R Sahara, 28 Nov 2004 :राजनीति के अपराधीकरण की बात तो हम कई वर्षों से सुनते चले आ रहे हैं लेकिन अब धर्म का अपराधीकरण एक नया मुद्दा बन गया है| शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की गिरफ्तारी ने इस मुद्दे को काफी तूल दे दिया है| जयेंद्र सरस्वती के पहले भी उनसे अधिक विख्यात धर्मगुरुओं के अपराधों की वीभत्स कहानियॉं उजागर हुई हैं लेकिन उन्हें सफलतापूर्वक दबा दिया गया| वे कुकृत्य दब गए, क्योंकि उनमें राजनेताओं ने सीधी दिलचस्पी नहीं दिखाई| जयेंद्र सरस्वती फॅंस गए, क्योंकि उन्हें फॅंसानेवाले और बचानेवाले दोनों ही राजनेता हैं| राजनेतागण ऐसा कोई काम नहीं करते, जिससे उनका स्वार्थ सिद्घ न हो| उनके लिए शुद्घ परोपकर शुद्घ मूर्खता है| यदि जयललिता ने उन्हें पकड़ा है तो वे अपना स्वार्थ डटकर सिद्घ कर रही हैं| उनकी नज़र तमिलनाडु के ब्राह्मण-विरोधी वोटों पर है| यदि वे चाहतीं तो सारे मामले को दबा सकती थीं या इतना लंबा कर सकती थीं कि तब तक शंकराचार्य या वे स्वयं ही नहीं रहतीं लेकिन उन्होंने बर्र के छत्ते में हाथ डाला तो कुछ सोच-समझाकर ही डाला| कल तक दक्षिण भारत में वे हिन्दुत्व की पताका बनी हुई थीं और आज हिंदुत्ववादी उनका डंडा-झंडा ही उखाड़ने में लगे हुए हैं| करुणानिधि शीर्षासन की मुद्रा में हैं| पहले उन्होंने जयललिता को ठीक बताया और अब गलत बता रहे हैं| वे केंद्र के साथ कदम-ताल करने लगे हैं| केंद्र भी खूब करतब दिखा रहा है| कभी वह जयललिता को पत्र लिखता है, कभी कहता है कि कानून अपना काम करे और कभी कहता है कि भगवान की सौगंध उसे कुछ पता ही नहीं कि कॉंची में क्या हो रहा है| कहीं शंकराचार्य के बहाने वह अपना उल्लू सीधा करने में तो नहीं लगा है? याने जयललिता की बर्खास्तगी के विकल्प तो नहीं खोज रहा है? भाजपा के लिए जयेंद्र सरस्वती तिनके का सहारा बन गए हैं| अभी और कोई मुद्दा हाथ नहीं लगा तो यही सही ! भाजपा ने जो उल्टी रेल चलाई तो दूसरे दल भी उसके पीछे चल पड़े| इससे भाजपा की महत्ता तो रेखांकित होती है लेकिन हमारे राजनीतिक दलों का नैतिक दीवालियापन भी सिद्घ होता है| हिंदू वोटों के लालच में फॅंसकर वे ऐसी बानी बोल रहे हैं, जो लोकतंत्र के पॉंव की बेडि़यॉं बन जाएगी| हिंदू वोट तो मृग-मरीचिका है, यह इसी से सिद्घ हो गया कि शंकराचार्य बंद हैं और भारत खुला है| भारत-बंद नहीं हुआ, वहॉं भी नहीं हुआ, जहॉं बंद करवानेवालों की सरकारें दनदना रही हैं| हिंदुओं के बीच शंकराचार्यों की वह हैसियत नहीं है, जो ईसाइयों के बीच पोप की और मुसलमानों के बीच खलीफ़ा या इमाम की होती है| शंकराचार्य एक नहीं, कई हैं और उनमें भी एका नहीं है| हिन्दुओं के हजारों छोटे-मोटे संप्रदाय और पंथ हैं और हर पंथ के अनुयायी अपने गुरु को शंकराचार्य से कम नहीं समझते| शंकराचार्य के पक्ष में शोर-गुल मचानेवाले कौन हैं? नेताओं के साथ फोटो खिंचानेवाले कौन हैं? या तो पार्टीबाज धर्मध्वजी हैं या वे कथावाचक टाइप ‘आध्यात्मिक दुकानदार’ हैं, जिन्हें शंकराचार्य की गति प्राप्त होने का डर है|
अब तो यह मॉंग भी उठ गई है कि धर्मगुरुओं के लिए अलग कानून बने| यह मॉंग कौन उठा रहे हैं? नेतागण ! क्यों उठा रहे हैं? इसलिए कि पहले राजनीति का अपराधीकरण हुआ और अपराध का राजनीतिकरण हुआ और अब होगा – धर्म का अपराधीकरण और अपराध का धार्मिकरण ! धर्म के नाम पर चल रहे अपराधों के अड्डों और दुकानों पर टूट पड़ने का इससे अच्छा अवसर क्या होगा? जयेंद्रजी की गिरफ्तारी ने अनुकूल वातावरण बना दिया है| इसी मौके पर हमें यह सावधानी भी रखनी होगी कि अपराध का धार्मिकरण न किया जाए| किसी के अपराध की अनदेखी क्या इसीलिए की जाए कि वह धर्मगुरु है? यदि धर्मगुरुओं के लिए हम अलग कानून बनाऍंगे तो हम हजारों भिडरांवालों की फसल बो देंगे| हर मंदिर, हर मस्जिद, हर गिरजा और हर गुरुद्वारा छोटी-मोटी अपराधशाला बन जाएगा और बेचारे भक्तगण सेंत-मेंत में मारे जाऍंगे| कितना आश्चर्य है कि जिस भाजपा ने अपराधियों के लिए ‘पोटा’ बनाया था, वही भाजपा अपराध को धर्म के कंधे पर बिठा रही है| राजनीति जबर्दस्त खिलाडि़न है| वह जो भी खेल खिलाए, कम है|
यह कहना तो अपराध का सांप्रदायीकरण है कि हिन्दू धर्मगुरु है तो आपने हाथ डाल दिया, अगर वह ईसाई या मुसलमान होता तो क्या उसे आप छू पाते? यह सवाल करनेवाले भिंडरावाले को भूल गए क्या? क्या किसी अन्य मज़हब के धर्मगुरु पर हत्या का आरोप कभी रहा और वह कभी बच निकला? इसके अलावा हम क्यों भूल जाते हैं कि जयललिता तो जयेंद्रजी की परम स्नेही चेली थीं| वह ब्राह्ममण हैं और पक्की हिंदू हैं, धर्मांतरण-विरोधी कानून पास करनेवाली हिंदू हैं| अपराधी किसी भी मज़हब का हो और उसकी हैसियत जो भी हो, उसके साथ वही बर्ताव होना चाहिए, जो किसी अन्य अपराधी के साथ होता है| यह कम आश्चर्यजनक नहीं कि नेतागणधर्मगुरुओं को विशेष दर्जा दिलवाने की बात कह रहे हैं| सच्चाई तो यह है कि धर्मगुरू होने के कारण उन्हें विशेष दर्जा नहीं, विशेष सजा मिलनी चाहिए|
Leave a Reply