहराया है।
जोधपुर में चौधरी हीरालाल और अरुण जोहर मुझे खेजड़ली नामक गांव में ले गए। यह विश्नोई संप्रदाय का तीर्थ स्थल है। यह अजमेर से लगभग 25 किमी दूर है। इस स्थान का महत्व मेरी राय में हमारे ताजमहल और लाल किले से भी ज्यादा है। यह स्थान सारे संसार में बेजोड़ है, क्योंकि सन 1730 में 363 लोगों ने यहां अपने सिर कटवा दिए थे ताकि खेजड़ी के वृक्ष काटे न जाएं। राजा अभयसिंह के भंडारी ने इस गांव के वृक्ष काटने का काम जैसे ही शुरु किया, अमृतादेवी नामक एक देवी की पहल पर लोग आगे आए और उन्होंने सत्याग्रह शुरु कर दिया। राजा अभयसिंह ने उस नर-संहार को तत्काल रुकवाया। पर्यावरण की रक्षा के लिए विश्व में इतना बड़ा बलिदान कभी नहीं हुआ। इस बलिदान-दिवस को ही विश्व-पर्यावरण दिवस की तरह मनाया जाना चाहिए। इस तीर्थ को भव्य अंतरराष्ट्रीय स्थल बनाने का काम राजस्थान की वंसुधरा राजे सरकार अपने हाथ में ले तो मोदी सरकार की इज्जत में चार चांद लग जाएंगे।
जोधपुर में ही मैंने डाॅ. नगेंद्र शर्मा की ‘मिर्गी’ संबंधी बीमारी की एक पुस्तक का विमोचन किया। खचाखच भरे हाल में सारा जोधपुर ही समाया हुआ-सा लग रहा था। डाॅ. शर्मा ने अब तक 60 हजार मिर्गी के रोगियों का मुफ्त इलाज किया है। उन्होंने मिर्गी के नाम पर फैले भूत-प्रेम के पाखंड को खत्म कर दिया है। श्यानों-भोपों की दुकानें बंद हो गई हैं। उन्होंने हजारों औरतों, मर्दों और बच्चों को मरने से, तलाक से, आत्महत्या से और सामाजिक बहिष्कार से बचाया है। उन्होंने मिर्गी पर अपनी किताब सरल हिंदी में लिखी है, जिसे पढ़कर मिर्गी के मरीजों को बहुत लाभ हो सकता है। मैंने डाॅ. शर्मा को यह किताब हिंदी में लिखने के लिए विशेष बधाई दी, क्योंकि हमारे देश में डाॅक्टरी जादू-टोना बन गई है, अंग्रेजी के कारण! अंग्रेजी के कारण यह ठगी का साधन भी बन गई है। मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में हो, इसका समर्थन राजस्थान के पूर्व शिक्षा मंत्री घनश्याम तिवाड़ी ने भी जमकर किया। सभी समारोहों में आए लोगों से मैंने हिंदी में हस्ताक्षर करने की प्रतिज्ञा भी करवाई।
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