Navbharat Times, 17 May 2010 : जब भी संसदीय लोकतंत्र की बात होती है, हमेशा कह दिया जाता है – ब
्रिटेन से सीखो। लेकिन इस बार चौपड़ उलट गई है। अब हम कह सकते हैं कि ब्रिटेन भारत से सीखे। उसने सीखा भी है। 5-6 दिन तक लंदन में वैसी ही खींचतान चली और वैसी ही ले-दे हुई जैसी कि भारत में होती है। पिछले 20 साल से भारत में चल रहे गठबंधन सरकारों के प्रयोग से ब्रिटेन अब बहुत कुछ सीख सकता है। ब्रिटेन में गठबंधन सरकार का बनना जरा अजूबा-सा है। विश्व युद्ध के बाद यह पहली सरकार है, जो दो पार्टियों ने मिलकर बनाई है। यदि कंजर्वेटिव और लिबरल डेमोक्रैट पार्टी, दोनों नहीं मिलतीं तो क्या करतीं? लिबरल पार्टी के नेता निक क्लेग ने लेबर पार्टी से भी बात तो चलाई थी लेकिन 13 साल राज करने के बाद बुरी तरह से हारने वाली लेबर पार्टी लिबरलों की मदद से यदि दोबारा सरकार बना लेती तो ब्रिटेन में उस सरकार कीबड़ी थू-थू होती। इसलिए खींचतान के बावजूद अब जो गठबंधन सरकार बनी है, उसका स्वागत हो रहा है।
लिखित समझौता
हालांकि प्रधानमंत्री डेविड कैमरन और उप-प्रधानमंत्री निक क्लेग ने घोषणाकी है कि यह संसद पांच साल चलेगी, लेकिन ब्रिटेन में अनिश्चितता कावातावरण अब भी है। लोग यह पूछ रहे हैं कि अगर वर्तमान गठबंधन टूट गया और कोई नया गठबंधन नहीं बन पाया तो यह संसद क्या किसी सरकार के बिना भी चलेगी? तब क्या ब्रिटेन की महारानी राज चलाएंगी? जो भी हो, फिलहाल कंजर्वेटिव और लिबरल पार्टी के दोनों शीर्ष नेताओं ने कहा है कि पार्टी हितों से राष्ट्रहित कहीं अधिक ऊंचा है। इसीलिए ब्रिटेन के हितों के खातिर वे मिलजुल कर काम करेंगे। कंजर्वेटिव नेता डेविड कैमरन और लिबरल नेता निक क्लेग ने संयुक्त प्रेस वार्ता में जिस गर्मजोशी के साथ अपनी सरकार की घोषणा की है, उससे लगता है कि ब्रिटेन में अब नई सरकार ही नहीं, नई राजनीति की भी शुरुआत होगी।
कैमरन और क्लेग लगभग हमउम्र हैं। कैमरन 43 के हैं और वह क्लेग से सिर्फ तीन-चार महीने बड़े हैं। इन दोनों नेताओं में महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा कीमात्रा बहुत तीव्र होनी चाहिए लेकिन उन्होंने प्रेस वार्ता में जो संयम और परस्पर सम्मान प्रकट किया है, उससे आशा बंधती है कि यह गठबंधन आसानी से नहीं टूटेगा। इससे भी ज्यादा आश्वस्तिदायक तथ्य यह है कि दोनों नेताओं ने अपनी समझौते को लिखित रूप में पेश किया है, जिसे गठबंधन सरकार का घोषणापत्र कहा जा सकता है।
200 साल में सबसे युवा
पिछले दो सौ साल में कैमरन जितना युवा प्रधानमंत्री कोई नहीं हुआ। 1812 में लॉर्ड जेंकिनसन प्रधानमंत्री बने थे। वह 42 के थे और उनके पहले 1724 में विलियम पिट द यंगर 24 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बने थे। कैमरन के मंत्रिमंडल में युवा मंत्रियों की भरमार है। इसलिए आशा की जाती है कि यह नई टीम ब्रिटेन को आर्थिक संकट में से उबारने में सफल होगी। कैमरन ने क्लेग को अपना उप-प्रधानमंत्री तो बनाया ही है, उनके चार अन्य साथियों को मंत्री भी बनाया है और हर मंत्रालय में लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी के 20 सांसदों को कनिष्ठ मंत्री पद भी दिए हैं।
