दैनिक भास्कर, 6 जनवरी 2009 : हमारे प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और गृह मंत्री के अब तक के बयानों ने भारत की क्या छवि पैदा की है ? उन्होंने उसी छवि को मजबूत किया है, जो 1947-48 में बनी थी| औसत पाकिस्तानियों को मैंने कई बार यह कहते सुना है कि भारत बनियों का देश है| आप लोग दब्बू और डरपोक हैं| देखिए मि. जिन्ना ने मि. गांधी को किस बुरी तरह छकाया था| अब भी यही हो रहा है| हमारे गृह मंत्री कह रहे हैं – अबकी बार मार, फिर बताता हूँ| हम जब भी पिटते हैं, यही कहते हैं, चाहे संसद हो, अक्षरधाम हो या मुंबई हो| विदेश मंत्री कहते हैं कि हमारे सारे विकल्प खुले हैं| इसका क्या मतलब ? क्या यह नहीं कि निकम्मे बने रहने का विकल्प भी खुला हुआ है ? मुंबई-हमले को डेढ़ माह बीत गया और भारत डेढ़ इंच भी आगे नहीं बढ़ा| वह सिर्फ जबानी जमा-खर्च में लगा हुआ है| प्रधानमंत्री कहते हैं कि युद्घ का नाम भी मत लो| उसका तो सवाल ही नहीं उठता| यह बात अपने आप में ठीक है लेकिन युद्घ का माहौल खड़ा करने की जिम्मेदारी किसकी है ? भारत के अपरिपक्व टीवी एंकरों की और सरकार की भी, जिसने कह दिया कि हमारे विकल्प खुले हैं| ‘खुले हैं’ का असली अर्थ भारत की जनता को पता है लेकिन पाकिस्तान की जनता मान बैठी कि अब युद्घ सिर पर आ गया है| इस समझ ने पाकिस्तान की फौज, सरकार, विपक्ष, तालिबान, आतंकवादियों और जनता सबको एकजुट कर दिया| आतंकवाद का मुद्दा हाशिए में चला गया और ‘पाकिस्तान बचाओ’, यही सबसे बड़ा मुद्दा बन गया|
पाकिस्तान तो बचा-बचाया ही है| पाकिस्तान भारत से छोटा है लेकिन छोटे मियाँ सुभानअल्लाह ! पाकिस्तान के नेताओं ने भारतीय नेताओं को ऐसी कूटनीतिक पटकनी मारी है कि उन्हें पल्ले ही नहीं पड़ रहा कि वे अब क्या करें ? पाकिस्तान ने मुंबई की गेंद अमेरिका के पाले में डाल दी है| अब हमारे चिदम्बरम वाशिंगटन जाएँगे और बुश की चिलम भरेंगे| बुश की चिलम पहले से ही भरी हुई है, पाकिस्तानी तंबाखू से ! पाकिस्तानियों ने अमेरिकियों को जितना बेवकूफ बनाया है, दुनिया के किसी भी राष्ट्र ने नहीं बनाया है| पिछले सात साल में 12 अरब डालर ढीले कर दिए अमेरिका ने ! पाकिस्तान के फौजियों ने इस पैसे से सबसे पहले अपनी जेबें भरीं, फिर भारत से लड़ने के लिए हथियार खरीदे और अमेरिका को अंगूठा दिखा दिया| आज तक न उसामा बिन लादेन पकड़ा गया और न ही मुल्ला उमर ! वजीरिस्तान, स्वात घाटी और सीमांत के अनेक क्षेत्रें में तालिबानी शिकंजा कसता चला जा रहा है| अफगानिस्तान में उसकी पहुंच अब काबुल तक हो गई है| पाक-अफगान सीमांत पर अमेरिकी मर रहे हैं| सारे पाकिस्तान में अमेरिकियों की थू-थू हो रही है और हमारी सरकार है कि उसने अपना गोवर्धन पर्वत अमेरिका की चिट्रटी उंगली पर टिका दिया है| जो अमेरिका अपने मुँह पर भिनभिना रही मक्खियाँ नहीं उड़ा सकता, वह भारत के लिए शेर मारेगा, यह सोच कितना भोला है ? इस सोच पर कौन न मर जाए, या खुदा !
