R Sahara, 13 May 2004 : अमेरिकी सभ्यता कितनी खोखली है, इसका ठोस प्रमाण आजकल निरंतर उभरता जा रहा है| सारी दुनिया को बताया जा रहा है कि देखो, अमेरिकी जनता कितनी प्रबुद्घ है कि वह अपने राष्ट्रपति, अपने रक्षामंत्री और अपनी फौज पर आग-बबूला हो रही है| उनसे वह पूछ रही है कि एराकी कैदियों के साथ राक्षसी बर्ताव के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है| अमेरिकी टेलिविजन, अखबार, सांसद, विशेषज्ञ – सभी बुश-प्रशासन पर टूट पड़े हैं| लोकमत-संग्रह में 70 के बिन्दु को छूनेवाले बुश 46 पर उतर आए है| बुश-प्रशासन की दाल पतली हो गई है| वह हरारत में है| ये सब तथ्य हैं लेकिन इनका निष्कर्ष क्या है? क्या यह है कि अमेरिकी जनता मानव-सम्मान और मानव-अधिकार के प्रति अति सतर्क है? जो जनता एराकी कैदियों की इज्जत की खातिर अपने राष्ट्रपति और रक्षा मंत्री की बलि चढ़ाने को तैयार हो, क्या उसे सारी दुनिया को सलाम नहीं करना चाहिए? क्या अमेरिका महान लोकतंत्र नहीं है? क्या वह नैतिक महाशक्ति नहीं है?
ऊपरी तौर पर ये तर्क सही लगते हैं लेकिन जरा गहराई में उतरें तो पता चलेगा कि अमेरिकी फौजियों ने एराकी कैदियों के साथ जो बर्ताव किया है, वह पश्चिमी सभ्यता का अविभाज्य अंग है| क्या बिल्कुल ऐसा ही बर्ताव नाजी जर्मनी ने अपने यहूदियों के साथ नहीं किया था? क्या स्तालिन के यातना-शिविरों में रूसियों ने एराकियों से भी अधिक भयंकर यंत्रणाऍं नहीं भोगी थीं? क्या वियतनाम में किए गए ‘माई लाई कांड’ को हम भूल गए, जहॉं पूरे के पूरे वियतनामी गॉंव को अमेरिकी फौजियों ने भून डाला था? हीरोशिमा और नागासाकी के निहत्थे नागरिकों पर बरसाए गए समूलनाशी बमों को भी मानवता कभी भूल नहीं सकती| यही है, अमेरिकी सभ्यता| इस सभ्यता के सबसे बड़े प्रतीक जॉर्ज बुश जब यह कहते हैं कि “उस जेल में जो कुछ हुआ है, वह उस अमेरिका का प्रतिनिधित्व नहीं करता, जिसे मैं जानता हॅूं|” बुश का यह कथन सरासर झूठ है| वे जिस अमेरिका को जानते हैं, यह क़रतूत उसी अमेरिका की है| जिस अमेरिका का राष्ट्रपति अपने ‘ओवल आफिस’ में व्यभिचार कर सकता है, उस देश के विजेता सिपाही हारे हुए देश के कैदियों के साथ जेल में बलात्कार करें, इसमें कौनसा आश्चर्य है? क्या एराकी कैदी मोनिका ल्यूइंस्की से भी ज्यादा लाचार नहीं हैं? बहादुर कैदियों को नंगा करना, उन्हें सामूहिक व्यभिचार और बलात्कार के लिए विवश करना, उन्हें नंगा करके उनके गले में कुत्ते का पट्टा डालकर घसीटना, उन्हें सूली पर चढ़ाकर करंट लगाना – क्या ये कुकर्म किसी सभ्य देश की फौज कर सकती है? अपने आपको ईसाई कहनेवाले पश्चिमी लोगों को ज़रा शर्म आनी चाहिए| वे ईसा का नाम बदनाम कर रहे हैं| एराक के पुरुष कैदियों के साथ यह बर्ताव अमेरिका की स्त्री-अफसरों की देख-रेख में हुआ है| यह स्त्री-जाति का कलंक है| आदमी तो आदमी, जहॉं औरत भी इतनी नीचे गिर जाए, वहॉं मानना पड़ेगा कि सभ्यता के मूल में ही भॉंग पड़ी हुई है| इसे इक्का-दुक्का मामला कहकर रफा-दफा नहीं किया जा सकता|
अमेरिकी सरकार ने अपने बचाव में दो आवरण ताने हैं, जो बहुत झीने हैं| एक तो यह कि यह करतूत सी.आई.ए. की है, अमेरिकी फौज की नहीं और दूसरा, जिन्होंने यह कुकर्म किया है, वे फौज के नियमित सिपाही नहीं, भाड़े के सैनिक हैं| जेलों में फंसे एराकी कैदियों से सच उगलवाने के नाम पर यदि सी.आई.