राष्ट्रीय सहारा, 28 अप्रैल 2010 : कई बार मैं सोचता हूं कि क्या दुनिया में ईरान जैसा भी कोई देश है ? इतना निडर, इतनानिष्पक्ष और इतना सच बोलनेवाला देश ईरान के अलावा कौनसा है ? किसी ज़माने में माना जाता था कि गांधी और नेहरू काभारत निष्पक्ष है, निडर है और सत्यनिष्ठ है| इस मान्यता के बावजूद जवाहरलाल नेहरू की नीतियां किस मुद्दे पर कितनी लोचखा जाती थीं, यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विद्यार्थी भली-भांति जानते हैं| लेकिन ईरान में जबसे इस्लामी क्रांति हुई है, ईरान नेअंतरराष्ट्रीय राजनीति में बहादुरी का नया रेकार्ड कायम किया है| इस्लामी क्रांति के पिता आयतुल्लाह खुमैनी कहा करते थे किअमेरिका बड़ा शैतान है और रूस छोटा शैतान है| हम दोनों शैतानों से अलग रहना चाहते हैं| एक अर्थ में ईरान ने दुनिया कोबताया कि सच्ची निर्गुटता क्या होती है| अब जबकि गुट खत्म हो गए हैं, ईरान अकेला देश है, जो विश्व अंत:करण की आवाज़बन गया है| काश कि यह काम भारत करता ! ईरान ने सारे परमाणु शस्त्रें को खत्म करने का शंखनाद कर दिया है|
ईरान की हिम्मत देखिए कि उसने तेहरान में परमाणु निरस्त्रीकरण सम्मेलन कर डाला| अभी ओबामा के वाशिंगटन-सम्मेलनकी स्याही सूखी भी न थी कि तेहरान ने वही मुद्दा उठाया और नारा लगाया कि परमाणु ऊर्जा सबको और परमाणु हथियारकिसी को नहीं| जैसा सम्मेलन अमेरिका ने किया, वैसा ही ईरान ने भी कर दिया लेकिन ईरान के सम्मेलन में 60 देश पहुंचेजबकि अमेरिका में 47 ! यह ठीक है कि वाशिंगटन में राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्र्ियों की भीड़ थी और तेहरान में ज्यादातरविदेश मंत्र्ी और अफसरगण थे लेकिन तेहरान के भाषणों और प्रस्ताव पर गौर करें तो हम चकित रह जाते हैं|
वाशिंगटन सम्मेलन की मूल चिंता ईरान थी और तेहरान सम्मेलन की अमेरिका| ये दोनों सम्मेलन एक-दूसरे के विरूद्घ थे| अमेरिका ने ईरान को नहीं बुलाया लेकिन ईरान ने अमेरिका को बुलाया| ईरानी सम्मेलन में अमेरिका शामिल हुआ| अन्यपरमाणु महाशक्तियों के प्रतिनिधि भी आए| भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधि भी ! ईरान को अमेरिका ने इसलिए नहींबुलाया कि वह सम्मेलन परमाणु प्रसार के खिलाफ था और ईरान के बारे में अमेरिका को गहरा शक है कि वह परमाणुहथियार बना रहा है| अमेरिकी सम्मेलन का दूसरा प्रमुख लक्ष्य परमाणु हथियारों को आतंकवादियों के हाथों में जाने से रोकनाथा| इन दोनों लक्ष्यों का उल्लंघन करनेवाला पाकिस्तान वाशिंगटन में बुलबुुल की तरह चहक रहा था| उसके प्रधानमंत्र्ी नेअपने देश की कारस्तानियों के लिए क्षमा मांगने की बजाय परमाणु-सुरक्षा के बारे में तरह-तरह के उपदेश झाड़े| ओबामाउनसे अलग से मिले भी ! अमेरिकी सम्मेलन में अनेक मीठी-मीठी बातें कही गईं| दुनिया को परमाणु-शस्त्र् रहित बनाने कीबातें भी कही गईं लेकिन किसी भी परमाणु-शक्ति ने यह नहीं बताया कि वे अपने शस्त्र्-भंडार में कहां तक कटौती कर रहे हैं| यह ठीक है कि अमेरिका और रूस ने आठ अप्रैल को चेक राजधानी प्राहा में एक संधि पर दस्तखत किए, जिसके तहत वेअपने परमाणु-शस्त्रें में 30 प्रतिशत की कटौती करेंगे लेकिन जो शेष 70 प्रतिशत शस्त्र् हैं, वे इस समूची दुनिया का समूल नाशकई बार करने में समर्थ हैं| यह भी सराहनीय है कि कुछ राष्ट्रों ने अपने-अपने परमाणु-ईंधन के भंडारों को घटाने का भी वादाकिया है लेकिन अमेरिका में आयोजित यह विश्व सम्मेलन कुछ इस अदा से संपन्न