दैनिक हिन्दुस्तान, 8 अप्रैल 2011 : अगर आज ईसा मसीह होते तो क्या करते ? अपना माथा कूट लेते| अगर कोई उन्हें टेरी जोन्स की हरकतों से वाकिफ करवा देता तो वे कहते कि ऐसे ईसाई धर्म से मेरा कोई लेना-देना नहीं है| फ्लोरिडा के किसी गुमनाम चर्च के पादरी जोन्स ने 20 मार्च को कुरान शरीफ की एक प्रति क्या जलाई, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में दर्जनों लोगों को अपनी जान से हाथ धोने पड़े हैं| सारे इस्लामी जगत ने तो जोन्स की निंदा की ही है, शेष और कई अनेक ईसाई संगठनों ने भी उसकी भर्त्सना की है|
टेरी जोन्स कोई बड़ा धार्मिक नेता नहीं है| न ही वह ईसाई धर्मविद्या का विद्वान है| वह फ्लोरिडा के किसी नाम मात्र् के चर्च का पादरी है| इस चर्च के मुश्किल से 50 सदस्य हैं| इन्हीं 40-50 सदस्यों की उपस्थिति में उसने 20 मार्च को समारोहपूर्वक कुरान शरीफ़ को जलाया| कुरान शरीफ़ की प्रति में आग लगाने से पहले उसने बाकायदा कुरान पर मुकदमे का स्वांग रचा| पांच-छह घंटे तक नकली वकीलों ने बहस की और बाद में फैसला दिया गया कि कुरान हिंसा और आतंकवाद की जननी है| जोन्स ने अपने अनुयायियों के बीच कमीजें और पोस्टर भी बंटवाए, जिन पर छपा हुआ था, ‘इस्लाम शैतानियत है|’ जोन्स ने 20 मार्च को जो किया, वह पिछले साल 11 सितंबर को किया जाना था ताकि इस्लाम के माथे पर न्यूयार्क के ट्रेड टॉवर की आतंकवादी घटना को चिपकाया जा सके लेकिन अमेरिका तथा अन्य ईसाई देशों में इस बात का कड़ा विरोध हुआ| परिणामस्वरूप जोन्स ने कह दिया कि वे कुरान को नहीं जलाएंगे लेकिन इस विवाद ने उनकी लोकेषणा को भड़का दिया| प्रचार के प्रलोभन में फंसकर उन्होंने थूके हुए जहर को दुबारा चाट लिया| ज़हर तो जोन्स ने चाटा लेकिन लोग मर रहे हैं, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में !
जोन्स की इस मूर्खतापूर्ण कार्रवाई पर दुनिया ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया| 22 मार्च को पाकिस्तान में थोड़े विरोध-प्रदर्शन हुए, दो-एक लोग मारे गए, राष्ट्रपति आसिफ ज़रदारी ने जोन्स की निंदा कर दी| लगा कि सारा मामला नेपथ्य में चला गया लेकिन जैसा कि कम उन्नत समाजों में होता है, जोन्स की यह काफिराना हरकत कानोंकान दूर-दराज के गांवों तक पहुंच गई| घर-घर और गांव-गांव में इसकी चर्चा होने लगी| अल-क़ायदा और तालिबान ने मौके का फायदा उठाया| इससे पहले कि वे कोई विस्फोट करते, अफगान राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने गुब्बारे को पंचर करने की कोशिश की| उन्होंने 24 मार्च को बयान देकर टेरी जोन्स की भर्त्सना की, उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग की और उसकी निंदा करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस को प्रस्ताव पारित करने को कहा| करज़ई का यह पाशा उलटा पड़ गया| जिसे पानी समझकर आग पर डाला गया, वह पेट्रोल सिद्घ हुआ| अगले चार-पांच दिन में सारा अफगानिस्तान भड़क उठा|
उत्तरी अफगानिस्तान के प्रसिद्घ शहर मजारे-शरीफ में हजारों लोगों ने जोन्स-विरोधी नारे लगाए और संयुक्तराष्ट्र संघ के कार्यालय में आग लगा दी| तीन विदेशी अफसर और चार गार्ड मारे गए| कई अन्य शहरों में अभी तक प्रदर्शन हो रहे हैं| दर्जनों बेकसूर लोग मारे जा रहे हैं| अफगानिस्तान में अचानक अराज़कता का माहौल पैदा हो गया है| मज़ारे-शरीफ-जैसे फारसीवान और गैर-पश्तून इलाके में हुई इस हिंसा की व्याख्या आप कैसे करेंगे ? यह सिर्फ तालिबान और अल-क़ायदा की करतूत नहीं हो सकती| इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, मुसलमानों