ए. के कर्मचारी भी यह कुकर्म कर रहे हैं तो वे कोई सद्रदाम हुसैन के लोग नहीं हैं| वे अमेरिकी हैं और फौज के अनुशासन में हैं| यदि सेनापति और रक्षामंत्री इन भयंकर अत्याचारों से अवगत नहीं हैं तो यह उनका दोष है| मानव अधिकार रक्षा समूह ने पिछले अक्तूबर में ही इन अत्याचारों की पोल उजागर कर दी थी लेकिन उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया| इसी प्रकार यह कहना भी दुराग्रह मात्र है कि कैदियों की कूट-परीक्षा करनेवाले लोग अनुभवहीन हैं और भाड़े के हैं| आखिर वे किसके आधीन हैं? उन्हें एराक लाने के लिए 30 करोड़ डॉलर का बजट पेन्टागॉन ने बनाया है या नहीं? भाड़े के सिपाही लाने पड़ रहे हैं, इसका क्या मतलब है? क्या यह नहीं कि औसत अमेरिकी सिपाही एराक़ जाना नहीं चाहता| यदि ये अत्याचार सी.आई.ए. के कर्मचारियों या भाड़े के सिपाहियों ने किए हैं तो भी सारी जिम्मेदारी बुश और रम्सफेल्ड की ही है| सारी दुनिया में थू-थू होने पर बुश और रम्सफेल्ड अब माफी मॉंगने पर मजबूर हुए हैं, वरना शुरू में तो उनका रवैया टालमटोल का ही था| उनका बस चलता तो वे इसे कुछ अनुशासनहीन फौजियों की बेवकूफी कहकर अपना पिंड छुड़ा लेते लेकिन अमेरिकी जनता के गुस्से ने बुश प्रशासन की हड्डयिों में कंपकंपी दौड़ा दी है|
अमेरिकी जनता का क्रोध बड़ा सात्विक दिखाई पड़ता है लेकिन अगर वह सात्विक होता तो उसे पिछले साल मार्च में ही प्रकट होना चाहिए था| यह क्या बात हुई कि एराक के बलात्कार पर तो अमेरिकी जनता तालियॉं पीट रही थी और अब उसके कैदियों के बलात्कार पर वह छाती पीटने लगी है? क्या ये दोनों बलात्कार एक-जैसे नहीं हैं? सच्चाई तो यह है कि दूसरा बलात्कार पहले बलात्कार की ही संतान है| पहला दूसरे का ही प्रतिफलन है| यदि पहला नहीं होता, तो दूसरा कैसे हो जाता? सद्रदाम हुसैन ने अपने देशवासियों पर जुल्म किए हो सकते हैं लेकिन बुश की फौज के जुल्मों के आगे सद्रदाम भी शरमा जाएंगे| बुश और रम्सफेल्ड यह भूल रहे हैं कि उन्होंने झूठ बोलकर एराक पर जो कब्जा किया है, यह पाप पता नहीं कितने पोरों से फूट-फूटकर बहेगा| बुश के चमचा-शिरोमणि टोनी ब्लेयर तो इन अपराधों पर बुश-जितने भी शर्मिंदा नहीं हैं और वे इन्हें भी ढंकने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें पता नहीं कि इन दोनों बुद्घू नेताओं ने सम्पूर्ण पश्चिमी सभ्यता की इज्जत धूल में मिला दी हैैैैैै| अरब देेेशों के शाह, सुल्तान और अमीर लोग अपने होठ चाहे सिले रहें, एक-एक अरब का दिल अमेरिकियों के लिए घृणा का किला बन गया है| पता नहीं कितने उसामा बिन लादेनों को जन्म देने का श्रेय बुश और ब्लेयर की जोड़ी को मिलेगा|
अमेरिकी जनता का क्रोध तो तभी सात्विक माना जाएगा जबकि वह बुश और रम्सफेल्ड को चुनावों के पहले ही निकाल बाहर करे| बुश पर महाभियोग चलाने की बात तक अमेरिका में नहीं छिड़ी| एक विश्व-अपराधी दुबारा राष्ट्रपति बनने के लिए फुदक रहा है और कोई उसके कान तक नहीं खींच रहा| बुश की तुलना जरा क्लिंटन से करें| क्लिंटन का अपराध बड़ा था या बुश का बड़ा है? क्लिंटन पर और उनके पहले निक्सन पर महाभियोग की प्रकि्रया चलानेवाले अमेरिकी प्रतिनिधियों से कोई पूछे कि बुश अभी तक क्यों बचे हुए हैं? क्या इसीलिए नहीं कि बुश को अमेरिकी राष्ट्रवाद का, महाशक्ति की दादागीरी का और अमेरिकी जनता के सात्विक क्रोध का प्रतिनिधि माना जाता है| बुश का कोई बाल भी बॉंका नहीं कर सकता| जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों की भी बोलती बंद हो चुकी है| सभी देश एराक की कढ़ाई में अपने-अपने पकौड़े तलने पर आमादा हैं| तानाशाह सद्रदाम के बल निकालने के नाम पर 15 साल पहले बुश के बाप ने सारी दुनिया को ठगा था और अब यह बुद्घू बेटा अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था को पैंदे में बैठा रहा है| लगभग सवा लाख सैनिक और 80 बिलियन डॉलर (400 अरब रु.) झोंकने के बावजूद बुश एराक में कहीं भी शांति की किरण नहीं देख पा रहे हैं| 