NavBharat Times, 11 April 2004 : अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश किस बुरी तरह फंस गए हैं| एराक में अमेरिका का जमे रहना जितना कठिन है, उससे भी ज्यादा पेचीदा हो गया है, उसमें से उसका बाहर निकल आना| बुश चार साल पहले जब राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे थे तो उनके भौंदूपन के अनेक किस्से मशहूर हो गए थे लेकिन माना यह जा रहा था कि ये किस्से उनके विरोधियों ने फैलाए हैं| अब तो उन्होंने अपनी कथनी नहीं, करनी से उन किस्सों में जान फूंक दी है| अपने यहॉं कहा भी जाता है कि “भौंदू बेटा बारात में जाए, पान-सुपारी घर की खाय|” वे अपनी फौजी बारात लेकर एराक़ पर इसी इरादे से टूट पड़े थे कि एक हाथ से तेल और दूसरे हाथ से वोट उलीचेंगे| एराक़ का तेल बेचकर अमेरिकी कम्पनियॉं अरबों डॉलर कमाऍंगी और बुश राष्ट्रपति के चुनाव में खुद को महाप्रतापी उम्मीदवार सिद्घ करेंगे लेकिन इसका उल्टा ही हो रहा है| अमेरिकी कॉंग्रेस पिछले एक वर्ष में अपने अरबों डॉलर एराक़ में डुबो चुकी है, लगभग साढ़े छह सौ जवानों की बली चढ़ा चुकी है और खुद बुश की लोकपि्रयता का बिन्दु नीचे खिसकता जा रहा है| पिछले एक-डेढ़ हफ्ते की घटनाओं ने बि्रटिश विदेश मंत्री को यह कहने के लिए मजबूर कर दिया है कि एराक के प्रेशर-कूकर का ढक्कन ही उड़ गया है|
अमेरिकी राष्ट्रपति बुश, बि्रटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर और एराक में अमेरिका के वायसराय पॉल ब्रेमर को यह समझ नहीं पड़ रहा कि अब एराक के प्रेशर-कूकर में उनकी दाल कैसे गलेगी| वह गले या न गले, सड़ेगी जरूर ! अमेरिकी साम्राज्यवाद की जैसी दुर्गति एराक में हो रही है, वैसी वियतनाम में भी नहीं हुई| यह ठीक है कि वियतनाम में लगभग 60 हजार सिपाही मरे थे और एराक में अभी यह संख्या एक हजार तक भी नहीं पहॅुंची है लेकिन अभी तो शुरुआत भर है| यदि अमेरिकी एराक़ में टिके रहे, वियतनाम की तरह, तो कोई आश्चर्य नहीं कि वहॉं वियतनाम से भी ज्यादा लोग मारे जाऍं| वियतनाम के जंगलों और नदियों में लड़ाकुओं के मौत की दर जितनी थी, उससे कहीं ज्यादा एराक के शहरों और गॉंवों में होगी, क्योंकि एराकी छापामार घनी बस्तियों और बाजारों में सक्रिय होंगे| इसके अलावा अब छापामारों के हाथ में जो शस्त्रास्त्र हैं, वे पहले के मुकाबले कहीं अधिक आधुनिक और खतरनाक हैं| वियतनाम में निहत्थे लोगों पर बमबारी करना आसान था, अब टेलिविज़न के ज़माने में अंधाधुंध हत्याऍं करना बुश प्रशासन को काफी महॅंगा पड़ेगा| वियतनाम में अमेरिका के पास एक झूठा बहाना था कि वह साम्यवाद के खिलाफ लड़ रहा है और उत्तर वियतनामी हमले से दक्षिण वियतनाम की रक्षा कर रहा है| अपनी नंगई को ढकने की यह लंगोट भी एराक़ में ढीली हो चुकी है| एराक को किस देश के खतरे का भय दिखाया जा सकता है| उसे न ईरान से भय है और न कुवैत से ! अब तो सद्रदाम भी हट गए हैं| इसलिए पश्चिम एशिया के शाह और सुल्तान तथा मुल्ला और मौलवियों को भी एराक़ से कोई शिकायत नहीं रह गई है| जहॉं तक सर्वनाशी हथियारों का सवाल है, बुश और ब्लेयर बिल्कुल बेनकाब हो चुके हैं| उन्होंने सद्दाम को पकड़ लिया लेकिन वे हथियार अभी तक नहीं पकड़ पाए हैं| अमेरिका पिछले साल जब एराक में घुसा तो उसे विश्वास था कि वहॉं के शिया और कुर्द उसका साथ देंगे| वे बहुमत में हैं| उनके दम पर वे सुन्नी अल्पमत को दबा लेंगे| सद्रदाम सुन्नी थे और बाथ पार्टी के नेता थे| शियाओं के दुश्मन होने के कारण सद्रदाम का ईरान से भी सदा टकराव होता रहा| अमेरिका का गणित यह था कि ईरान भी उसका साथ देगा लेकिन परमाणु-मसले पर अमेरिका ने पिछले दिनों ईरान से भी पंगा ले लिया और अब एराक़ के बहुसंख्यक शिया लोगों ने भी जेहाद का एलान कर दिया है| अमेरिका न इधर का रहा और न उधर का !