हुआ कि मानो कुछ बड़े पहलवान अपनी चर्बीघटाने के नाम पर अपने बाल कटवाने को तैयार हो गए हों| ऐसा लगता है कि ओबामा ने यह सम्मेलन अपनी चौपड़ बिछाने केलिए आयोजित किया था| हमले की चौपड़ ! ईरान पर हमला करने के पहले वे शायद विश्व जनमत को अपने पक्ष में करने कीजुगत भिड़ा रहे हैं| वे नहीं जानते कि वे क्ंलिटन और बुश से भी ज्यादा दुर्गति को प्राप्त होंगे| ईरान एराक़ नहीं है| क्या वे भूलगए कि राष्ट्रपति जिमी कार्टर को ईरान ने कितना कड़ा सबक सिखाया था ? दुनिया के देश ईरान पर हमले का घोर विरोध तोकरेंगे ही, वे उस पर कठोर प्रतिबंध लगाने के भी विरूद्घ हैं| भारत, रूस, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे महत्वपूर्णराष्ट्रों ने प्रतिबंधों का तीव्र विरोध किया है| भारत और रूस चाहते हैं कि ईरान परमाणु अप्रसार संधि का उल्लंघन नहीं करेलेकिन अगर अमेरिका इन दोनों राष्ट्रों पर दबाव डालेगा तो उसे निराशा ही हाथ लगेगी| ईरान ऐसा राष्ट्र नहीं है कि जिसे कोईब्लेकमेल कर सके| अमेरिका की खातिर भारत और रूस ईरान को क्यों दबाएंगें? ईरान को दबाया नहीं जा सकता| उसेसमझाया जा सकता है|
ईरान कैसा राष्ट्र है, इसका अंदाज़ सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनई, राष्ट्रपति अहमदीनिजाद और विदेश मंत्र्ी मुत्तकीके भाषणों से ही हो जाना चाहिए| इन नेताओं ने अमेरिका को दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन घोषित किया है| खामेनई ने पूछाहै कि मानव जाति के इतिहास में परमाणु बम-जैसा पापपूर्ण हथियार सबसे पहले किसने बनाया और किसने उसे चलाया ? अमेरिका ने ! इस्लाम के मुताबिक यह ‘हराम‘ है| ऐसा काम करनेवाले देश को विश्व के सभ्य समाज से निकाल बाहर क्यों नहींकिया जाए ? ऐसा धांसू बयान तो निकिता ख्रश्चेव ने महासभा में जूता बजाते समय भी नहीं दिया था| अहमदीनिजाद ने मांग कीहै कि सुरक्षा परिषद में पांचों महाशक्तियों को वीटो से वंचित किया जाए या अन्य महत्वपूर्ण देशों को भी यह अधिकार दियाजाए| अमेरिका को क्या अधिकार है कि वह जून में परमाणु-अप्रसार सम्मेलन बुलवाए ? जिस देश ने परमाणु प्रसार में सबसेकुटिल भूमिका अदा की, जिसने इस्राइल जैसे देश को गुपचुप मदद की, वह राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी का सदस्यरहने के काबिल नहीं है| विदेश मंत्र्ी मुत्तकी ने मांग की है कि कुछ ईमानदार राष्ट्र मिलकर परमाणु अप्रसार संधि के प्रावधानचार और छह को लागू करवाने पर ज़ोर दें ताकि हम सचमुच परमाणु शस्त्र्रहित विश्व का निर्माण कर सकें| वास्तव में 40 सालपहले संपन्न हुई यह संधि घोर सामंती है| भारत इसका सदस्य नहीं बना लेकिन उसने इसका कड़ा विरोध भी नहीं किया| यहपरमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों को हथियार बढ़ाने की पूरी छूट देती है लेकिन परमाणु शक्ति रहित राष्ट्रों का गला घोंट देती है| ईरानकी कमजोरी यह है कि उसने इस संधि पर उस समय दस्तखत कर दिए थे और अब वह इसका विरोध कर रहा है| इस मामलेमें भारत का पक्ष कहीं अधिक मजबूत है| वास्तव में भारत को चाहिए था कि परमाणु शक्ति बनते ही वह परमाणु विश्व-निरस्त्र्ीकरण का शंखनाद करता| 1959 में नेहरू ने जिस पूर्ण और व्यापक निरस्त्रीकरण की बात महासभा में कहीं थी, उसेअमली जामा पहलाने का सही वक्त यही है| जो झंडा आज ईरान उठाए हुआ है, वह आज भारत के हाथ में होता तो बात हीकुछ और होती !
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