नया इंडिया, 09 सितंबर 2014: पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने, जो विदेशमंत्री की जिम्मेदारियां भी निभा रहे हैं, आज कहा है कि भारत-पाक प्रधानमंत्रियों की न्यूयार्क में भेंट होगी या नहीं, यह भारत को ही तय करना होगा। भारत ने ही विदेश सचिवों की वार्ता रद्द की थी। अब वार्ता की पहल भी उसे ही करनी होगी। भारत ने अभी तक कोई पहल नहीं की है।
यह बात अजीज ने फोन पर ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की पत्रकार हरिंदर बवेजा से कही है। शायद अजीज ने नरेंद्र मोदी की वह भेंट वार्ता नहीं पढ़ी, जो जापान जाने से पहले उन्होंने एक जापानी पत्रकार को दी थी। उसमें उन्होंने द्विपक्षीय बातचीत जारी रखने की राय जाहिर की थी। इसके बाद एक अच्छी बात यह भी हुई कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारतीय नेताओं को मीठे आम भिजवाए हैं। दोनों तरफ से सद्भावना व्यक्त हुई है। ऐसे में अब बातचीत शुरू करने में दिक्कत क्या है?
बस अब नाक का सवाल आ खड़ा हुआ है। अजीज के बयान से यही लगता है। अब यदि पाकिस्तान पहल करेगा तो नवाज शरीफ की मुसीबतें बढ़ जाएगी। उनके विरोधी उन पर भारत के तलवे चाटने का आरोप लगाएंगे। इसके अलावा उनकी फौज और गुप्तचर संगठनों को भी उनके खिलाफ मुंह खोलने का मौका मिल जाएगा। यों भी इमरान और कादमी के आंदोलनों से मियां नवाज पहले से ही परेशानी झेल रहे हैं। ऐसे में भारत सरकार को सोचना चाहिए कि वह किसके हाथ मजबूत करें? फौज के या नवाज के?
भारत सरकार भी क्या करे? अपने बिछाए जाल में खुद फंस गई है। यदि अब वह पहल करे तो उसकी नाक कटती है। यदि वह हिम्मत करके पहल कर भी ले और पाकिस्तान खुशी-खुशी तैयार भी हो जाए तो भी एक अड़चन खड़ी हो सकती है। वह यह कि दोनों प्रधानमंत्रियों की भेंट के एक दिन पहले हुर्रियत के नेता पाकिस्तानी उच्चायुक्त से फिल मिल लें तो क्या होगा?
मेरी राय तो यह है कि यह अनबोला टूटना चाहिए। अब दोनों प्रधानमंत्रियों या विदेश मंत्री या विदेश सचिव थोडे दिन न भी मिलें तो कोई बात नहीं। दोनों दूतावासों का जमकर उपयोग किया जाए, अन्य चैनलों को सक्रिय किया जाय और लोक-संपर्क बढ़ता चला जाए। भारत- पाक संवाद का जो वातावरण मोदी ने शुरू किया था, उसमें ढील पड़ना बिल्कुल ठीक नहीं है, क्योंकि एक तो जवाहिरी के अल-कायदा की नई धमकी हमारे सामने है और दूसरा अफगानिस्तान में गृह-युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं।
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