Dainik Bhaskar, 17 March 2005: भाण्डाफोड़ पत्रकारिता को एकदम रद्द कैसे किया जाए? उसे निन्दनीय क्यों माना जाए? सत्य का उद्रघाटन जो भी करे, जैसे भी करे, उसका तो स्वागत ही होना चाहिए| नए-नए यंत्रों ने इस प्रक्रिया को बहुत ही सरल बना दिया है| टेप रिकार्डर, माइक्रोचिप, गुप्त केमरे आदि की सहायता से पहले सत्य को हस्तगत करें और फिर उसे टी वी के पर्दे पर चढ़ाकर करोड़ों ऑंखों को परोस दें – यही है, भाण्डाफोड़ पत्रकारिता ! अनैतिक कार्यों को सप्रमाण उजागर कर देने में कौनसी अनैतिकता है? इसे तो परम नैतिक कार्य माना जा सकता है| इसी प्रकार अवैध कार्यों को उजागर करना, अवैध घोषित कैसे किया जा सकता है? यह तर्क अपनी जगह सही है, फिर भी देश के कुछ राजनीतिक और कुछ फिल्मी हस्तियॉं मॉंग कर रही हैं कि तथाकथित भाण्डाफोड़ पत्रकारिता पर प्रतिबंध लगना चाहिए| यहॉं तक कि केमरावाले मोबाइल फोन पर भी रोक की मॉंग की जा रही है|
कोई काम नैतिक है या नहीं, उसकी अंतिम कसौटी यह है कि उसके पीछे इरादा क्या था, मंतव्य क्या था, लक्ष्य क्या था? जाहिर है कि भाण्डाफोड़ पत्रकारिता का लक्ष्य हमेशा ही पवित्र नहीं होता| उसका लक्ष्य पैसा कमाना, सस्ती शोहरत कमाना, किसी दल या व्यक्ति को अनुचित फायदा पहॅुंचाना, पुराने बदले चुकाना आदि कुछ भी हो सकता है| यदि ऐसा नहीं है तो कुछ खास लोगों, खास दलों और खास वर्गों के लोगों को ही क्यों फंॅसाया जाता है? जिसे समाज-सुधार करना है, उसे अपनी ऑंखें चौबीसों घंटे खुली रखनी होंगी| वह यह नहीं कर सकता कि अपनी एक ऑंख खुली रखे और दूसरी बंद कर ले| वह यह भी नहीं कर सकता कि कुछ दृश्य देखे और कुछ न देखे ! यदि राजनेताओं को वह घूर रहा है तो फिल्मी सितारों को वह क्यों छोड़ दे? जहॉं भी शक्ति है, शोहरत है, पैसा है, प्रभाव है, वहॉं ही भ्रष्टाचार की संभावना है| भ्रष्टाचार को उजागर करना ही यदि लक्ष्य है तो भाण्डाफोड़ पत्रकारिता से बड़ा नैतिक कार्य कौनसा हो सकता है और यदि लक्ष्य घटिया है तो भाण्डाफोड़ पत्रकारिता से बढ़कर अनैतिक कार्य कौनसा हो सकता है? पत्रकारिता तो उसे कतई नहीं माना जा सकता| भाण्डाफोड़ करने के नाम पर अश्लीलता का व्यापार करना पत्रकारिता का सरासर अपमान है| सत्य को उजागर करने के कारण पत्रकारिता को हमेशा बलिदान करने पड़े हैं| यदि भाण्डाफोड़ करने में कानून टूटता हो, कुछ शक्तिशाली लोग नाराज़ होते हों, पत्रकारों को यातना सहनी पड़ती हो तो भी पॉंव पीछे नहीं हटाना चाहिए| बलिदानी पत्रकारिता ही समाज-सुधारक पत्रकारिता हो सकती है|
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