विदेश सचिव सु. जयशंकर ने चीन के नेताओं और अफसरों से वहां जाकर जो संवाद कायम किया है, उससे बेहतर तरीका फिलहाल क्या हो सकता है? इस समय विवाद के तीन तात्कालिक मुद्दे हैं। पहला, जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर संयुक्तराष्ट्र का प्रतिबंध और इस प्रतिबंध का चीन द्वारा विरोध, दूसरा, परमाणु आपूर्ति समूह में भारत की सदस्यता में चीन का अड़ंगा और तीसरा, पाकिस्तानी कब्जे के भारतीय कश्मीर में से होकर सड़क बनाने की चीनी योजना।
इन तीनों मुद्दों पर जयशंकर ने चीनी वार्ताकारों से खुलकर बात की है और उनको समझाने का प्रयत्न किया है कि यदि वे भारतीय पक्ष का समर्थन करेंगे तो उनका ही भला होगा। आतंकवाद जितना भारत के लिए बुरा है, उससे भी ज्यादा वह चीन के ‘परम मित्र’ पाकिस्तान के लिए बुरा है। पाकिस्तान में जितने लोग हर हफ्ते मर रहे हैं, उतने किस दक्षिण एशियाई देश में मर रहे हैं? चीन के लिए आतंकवाद और भी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि उसका एक ही लक्ष्य है कि सिंक्यांग नामक उइगर प्रदेश को चीन से अलग करना। चीन हर तरह के आतंकवाद के खिलाफ कमर नहीं कसेगा तो आतंकी लोग धीरे-धीरे पेइचिंग, शांघाई और केंटन-जैसे शहरों को भी अपने निशाने पर ले लेंगे।
चीनी आतंकवादियों के साथ मध्य एशिया के पांचों गणतंत्रों के आतंकी और अपराधी तत्व भी जुड़ जाएंगे। वे सिंक्यांग स्थित चीनी परमाणु अड्डों को भी उड़ा सकते हैं। जयशंकर ने चीनी नेताओं से यह जरुर कहा होगा कि 1963 में कश्मीर के जिस हिस्से पर उसने चीन से समझौता कर लिया था, वह कानूनी दृष्टि से अब भी भारत का ही है। उस पर सड़क बनाकर चीन भारतीय संप्रभुता का हनन करेगा। जयशंकर के इन तर्कों का चीनियों पर कितना असर पड़ेगा, कहना मुश्किल है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का संचालन तर्कों से कम, स्वार्थों से ज्यादा होता है।
जयशंकर ने चीन के साथ हो रहे एकतरफा व्यापार पर भी उंगली धरी है। भारतीय व्यापारियों के लिए चीनी बाजारों को खोलने की अपील भी उन्होंने की है। भारत-चीन सांस्कृतिक और सामरिक सहयोग पर भी बात हुई है। चीन को लेकर भारत डोनाल्ड ट्रंप के चरण-चिन्हों पर नहीं चल सकता। उसे मध्यम मार्ग अपनाना होगा लेकिन चीन की विस्तारवादी नीतियों और भारत की घेराबंदी के विरुद्ध उसे सावधान रहना होगा।
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