अमेरिकी सरकार का मुख्य लक्ष्य क्या है ? अमेरिका के हितों की रक्षा करना या भारत के हितों की रक्षा करना ? अमेरिका यह कदापि नहीं चाहेगा कि भारत पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डों पर हमला करे| क्यों ? इसलिए कि फिर पाकिस्तान भारत से लड़ेगा| वह अपने पश्चिमी सीमांत से अपनी फौजें हटा लेगा| इसी पाक-अफगान सीमांत पर फौजें डटाए रखने के लिए ही तो अमेरिका पाकिस्तान को फिरौती (ब्लेकमेल मनी) चुका रहा है| अमेरिका अपने हितों की हानि क्यों होने देगा ? भारत में चल रहा आतंकवाद खत्म हो या न हो, इससे अमेरिका को क्या फर्क पड़ता है ? थोड़े-बहुत अमेरिकी दबाव के कारण पाकिस्तान यदि कुछ कदम उठा ले तो ठीक, वरना परनाला अपनी जगह बहता रहे| भारत रोता रहे, पाकिस्तान हँसता रहे|
यदि भारत सरकार को पूरा विश्वास है कि मुंबई हमले के लिए पाकिस्तान के गैर-सरकारी ही नहीं, सरकारी तत्व भी जिम्मेदार हैं तो अमेरिकी शरण में जाने से क्या फायदा है ? अमेरिका क्या कर लेगा ? क्यों वह अपनी थैली का मुँह बंद कर लेगा ? क्या वह पाकिस्तान को हथियार देने पर रोक लगा देगा ? ऐसा किए बिना वह पाकिस्तान पर रत्ती भर असर भी नहीं डाल सकता| चिदंबरम अपने प्रमाण किसको दिखाएँगे ? क्या प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की जरूरत होती है ? मुंबई की सच्चाई क्या है, यह सबको पता है| ऐसी स्थिति में भारत सरकार को सीधे सुरक्षा परिषद में जाना चाहिए| संयुक्तराष्ट्र महासभा में जाना चाहिए| दुनिया के राष्ट्रों से घोषित करवाना चाहिए कि पाकिस्तान आतंकवादी राष्ट्र है| पाकिस्तान पर वे सारे प्रतिबंध लगवाना चाहिए, जो कभी मुअम्मर कज्ज़ाफी के लीब्या पर, तालिबान के अफगानिस्तान पर और सद्दाम हुसैन के एराक़ पर लगाए गए थे| ऐसे प्रतिबंधों की आवाज़ उठते ही आसिफ ज़रदारी की सरकार के हाथ मजबूत हो जाएँगे| प्रतिबंधों से बचने के नाम पर ज़रदारी आतंकवादियों पर बुरी तरह टूट पड़ सकते हैं| आज मामला है, आतंकवाद बनाम हिंदुस्तान का और तब होगा, आतंकवाद बनाम पाकिस्तान का | भारत थोड़ी चतुराई से काम ले तो सारी चौपड़ ही उलट सकती है| अमेरिका और चीन की परीक्षा भी हो जाएगी| मालूम पड़ जाएगा कि वे भारत के लिए कहीं सिर्फ मगर के आँसू तो नहीं बहा रहे हैं| उनका मसला भी हल हो जाएगा| इसी झटके में उसामा और उमर भी पकड़े जाएँगे|
पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवाने के लिए भारत को जर्बदस्त राजनयिक तैयारी करनी पड़ेगी| वैसी ही जैसे कि 1971 में बांग्लादेश युद्घ के समय इंदिरा गांधी ने की थी| दर्जनों प्रख्यात भारतीयों को विशेष दूत बनाकर सारे विश्व में भेजना होगा| जाहिर है कि इस अभियान का लक्ष्य न तो पाकिस्तान के विरूद्घ युद्घ छेड़ना है और न ही पाकिस्तानी जनता को दुख पहुँचाना है| आखिर वे हमारे वृहत भारत परिवार के ही सदस्य हैं| जैसे कड़वी दवा पिलाने के लिए कभी-कभी बच्चे की नाक दबानी पड़ती है, वैसे ही पाकिस्तान के प्रति भारत का शुभेच्छुक किंतु कठोर रवैया होना चाहिए| यह अत्यंत शुभ समाचार है कि असमा जहाँगीर, डॉ. मुबशर हसन, आई.ए. रहमान जैसे प्रभावशाली पाकिस्तानी नागरिक नेताओं ने अपनी सरकार को खुले-आम आड़े हाथों लिया है| इस समय जरूरी यह है कि आतंकवादियों के विरूद्घ दोनों देशों की सरकारे और जनता एकजुट होकर काम करें|
