राष्ट्रीय सहारा, 09 फरवरी 2004 : दुनिया के सबसे बड़े मौत के सौदागर को माफी क्यों मिली? जिस परवेज़ मुशर्रफ ने नवाज़ शरीफ और बेनज़ीर भुट्टो को माफ़ नहीं किया, उसने पाकिस्तानी वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल क़दीर खान को माफ़ क्यों कर दिया? खान का गुनाह क्या नवाज़ और बेनज़ीर से कम था? कम नहीं, ज्यादा, बहुत ज्यादा है| इतना ज्यादा है कि उसके आगे तालिबान, सद्दाम और इस्राइल के गुनाह भी फीके पड़ जाते हैं| खान ने मानवता-विनाश के अपराध किए हैं| उन्होंने परमाणु बम बनाने के रहस्य अनेक देशों को चोरी-छिपे बेचे हैं| अभी तो केवल लीब्या, ईरान और उत्तर कोरिया के नाम ही सामने आए हैं| कोई आश्चर्य नहीं कि उसामा बिन लादेन, चेचन्या के आतंकवादी, पूर्व सोवियत गणतंत्रों और अन्य परमाणु-दहलीज़ पर खड़े राष्ट्रों को भी अब्दुल क़दीर खान और उनके साथियों ने परमाणु तकनीक और कल-पुर्जे बेचे हों| इनमें से कोई भी परमाणु बम बनाकर उसका विस्फोट कर सकता है और सारे विश्व को समूल नाश के कगार पर पहॅुंचा सकता है|
खान ने समूल-नाश के ये गोपनीय रहस्य आखिर क्यों बेचे? वे वैज्ञानिक से कबाड़ी क्यों बन गए? उन्होंने पाकिस्तानी टी.वी. पर दिए आत्म-स्वीकार में कहा कि ये रहस्य उन्होंने अपनी मासूमियत या भलमनसाहत या ‘गुड फेथ’ में दे दिए| यदि भलमनसाहत में दिए होते तो उसके बदले में करोड़ों डॉलर डकारने की क्या जरूरत थी? क्या भारत और पाकिस्तान का कोई वैज्ञानिक अपने वेतन में से पैसा बचाकर कोई बड़ा होटल खड़ा कर सकता है? खान ने अफ्रीका के टिम्बकटू में अपनी बीवी के नाम से आलीशान होटल बनाया, उसके लिए पाकिस्तान में फर्नीचर बनवाकर वायुसेना के जहाज से भिजवाया, लंदन में कई मकान खरीदे और अपने रिश्तेदारों को मालामाल कर दिया| खान ने ये विश्व-संहार के रहस्य पैसे के खातिर बेचे लेकिन क्या वे यह सब अपने आप कर सकते थे? अकेले कर सकते थे? जाहिर है कि नहीं कर सकते थे| उनके साथ लगभग दर्जन भर वैज्ञानिकों का एक गिरोह था, जो परमाणु रहस्यों की तस्करी में लीन था| ये वैज्ञानिक पाकिस्तानी वायु-सेना के जहाजों का इस्तेमाल करते थे, सरकारी पासपोर्टों पर यात्रा करते थे और सरकार से वेतन और भत्ता भी लेते थे| ऐसा नहीं था कि वे खान की किसी निजी कम्पनी के नौकर रहे हों| स्वयं खान पाकिस्तान के सरकारी संस्थान ‘खान परमाणु प्रयोगशाला’ के मुखिया थे| इसीलिए खान के माथे सारा ठीकरा फोड़कर पाकिस्तान सरकार खुद को दूध का धुला सिद्घ नहीं कर सकती| खान ने जब-जब परमाणु रहस्य किसी राष्ट्र को दिए हैं तो बदले में पाकिस्तानी सरकार को अरबों डॉलर, मुफ्त का तेल और मिसाइल मिले हैं| ये सब खान ने अपने घर में नहीं रखे हैं| इसमें शक नहीं कि पाकिस्तान बहुत सुशासित राज्य नहीं है लेकिन