बाथ पार्टी के प्रशासन और फौज का अमेरिका ने विसर्जन कर दिया| पिछले एक साल में 40 देशों के लगभग एक लाख 30 हजार फौजी एराक पर लादे गए लेकिन एक तो पॉंच लाख के मुकाबले वे एक-चौथाई हैं और फिर अजनबी है| एराक़ी जनता उन्हें स्वातन्त्र्य-प्रदाता नहीं, स्वातन्त्र्यहर्त्ता के रूप में देख रही है| सद्रदाम की फौज के मुकाबले बुश की फौज एराकी जनता में सर्वथा अलोकपि्रय है| इसीलिए सर्वशस्त्रसम्पन्न अमेरिकी फौज से साधारण नागरिकों ने अनेक शहर छीन लिये| महाशक्तियों के मॅुंह पर यह करारा तमाचा है| देशभक्त एराकियों ने शेर को बंदर बना दिया है| अब मेहदी सेना ने अमेरिकी सेना के छक्के छुड़ा दिए हैं| फारसी का यह मेहदी शब्द बड़ा जादुई है| इसका मतलब होता है, छिपा हुआ, अवश्यम्रभावी या प्रतीक्षित| सारी दुनिया के शिया मेहदी इमाम या मेहदी फौज के इन्तजार में रहते हैं| कभी आयतुल्लाह खुमैनी को ‘इमामे-मेहदी’ कहा जाता था| बगदाद की गंदी बस्तियों में छटपटा रहे हजारों नौजवान इस मेहदी फौज में शामिल होते जा रहे हैं| यह स्वचालित फौज है| बिना वेतन, बिना भर्ती, बिना नेता-यह फौज अमेरिकी सिपाहियों से टकरा रही है| एराक का आम नागरिक उसके साथ है| शिया और सुन्नी की लकीरें लगभग मिटती चली जा रही हैं| युवा शिया नेता मुक्तादा-अल-बदर ने इस फौज का मार्गप्रदर्शन करने के लिए कमर कस ली है| एराकी लड़ाकुओं का मनोबल इतना बुलंद हो गया है कि उन्होंने अमेरिकी, जापानी और अन्य विदेशी सिपाहियों को बंधक बना लिया है| कुछ अमेरिकी सिपाहियों के शवों की एराकी लोगों ने वैसी ही दुर्गति की है, जैसा कि 1993 में सोमालिया में की थी| सोमालिया के वीभत्स दृश्यों को देखकर अमेरिका की जनता इतनी व्यथित हुई थी कि अमेरिकी फौजों को वहॉं से लौटना पड़ा था| अब एराक में उन्हीं और उनसे भी बदतर दृश्यों की पुनरावृत्ति होगी| अमेरिकी हमले ने सद्रदाम के गुनाहों पर पर्दा डाल दिया है और एराकी राष्ट्रवाद की ज्वाला को वैसे ही प्रचंड कर दिया है, जैसे कि 1920 में वह बि्रटिश साम्राज्य के विरुद्घ भड़की थी| उस समय 10 हजार एराकियों को बलि चढ़ाकर बि्रटेन एराक से विदा हुआ था| अब पता नहीं, अमेरिका अपनी बिदाई के लिए कितनी क़ीमत पाएगा या चुकाएगा?
राष्ट्रपति बुश के पिता ने जब पिछली बार सद्रदाम पर असफल हमला बोला था तो उसकी कीमत सहयोगी राष्ट्रों ने चुकाई थी लेकिन अपने पिता के अधूरे काम को पूरा करने के लिए यह कनिष्ठ बुश अमेरिकी खजाने को खाली किए जा रहे हैं| नवंबर का चुनाव आते-आते अमेरिका कई बिलियन डॉलर के नीचे आ जाएगा और 30 जून को एराक में जो सत्ता-परिवर्तन होना था, वह मृग-मरीचिका बन जाएगा| अफगानिस्तान के चुनाव, जो जून में होने थे, वे ही सितंबर तक के लिए स्थगित हो गए तो एराक के चुनाव, संविधान तथा स्वशासन आदि नवंबर तक सपना ही बने रहेंगे बल्कि बुश के दु:स्वप्न साबित होंगे| यदि बुश को कोई तगड़ा विरोधी उम्मीदवार मिला होता तो नवंबर तक अपना शोक-गीत वे स्वयं लिख देते| बुश के एराक-अभियान का दीवाला तो इस तरह की घटनाओं से ही पिटा हुआ मालूम पड़ता है कि वहॉं के अंतरिम प्रशासन के गृहमंत्री और मानव अधिकार मंत्री ने भी इस्तीफा दे दिया है| एराक में लोकतंत्र, समृद्घि और शांति का ध्वज फहराने का वायदा करनेवाला बुश-प्रशासन अराजकता और आतंकवाद का पर्याय बन गया है| साल भर गुजर गया लेकिन औसत एराकी नागरिक को रोटी, कपड़ा, मकान, दवा और सुरक्षा भी नसीब नहीं है| एराक पर किए गए अवैध और अनैतिक हमले के लिए बुश और ब्लेयर को इक्कीसवीं सदी के सबसे गंभीर अपराधी घोषित किया जाना चाहिए और विश्व समाज की ओर से मॉंग जानी चाहिए कि अमेरिका एराक को अविलम्ब खाली करे| संयुक्तराष्ट्र की देखरेख में यदि वहॉं निष्प्क्ष चुनाव हों तो आशा की जा सकती है कि एराक में एक बार फिर सहज राष्ट्रीय जीवन की शुरुआत हो जाए|
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