Dainik Hindustan, 17 April 2011 : प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का चीन जाकर ‘ब्रिक्स’ शिखर सम्मेलन में भाग लेना भारत के लिए काफी फायदेमंद रहा। सबसे पहला फायदा तो यही हुआ है कि चीन पटरी पर लौट आया है। पिछले साल पहले तो चीन ने जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को बाकायदा वीजा देने की बजाय यात्रा-कागज पकड़ाना शुरू कर दिया और फिर उसने हमारी उत्तरी कमांड के अफसर को वीजा देने से मना कर दिया।
शायद इसलिए कि वह पाकिस्तान को खुश करने के लिए यह दिखाना चाहता था कि वह जम्मू-कश्मीर को भारत का अंग नहीं मानता।भारत ने इस चीनी गुस्ताखी के जवाब में संयुक्त रक्षा अभ्यास को रद्द किया, तो चीन समझ गया कि भारत भी नाराज हो सकता है। अब उसे तय करना था कि किसकी नाराजगी उस पर भारी पड़ेगी? भारत की या पाकिस्तान की?
चीनी प्रधानमंत्री ने दिसंबर में हुई भारत यात्रा के दौरान आश्वासन दिया था कि वीजा-विवाद सुलझा लिया जाएगा। सो अब प्रधानमंत्री के साथ गए चार कश्मीरी पत्रकारों को चीन ने बाकायदा वीजा दिया और चीनी अधिकारियों के बाद के बयानों पर विश्वास किया जाए, तो मानना पड़ेगा कि वीजा-समस्या हल हो गई है। सान्या में दोनों प्रधानमंत्रियों ने आपसी व्यापार को अगले चार वर्षो में 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का संकल्प किया है।
चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है, लेकिन साठ बिलियन डॉलर के व्यापार में अब भी काफी असंतुलन है। भारत का निर्यात 20 अरब डॉलर कम है। इसे ठीक किया जाएगा। चीन के अलावा रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव केसाथ प्रधानमंत्री ने परमाणु-सुरक्षाके प्रश्न पर विशेष बातचीत की। दोनों नेताओं ने अपने परमाणु-संयंत्रों को अधिकाधिक सुरक्षित करने के उपायों पर भी विचार किया। चेर्नोबिल, थ्रीमाइल आइलैंड और जापान- जैसी दुर्घटनाएं दोबारा न हों, इसके लिए अंतरराष्ट्रीय नीति बनाने का भी निर्णय हुआ।
‘ब्रिक्स’ राष्ट्रों ने आर्थिक दृष्टि से एक बहुत महत्वपूर्ण निर्णय किया है कि पांचों राष्ट्र आपसी अनुदान या कर्ज लेने-देने में डॉलर का सहारा नहीं लेंगे। वे अपनी मुद्राओं को ही माध्यम बनाएंगे। अपने आपसी व्यापार का माध्यम भी वे अपनी मुद्राओं को ही बनाना चाहते हैं। वे जानते हैं कि फिलहाल इसे अमल में लाना कठिन है।
इसीलिए इस मुद्दे पर उन्होंने ज्यादा जोर नहीं दिया, लेकिन इस तरह की सोच अपने आप में काफी क्रांतिकारी है। ‘ब्रिक्स’ देशों ने सान्या में जिन अन्य मुद्दों पर चर्चा की है, पर्यावरण, ऊर्जा-संकट, परमाणु-सुरक्षा आदि, इन पर कुछ ठोस हो सका, तो यह कोई वैकल्पिक विश्व-नक्शा खड़ा कर देगी। कोई आश्चर्य नहीं कि दक्षिण अफ्रीका की तरह पश्चिमी खेमे के कई अन्य देश भी ‘ब्रिक्स’ में शामिल होना चाहें। ‘ब्रिक्स’ बढ़ता जाए और इससे राष्ट्रों की समृद्धि व शांति मजबूत होती चली जाए, इससे बढ़िया बात क्या हो सकती है।
Leave a Reply