उसके परमाणु-संस्थान पर फौज और सरकार का कड़ा नियंत्रण रहा है| सरकार, वैज्ञानिकों और सेनापतियों की मिलीभगत के बिना परमाणु रहस्यों की तस्करी हो ही नहीं सकती थी| इसीलिए पिछले दो माह की जॉंच के दौरान पूर्व सेनापति मिर्ज़ा असलम बेग और जहॉंगीर करामत से भी जमकर पूछताछ हुई है| पिछले हफ्ते जब अब्दुल क़दीर खान के विरुद्घ भ्रष्टाचार की खबरें पाकिस्तानी अखबारों में छपवाई जा रही थीं तो खान ने भी अपने गुप्त स्रोतों के ज़रिए मॉंग की थी कि मुशर्रफ समेत सभी शासनाध्यक्षों और सेनापतियों को आमने-सामने बिठाकर जॉंच करवाई जाए| परमाणु तस्करी में सभी का हाथ है| एक खबर यह भी छपी कि खान ने अनेक गुप्त कागजात अपनी बेटी के पास बगदाद पहॅुंचवा दिए थे ताकि उनको यदि गिरफ्तार कर लिया जाए तो वह पाकिस्तानी हुक्मरानों को बेनक़ाब कर दे|
मुशर्रफ और खान के बीच चल रहे इस प्रचार-युद्घ ने पाकिस्तानी जनता की नींद हराम कर दी| जिस वैज्ञानिक को वह महानायक समझ रही थी, जिसे वह देशभक्ति का पुतला मान रही थी, जिसे वह अन्तरराष्ट्रीय इस्लाम का झंडाबरदार समझ रही थी, वह पैसे का गुलाम निकला| उसने अपने कारनामों से पाकिस्तान को ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया कि जहॉं से वह एराक़ और अफगानिस्तान की तरह विश्व-क्रोध का शिकार बन सकता है| संयुक्तराष्ट्र संघ चाहे तो पाकिस्तान के संपूर्ण परमाणु-संस्थान को अपने कब्जे में ले सकता है और पाकिस्तानी सरकार चुपचाप समर्पण न करे तो संयुुक्तराष्ट्र पाकिस्तान के विरुद्घ सीधी कार्रवाई भी कर सकता है| जाहिर है कि इतना बड़ा संकट पाकिस्तान के इतिहास में पहले कभी नहीं आया| यह बांग्लादेश-निर्माण से भी बड़ा संकट है| इस संकट की पीछे न देशभक्ति है और न ही इस्लाम ! अपनी परमाणु तकनीक़ दूसरे देशों को बताना कौनसी देशभक्ति है? यदि इस्लाम के नाम पर यह तकनीक दी गई है तो उत्तर कोरिया को क्यों दी गई? वह तो कोई मुस्लिम राष्ट्र नहीं है| और यदि लीब्या, ईरान और एराक़ को दी गई तो एराक़ भी इस्लामी नहीं रहा| सद्दाम के नेतृत्व में वह सेक्युलर राष्ट्र रहा है| लीब्या और ईरान को अगर इस्लाम के नाम पर बम की तकनीक मिली होती तो उन्हें अरबों डॉलर और तेल के लाखों बैरल पाकिस्तान को क्यों चुकाने पड़ते? क्या वजह है कि इन्हीं इस्लामी राष्ट्रों – लीब्या और ईरान ने पाकिस्तान की पोल खोल दी? ‘इस्लामी बम’ का नारा शुद्घ पाखंड था, यह अब सिद्घ हो गया है| इस्लाम के नाम पर जैसे 1947 में बलूचों, पठानों और सिंधियों को ठगा गया, वैसे ही पाकिस्तान ने अब ‘इस्लामी बम’ के नाम से कुछ भोले मुस्लिम राष्ट्रों को ठग लिया|
