Dainik Bhaskar, 10 Nov 2004 : अगर जॉर्ज बुश का महिमा-मंडन करना हो तो कहा जा सकता है कि जैसी जीत बुश को मिली, आज तक अन्य किसी को नहीं मिली| बुश पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्हें 5 करोड़ 86 लाख वोट मिले| रेगन जैसे लोकपि्रय अभिनेता-राष्ट्रपति को भी 1984 में केवल 5 करोड़ 45 लाख वोट मिले थे| इसके अलावा पिछले 80 साल में बुश ऐसे पहले रिपब्लिकन राष्ट्रपति हैं, जिनका प्रतिनिधि सदन और सीनेट में भी बहुमत है| दूसरी बार चुने जानेवाले राष्ट्रपति अक्सर दोनों सदनों में कुछ न कुछ सीटें खो देते हैं लेकिन बुश अपवाद हैं| पिछले 68 साल में वे पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्हें दोनों सदनों में बढ़ोतरी मिली है|
इन तथ्यों से क्या नतीजे निकाले जा सकते हैं? पहला तो यही कि पूरा अमेरिका बुशमय हो गया है, रिपब्लिकन राह पर चल पड़ा है और दक्षिण की तरफ झुक गया है| यह नतीजा गलत है| गलत इसलिए कि बुश को केरी क मुकाबले सिर्फ 35 लाख वोट ज्यादा मिले हैं| अगर ओहायो का राज्य बुश के बजाय केरी की झोली में गिर पड़ता तो अपने 35 लाख वोटों के बावजूद बुश हार जाते जैसे कि चार साल पहले ज्यादा वोटों के बावजूद अल गोर बुश के मुकाबले हार गए थे| इसके अलावा 30 करोड़ लोगों के देश में 35 लाख वोटों की क्या क़ीमत है? एक प्रतिशत से कुछ ज्यादा ! यदि केरी को कुल जनसंख्या का एक प्रतिशत वोट भी ज्यादा मिल जाता तो पास पलट जाता| साढ़े ग्यारह करोड़ मतदाताओं में से पौने छह करोड़ ने बुश को चुना याने 30 करोड़ के देश को छह करोड़ के समर्थन से चलाना है| दूसरे शब्दों में अगर बुश अपनी जीत से मदमस्त होकर निरंकुश शासन चलाना चाहेंगे तो वे काफी मुसीबत में फॅंस सकते हैं|
यह कहना भी सही नहीं है कि पूरा अमेरिका बुश-धारा में बह रहा है| बुश की जीत के आधार पर यह भी नहीं माना जा सकता कि पूरे अमेरिका ने बुश के कारनामों पर मुहर लगा दी है| यह दूसरा नतीजा भी गलत है| यह कैसे मान लिया जाए कि एराक़ पर किया गया हमला सही है? बल्कि उल्टा है| अगर बुश ने एराक़ न किया होता तो वे लाखों से नहीं, शायद कुछ करोड़ वोटों से जीतते| एक हजार अमेरिकी सैनिकों की लाशों ने उनके लाखों वोट गला दिए| वे एराक़ में अभिमन्यु की तरह फॅंस गए| अफगानिस्तान ने बुश को उठाया तो एराक़ ने उनको गिराया| एराक़ के कारण बुश की प्रतिष्ठा सारी दुनिया में तो गिरी ही, अमेरिका में भी गिर गई| उनकी प्रतिष्ठा तो गिर गई लेकिन उनके प्रति सहानुभूति बढ़ गई| यही वजह है कि बुश जीत गए !