संगठनात्मक स्तर पर दोनों नेताओं ने उत्तम संतुलन तो बनाया ही है, उन्होंने विवादास्पद मुद्दों पर भी काफी सहमति तैयार कर ली है। लगता था कि चुनाव सुधार के मुद्दे पर बात टूट जाएगी लेकिन दोनों दलों ने बीच कारास्ता निकाल लिया है। अब नई सरकार जनमत-संग्रह करवाएगी और वह जनता के सामने यह प्रस्ताव रखेगी कि चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को यदि 50 प्रतिशत वोट नहीं मिलते हैं तो दोबारा मतदान होगा। उसके पहले प्राथमिक मतदान में मतदाताओं को यह सुविधा मिलेगी कि वे उम्मीदवारों में अपनी क्रमवार पसंद दर्ज करा सकें।
कई यूरोपीय देशों में इस तरह की पद्धति कायम है। इसका फायदा लिबरलों को सबसे ज्यादा मिलेगा, क्योंकि उन्हें जितने वोट अक्सर मिलते हैं, उनके मुकाबले सीटें आधी भी नहीं मिलतीं। दोनों दलों ने यह भी तय किया है कि ब्रिटिश संसद के द्वितीय सदन हाउस ऑफ लॉर्ड्स के लिए अब समानुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से चुनाव होंगे। यह क्रांतिकारी परिवर्तन होगा।
चुनाव पद्धति के सवाल पर यदि कंजर्वेटिव लिबरल की तरफ झुके हैं तो आर्थिक मोर्चे पर लिबरलों ने कंजर्वेटिवों की बात मान ली है। अब बजट 50 दिन के अंदर पेश होगा और कुल खर्च में 6 अरब पाउंड की कटौती कर दी जाएगी। लिबरलों की यह बात मान ली गई है कि 10 हजार पाउंड तक कीआमदनी को कर-मुक्त कर दिया जाए। इसी प्रकार गठबंधन ने माना है कि वह ब्रिटेन को यूरोपीय संघ में नहीं मिलाएगा और अपने कोई अधिकार उसे नहीं देगा। लिबरलों को अपनी आप्रवासी नीति पर झुकना पड़ा है।
विदेशियों पर बंधन
विदेशी नागरिकों के ब्रिटेन प्रवेश पर अब कुछ बंधन लगेंगे और गैरकानूनी ढंग से ब्रिटेन में रहने वालों को छूट नहीं मिल पाएगी। इसका असर भारतवंशियों पर जरूर पड़ेगा। लेकिन खुशी की बात है कि गठबंधन के दोनों सदस्य भारत से विशेष संबंध बनाने के पक्षधर हैं। वे भारत को सुरक्षा परिषद में स्थान दिलाना चाहते हैं और उसे दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता और लोकतंत्रका स्तंभ मानते हैं।
गठबंधन सरकार मानती है कि अमेरिका के साथ ब्रिटेन के संबंध अति विशिष्ट हैं और रहेंगे, लेकिन उनमें स्वामी-दास भाव नहीं रहेगा। कंजर्वेटिव और लिबरलों को शिकायत है कि पिछले 13 वर्ष में लेबर प्रधानमंत्रियों ने अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका को अंध समर्थन देकर भारी भूल कीहै। नई सरकार ने अमेरिका और भारत की तरह लंदन में भी एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद बनाने की घोषणा की है। जहां तक भारत कासवाल है, उसे अतिरिक्त फायदा मिलेगा क्योंकि अब विपक्ष में बैठने वाली लेबर पार्टी पहले से ही भारत की समर्थक है। यदि गॉर्डन ब्राउन की जगह डेविड मिलीबैंड लेबर पार्टी के नेता बन गए तो भारत के साथ उनके विशेष और व्यक्तिगत संबंध पहले से ही हैं। ब्रिटेन में बदले हुए राजनीतिक परिदृश्यकी राजनीतिको सही पटरी पर लाने में वे दर्जन भर ब्रिटिश सांसद विशेष योगदान कर सकते हैं, जो भारतवंशी हैं और भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि राष्ट्रों से सीधे जुड़े हुए हैं।
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