Dainik Bhaskar, 17 Feb. 2009 : इधर आसिफ ज़रदारी ने बयान दिया कि बस, अब पाकिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने ही वाला है और उधर तालिबान ने स्वात घाटी में युद्घ-विराम घोषित कर दिया| इतना ही नहीं, तालिबान ने चीनी इंजीनियर को भी रिहा कर दिया| पाकिस्तान सरकार ने यह भी मान लिया कि मुंबई-हमले का षड़यंत्र् कराची में ही हुआ था और अजमल कसाब पाकिस्तानी ही है| उसने आधा-दर्जन आतंकवादियों को भी पकड़ लिया| मुंबई के हमलावरों पर वह मुकदमे भी चलाएगा| रातों-रात यह रिंद मुसलमाँ कैसे हो गया ? पाकिस्तान के नेताओं ने आखिर यह शीर्षासन क्यों किया ? इसका रहस्य क्या है ? इसका सीधा-सच्चा कारण है, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रिचर्ड होलब्रुक की उपस्थिति ! ओबामा के विशेष दूत होलब्रुक ने अभी तक सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान को कोई फटकार नहीं लगाई है लेकिन लगता है कि उन्होंने व्यक्तिगत मुलाकातों के दौरान पाकिस्तानी फौज और सरकार को तगड़ा जुलाब दे दिया है| ढाई माह से तंग कर रही उसकी दिमागी कब्जी साफ़ हो गई है| पाकिस्तान की सरकार को समझ में आ गया है कि अगर वह मुंबई-हमले पर टालमटोल करती रही तो उसकी खैर नहीं है| ओबामा प्रशासन उसका टेंटुआ कस देगा| मुंबई-हमले के अपराधियों के विरूद्घ प्रारंभिक कार्रवाई करके पाकिस्तानी सरकार ने होलबु्रक को प्रभावित करने की कोशिश जरूर की है| यदि भारत ही कुछ संतोष जाहिर कर रहा है तो अमेरिका का खुश होना तो स्वाभाविक ही है| लेकिन हमें अभी से यह मानकर नहीं बैठ जाना चाहिए कि पाकिस्तान इस कार्रवाई को सही अंजाम तक पहुँचाएगा| आतंकवादियों के विरूद्घ पक्की कार्रवाई तभी होगी, जबकि फौज के तेवर सचमुच में ढीले होंगे| आतंकवादी आईएसआई की संतान हैं और आईएसआई फौज की संतान है| पाकिस्तानी फौज आतंकवादियों की नानी है| पाकिस्तान की असली सत्ता फौज के हाथों में हैं| फौज का प्रभुत्व इसलिए बना हुआ है कि वह भारत-भय का कवच है| पाकिस्तानियों के मन में जब तक भारत-भय का नकली हव्वा खड़ा रहेगा, तब तक फौज का वर्चस्व घटना असंभव है| जब तक ओबामा प्रशासन इस मूल गुत्थी को नहीं सुलझाएगा, वह आतंकवादियों को काबू नहीं कर पाएगा| पता नहीं, होलब्रुक को यह बात इस्लामाबाद, काबुल और दिल्ली में किसी ने समझाई या नहीं ?
फौज और आतंकवादियों का संबंध कितना गहरा है, यह इसी सवाल से समझा जा सकता है कि मुशर्रफ को इस्तीफा क्यों देना पड़ा ? लाल मस्जिद पर फौज ने हमला तो किया, मुशर्रफ की जिद के कारण लेकिन उस हमले के बाद से फौज की नज़रों में मुशर्रफ नीचे फिसलते गए| क्या वजह है कि मुशर्रफ द्वारा नियुक्त किए गए उन्हीं के विश्वासपात्र् जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ने उनसे हाथ झाड़ लिये ? अगर कयानी मुशर्रफ के पीछे डटे रहते तो कठपुतली नेताओं में क्या दम था कि वे मुशर्रफ को हटा पाते| वास्तव में पाकिस्तान के आतंकवादियों पर किया गया प्रहार पाकिस्तान की फौज पर किया गया प्रहार है| बेनज़ीर भुट्टो के गृह मंत्री नसीरूल्लाह बाबर ने जब तालिबान की फौज खड़ी की तो उसका मकसद साफ था| वे अफगानिस्तान में अपनी फौज नहीं भेज सकते थे| उस्ताद बुरहानुद्दीन रब्बानी की सरकार को गिराने का काम पाकिस्तानी फौज करती तो पाकिस्तान रूस की तरह बदनाम हो जाता| जो काम पाकिस्तानी फौज को करना था, वह काम तालिबान से करवाया गया| इसी तरह