हमारे देश में चुनाव कैसे होने चाहिए, इस सवाल ने इधर जोर पकड़ लिया है। उप्र, उत्तराखंड और पंजाब के नतीजों को एकतरफा बताते हुए लगभग सभी हारी हुई पार्टियों ने आरोप लगाया है कि इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों से धांधली की गई है। अब सुझाव यह आ रहा है कि चुनाव, पर्ची डालकर होने चाहिए, मशीन का बटन दबाकर नहीं।
हमारे चुनाव आयोग ने ऐसे आठ कारण गिनाए हैं, जिनकी वजह से मशीनी चुनाव में धांधली हो ही नहीं सकती जबकि कुछ लोग सोशल मीडिया पर ऐसे चित्रमय संवाद भेज रहे हैं, जिनसे पता चलता है कि मशीनों में हेराफेरी करना आसान है। अभी तक किसी भी नेता ने मशीनी मतदान के खिलाफ ठोस प्रमाण नहीं दिए हैं।
2009 में जब भाजपा संसदीय चुनाव हारी थी तो आडवाणीजी ने मशीनी मतदान का विरोध किया था। 1971 में जब इंदिराजी प्रचंड बहुमत से जीती थीं, तब जनसंघ के नेता बलराज मधोक ने आरोप लगाया था कि इंदिराजी ने रुस से ऐसी स्याही मंगवाई थी, जिसके निशान को तुरंत धो-धोकर एक ही आदमी ने कई-कई बार वोट डाला था। भाजपा के सुब्रह्मण्यम स्वामी और जीवी एल नरसिंहराव ने इन मशीनों के खिलाफ बकायदा एक अभियान ही चला दिया था।
अब भाजपा के सब नेता चुप हैं और विरोधी दलों के नेता जमकर जुबान चला रहे हैं। वैसे भी कुछ युरोपीय देशों में मशीनी मतदान पर प्रतिबंध लग चुका है लेकिन कई एशियाई देश अपने लिए भारत से ये मशीनें आयात कर रहे हैं। ये मतदान मशीनें सर्वथा दोषमुक्त हैं या नहीं, यह स्पष्ट तौर पर कहना कठिन है लेकिन ऐसा कुछ जरुर किया जा सकता है, जिससे हारने वालों की शंका का निवारण हो जाए। वह रास्ता 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाया था। उसका सुझाव था कि हर दबाए गए बटन की एक पर्ची भी मशीन में से साथ-साथ निकल आए ताकि विवाद की स्थिति में उसे देखकर सही फैसला हो सके।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डा. याकूब कुरैशी का कहना है कि यह पद्धति बहुत अच्छी रहेगी लेकिन क्या 2019 तक 20 लाख मशीनें हम तैयार कर सकेंगे? इस सुधार के बावजूद यदि कोई नेता धांधली का आरोप लगाए तो उसे ठोस प्रमाण देने होंगे, वरना वह अपनी विश्वसनीयता खुद घटाएगा। ऐसे निराधार आरोप लगाने वालों के खिलाफ चुनाव आयोग यदि कुछ दंडात्मक कार्रवाई सुझाए तो वह भी गलत नहीं होगा।
Leave a Reply