Navbharat Times, 09 May 2011 : ओसामा की मौत ने पाकिस्तान की मिट्टी पलीद कर दी है। पाकिस्तान ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह ‘ फेल्ड स्टेट ‘ बनता चला जा रहा है। अमेरिकी गुप्तचर संगठन सीआईए के प्रमुख लियोन पेनेट्टा ने दोटूक शब्दों में कहा है कि हम पाकिस्तान पर विश्वास नहीं करते। यदि ओसामा के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई की भनक भी पाक सरकार को हो जाती तो वह ओसामा को सतर्क कर देती। पेनेट्टा के इस बयान के बाद पाकिस्तान के नेताओं को मुंह छुपाने की जगह नहीं मिल रही है। ओसामा के विरुद्ध हुई सफल कार्रवाई पर पाकिस्तान सरकार की पहले तो घिग्घी बंध गई। बारह घंटों तक वह कोई प्रतिक्रिया ही नहीं कर सकी , और जब की तो गोलमोल शब्दों में उसने यह कहने की कोशिश की कि अमेरिकी कार्रवाई में किसी न किसी रूप में उसने सहायता दी है।
जब वॉशिंगटन से सारे घटनाक्रम के तथ्य विस्तार से सामने आने लगे तो पता चला कि अमेरिकी हेलिकॉप्टरों के बारे में पाकिस्तानी सेना को तब पता चला , जब वे एबटाबाद में अपना मिशन पूरा करके वापस अफगानिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गए। यानी लगभग दो घंटे तक पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान सोया रहा। क्या ऐसा राष्ट्र अपने परमाणु बमों को आतंकवादियों के हाथ पड़ने से बचा सकता है ? सारी दुनिया में जब पाकिस्तान की थू – थू होने लगी और कहा जाने लगा कि ओसामा को छिपाए रखने में पाकिस्तान की सक्रिय भूमिका थी तो पाकिस्तान के नेताओं ने राष्ट्रपति ओबामा के भाषण की शरण ली।
ओसामा के सफाए के बाद बराक ओबामा ने जो भाषण दिया , पाकिस्तान ने उसका लाभ उठाने की कोशिश की। ओबामा ने यह बिलकुल नहीं कहा था कि पाकिस्तान ने अमेरिका का साथ दिया। उन्होंने कहा कि ‘ अमेरिका ने आतंकवाद विरोधी अभियान में पाकिस्तान का जो साथ दिया , उसने हमें बिन लादेन तक पहुंचाया … । ‘ लेकिन इन्हीं चंद शब्दों की गलत व्याख्या करके पाकिस्तान ने श्रेय लूटने की कोशिश की। यह कोशिश विफल हो चुकी है। अमेरिका के नामीगिरामी नेता मांग कर रहे हैं कि पाकिस्तान की खिंचाई की जाए। वह सफाई दे कि ओसामा के साथ उसकी सांठगांठ नहीं थी। सफाई अगर संतोषजनक न हो तो उसे हर साल जो तीन अरब डॉलर की मदद दी जा रही है , वह बंद की जाए।
ओसामा के सफाए के बाद बराक ओबामा ने जो भाषण दिया , पाकिस्तान ने उसका लाभ उठाने की कोशिश की। ओबामा ने यह बिलकुल नहीं कहा था कि पाकिस्तान ने अमेरिका का साथ दिया। उन्होंने कहा कि ‘ अमेरिका ने आतंकवाद विरोधी अभियान में पाकिस्तान का जो साथ दिया , उसने हमें बिन लादेन तक पहुंचाया … । ‘ लेकिन इन्हीं चंद शब्दों की गलत व्याख्या करके पाकिस्तान ने श्रेय लूटने की कोशिश की। यह कोशिश विफल हो चुकी है। अमेरिका के नामीगिरामी नेता मांग कर रहे हैं कि पाकिस्तान की खिंचाई की जाए। वह सफाई दे कि ओसामा के साथ उसकी सांठगांठ नहीं थी। सफाई अगर संतोषजनक न हो तो उसे हर साल जो तीन अरब डॉलर की मदद दी जा रही है , वह बंद की जाए।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी अब इसे पाकिस्तानी गुप्तचर सेवा ही नहीं , सारे संसार की गुप्तचर सेवाओं की विफलता बता रहे हैं। क्या इसके बावजूद अमेरिका पाकिस्तान के साथ सहयोग करता रहेगा ? अमेरिका के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। ओसामा जरूर मारा गया है , लेकिन आतंकवाद अब भी जीवित है। यह भी संभव है कि अगले कुछ समय के लिए वह थोड़ा अधिक उग्र रूप धारण करे। इसके अलावा अफगानिस्तान इस लायक नहीं हुआ है कि ओबामा उसे अधबीच में खाली कर दें। वहां से उन्हें ससम्मान वापसी करनी है तो पाकिस्तान में टिके रहना होगा। आतंकवाद की असली जड़ तो पाकिस्तान में है। उसके फूल – पत्ते अफगानिस्तान में दिखाई पड़ते हैं।