पाकिस्तान की फौज कश्मीर में नहीं घुस सकती थी| उसने इन्हीं तालिबान और अल-क़ायदा के आतंकवादियों का इस्तेमाल वहाँ भी किया| याने पाकिस्तान के आतंकवादी फौज के ही लंबे हाथ हैं लेकिन उन्होंने ‘गैर-सरकारी’ दास्ताने पहन रखे हैं| फौज, भला, अपने ही हाथ क्यों काटने लगी ? यह रहस्य क्लिंटन और बुश की कभी समझ में नहीं आया लेकिन लगता है, ओबामा को यह रहस्य तुरंत हाथ लग गया है| पहले उन्होंने पाकिस्तान को दी जानेवाली आर्थिक सहायता घटाई और फिर कह दिया कि पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान को कोई भी मदद देने के पहले अमेरिका यह देखेगा कि उसने आतंकवादियों के विरूद्घ क्या कार्रवाई की है| ऐसा क्या हुआ कि स्वात घाटी के तालिबान अचानक नरम पड़ गए और बलूच क्षेत्र् के तालिबान ने चीनी इंजीनियर को रिहा कर दिया ? जाहिर है कि यह फौज के इशारे पर हुआ है| फौज की जो शाखा तालिबान और अल-क़ायदा को पालती-पोसती है, उसका इशारा पाते ही तालिबान नरम पड़ गए| आसिफ ज़रदारी तालिबान का हव्वा खड़ा करके खुद का मज़ाक बना रहे हैं| वे अमेरिकियों को फिजूल डरा रहे हैं| अमेरिकी अब बुद्घू बननेवाले नहीं है| उन्हें पता चल गया है कि तालिबान पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान की दुधारू गाय है| तालिबान के नाम पर 10-12 अरब डॉलर ठगा कर अमेरिका होश में आ गया है| वह जान गया है कि तालिबान पाकिस्तानी फौज के खिलौने हैं| तालिबान को यदि पाकिस्तान की फौज जड़ से उखड़ना चाहे तो यह काम एक सप्ताह में ही पूरा हो सकता है| पाकिस्तान और अफगानिस्तान में कुल कितने सकि्रय तालिबान है ? पाँच-दस हजार तालिबान दस लाख फौजी और पुलिस जवानों के आगे कितने दिन टिक सकते हैं ? 2001 में जब अमेरिकी फौजें काबुल में उतरीं तो तालिबान कितनी देर टिके ? कुछ घंटे भी नहीं| वे सिर पर पैर रखकर भागे| अपने कपड़े-लत्ते तक पीछे छोड़ गए| काबुल में उनकी सरकार थी| फौज और पुलिस उनके पास थी| फिर भी वे क्यों नहीं टिक पाए ? सिर्फ इसीलिए कि पाकिस्तान की फौज ने उन पर से अपना टेका हटा लिया था| मुशर्रफ को बुश ने इतना डरा दिया था कि उस समय पाकिस्तानी फौज अमेरिकियों का साथ नहीं देती तो अमेरिका अफगानिस्तान की तरह पाकिस्तान में भी घुस जाता| यही डर अब ओबामा ने जनरल परवेज़ कयानी और आसिफ ज़रदारी के दिल में बैठा दिया है| पाकिस्तानी नेताओं के रोने-धोने के बावजूद ओबामा की फौज चालकरहित विमानों से आतंकवादियों पर ‘ड्रोन-अटेक’ कर रही है| वह किसी की नहीं सुन रही है| यदि ओबामा इसी तरह जुलाब देते रहे और झटके लगाते रहे तो पाकिस्तानी फौज का तिलिस्म टूटते देर नहीं लगेगी| इसके दो परिणाम होंगे| एक तो समस्त आतंकवादी शक्तियाँ पस्त हो जाएँगी और दूसरा, पाकिस्तान में लोकतंत्र्ीकरण की प्रकि्रया आगे बढ़ेगी| मसखरों की तरह दिखाई पड़नेवाले पाकिस्तानी नेता सचमुच शक्तिमंत हो जाएँगे| पिछले एक हफ्ते में पाकिस्तान के सत्ता-प्रतिष्ठान ने जो कुछ कर दिखाया है, अगर वह ऊपरी लीपा-पोती है, अगर वह होलब्रुक की खुशामद भर है, अगर वह भारत का मुँह बंद करने की तदबीर भर है, तो मानकर चलिए कि पाकिस्तान शीघ्र ही अपने पुराने ढर्रे पर चल पड़ेगा| उस स्थिति में भारत और अमेरिका को मिलकर पाकिस्तान के सत्ता-प्रतिष्ठान के विरूद्घ नई एवं कठोर रणनीति का निर्माण करना होगा|
(लेखक पाक-अफगान मामलों के विशेषज्ञ हैं)
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