नया इंडिया, 22 अगस्त 2013 : समाज-सुधारकों के पथानुगामी थे दांभोलकर नरेंद्र दांभोलकर की नृशंस हत्या आखिर हो कैसे गई? दांभोलकर की सुरक्षा की जाए, यह बात राज्य या केंद्र सरकार को कभी क्यों नहीं सूझी? दांभोलकर पर 14 मुकदमे चल रहे थे और उनसे 14 करोड़ का हर्जाना मांगा जा रहा था और उन्हें रह-रहकर मौत के घाट उतारने की धमकियां दी जा रही थीं लेकिन सरकार ने उनकी कोई परवाह नहीं की। नतीजा यह कि राष्ट्र ने एक महान समाज-सुधारक खो दिया।
दांभोलकरजी पेशे से डाक्टर थे लेकिन उन्होंने डाक्टरी छोड़कर समाज-सुधार का बीड़ा उठा लिया था। उनके परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उनकी डाक्टर पत्नी ने ले ली थी। उनका एक ही ध्येय था कि समाज से पाखंड दूर किया जाए। धर्म की आड़ में जो अंध-श्रद्धा फैलाई जाती है, जादू-टोने किए जाते हैं, भोले-भाले लोगों को ठगा जाता है और औरतों पर अत्याचार किए जाते हैं, उनकी पोल खोलना और उनसे सीधी मुठभेड़ करना ही उनका लक्ष्य होता था। दांभोलकर धर्म या ईश्वर के विरोधी नहीं थे लेकिन इनके नाम पर चलने वाले ढोंग और पाखंड की जड़ें उखाड़ने वाले लोगों में उनका नाम प्रसिद्ध हो गया था। उन्होंने महिलाओं के मंदिर-प्रवेश के लिए भी कई आंदोलन किए और कानूनी लड़ाई भी लड़ी। चमत्कारों का दावा करनेवाले बाबा लोग, गंडा-ताबीज़ बांटने वाले साधु लोग, ज्योतिष के चकमे देने वाले पंडित लोग और तंत्र-मंत्र के दुकानदार दांभोलकर का नाम सुनते ही पसीने से तर हो जाते थे। दांभोलकर की इस शक्ति के कारण ही कुछ लोगों और संगठनों को यह गलतफहमी हो गई थी कि वे हिंदुत्व के दुश्मन हैं। कुछ हिंदुत्ववादी संस्थाओं ने उन पर हमले भी किए। वास्तव में हमले निहित स्वार्थी तत्वों ने किए थे।
इन तत्वों से लड़ने के लिए दांभोलकर के प्रयत्नों से महाराष्ट्र विधानसभा में अब से 18 साल पहले एक अंध श्रद्धा उन्मूलन विधेयक भी लाया गया था। अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने घोषणा की है कि वे इसे जल्दी ही कानून का रुप देंगे। अध्यादेश बन गया है। दांभोलकर दरअसल ज्योतिबा फुले के शिष्य थे। उन्होंने अपने अध्यवसाय से ‘साधना’ नामक पत्रिका को पुनर्जीवन दिया। वास्तव में दांभोलकर 19 वीं सदी में प्रारंभ हुए भारत के अधूरे नव-जागरण को परिपूर्णता की ओर ले जानेवाले सामाजिक अग्रदूत थे। वे राजा राममोहन राय, महर्षि दयानंद, रामास्वामी नाइकर, ज्योतिबा फूले और डा. आंबेडकर जैसे समाज-सुधारकों के पथानुगामी थे। उनका शरीर चला गया लेकिन उनका योगदान अमर रहेगा।
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