नया इंडिया, 06 नवंबर 2013 : लता मंगेशकर ने नरेंद्र मोदी के बारे में जो कहा, उससे कांग्रेसी खेमे में खलबली मचना स्वाभाविक है। लताजी राजनीतिक मामलों में कभी कुछ बोलती नहीं हैं। इसीलिए उनका यह बोलना कि नरेंद्र मोदी को वे अपना भाई मानती हैं और वे कामना करती हैं कि वे प्रधानमंत्री बनें, कांग्रसी खेमे में भूकंप के झटके की तरह महसूस किया गया। यह बिल्कुल सच है कि लताजी के बयान में से राजनीति दुहना ठीक नहीं है लेकिन फिर कांग्रेसी नेता इतने क्यों घबरा गए कि उन्हें लताजी के बारे में भी वे बातें बोलनी पड़ी, जिनसे उनके दुश्मनों की संख्या में कुछ बढ़ोतरी और हो गई। नरेंद्र मोद्री के बारे में लताजी ने लिखकर या पहले से तैयारी करके कोई बयान जारी नहीं किया था। किसी समारोह में दोनों साथ-साथ थे। उस समय लताजी के दिल की बात अचानक फुट पड़ी। यह तथ्य ही दर्शाता है कि मोदी की स्वीकृति देश में किस हद तक बढ़ती चली जा रही है। लताजी ही क्यों, क्या बिहार के शिवानंद तिवारी और कश्मीर के उमर अब्दुल्ला भी खुद को क्यों नहीं रोक पाए? इन दोनों नेताओं ने भी नहीं चाहते हुए भी मोदी की तारीफ कर डाली। मुसलमानों के कई छोटे-बड़े नेता भी मोदी-घृणा अभियान को अनुचित मानते हैं।
अनेक विदेशी राजदूत भी मोदी के दरबार में भी से पंगत लगाए रहते हैं। ज्यों-ज्यों चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं, त्यों-त्यों देश पर मोदी का नशा चढ़ता जा रहा है। इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि मोदी की सभाओं में जब मोदी खुद खड़े होकर नौजवानों को चुप करवाते हैं। जो भी वे उनकी नहीं सुनते और जोर-जोर से मोदी-मोदी चिल्लाने लगते हैं। यह क्या है? यह नशा नहीं तो क्या है? यह उन्माद नहीं तो क्या है? इस उन्माद का कारण क्या है? लोगों को जितनी गहरी निराशा है, उतना ही उन्माद है। सरकार से लोगों का जितना मोहभंग हो रहा है, उतना ही मोदी-मोह देश में बढ़ता जा रहा है। यदि मनमोहन मोह-भंग और मोदी-मोह इसी गति से चलते रहे तो कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा अकेले ही 272 सीटों का आंकड़ा पार कर ले जाए। ममो (मनमोहन) और नमो (नरेंद्र मोदी) की जुगलबंदी इतनी जबर्दस्त सिद्ध हो सकती है कि तबला और सारंगीवादकों की जरूरत ही न पड़े। लता मंगेशकर के उद्गार इस दिशा के स्पष्ट संकेत हैं। यह ठीक है कि लताजी राजनीतिक नहीं हैं लेकिन उनका नेता नहीं होना ही सवसे खतरनाक संकेत का प्रमाण है। वे देश के सामान्यजन, आम आदमी, जन-साधारण की आवाज हैं। लता बोलती हैं, मतलब देश बोलता है। लताजी ने किसी के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला। बस वही बोला, जो उनके दिल की आवाज थी। लता मंगेशकर के भक्तों और प्रशंसकों की संख्या लाखों में नहीं, करोड़ों में है और सिर्फ भारत में ही नहीं, सारी दुनिया में है। अब उनके हार्दिक उद्गारों को बदलवाने की कोशिश अगर कांग्रेस करेगी तो वह अपनी सूरत और भी बिगाड़ लेगी।
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