पाकिस्तान को घोषित करें आतंकवादी राष्ट्र
दैनिक भास्कर, 6 जनवरी 2009 : हमारे प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और गृह मंत्री के अब तक के बयानों ने भारत की क्या छवि पैदा की है ? उन्होंने उसी छवि को मजबूत किया है, जो 1947-48 में बनी थी| औसत पाकिस्तानियों को मैंने कई बार यह कहते सुना है कि भारत बनियों का देश है| आप लोग दब्बू और डरपोक हैं| देखिए मि. जिन्ना ने मि. गांधी को किस बुरी तरह छकाया था| अब भी यही हो रहा है| हमारे गृह मंत्री कह रहे हैं – अबकी बार मार, फिर बताता हूँ| हम जब भी पिटते हैं, यही कहते हैं, चाहे संसद हो, अक्षरधाम हो या मुंबई हो| विदेश मंत्री कहते हैं कि हमारे सारे विकल्प खुले हैं| इसका क्या मतलब ? क्या यह नहीं कि निकम्मे बने रहने का विकल्प भी खुला हुआ है ? मुंबई-हमले को डेढ़ माह बीत गया और भारत डेढ़ इंच भी आगे नहीं बढ़ा| वह सिर्फ जबानी जमा-खर्च में लगा हुआ है| प्रधानमंत्री कहते हैं कि युद्घ का नाम भी मत लो| उसका तो सवाल ही नहीं उठता| यह बात अपने आप में ठीक है लेकिन युद्घ का माहौल खड़ा करने की जिम्मेदारी किसकी है ? भारत के अपरिपक्व टीवी एंकरों की और सरकार की भी, जिसने कह दिया कि हमारे विकल्प खुले हैं| ‘खुले हैं’ का असली अर्थ भारत की जनता को पता है लेकिन पाकिस्तान की जनता मान बैठी कि अब युद्घ सिर पर आ गया है| इस समझ ने पाकिस्तान की फौज, सरकार, विपक्ष, तालिबान, आतंकवादियों और जनता सबको एकजुट कर दिया| आतंकवाद का मुद्दा हाशिए में चला गया और ‘पाकिस्तान बचाओ’, यही सबसे बड़ा मुद्दा बन गया|
पाकिस्तान तो बचा-बचाया ही है| पाकिस्तान भारत से छोटा है लेकिन छोटे मियाँ सुभानअल्लाह ! पाकिस्तान के नेताओं ने भारतीय नेताओं को ऐसी कूटनीतिक पटकनी मारी है कि उन्हें पल्ले ही नहीं पड़ रहा कि वे अब क्या करें ? पाकिस्तान ने मुंबई की गेंद अमेरिका के पाले में डाल दी है| अब हमारे चिदम्बरम वाशिंगटन जाएँगे और बुश की चिलम भरेंगे| बुश की चिलम पहले से ही भरी हुई है, पाकिस्तानी तंबाखू से ! पाकिस्तानियों ने अमेरिकियों को जितना बेवकूफ बनाया है, दुनिया के किसी भी राष्ट्र ने नहीं बनाया है| पिछले सात साल में 12 अरब डालर ढीले कर दिए अमेरिका ने ! पाकिस्तान के फौजियों ने इस पैसे से सबसे पहले अपनी जेबें भरीं, फिर भारत से लड़ने के लिए हथियार खरीदे और अमेरिका को अंगूठा दिखा दिया| आज तक न उसामा बिन लादेन पकड़ा गया और न ही मुल्ला उमर ! वजीरिस्तान, स्वात घाटी और सीमांत के अनेक क्षेत्रें में तालिबानी शिकंजा कसता चला जा रहा है| अफगानिस्तान में उसकी पहुंच अब काबुल तक हो गई है| पाक-अफगान सीमांत पर अमेरिकी मर रहे हैं| सारे पाकिस्तान में अमेरिकियों की थू-थू हो रही है और हमारी सरकार है कि उसने अपना गोवर्धन पर्वत अमेरिका की चिट्रटी उंगली पर टिका दिया है| जो अमेरिका अपने मुँह पर भिनभिना रही मक्खियाँ नहीं उड़ा सकता, वह भारत के लिए शेर मारेगा, यह सोच कितना भोला है ? इस सोच पर कौन न मर जाए, या खुदा !