पाकिस्तानी बम न तो इस्लामी बम था और न ही वह पाकिस्तान का अपना बम था| जैसे पाकिस्तान एक अप्राकृतिक राष्ट्र है, वैसे ही उसका परमाणु बम चुराई हुई तकनीक का परिणाम था| डॉ. अब्दुल क़दीर खान ने हॉलैंड के परमाणु-संस्थानों में नौकरी करते हुए उनके परमाणु रहस्यों को चुराया और कई देशों से कल-पुर्जे मंगाकर बम बना दिया| कहीं की ईंट और कहीं का रोड़ा ! भानमती ने कुनबा जोड़ा!! यह कुनबा पाकिस्तान की विभिन्न सरकारों के आशीर्वाद के बिना नहीं जुड़ सकता था| खान जैसे वैज्ञानिकों के हाथ में करोड़ों डॉलर आ गए| वे जहॉं से जो पुर्जे खरीदना चाहें, खरीद सकते थे| यह पैसा सउदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमारात, लीब्या और कुछ दिन तक एराक़ से भी आता रहा| माले-मुफ्त, दिले-बेरहम ! वैज्ञानिकों ने भी जमकर हाथ साफ किया| इस्लाम और देशभक्ति को उन्होंने ताक पर रख दिया| जैसे वैज्ञानिकों का बर्र्ताव उठाईगीरों-का-सा हो गया, वैसा ही पाकिस्तान का भी हो गया| यदि पाकिस्तान ने अपनी तकनीक से बम बनाया होता तो वह बम के रहस्यों को इतनी बेशर्मी से नहीं बेचता| वह चोरी का माल था| उसे मोरी में जाना ही था| बम तो भारत ने भी बनाया लेकिन भारत का बम उसके वैज्ञानिक विकास का स्वाभाविक परिणाम था| उसने तकनीक या कल-पुर्जों की चोरी या तस्करी नहीं की| उसने अन्तरराष्ट्रीय कानूनों का पूरी तरह पालन किया है और किसी भी क़ीमत पर वह अपने परमाणु रहस्य किसी को भी नहीं देगा| दूसरे शब्दों में भारत पिछले पॉंच परमाणु-राष्ट्रों की तरह एक छठा जिम्मेदार परमाणु-राष्ट्र है जबकि सातवॉं राष्ट्र पाकिस्तान निहायत गैर-जिम्मेदार राष्ट्र सिद्घ हुआ है| परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत न करते हुए भी भारत ने उसका अक्षरश: पालन किया है, जबकि पाकिस्तान ने उसे पग-पग पर भंग किया है| अन्तरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने पर पाकिस्तान को इतनी कड़ी सजा मिल सकती है कि उसका हाल सद्दाम और तालिबान से भी बुरा हो सकता है लेकिन फिलहाल उसे डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अमेरिकी प्रशासन कह रहा है कि बीती ताहि बिसार दे| जो हो गया, सो हो गया| बस अब पाकिस्तान ऐसी गलती दुबारा न करे| वह मुशर्रफ की तारीफ किए जा रहा है, इसलिए कि मुशर्रफ ने अपने ही वैज्ञानिकों और फौजियों के विरुद्घ जॉंच बैठा दी है| उसे उम्मीद है कि मुशर्रफ अमेरिका को खान की सारी कारस्तानियों से अवगत करवा देंगे, जिसके आधार पर अमेरिका दुनिया के कोने-कोने से परमाणु बम के अंदेशों को खोज लाएगा और संसार को संभावित परमाणु विभीषिका से बचा लेगा| पता नहीं, अमेरिका को अपने इरादों में कितनी सफलता मिलेगी, क्योंकि वियना के ‘अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण’ के अध्यक्ष का कहना है कि यह मामला केवल लीब्या, ईरान और उत्तर कोरिया तक ही सीमित नहीं है| पाकिस्तान ने परमाणु ब्लेकमार्केट का विश्व-व्यापी जाल बिछा रखा है| यह बयान किसी भी पाकिस्तानी के लिए कितना शर्मनाक है| हर पाकिस्तानी आज यह सोचने के लिए मजबूर है कि वह एक ऐसे राष्ट्र का नागरिक है जो विश्व-विध्वंस का सौदागर बन गया है|