के बीच फैला हुआ अमेरिका-विरोधी आक्रोश| लीब्या की घटनाओं ने इस आक्रोश को इधर अधिक तीव्र किया है| कुरान-दाह के बहाने अमेरिकियों को तो गालियॉं पड़ ही रही हैं, बेचारे सदाशयी हामिद करज़ई की भी छिलाई हो रही है| माना यह जा रहा है कि करज़ई अमेरिकियों का जान-बूझकर विरोध कर रहे हैं ताकि उनकी वापसी के बाद वे अपनी लोकपि्रयता चमका सकें| अमेरिकी सरकार के लिए यह नया सिरदर्द खड़ा हो गया है| ‘इसाफ’ फौजों के कमांडर जनरल पेटि्रयस ने अपनी घबराहट और परेशानी सबके सामने प्रकट कर दी है| जोन्स की मूर्खतापूर्ण कार्रवाई का सबसे बड़ा खामियाजा अफगानिस्तान में तैनात विदेशी फौजों को भुगतना पड़ेगा|
अफगानिस्तान की घटनाओं पर प्रतिक्रिया करते हुए ओबामा ने जोन्स की भर्त्सना की है और उसके अतिवादी दुस्साहस को ईसाइयत के सिद्घांतों के विरूद्घ बताया है लेकिन मुल्ला-मौलवियों और तालिबान ने ओबामा, करज़ई और जोन्स, तीनों को एक ही डंडे से हांकना शुरू कर दिया है| पाकिस्तान की जमातुद्रदावा ने जोन्स को मारनेवाले को एक करोड़ रू. के ईनाम की घोषणा की है|
इस सारे प्रकरण पर अगर हम ठंडे दिमाग से विचार करें तो किस नतीजे पर पहुंचेंगे ? यहां दो उग्रवादों, दो अतिवादों और दो मंदमतिवादों की भिड़ंत हो रही है| जोेन्स जैसे पादरी को यह मामूली बात समझ में क्यों नहीं आती कि क्या कुरान को जला देने से आतंकवाद खत्म हो जाएगा ? यदि कुरान की कुछ आयतों की गलत-सलत और संदर्भहीन व्याख्या करके यह सिद्घ किया जा सकता है कि इस्लाम आतंकवादी और हिंसक मज़हब है तो यह जुल्म तो लगभग सभी धर्मग्रंथों पर किया जा सकता है| हर धर्मग्रंथ में से, यहां तक कि बाइबिल जैसे ग्रंथ में से भी ऐसे उद्घरण और प्रसंग खोजे जा सकते हैं, जिनके आधार पर हिंसा और आतंकवाद को उचित ठहराया जा सकता है| अच्छा तो यह होता कि जोन्स जैसे पादरी घृणा फैलाने की बजाय प्रेम फैलाते| इसी कुरान से ऐसी आयतें उद्रधृत की जा सकती हैं, जो यह सिद्घ करतीं कि आतंकवाद इस्लाम का उल्लंघन है, काफिराना हरकत है और इंसानियत-विरोधी कदम है| जोन्स की कार्रवाई के कारण दर्जनों लोग मारे जा रहे हैं| इनका खून किसके माथे आएगा ? जोन्स की हरकतें ईसा-जैसे महान अहिंसावादी महापुरूष के सिद्घांतों का हनन है|
जैसे जोन्स पर वैसे ही मुझे कट्ररपंथी मुल्ला-मौलवियों पर भी तरस आ रहा है| संयुक्तराष्ट्र के कर्मचारी अफगानिस्तान में आखिर क्यों गए हुए हैं ? अफगान लोगों की सेवा करने के लिए ! जो हाथ आपके मुंह में निवाला डाल रहा है, आप उसे ही काट रहे हैं| उन्होंने आपका क्या बिगाड़ा है ? उनके साथ-साथ वे अफगान भी मारे जा रहे हैं, जो अच्छे मुसलमान हैं और जिनकी कुरान में अटूट श्रद्घा है| इन बेकसूर लोगों की हत्या से जोन्स को क्या फर्क पड़ता है ? उसकी बकवास तो अब भी जारी है| एक मूर्ख आदमी द्वारा किसी भी ग्रंथ को फाड़ देने या जला देने से क्या उस ग्रंथ की महत्ता घट जाती है ? क्या हमारे धर्मग्रंथ इतने छुई-मुई हैं ? जोन्स की मूर्खता का जवाब क्या महामूर्खता से ही दिया जा सकता है ? जोन्स की ंनिंदा तो सभी कर रहे हैं लेकिन धर्म के नाम पर खून बहाने का अधर्म जो लोग कर रहे हैं, क्या उनके खिलाफ भी कोई मुंह खोलेगा ? यह ठीक है कि अमेरिकी संविधान में प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्र्ता का जोन्स दुरूपयोग कर रहा है लेकिन अफगानिस्तान और पाकिस्तान के संविधानों में क्या हत्या की स्वतंत्र्ता का अधिकार भी है ?
(लेखक, भारतीय विदेशनीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
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