अमेरिकी सरकार का मुख्य लक्ष्य क्या है ? अमेरिका के हितों की रक्षा करना या भारत के हितों की रक्षा करना ? अमेरिका यह कदापि नहीं चाहेगा कि भारत पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डों पर हमला करे| क्यों ? इसलिए कि फिर पाकिस्तान भारत से लड़ेगा| वह अपने पश्चिमी सीमांत से अपनी फौजें हटा लेगा| इसी पाक-अफगान सीमांत पर फौजें डटाए रखने के लिए ही तो अमेरिका पाकिस्तान को फिरौती (ब्लेकमेल मनी) चुका रहा है| अमेरिका अपने हितों की हानि क्यों होने देगा ? भारत में चल रहा आतंकवाद खत्म हो या न हो, इससे अमेरिका को क्या फर्क पड़ता है ? थोड़े-बहुत अमेरिकी दबाव के कारण पाकिस्तान यदि कुछ कदम उठा ले तो ठीक, वरना परनाला अपनी जगह बहता रहे| भारत रोता रहे, पाकिस्तान हँसता रहे|
यदि भारत सरकार को पूरा विश्वास है कि मुंबई हमले के लिए पाकिस्तान के गैर-सरकारी ही नहीं, सरकारी तत्व भी जिम्मेदार हैं तो अमेरिकी शरण में जाने से क्या फायदा है ? अमेरिका क्या कर लेगा ? क्यों वह अपनी थैली का मुँह बंद कर लेगा ? क्या वह पाकिस्तान को हथियार देने पर रोक लगा देगा ? ऐसा किए बिना वह पाकिस्तान पर रत्ती भर असर भी नहीं डाल सकता| चिदंबरम अपने प्रमाण किसको दिखाएँगे ? क्या प्रत्यक्ष को भी प्रमाण की जरूरत होती है ? मुंबई की सच्चाई क्या है, यह सबको पता है| ऐसी स्थिति में भारत सरकार को सीधे सुरक्षा परिषद में जाना चाहिए| संयुक्तराष्ट्र महासभा में जाना चाहिए| दुनिया के राष्ट्रों से घोषित करवाना चाहिए कि पाकिस्तान आतंकवादी राष्ट्र है| पाकिस्तान पर वे सारे प्रतिबंध लगवाना चाहिए, जो कभी मुअम्मर कज्ज़ाफी के लीब्या पर, तालिबान के अफगानिस्तान पर और सद्दाम हुसैन के एराक़ पर लगाए गए थे| ऐसे प्रतिबंधों की आवाज़ उठते ही आसिफ ज़रदारी की सरकार के हाथ मजबूत हो जाएँगे| प्रतिबंधों से बचने के नाम पर ज़रदारी आतंकवादियों पर बुरी तरह टूट पड़ सकते हैं| आज मामला है, आतंकवाद बनाम हिंदुस्तान का और तब होगा, आतंकवाद बनाम पाकिस्तान का | भारत थोड़ी चतुराई से काम ले तो सारी चौपड़ ही उलट सकती है| अमेरिका और चीन की परीक्षा भी हो जाएगी| मालूम पड़ जाएगा कि वे भारत के लिए कहीं सिर्फ मगर के आँसू तो नहीं बहा रहे हैं| उनका मसला भी हल हो जाएगा| इसी झटके में उसामा और उमर भी पकड़े जाएँगे|
पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवाने के लिए भारत को जर्बदस्त राजनयिक तैयारी करनी पड़ेगी| वैसी ही जैसे कि 1971 में बांग्लादेश युद्घ के समय इंदिरा गांधी ने की थी| दर्जनों प्रख्यात भारतीयों को विशेष दूत बनाकर सारे विश्व में भेजना होगा| जाहिर है कि इस अभियान का लक्ष्य न तो पाकिस्तान के विरूद्घ युद्घ छेड़ना है और न ही पाकिस्तानी जनता को दुख पहुँचाना है| आखिर वे हमारे वृहत भारत परिवार के ही सदस्य हैं| जैसे कड़वी दवा पिलाने के लिए कभी-कभी बच्चे की नाक दबानी पड़ती है, वैसे ही पाकिस्तान के प्रति भारत का शुभेच्छुक किंतु कठोर रवैया होना चाहिए| यह अत्यंत शुभ समाचार है कि असमा जहाँगीर, डॉ. मुबशर हसन, आई.ए. रहमान जैसे प्रभावशाली पाकिस्तानी नागरिक नेताओं ने अपनी सरकार को खुले-आम आड़े हाथों लिया है| इस समय जरूरी यह है कि आतंकवादियों के विरूद्घ दोनों देशों की सरकारे और जनता एकजुट होकर काम करें|
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