NavBharat Times, 23 Feb 2004 : पाकिस्तान के परमाणु-कबाड़ी अब्दुल क़दीर खान को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उनकी कारस्तानियों के कारण अमेरिका को कुछ अक़्कल आई है| अगर क़दीर खान के अपराधों पर चादर ढकी रहती तो इस दुनिया को समूल-नाश से कोई बचा नहीं पाता| या तो कोई आतंकवादी, या कोई धर्मांध राष्ट्र या कोई कट्टर गिरोह परमाणु बम फेंककर इस दुनिया को एक झटके में ही तबाह कर देता| परमाणु अप्रसार संधि, समग्र परीक्षण प्रतिबंध संधि तथा अन्य सभी संधियांॅ धरी की धरी रह जातीं| वियना स्थित अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण बगलें झॉंकता रह जाता| क़दीर खान और उनके साथियों ने परमाणु बमों की तकनीक और सामग्री का जो विश्व-व्यापी काला बाज़ार खड़ा किया है, उसने अमेरिका की हड्डयिों में कॅंपकॅंपी दौड़ा दी है| इसीलिए राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने पिछले हफ्ते अपने राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के भाषण में एक नया सात-सूत्री कार्यक्रम पेश किया है| इस कार्यक्रम का लक्ष्य समूल-नाश के हथियारों को आतंकवादियों और उद्दंड राष्ट्रों के हाथों में जाने से रोकना है ताकि किसी गुप्त और अकस्मात सर्वनाशी आक्रमण से मानवता को बचाया जा सके|
मानवता की यह चिन्ता बुश को इसलिए सता रही है कि आतंकवादियों की नज़र में मानवता का सबसे बड़ा शत्रु अमेरिका ही है| ऐसा नहीं होता तो चार साल पहले न्यूयॉर्क के ट्रेड टॉवरों पर ही हमला क्यों हुआ ? पेरिस के ऐफिल टॉवर या बि्रटेन के लंदन टॉवर या रूस के क्रेमलिन पर हमला क्यों नहीं हुआ ? दुनिया का कौनसा पचड़ा है, जहॉं अमेरिका ने अपनी टॉंग नहीं फॅंसा रखी है ? जहॉं-जहॉं उसने टॉंग अड़ाई है, वहॉं-वहॉं उसने किसी न किसी राष्ट्र या जाति को निर्दयतापूर्वक कुचला है| चाहे वियतनाम हो या यूगोस्लाविया, चाहे खुमैनी का ईरान हो, या सद्दाम का एराक़, या तालिबान का अफगानिस्तान, चाहे पश्चिम एशिया के फलस्तीनी हों या अफ्रीका के छापामार, अमेरिका के दुश्मन सारी दुनिया में भरे पड़े हैं| बुश को पता है कि प्रतिशोध की आग में धधक रहे आत्मघाती आतंकवादियों का अगर पहला हमला कहीं होगा तो वह अमेरिका पर ही होगा| अमेरिका पर अगर कोई राज्य हमला करे तो उसे वह रोक सकता है, क्योंकि उसके पास संभावित हमलावर राज्यों के बारे में पूरी जानकारी है और प्रतिरोध के पूरे उपाय भी हैं लेकिन राज्यविहीन राज्य का हमला वह कैसे रोक पाएगा ? यह राज्यविहीन राज्य क्या है ? यह आतंकवाद का ही दूसरा नाम है| इस राज्य की कोई दृश्यमान सीमाऍं नहीं हैं, इसके कोई सुनिश्चित नागरिक नहीं हैं, इसकी संप्रभुता सुपरिभाषित नहीं है लेकिन राज्य के चार गुणों में से इसका एक गुण सबसे पक्का है| वह है – स्वाभाविक आज्ञाकारिता ! आतंकवादी राज्य की शाखाऍं सारी दुनिया में फैली हुई हैं और जो भी इसके सदस्य हैं, वे उसकी आज्ञा मानने के लिए अपनी जान भी सहर्ष न्यौछावर करते हैं| ऐसे लोगों से बचने के लिए ही बुश अब विश्व-समुदाय के दरवाजे़ खटखटा रहे हैं| अमेरिका ने पहली बार महसूस किया है कि जिस प्रेत को उसने साठ साल पहले जन्म दिया था, वह अब सारी दुनिया को ही लील जाने पर उतारू है| अमेरिका यह भी जान गया है कि समूल-नाश के विरुद्घ उसने जितनी संधियों का जाल बिछाया था, वह अब सड़-गल गया ह| उसके द्वारा मित्रों और निहत्थे राष्ट्रों के गले में ठॅूंसी गईं सभी संधियों में जंग लग गया है|