बुश की जीत का रहस्य क्या है? सारी दुनिया जिसे अन्तरराष्ट्रीय अपराधी, सनकी, मिथ्याभाषी और अल्पमति मानती है, वह दुबारा कैसे जीत गया? ऐसा नहीं है कि बुश के इन महान गुणों से अमेरिकी जनता बेखबर है| उसे सब पता है लेकिन इसके बावजूद अमेरिकियों ने उन्हें इसलिए जिताया कि वे भयाक्रांत हैं| अमेरिका जैसा भयभीत देश दुनिया में कोई और नहीं है| राष्ट्रीय स्तर पर और व्यक्तिगत स्तर पर अमेरिका में भय का अनंत साम्राज्य है| अमेरिकी घरों में सुरक्षा का, आत्म-रक्षा का जैसा विशद्र आयोजन होता है, दुनिया में कहीं नहीं होता| यह अमेरिका की दुखती रग है| इस रग को ट्रेड टॉवर गिराकर आतंकवादियों ने दबा दिया था| इस रग को खोलने का बीड़ा बुश ने उठा रखा है| इसीलिए बुश के हजार गुनाह भी अमेरिकी माफ कर देंगे| वे एराक़ क्या, ईरान और उत्तर कोरिया पर भी चढ़ बैठते और सौ-दो सौ बिलियन डॉलर और बहा देते तो भी अमेरिकी उन्हें कुछ नहीं कहते| अभी तक अमेरिका दूसरे देशों को तबाह होते देखता रहा है| चाहे पहला महायुद्घ हो या दूसरा महायुद्घ, अमेरिका की क्या हानि हुई? कुछ भी नहीं| वे सब और उनके बाद हुए लगभग 150 युद्घों में से एक भी अमेरिकी ज़मीन पर नहीं हुआ| सब एशिया, अफ्रीका, लातीनी अमेरिका और यूरोप में हुए| अमेरिका ने प्रतिद्वंद्वियों को हथियार बेचे और डॉलर बनाए लेकिन 2001 में युद्घ का तांडव न्यूयॉर्क की छाती पर हुआ| एक अदृश्य शत्रु ने सबसे जबर्दस्त हमला अमेरिका पर किया| सारी दुनिया को हिला दिया| बुश इस हमले के विरोध के प्रतीक बन गए| हमला अभी जारी है| नाव मझधार में है| अमेरिकी उसे बीच में ही क्यों डुबो देते?
बुश को जिताकर अमेरिकी जनता ने सिद्घ किया कि वह अपने बेटे के बुद्घू होने की उतनी परवाह नहीं करती है, जितनी बहादुर होने की करती है| जो बहादुरी करेगा, वह गल्ती भी कर सकता है| भय की इस भयंकर वेला में अमेरिकी जनता ने न महॅंगाई, न बेरोजगारी, न अमेरिकी सैनिकों की मौत – किसी भी बात की परवाह नहीं की| उसकी चिंता केवल एक ही है कि विश्व-ऐश्वर्य का जो तिलिस्म अमेरिका ने अपनी सरजमीन पर खड़ा किया है, वह कहीं इस्लामी आतंकवाद का ग्रास न बन जाए| इस तिलिस्म के सबसे समर्थ रक्षक के तौर पर उभरने वाले बुश को भला कौन हरा सकता है? कल्पना कीजिए कि अगर न्यूयॉर्क के ट्रेड टॉवर नहीं गिरते और उसामा बिन लादेन का बहाना बुश को न मिलता तो केरी के मुकाबले क्या वे खुद ट्रेड टॉवर की तरह गिर नहीं पड़ते? उन्हें कौन बचा सकता था? उन्हें केरी क्या, हिलेरी (क्लिंटन) ही दिन में तारे दिखा देतीं !
जो भी हो, जीत तो जीत है| पिछली जीत के मुकाबले तो यह बड़ी जीत है लेकिन बुश की यह दूसरी और आखरी अवधि है| राष्ट्रपति का चुनाव तीसरी बार नहीं लड़ा जा सकता| बुश को यह तय करना होगा कि अमेरिका और विश्व के इतिहास में उनका स्थान क्या होगा? अमेरिकी लोगों को रोजगार, खुशहाली और सुरक्षा अवश्य चाहिए लेकिन इनके नाम पर यदि बुश दुनिया में समानांतर आतंकवाद फैलाऍंगे तो वे सबसे ज्यादा नुक्सान अमेरिका का ही करेंगे| एराक़ पर कब्जे की कीमत करोड़ों डॉलर रोज़ है लेकिन ट्रेड टॉवर पर हमले की क़ीमत क्या है? कुछ भी नहीं| अपने हमलों की क़ीमत चुकाते-चुकाते अमेरिका दीवालिया हो जाएगा| अपनी पुनर्विजय के नशे में यदि बुश एराक़ दोहराऍंगे, यदि राजकीय आतंकवाद फैलाऍंगे तो वे अराजकीय आतंकवाद के सबसे बड़े प्रोत्साहक सिद्घ होंगे| दुनिया के शांतिपि्रय देश उनका साथ नहीं देंगे, जैसे कि उनके यूरोपीय मित्र-देशों ने एराक़ के समय नहीं दिया था और अपनी अकूत समृद्घि और एकछत्र सत्ता के बावजूद अमेरिका ‘विश्व-अस्पृश्य’ के कलंक से कुशोभित होगा| यदि बुश ने अपने घोड़े बेलगाम कर दिए तो आतंकवाद का अदृश्य दैत्य अमेरिका का टेंटुआ कसे बिना दम नहीं लेगा|
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