अब पाकिस्तान में टिके रहने का अर्थ क्या है ? पहले से बिलकुल अलग। अब अमेरिका को गुमराह करना मुश्किल होगा। आतंकवादियों के ठिकानों पर वह अपने ‘ ड्रोन अटैक ‘ की बढ़ोतरी करेगा और एबटाबाद को जगह – जगह दोहराएगा। यह भी संभव है कि वह भारत के दुश्मनों की मांद में भी घुसने का प्रयत्न करे। अभी उसने ‘ ट्रेड टावर ‘ के दोषियों पर हमला बोला है , अब वह भारतीय संसद , अक्षरधाम और ताज होटल के दोषियों का भी सफाया कर सकता है। पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान की हैसियत ऐसी नहीं है कि वह अमेरिका को रोक सके। अमेरिका के विरोध में वह जबानी जमाखर्च जरूर करेगा , जैसा कि उसने अभी किया है – ‘ अमेरिकी कार्रवाई एकतरफा थी और उससे पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन हुआ है। ‘
संप्रभुता की बात शुद्ध मजाक है। पाकिस्तान में सन 1954 से अब तक जितने भी अमेरिकी सैनिक अड्डे बने हैं , सभी पाकिस्तान की संप्रभुता के दायरे से बाहर रहे हैं। आतंकवादियों पर जितने अमेरिकी आक्रमण होते हैं , वे कभी पाकिस्तानी सरकार की अनुमति से नहीं होते। सोवियत संघ पर यू – टू नामक जो जासूसी विमान अमेरिका ने पाक – अड्डे से छोड़ा था , उसकी भनक भी इस्लामाबाद को नहीं थी। इसके अलावा ओसामा और जवाहिरी जैसे हजारों विदेशी आतंकवादी सरकार के कौन – से कानून – कायदों को मानते हैं ? पाकिस्तान के सीमांत क्षेत्र , जिन्हें ‘ इलाका – ए – गैर ‘ कहा जाता है , पाकिस्तान की संप्रभुता की पहुंच से बाहर हैं। हम यह भी न भूलें कि पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी युद्ध का पार्टनर है। उसका सहयोगी अमेरिका युद्ध स्थिति का फायदा उठाकर जो भी ठीक समझे , वह कदम उठा सकता है। यों भी अंतरराष्ट्रीय कानून अंतरराष्ट्रीय अपराधियों को पकड़ने और मारने के लिए ‘ ठेठ तक पीछा ‘ करने ( हॉट परस्यूट ) की छूट देता है। भारत चाहे तो वह भी इस छूट का फायदा उठा सकता है।
संप्रभुता की बात शुद्ध मजाक है। पाकिस्तान में सन 1954 से अब तक जितने भी अमेरिकी सैनिक अड्डे बने हैं , सभी पाकिस्तान की संप्रभुता के दायरे से बाहर रहे हैं। आतंकवादियों पर जितने अमेरिकी आक्रमण होते हैं , वे कभी पाकिस्तानी सरकार की अनुमति से नहीं होते। सोवियत संघ पर यू – टू नामक जो जासूसी विमान अमेरिका ने पाक – अड्डे से छोड़ा था , उसकी भनक भी इस्लामाबाद को नहीं थी। इसके अलावा ओसामा और जवाहिरी जैसे हजारों विदेशी आतंकवादी सरकार के कौन – से कानून – कायदों को मानते हैं ? पाकिस्तान के सीमांत क्षेत्र , जिन्हें ‘ इलाका – ए – गैर ‘ कहा जाता है , पाकिस्तान की संप्रभुता की पहुंच से बाहर हैं। हम यह भी न भूलें कि पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी युद्ध का पार्टनर है। उसका सहयोगी अमेरिका युद्ध स्थिति का फायदा उठाकर जो भी ठीक समझे , वह कदम उठा सकता है। यों भी अंतरराष्ट्रीय कानून अंतरराष्ट्रीय अपराधियों को पकड़ने और मारने के लिए ‘ ठेठ तक पीछा ‘ करने ( हॉट परस्यूट ) की छूट देता है। भारत चाहे तो वह भी इस छूट का फायदा उठा सकता है।
पाकिस्तानी जनता के बीच उसकी सरकार की छवि धूमिल हो गई है। 1971 में भी उसकी छवि काफी गिरी थी , लेकिन उस समय भारत को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था। लेकिन अब तो वह स्वयं जिम्मेदार है। उसमें इतनी हिम्मत नहीं कि वह ओसामा समर्थकों पर टूट पड़े। ओसामा विरोधी लोग अपनी सरकार के निकम्मेपन पर चकित हैं। पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान और नेताओं में भी तनाव की खबरें रिसकर बाहर आ रही हैं। राज्य के तौर पर उसका चौपट होना लगभग तय है। बांग्लादेश के बाद यह दूसरा बड़ा झटका है। यदि पाकिस्तान चौपट होने से बचना चाहता है और भारत व अफगानिस्तान के बीच सभ्य राष्ट्र की तरह जीवित रहना चाहता है तो उसे जिहादी आतंकवाद को अपनी विदेश नीति से निकाल बाहर करना होगा। पश्चिम एशिया के जन – आंदोलनों ने जिहादी आतंकवाद का रंग पहले ही फीका कर दिया था , ओसामा की मौत ने अब उसे पहले से भी ज्यादा अप्रासंगिक बना दिया है।
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