नवभारत टाइम्स, 28 June 2007 : अब से डेढ़ साल पहले किसने सोचा था कि फलस्तीन के दो टुकड़े हो जाऍंगे और वहॉं भी एक नए अल-क़ायदा की नींव पड़ सकती है| सच्चाई तो यह है कि पिछले 59 साल में उसके तीन टुकड़े हो गए हैं| पहले इस्राइल और फलस्तीन बने और अब ‘फतहस्तान’ और ‘हमास्तान’ बन गए| ‘फतह’ और ‘हमास’ की लड़ाई ने अब बचे-खुचे फलस्तीन के भी दो टुकड़े कर दिए| पश्चिमी तट पर ‘फतह’ का कब्जा है और गाजा पट्टी पर ‘हमास’ का| डेढ़ साल पहले आम चुनाव में सत्तारूढ़ फलस्तीन मुक्ति संगठन की जर्बदस्त हार हुई और ‘हमास’ की अप्रत्याशित विजय| दोनों संगठन फलस्तीन मुक्ति संगठन की ही संतान हैं| ‘फतह’ के मुकाबले ‘हमास’ जरा ज्यादा उग्र, ज्यादा हिंसक, ज्यादा मुखर है| वह इस्राइल और अमेरिका का जानी दुश्मन है| वह उनसे तब तक बात नहीं करेगा, जब तक फलस्तीन की संप्रभुता को वे स्वीकार नहीं करते और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दे देते| जनवरी 2006 के आम चुनाव में राष्ट्रपति महमूद अब्बास की पार्टी ‘फतह’ को 132 सदस्यों की संसद में केवल 43 सीटें मिली और ‘हमास’ को 76| ‘फतह’ के मुकाबले ‘हमास’ को लगभग ढाई गुना वोट मिले|
‘हमास’ की इस प्रचंड विजय ने इस्राइल और पश्चिमी राष्ट्रों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ा दी| किसी ने यह आरोप नहीं लगाया कि मतदान में धांधली हुई या मत-गणना में घपला हुआ| होता भी कैसे? सरकार तो ‘फतह’ की थी| किसी ने यह भी नहीं कहा कि ‘हमास’ ने डंडे के जोर पर वोट गिरवा लिये| राष्ट्रपति अब्बास ने अपनी पार्टी की पराजय को स्वीकार किया और ‘हमास’ के प्रधानमंत्री इस्माइल हनिये को शपथ भी दिला दी| ऐसा लगने लगा कि राष्ट्रपति ‘फतह’ का और सरकार ‘हमास’ की, यह जोड़ी चल पड़ेगी और शीघ्र ही इस्राइल के साथ शांति-वार्ता आयोजित हो जाएगी| सत्ता में आने के बाद दुनिया के अन्य संगठनों की तरह ‘हमास’ भी ज़रा नरम पड़ेगा, व्यावहारिक बनेगा और अराफात के सपने को साकार करने में जुट जाएगा|
इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पड़ौसी अरब राष्ट्र भी एकजुट होने लगे| इस वर्ष जब सउदी अरब की पहल पर मक्का-समझौता हुआ तो अमेरिका के कान खड़े हो गए| पश्चिमी राष्ट्र चकित थे कि ‘हमास’ जैसे आतंकवादी संगठन को सउदी अरब जैसे मित्र्-राष्ट्र द्वारा इज्ज़त बख्शी जा रही है और ‘हमास’ को फलस्तीनी समस्या के समाधान का स्तम्भ बना दिया गया है| यदि ‘फतह’ और ‘हमास’ मिलकर फलस्तीन की सरकार चलाऍंगे और उन्हें सउदी अरब, ईरान, जोर्डन, मिस्र, सीरिया आदि का समर्थन मिलता रहा तो पश्चिम एशिया में से अमेरिकी दुकान को गोल होने में कितना वक्त लगेगा|
‘हमास’ और ‘फतह’ की फूट की जड़ को अमेरिका ने ही सींच-सींचकर बड़ा किया है| पिछले डेढ़ वर्ष में अमेरिका ने कौनसा वह पैंतरा नहीं मारा है, जिससे ‘हमास’ की सरकार धराशायी न हो जाए| ‘फतह’ के राष्ट्रपति महमूद अब्बास को अमेरिका ने गोद ले लिया और ‘हमास’ की सरकार को अछूत घोषित कर दिया| ‘हमास’ का शासन ठप्प हो जाए, इसलिए अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों ने फलस्तीनियों को दी जा रही, अपनी सारी मानवीय सहायता बंद कर दी| चुंगी नाकों पर से वसूला गया महसूल, जो कि फलस्तीनियों की ही संपत्ति है, वह भी इस्राइल ने ‘हमास’ सरकार को नहीं चुकाया| 15 लाख फलस्तीनी दाने-दाने को मोहताज़ हो गए| चोरी-चकारी, लूट-पाट और अपराध का बोलबाला हो गया| ‘हमास’ के योद्घाओं ने तंग आकर गाजा क्षेत्र् पर कब्जा कर लिया| राष्ट्रपति अब्बास ने ‘हमास’ सरकार भंग कर दी| वर्ल्ड बैंक के एक पुराने अधिकारी सलाम फय्रयाद को प्रधानमंत्री बना दिया| अब फलस्तीन के दो टुकड़े हांे गए हैं-एक पश्चिम तट और दूसरा गाज़ा|