30 जून को वे सत्ता का हस्तांतरण कैसे करेंगे, किसे करेंगे, कौन जानता है| ब्रेमर के तत्वावधान में चल रही प्रशासनिक परिषद या तदर्थ सरकार के सदस्यों में इतना हौसला नहीं कि वे जनता को अपना मुख दिखा सकें| अमेरिकी हमले की कृपा से अब एराक में राष्ट्रवाद की वैसी ही जबर्दस्त लहर उठ रही है, जैसी कभी अंग्रेजों के विरुद्घ उठी थी| दशकों से बॅंटे हुए शिया और सुन्नी किसी चट्टान की तरह एक हो गए हैं| कुछ ही माह में सद्रदाम-विरोधी कुर्द लोग भी अमेरिका के विरुद्घ तलवारें खींच लें तो आश्चर्य नहीं होगा| जिन तेल के कुओं के लिए अमेरिका एराक में घुसा है, वे मौत के कुऍं सिद्घ हो रहे हैं|
बुश की परेशानी यह है कि अभिमन्यु की तरह वे एराक में घुस तो गए हैं लेकिन इस चक्र-व्यूह से वे बाहर निकलना नहीं जानते| अभिमन्यु बहादुर था, बुश बुद्घू हैं| यदि वे रम्सफेल्ड की बलि चढ़ा दें तो फिर सीधे उनकी बारी होगी| रम्सफेल्ड की सीढ़ी पर चढ़कर वे एराक पहुंचे हैं| इसीलिए वे रम्सफेल्ड को डॉंटने का नाटक भी कर रहे हैं और उन्हें बचा भी रहे हैं| उन्हें मालूम है कि रम्सफेल्ड का इस्तीफा होते ही उनकी छत का सबसे मजबूत खम्भा गिर पड़ेगा| उनके लिए चुनाव जीतना दूभर हो जाएगा| रम्सफेल्ड रहें या जाऍं, अब एराकी पिटारा खुल गया है| इस पिटारे में से पता नहीं कितने कंकाल लड़खड़ाते हुए बाहर आ पड़ेंगे| कुछ बि्रटिश सिपाहियों ने भी अत्याचारों का ऑंखों देखा हाल अखबारों में छपवाना शुरू कर दिया है| भारत के भाड़ेती सिपाहियों और चौकीदारों की करुण-कथा ने नई दिल्ली के पसीने छुड़ा रखे हैं| अमेरिकी सिपाहियों और नाटो के लाखों जवानों के बावजूद तीसरी दुनिया के भाड़ेतियों को अमेरिका एराक में क्यों झोंक रहा है? इसीलिए कि बुश के इस युद्घ में कोई भी अपना खून नहीं बहाना चाहता| अमेरिकी सिपाही, जो पत्र अपने परिजनों को लिख रहे हैं और फोन पर जो हाल बता रहे हैं, अगर वे सब छपने लगें तो अमेरिका में कोहराम मच जाए| वियतनाम के दिनों में प्रचार-माध्यम इतने सशक्त नहीं थे, जितने कि अब हैं| उन दिनों साम्यवाद से लड़ने का बहाना भी जबर्दस्त था| अब सबको पता है कि आतंकवाद-विरोध तो केवल मुखौटा है| अपने पिता के प्रतिशोध को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिए अमेरिका को बुश ने दॉंव पर लगा दिया है| अमेरिका ही नहीं, वे सब अरब शाह, सुल्तान और अमीर भी बुश की शतरंज के मोहरे बन गए हैं, जो उनकी हॉं में हॉं मिला रहे हैं| इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा| वे बुश की खोदी हुई कब्र में रोज़ गहरे उतरते जा रहे हैं| जिस दिन जनता इन्साफ करेगी, हर देश में स्पेन दोहराया जाएगा| जैसे स्पेनी जनता ने बुश-समर्थक प्रधानमंत्री को चुनाव में उल्टा लटका दिया, वैसी ही गति को ये शाह, सुल्तान और अमीर प्राप्त होंगे|
लगता है, अफगानिस्तान की कीमत बुश को एराक में चुकानी पड़ेगी| अफगानिस्तान से तालिबान और उसामा को बेदखल करने की कामयाबी ने बुश को गुमराह कर दिया| उन्होंने समझ लिया कि जैसे अफगान राहों वे सदभावना के लाल गुलाब बिछे हुए थे, वैसे ही उन्हें एराक में भी मिलेंगे| लेकिन सद्रदाम तालिबान की तरह किसी पाकिस्तानी बेसाखी पर नहीं खड़े थे और एराक में रब्बानी और करज़ई या जाहिरशाह की तरह कोई विश्वसनीय विकल्प नहीं था| अफगानिस्तान को अधर में लटका छोड़कर बुश एराक पर लपके| और अब एराक ने बुश को ही अधर में लटका दिया है| अफगानिस्तान पर दो बिलियन डॉलर खर्च करनेवाले बुश को एराक में सौ बिलियन डॉलर बहाने पड़ रहे हैं| एराक में अमेरिका का खून और डॉलर तो बह ही रहे हैं, इज्जत भी बह गई है|
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