बुश द्वारा प्रस्तुत सातों सूत्रों का विश्व-समुदाय समर्थन अवश्य करेगा, क्योंकि ये प्रस्ताव परमाणु तस्करी और परमाणु हथियारों के फैलाव पर रोक लगाने में सहायक होंगे लेकिन अमेरिका से एक बुनियादी प्रश्न जरूर पूछा जाना चाहिए| वह यह कि समूल-नाश के हथियार आखिर सबसे पहले किसने बनाए ? द्वितीय विश्व-युद्घ की अस्ताचल-वेला में समूलनाशी बम जापान पर बरसाने का राक्षसी विचार अमेरिका के मन में क्यों आया ? और अब भी अमेरिका की अकड़ ज्यों की त्यों ही बरक़रार है| क्यों है ? अकड़ यह है कि दुनिया के जितने भी परमाणु हथियार सम्पन्न राष्ट्र हैं, वे अपने परमाणु संस्थानों को अन्तरराष्ट्रीय निगरानी से मुक्त रखेंगे लेकिन जो उन पॉंच दादाओं की जमात (अमेरिका, बि्रटेन, फ्राॅस, रूस और चीन) में शामिल नहीं हैं, उनकी हर परमाणु गतिविधि पर वियना की एजेन्सी कड़ी नज़र रखेगी| ऐसे राष्ट्रों में भारत, पाकिस्तान और इस्राइल जैसे राष्ट्र भी होंगे और ईरान, उत्तर कोरिया और लीब्या जैसे राष्ट्र तो पहले से ही निशाने पर हैं| जो राष्ट्र शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे भी समग्र निगरानी की परिधि में आ जाऍंगे| यदि वे निगरानी के अतिरिक्त समझौते पर दस्तखत नहीं करेंगे तो उनका शांतिपूर्ण कार्यक्रम भी अवैध घोषित हो जाएगा| परमाणु-सामग्री की सप्लाय करनेवाले 40 राष्ट्रों के अपने मित्र-समूह से अमेरिका यह भी कह रहा है कि वे किसी भी राष्ट्र को वह परमाणु-तकनीक कदापि न दे, जिसका इस्तेमाल बम बनाने के लिए किया जा सकता हो| यह काम तो अकेला चीन कर रहा है, जो इस समूह का सदस्य नहीं है और जिसकी अवैध सहायता के ठोस प्रमाण पाकिस्तान और लीब्या से मिल रहे हैं| बुश के प्रस्तावों की खूबी यह है कि वे गुनाहगारों की तरफ उंगली उठाने की हिम्मत नहीं करते|
बुश ने अपने भाषण में अब्दुल क़दीर खान को नाम लेकर कई बार कोसा है लेकिन इशारे से भी यह नहीं बताया है कि पाकिस्तान की भी कोई जिम्मेदारी थी या नहीं ? खुद पाकिस्तानी विशेषज्ञ रोज़ लिख रहे हैं कि शासन और फौज के आशीर्वाद के बिना क़दीर खान एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते थे| और सिर्फ पाकिस्तान ही क्यों ? खुद अमेरिका, नीदरलैंड्स, जर्मनी, चीन और मलेशिया जैसे देशों को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जा रहा है ? इन देशों की जिन कम्पनियों, संस्थाओं और नागरिकों ने क़दीर खान के साथ अपने हाथ रंगे हैं, उन्हें अभी तक कठघरे में क्यों नहीं खड़ा किया गया है ? एक ज्वयलंत प्रश्न यह भी है कि क्या अमेरिका को अभी तीन-चार साल पहले ही क़दीर के परमाणु ब्लेक मार्केट का पता चला ? यदि हॉं तो उसकी गुप्तचर संस्थाओं से ज्यादा निकम्मा कौन होगा ? क्या अमेरिका गुप्तचर भी क़दीर के ज़रखरीद गुलाम बन गए थे ? ऐसा नहीं था| सच्चाई तो यह है कि अमेरिकी गुप्तचर संस्थाओं ने पाकिस्तान की अवैध गतिविधियों के नाबदान का ढक्कन लगभग दो दशक पहले ही खोल दिया था लेकिन अमेरिका की ऑंख पर पहले शीतयुद्घ की पट्टी बॅंधी रही और फिर तालिबान का काल रुमाल उसने अपनी नाक पर रख लिया| अमेरिका की महान शक्तिशाली और प्रतिभाशाली सरकारों ने अपने आप से यह छोटा-सा प्रश्न भी नहीं पूछा कि जो राष्ट्र विज्ञान की दृष्टि से इतना पिछड़ा हुआ है, वह आखिर परमाणु बम कैसे बना सकता है| अमेरिका का गुनाह यह है कि वह परमाणु अप्रसार संधि की धज्जियॉं उड़ते हुए देखता रहा लेकिन उसने आह तक नहीं भरी| वह शायद सोचता रहा कि पाकिस्तान अगर चोरबाज़ारी से भी बम बना रहा है तो खतरा भारत को है, हमको नहीं, क्योंकि हम तो सात समुन्दर पार हैं| लेकिन अब वह समझ गया है कि नादान की दोस्ती, जी का जंजाल है| पाकिस्तान का बम भारत के विरुद्घ जब इस्तेमाल होगा, तब होगा| अभी तो आतंकवादियों के हाथों पड़कर सबसे पहले वह अमेरिका को ही तबाह कर सकता है| अब भी अमेरिका ने पाकिस्तान-जैसे गैर-जिम्मेदार राष्ट्रों को परमाणुरहित करने की घोषणा नहीं की है और न ही अपने खुद के समूलनाशी ज़खीरे को नष्ट करने का संकल्प लिया है| कहीं ऐसा तो नहीं कि बुश ने अपने सातों सूत्र अमेरिकी जनता को यह बताने के लिए रखे हों कि वे अमेरिका की रक्षा के लिए कितने अधिक चिंतित हैं और उनके गुप्तचर विभाग ने क़दीर को घेरकर कितनी बड़ी सफलता पाई है| सद्दाम और क़दीर दोनों मिलकर अब बुश की चुनावगाड़ी को खींचेंगे, इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है|
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