अमेरिका की गर्दन एक साथ कई जगह फॅंसी हुई थी| वह एरा़क, लेबनान, फलस्तीन और अफगानिस्तान में तो पहले से उलझा हुआ था, अब ईरान भी गले पड़ रहा था| अगर फलस्तीन में ‘हमास’ और ‘फतह’ की एकता बनी रह जाती तो अमेरिका को दूसरे ‘युद्घ-क्षेत्रें’ में भी नीचा देखना पड़ता| सिर्फ लेबनान में ही नहीं, फलस्तीन और एरा़क में भी शिया-सुन्नी एकता के नए फूल खिलने लगे थे| ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदनिजाद खुद रियाद गए और सउदी बादशाह अब्दुल्ला से उन्होंने हाथ मिलकार संपूर्ण पश्चिम एशिया की राजनीति को नई दिशा में चलाने का संकल्प दोहराया| शिया-शक्ति के प्रतीक ईरान और सुन्नी शक्ति के प्रतीक सउदी अरब की यह गल-मिल्लवल अमेरिका को बिल्कुल भी रास नहीं आई| इसलिए अमेरिकी सीनेट ने इस बार कुछ अजूबा किया है| पहली बार सउदी अरब को दी जा रही उस सहायता को बंद किया है, जिसका लक्ष्य आतंकवाद से लड़ना है| दूसरे शब्दों में ईरान और ‘हमास’ से सॉंठ-गॉंठ करने को अमेरिका ने मित्र्-द्रोह की संज्ञा दे दी है| अमेरिका ‘हमास’ से इतना खफ़ा है कि उसने ‘फतह’ और ‘हमास’ को आपस में लड़ा दिया है| उसने ‘हमास’ को पहले दिन से ही अल-क़ायदा की तरह आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है| लोकतंत्र् के ध्वजावाहक अमेरिका ने लोकतांत्रिक तरीके से बनी ‘हमास’ सरकार को पूरी तरह नकार दिया|
अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्रों ने पश्चिमी तट की ‘फतह’ सरकार को मान्यता ही नहीं दी, उसके लिए अपनी थैलियों के मुंह भी खोल दिये हैं| इस्राइली प्रधानमंत्री ओल्मर्ट ने कहा कि वे नई फलस्तीनी सरकार के साथ ‘सच्ची भागीदारी’ करेंगे| शर्म-अल-शंेख में हुई अरब राष्ट्रों की बैठक में ओल्मर्ट ने फतह के लगभग 230 कैदियों को छोड़ने का भी ऐलान किया है| यह खुशी की बात है मिस्र, सउदी अरब, जार्डन आदि राष्ट्र हमास और फतह में सुलह करवाना चाहते है लेकिन हमास के प्रति अमेरिका का रवैया वहीं है जो किसी आतंकवादी संगठन के प्रति होता है| ओल्मर्ट के हाथ भी बंधे हुए है| फलस्तीनी समस्या को सुलझाने की बजाय अब ओल्मर्ट उसे ज्यादा उलझाऍंगे, क्योंकि लेबर पार्टी के नेता अब पेरेट्रज़ नहीं, एहूद बराक और राष्ट्रपति शिमोन पेरेज़ जैसे आक्रामक नेता बन गए हैं| गाजा पटटी को अमेरिका वैसे ही घंेर लेना चाहता है, जैसे उसने 1962 में क्यूबा को घेरा था| अमेरिका का यह इरादा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तूफान खड़ा किये बिना नहीं रह सकता| गाज़ा का गला घोंटकर ‘हमास’ के भी घुटने तोड़े जा सकते हैं लेकिन अमेरिका और इस्राइल यह भूल रहे हैं कि वे दूसरे अल-क़ायदा की प्रसव-भूमि तैयार कर रहे हैं|
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