14 May 2005 : श्री सुंदरसिंह भंडारी भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में से हैं| वे अभी पिछले साल तक गुजरात के राज्यपाल थे| उन्होंने यह कहकर धमाका कर दिया कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने दंगों को रोकने में ढिलाई की| असली सवाल यह है कि वे स्वयं क्या कर रहे थे? राज्यपाल होने के नाते क्या उन्होंने मोदी को धमकाया? दंगे कोई एक-दो दिन नहीं चले| कई माह चले| सैकड़ों बेकसूर लोग मारे गए| मुख्यमंत्री अगर खुद दंगे करवा रहा था या उन्हें दर्शक की तरह देख रहा था तो राज्यपाल का क्या कर्तव्य था? संविधान राज्यपाल को पूरा अधिकार देता है कि वह ऐसे मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर सकता है| उसे किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री या गृह मंत्री से पूछने की जरूरत नहीं है| यदि भंडारीजी यह हिम्मत नहीं कर सके तो और कौनसा राज्यपाल कर सकता था? नरेंद्र मोदी की जितनी उम्र है, उसके पहले से भंडारीजी राजनीति में हैं| इसके अलावा यह कितना अच्छा संयोग था कि राज्यपाल और उनका मुख्यमंत्री, दोनों एक ही पार्टी के थे| यदि वे मोदी को निकालते तो कोई यह नहीं कह सकता था कि वे केंद्र की राजनीति कर रहे हैं| वे चाहते तो इस शुभ कार्य में वे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी अपने साथ ले लेते| दोनों सज्जनों ने गुजरात जाकर मगरमच्छ के ऑंसू भी बहाए थे| गोधरा कांड के तीन-चार माह बाद मैं गुजरात गया था| अहमदाबाद कुछ घंटे रुका था| राज्यपाल भंडारीजी से फोन पर 15-20 मिनिट बात भी हुई| मैंने उनसे कहा था कि मोदी जो कर रहा है, उसके कारण ‘गुजरात तो आला लेकिन भारत गेला’! याने ‘गुजरात पाइए और भारत खोइए|’ इसी शीर्षक से मैंने नवभारत टाइम्स में लेख भी लिखा था और गोधरा के दो-तीन दिन बाद यही बात मैंने दूरदर्शन पर कही थी| आम चुनाव के नतीजों ने इस भविष्यवाणी को सही सिद्घ किया| यदि भंडारीजी सही समय पर सही कदम उठाते तो वे भारत के इतिहास में अमर हो जाते| राज्यपालों की पंक्ति में उनका नाम सबसे पहले आता| वे भारत के हिंदुओं और हिंदुत्व के माथे पर कलंक नहीं लगने देते| अगर वे राज्यपाल का कर्तव्य निर्वाह करते तो अपनी पार्टी को भी बचा लेते, हिंदुत्व के भी चार चांद लगा देते और दुबारा राज्यपाल तो अपने आप बन ही जाते| मोदी के विरुद्घ बोलकर उन्होंने अपने दिल का बोझ तो हल्का कर लिया लेकिन भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गले में भारी पत्थर लटका दिया है| गोड़से की करनी संघ अभी तक भुगत रहा है तो नरेंद्र मोदी की करनी पता नहीं कब तक भुगतेगा?
नरेंद्र मोदी के विरुद्घ जैसा अभियान कांग्रेस को चलाना था, उसने भी नहीं चलाया| कांग्रेस के एक नेता को जिंदा जला दिया गया और तब भी दिल्ली में कांग्रेसी लंबी चादर तानकर सोते रहे| क्या वे गुजरात में वही दृश्य देख रहे थे, जो 1984 में उन्होंने खुद दिल्ली में पैदा किए थे| कितनी विडम्बना है कि जैसे कांग्रेस सिखों पर टूट पड़ी थी, वैसे ही मोदी सरकार मुसलमानों पर टूट पड़ी थी| क्या यही भारतीय राष्ट्रवाद है? क्या यही वह बिन्दु है जिस पर कांग्रेस और भाजपा एकरूप हो जाती हैं? जन-आक्रोश की बात अपनी जगह सही है| इंदिरा गांधी की हत्या और गोधरा कांड ने लोगों का खून खौला दिया था लेकिन राज्य का कर्तव्य क्या है? आखिर राज्य नामक संस्था बनी क्यों है? किसलिए हम पुलिस और फौज-फाटा पर करोड़ों रुपया खर्च कर रहे हैं? यदि राज्य बेकसूर नागरिकों की रक्षा नहीं कर सकता तो उसे राज्य कहलाने का अधिकार क्यों होना चाहिए? जिसकी नाक के नीचे बेकसूर लोग मारे जाएं, गर्भवती महिलाओं के साथ बलात्कार हों, मासूम बच्चे सूली पर लटका दिए जाएं, वह आदमी अपने आपको मुख्यमंत्री कहे, इससे बढ़कर लानत क्या हो सकती है? आपकी कैसी सरकार हैं, आप कैसे राज्य हैं, आप कैसे मुख्यमंत्री हैं कि आप गोधरा के गुंडों को आज तक नहीं छू पाए और निरपराध लोग लगातार मारे गए| यहां सवाल हिंदू और मुसलमान का नहीं है, सही और गलत का है| जो भी गलत काम करेगा, वह मारा जाएगा| यदि गोधरा के गुंडों को पुलिस भून डालती तो दुनिया में यह कोई नहीं पूछता कि आपने मुसलमानों को क्यों मारा? दुनिया के मुसलमान उन बदमाशों से हाथ धो लेते| उन्हें इस्लाम का कलंक कहा जाता| आज जो विशेषण मोदी को मिल रहा है, हिंदुत्व का कलंक, वह गोधरा के हत्यारों को मिलता| मोदी ने अपनी करतूत से इस्लाम के कलंक को हिंदुत्व के कलंक में बदल दिया है| मोदी की अकर्मण्यता या अतिरिक्त कर्मण्यता ने गोधरा को नेपथ्य में खिसका दिया है| वहां मरनेवाले कारसेवकों को कोई याद नहीं करता लेकिन महागोडसे के तौर पर नरेंद्र मोदी को सारी दुनिया जानती है| अमेरिका जैसे कई देशों ने मोदी का नाम काली सूची में डाल दिया है| भारत के लिए यह काफी अपमानजनक बात है| मोदी भारतमाता के कैसे सुपुत्र है? देख लीजिए, वे अपनी मॉं का नाम कैसे रोशन कर रहे हैं? गुजरात का एक बेटा मोहनदास गांधी था और एक नरेंद्र मोदी है| दोनों को दुनिया जानती है| गुजरात की जनता का जिस दिन गुस्सा ठंडा पड़ेगा, वह भी जान जाएगी|
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