कुछ पाकिस्तानी विश्लेषकों का मानना है कि अभी तो अमेरिका चुप रहेगा, क्योंकि उसे अफगानिस्तान में अपना काम निकालना है लेकिन ज्यों ही पाकिस्तान की राजनीतिक उपयोगिता घटी, वह पाकिस्तानी परमाणु-अपराधों के लिए उसे सज़ा दिए बिना नहीं रहेगा| मुशर्रफ ने अपनी खाल बचाने के लिए पहले खान को फॅंसाया और बाद में उन्हें माफी दे दी लेकिन इससे पाकिस्तान की पोल तो खुल ही गई| यह सिद्घ हो गया कि पाकिस्तान उद्दंड राष्ट्र (रोग नेशन) है| मुशर्रफ की कोशिश है कि परमाणु-अपराध के सारे मामले को वह पाकिस्तान के आंतरिक मामले की तरह रफा-दफ़ा कर दें लेकिन असलियत यह है कि यह मामला जितना खान बनाम पाकिस्तानी सरकार है, उससे कहीं ज्यादा पाकिस्तान बनाम अंतरराष्ट्रीय बिरादरी है| यह आश्चर्य की बात है कि निरपराध सद्दाम के विरुद्घ लगाए गए झूठे आरोपों के समर्थन में अनेक देश खड़े हो गए और सच्चे आरोपों की स्वीकृति के बावजूद पाकिस्तान के विरुद्घ एक भी सशक्त स्वर नहीं उठा है| यहॉं तक कि भारत भी हकला रहा है| भारत सरकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है| केवल भारत के विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने एक सवाल के जवाब में प्रेस से कहा है कि वियना की एजेन्सी को चाहिए कि वह पूरी खोज करे| कैसी मजबूरी है? भारत को यह सुनहरा मौका छोड़ना पड़ रहा है| भारत-पाक वार्ता का दौर अगले हफ्ते शुरू होना है, वरना भारत सारे संसार को अपने सिर पर उठा लेता और दुनिया से कहता कि वह पाकिस्तान को अन्तरराष्ट्रीय अपराधी घोषित करे| पाकिस्तान का अपराध स्वयंसिद्घ है| लेकिन मुशर्रफ इतने चतुर फौजी हैं कि वे खुद को इस भयंकर संकट से भी सुरक्षित बाहर निकाल ले जाऍंगे| उन्होंने खान को माफ़ करने का विलक्षण नाटक रचा है| इससे पाकिस्तान के मज़हबी तत्वों को भी मरहम लग गया है और खान की भी बोलती बंद हो गई है| उन्होंने पाकिस्तानी अखबारों के संपादकों से भी अनुरोध किया है कि वे अपनी कलम पर लगाम लगाऍं वरना अमेरिका और संयुक्तराष्ट्र संघ पाकिस्तान के विरुद्घ गलाघोंटू प्रतिबंध थोप देंगे| मुशर्रफ का यह कहना कि वे पाकिस्तान के परमाणु-संस्थानों पर कोई निगरानी स्वीकार नहीं करेंगे, कोरी गीदड़-गर्जना है| फिलहाल, वे बच निकल सकते हैं, लेकिन अमेरिकी चुनावों के बाद जो भी सरकार बनेगी, वह पाकिस्तान का टेंटुआ कसे बिना नहीं रहेगी| भारत-अमेरिकी घनिष्टता के मार्ग का यह रोड़ा अब हटने ही वाला है|
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