दैनिक भास्कर, 4 जून 2009 : जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज़ मु. सईद को लाहौर उच्च-न्यायालय ने रिहा क्या किया, पाकिस्तान की जान को नई आफत खड़ी हो गई| पंजाब सरकार के विधि-मंत्री सनाउल्लाह का कहना है कि पाकिस्तान अब सारी दुनिया में बदनाम हो जाएगा| सनाउल्लाह का शक सही है| सिर्फ भारत ही सईद के खिलाफ नहीं है, सारी दुनिया की प्रतिनिधि सुरक्षा परिषद ने भी उसके विरूद्घ फतवा जारी किया था| उसने सईद और उसकी संस्था जमात-उद-दावा को आतंकवादी घोषित करके उन पर प्रतिबंध लगा दिया था| इसीलिए पाकिस्तान ने लगभग छह माह से सईद को नज़रबंद कर रखा था| दो बार उसने नज़रबंदी की अवधि भी बढ़ाई थी|
पाकिस्तानी सरकार का कहना है कि अदालत तो अदालत है| वह क्या करे ? अगर अदालत ने सईद को रिहा कर दिया तो वह उसको बंदी कैसे रखे ? यह तर्क बड़ा मासूम दिखाई देता है| ज़रा यह देखें कि अदालत ने क्या कहा है ? अदालत ने सारा दोष सरकार के मत्थे मढ़ा है| अदालत का कहना है कि सईद के विरूद्घ सरकार कोई भी ठोस तथ्य पेश नहीं कर सकी है| तथ्यों के अभाव में वह सईद को बंदी बनाकर कैसे रख सकती है ? याने दोष अदालत का नहीं, सरकार का है| पाकिस्तानी सरकार ने कई बार खुद माना है कि सईद लश्कर-तोइबा का कर्त्ता-धर्त्ता रहा है और लश्कर पूरी तरह आतंकवादी संगठन है| पाकिस्तानी सरकार और सईद की सांठ-गांठ का लंबा इतिहास किसे पता नहीं है| भारत के विरूद्घ आतंकवादी गतिविधियों के संचालन में सईद की केंद्रीय भूमिका रही है| अब जमात की ओट में सईद ने ऐसे अनेक संगठन खड़े कर दिए हैं, जो स्कूल-कालेज, अस्पताल, यतीमखाने वगैरह चला रहे हैं| ये संगठन मुखौटे हैं| सईद का असली चेहरा कैसा है, इसका प्रमाण मुंबई-कांड के मुख्यात आतंकवादी कसाब के बयानों से मिलता है| सईद पर सिर्फ मुंबई-षडयंत्र् ही नहीं, विमान-अपहरण तथा भारत में अनेक विस्फोटों के आरोप हैं| पाकिस्तान की भारत-नीति का सईद एक सुद्रदढ़ स्तंभ है| भला, पाकिस्तान सरकार अपने इस स्तंभ को गिरने कैसे दे सकती है ?
जहॉं तक अदालत का सवाल है, पाकिस्तान की अदालतों के भी क्या कहने ? पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने मुशर्रफ के तख्ता-पलट को वैधानिक करार दे दिया था और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को आतंकवादी घोषित कर दिया था| अब उसी अदालत ने नवाज़ शरीफ और उनके भाई को वैधानिकता प्रदान कर दी और चुनाव लड़ने का अधिकार दे दिया| जनरल जि़या के दबाव में आकर पाकिस्तानी अदालत ने जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटका दिया था| मुख्य न्यायाधीश चौधरी इफि्रतखार के साथ उनकी अदालत ने क्या व्यवहार किया था, यह किससे छिपा है| ऐसी अदालत जब सईद को रिहा करती है और खुद को दूध की धुली बताना चाहती है तो उसकी मासूमियत पर कौन फिदा नहीं हो जाएगा ? लाहौर की अदालत चाहती तो पाकिस्तानी सरकार को मजबूर कर देती कि वह सईद के खिलाफ सारे सबूत पेश करती लेकिन यहॉं सवाल सरकार और अदालत की ईमानदारी का नहीं है| यहॉं सवाल है, पाकिस्तान के समूचे चरित्र् का ! मज़हब की नींव पर खड़ा पाकिस्तान ऩफरत की सीमेंट से जुड़ा हुआ है| भारत और हिंदुओं के प्रति इतनी घृणा फैलाई गई है कि उनके विरूद्घ कोई कितना ही गलत काम करे, उसे सही ठहराने का ठेका पाकिस्तान की सभी संस्थाऍं स्वत: लेने लगती हैं| सरकार चाहे तो भी कहॉं-कहॉं थेगले लगा सकती है ? फौज, प्रशासन, अदालत, गुप्तचर विभाग-कौन-सा ऐसा संगठन है, जिसमें आतंकवादियों से सहानुभूति रखनेवाले लोग मौजूद नहीं हैं ? इसका प्रमाण तो यह तथ्य भी है कि सईद की रिहाई का हुक्मनामा उसके घर पहुंचता, उसके कई घंटों पहले ही पुलिस ने उसे पत्र्कारों से मिलने की छूट दे दी| सरकार कहती है कि वह अब उच्चतम न्यायालय में अपील करेगी| क्या खाक अपील करेगी ?
