भोपाल-उज्जैन रेलगाड़ी में विस्फोट करवाने वाला सैफुल्लाह तो मारा गया लेकिन उसके पिता सरताज ने अपने बेटे का शव लेने से मना कर दिया है और उन्होंने ऐसी बात कह दी है, जो कोई बाप अपने बेटे के लिए नहीं कहता। सरताज ने कहा है कि ‘जो अपने देश का नहीं हुआ, वह हमारा क्या होगा?’ उन्होंने यह भी कहा कि मेरा बेटा देशद्रोही निकला। देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले से हमारा कोई रिश्ता-नाता नहीं है। उसे तो अल्लाह भी माफ नहीं करेगा।
कानपुर के निवासी सैफुल्लाह को पकड़ने के लिए जब पुलिस लखनऊ के ठाकुरगंज में पहुंची तो सैफुल्लाह रात भर पुलिस वालों का मुकाबला करता रहा। पुलिस वाले उसे जिंदा पकड़ना चाहते थे। उन्होंने सैफुल्लाह के परिवार से संपर्क स्थापित करके उसे समर्पण के लिए राजी करने के लिए कहा। सैफुल्लाह के भाई खालिद ने पुलिस के साथ पूरा सहयोग किया। पौन घंटे तक फोन पर सैफुल्लाह को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना।
सरताज और खालिद समेत उसके पूरे परिवार ने जैसी प्रतिक्रिया की है, वह रोंगटे खड़े कर देती है। मैंने तीन-चार बार उस प्रतिक्रिया को अखबारों में पढ़ा और मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। देश-प्रेम की यह अद्भुत मिसाल है। जो लोग राष्ट्रवाद का सांप्रदायीकरण करते हैं, उन्हें इस घटना से प्रेरणा लेनी चाहिए। क्या ही अच्छा होता कि जैसे ही सैफुल्लाह के पिता सरताज और भाई खालिद के बयान आए, हमारे देश के शीर्ष नेता उन्हें फोन करते और उनकी पीठ ठोकते ताकि दुनिया के सारे मुस्लिम जगत को एक जबर्दस्त संदेश जाता।
देश के कुछ नेता इस घटना का राजनीतिकरण कर रहे हैं, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं। वे कह रहे हैं कि ऐसी घटनाएं इसलिए हो रही हैं कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं। इन अत्याचारों का बदला लेने के लिए ही मुसलमान नौजवान आतंक का सहारा ले रहे हैं। ऐसा कहकर ये लोग देश के सारे मुस्लिम समाज को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा कह कर वे यह भी सिद्ध कर रहे हैं कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की कितनी सतही समझ है। सबसे बड़ा अत्याचार तो यह है कि ऐसी उटपटांग बात करने वाले नेताओं को भारत की जनता ने कान पकड़कर गद्दी से नीचे उतार दिया है। देश के सभी नेताओं और जनता को सरताज और खालिद-जैसे देशभक्त नागरिकों के साथ सहानुभूति रखनी चाहिए और उन्हें वह सम्मान देना चाहिए, जिसके वे योग्य हैं।
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