सरकारी वकील ने अभी उच्च न्यायालय के सामने जैसा ढीला-पोला रवैया अपनाया, उससे अलग रवैया वह क्यों अख्तियार करेगा, उच्चतम न्यायालय के सामने ? सईद के वकील ने अपने धारा-प्रवाह भाषण में सईद और जमात की पुण्याइयों के पुल बॉंध दिए और संयुक्त राष्ट्रसंघ तक की हवा निकाल दी| वकील ए.के. डोगर ने कहा कि सुरक्षा परिषद ने सिर्फ नज़रबंदी की बात कही थी, गिरफ्रतारी की नहीं| यह नज़रबंदी आखिर कब तक चलेगी और बिना प्रमाण के तो एक दिन भी नहीं चलनी चाहिए| इसके अलावा जो सबसे नायाब तर्क डोगर ने खोज निकाला, वह यह कि जिस सुरक्षा परिषद के कश्मीर संबंधी 26 प्रस्तावों में से भारत ने एक भी लागू नहीं किया, उस सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को अपने ही नागरिकों के खिलाफ लागू करने का ठेका पाकिस्तानी सरकार ने क्यों ले रखा है ? भारत के दबाव में आकर पाकिस्तान अपनी संप्रभुता पर लात क्यों मार रहा है ? इन बोदे और गैर-कानूनी तर्कों का जवाब बेचारी अदालत क्या देती, सरकारी वकील भी नहीं दे सकता था, क्योंकि सुरक्षा-परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन वास्तव में भारत ने नहीं, पाकिस्तान ने किया है| लेकिन ये तर्क पाकिस्तान की जनता के लिए काफी लोक-लुभावन हैं| इसीलिए अदालत के फैसले के बाद सईद का स्वागत बड़े जोर-शोर से हुआ !
सईद की रिहाई से पाकिस्तान सरकार को गुपचुप राहत भी मिली होगी| स्वात में चल रही फौजी कार्रवाई से तालिबानपरस्त तत्व बेहद खफ़ा हैं| फौज और आईएसआई का एक तबका भी नाराज़ है| सईद की रिहाई से उनके घावों पर मरहम जरूर लगा होगा| कोई आश्चर्य नहीं कि यह संतुलन कायम करने के लिए ही पाकिस्तान सरकार ने लाहौर की अदालत से यह फैसला करवाया हो| यह पाकिस्तानी विडंबना है कि सरकार को किसी बाजीगर की तरह अपने ही विरूद्घ करिश्मे दिखाने पड़ते हैं| उसे कभी सिर के बल तो कभी पैर के बल चलना पड़ता है| पाकिस्तान की कश्ती तलातुम में फंस गई है| कभी वह तूफान से लड़ती है तो कभी साहिल से ! कैसी मुसीबत में फंसा है पाकिस्तान कि कभी उसे जिहादी का रोल अदा करना पड़ता है तो कभी काफिर का ! पाकिस्तान तो एक है लेकिन उसके चेहरे दो हैं| पता नहीं, असली चेहरा कौनसा है ? स्वात वाला या लाहौर वाला ? सईद की रिहाई क्या सिद्घ करती है ?
यों भी सईद की रिहाई से पाकिस्तान के असली आकाओं को क्या फर्क पड़ना है ? सईद सईद है, वह उसामा बिन लादेन या मुल्ला उमर तो नहीं है ? उसने मुंबई पर ही तो हमला करवाया है, न्यूयार्क का ट्रेड टॉवर तो नहीं गिरवाया है| जो अमेरिका को नुकसान पहुंचाए, वह असली आतंकवादी है| जो भारत को नुकसान पहुंचाए, वह भारत का अपना सिरदर्द है| मान लीजिए कि सईद ने न्यूयॉर्क का ट्रेड टॉवर गिरवाया होता या कनिष्क विमान उड़वाया होता या लंदन की मेट्रो पर बम रखवाया होता तो अमेरिका क्या पाकिस्तान की सरकार और अदालत को बख्श देता ? वह अब उसामा, जवाहरी और उमर को पकड़ने की सीधी तैयार कर रहा है और अदालत सईद को रिहा कर रही है| सईद में और इन अन्य अपराधियों में क्या फर्क है ? क्या सईद की तरह उसामा, जवाहिरी और उमर को भी पाकिस्तानी अदालतें चोर दरवाजे़े से बाहर नहीं निकाल देंगी ? तब अमेरिका की प्रतिकि्रया भी क्या भारत की तरह ही होगी ?
भारत की प्रतिकि्रया तो नरम ही रहती है| जब मुंबई के वक्त भारत सरकार हकला रही थी तो अब वह क्या दहाड़नेवाली है ? पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी ने असमय ही ‘राग कश्मीर’ भी छेड़ दिया है| यह सिलसिला तब ही बंद होगा जब अमेरिका भारत-विरोधी आतंकवाद को भी अमेरिका-विरोधी आतंकवाद समझने लगेगा| जब तक अमेरिका आतंकवाद में भी अपने और पराये का फर्क करता रहेगा, पाकिस्तान को पटरी पर लाना असंभव होगा|
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