Hindustan, 01 Aug 2011: पाकिस्तान की नई विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार की भारत-यात्रा से किसी चमत्कारी परिणाम की उम्मीद होती तो खुद आसिफ-ज़रदारी या युसुफ रज़ा गिलानी भारत न आ जाते ? वे नई-नवेली विदेष मंत्री को यह श्रेय क्यों लेने देते। दोनों पक्षों को पता था कि इस यात्रा के परिणाम सीमित होंगे लेकिन सुखद होंगे। कुछ नए समीकरण उभरेंगे।
ऐसा ही हुआ। वरना शर्म-अल-षेख और इस्लामाबाद की तरह इस बार नई दिल्ली में भी खींचातानी हो सकती थी। खींचातानी का बहाना भी मिल गया था। हिना ने भारतीय नेताओं से मिलने के पहले हुर्रियत के नेताओं से मुलाकात की। दोनों पक्षों से की, नरमपंथी और गरमपंथी भी! दोनों ही पक्षों से भारत सरकार खफा है। उसने अपनी नाराज़गी भी जाहिर कर दी लेकिन इस नाराजगी को महज औपचारिकता ही समझा जाना चाहिए, क्योंकि हिना ऐसी पहली पाकिस्तानी नेता नहीं है, जो हुर्रियतवालों से मिली हो। जो भी पाकिस्तान से आता है, उनसे मिलता ही है। यों भी पाकिस्तान दुतावास में उनका आना-जाना लगा ही रहता है। और फिर आजकल इंटरनेट और मोबाइल फोन का जमाना है। कोई भी किसी से भी बात कर सकता है। कोई किसी को रोक नहीं सकता। यदि हुर्रियत नेताओं का हिना से मिलना गैर-कानूनी होता तो भारत सरकार उन्हें रोक सकती थी। पाकिस्तानी सचिव विदेश सलमान बषीर को कहना पड़ा कि हुर्रियत की भेंट और उधर वाषिंगटन में गुलाम नबी फाई के मामले को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर उछालने की जरूरत नहीं है।
डॉ. फाई के खिलाफ अमेरिकी सरकार ने जो कार्रवाई की है, उसे हिना की भारत-यात्रा से जोड़ा जा सकता है। उसामा बिन लादेन की हत्या और डॉ. फाई की गिरफ्तारी ने अमेरिका और पाकिस्तान के बीच तनाव का जो एक मोटा पर्दा खींच दिया है, उसने पाकिस्तान को मजबूर किया होगा कि वह अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करे। अब तक पाकिस्तान के पास दुनिया का सबसे मोटा पव्वा था, अमेरिका ! वह अमेरिका के जरिए भारत और अफगानिस्तान पर दबाव डलवाता रहता था। ओसामा -कांड ने सिद्ध किया कि अमेरिका पाकिस्तान पर विश्वास नहीं कर सकता। पाकिस्तान जिस जमीन पर खड़ा है, वह कभी भी उसके नीचे से खिसक सकती है। डॉ. फाई की ‘कश्मीर अमेरिकन कौंसिल’ को अमेरिकी सरकारों का सहयोग सहज सुलभ रहा है लेकिन पाकिस्तान जब सीआईए के एजेंट रेमंड डेविस को गिरफ्तार करने का दुस्साहस कर सकता है तो डॉ फाई को आईएसआई का एजेंट बताकर ओबामा प्रशाषण गिरफ्तार क्यों नहीं कर सकता ? इसका मतलब साफ है कि धीरे-धीरे यह पाक-अमेरिकी खाई और चौड़ी हो सकती है। आठ करोड़ डॉलर की सहायता पर लगी अमेरिकी रोक इस प्रक्रिया की शुरूआत है।
यदि हिना रब्बानी खार की यात्रा उक्त विष्लेषण की साये में हुई है तो इसे नया शुभारंभ माना जा सकता है। हिना के बयान से कुछ इसी तरह के संकेत भी उभरे हैं। उन्होंने कहा है कि भूतकाल को भूलें और भविष्य के भाव को समझें। दोनों मुल्क आगे देखें। यह बात उस विदेष मंत्री के मुंह से और भी शोभनीय बन जाती है, जिसकी उम्र सिर्फ 34 साल है। उन्होंने देष का विभाजन तो क्या बांग्लादेष-निर्माण भी नहीं देखा। प्रेस-कांफ्रेंस ही नहीं, भारतीय नेताओं और अफसरों से हुई बातचीत में भी पाकिस्तान की इस युवा और आकर्षक विदेष मंत्री ने कोई भी आपत्तिजनक या उत्तेजक बात नहीं कही, जैसे कि पूर्व पाक विदेषमंत्री ने पिछले साल इस्लामाबाद में कह दी थी।
पाक विदेष मंत्री की इस भारत-यात्रा के दौरान दोनों देषों को अपने-अपने खास मुद्दों पर अपना मुंह बंद रखना पड़ा। आतंकवाद और कष्मीर ! आतंकवाद भारत का मुद्दा और कष्मीर पाकिस्तान का मुद्दा! संयुक्त विज्ञप्ति में दोनों मुद्दों का जिक्र है लेकिन टालू-मुद्रा में। कष्मीर बातचीत से हल होगा और आतंकवाद पर दोनों राष्ट्र सहयोग करते रहेंगे। न पाकिस्तान ने दावा किया कि कष्मीर ‘कोर इष्यू’ है और न भारत ने कहा कि मुंबई के अपराधियों को आप हमारे हवाले क्यों नहीं करते या उन्हें फांसी पर क्यों नहीं लटकाते ? ड्राइंग रूम में बैठे इन दो हाथियों को देखे बिना ही दोनों पक्ष किचन की तरफ बढ़ गए।
वार्ता के किचन में दोनों पक्षों ने कष्मीरी नाष्ता किया। दोनों कष्मीरियों के बीच आवाजाही और व्यापार कैसे बढ़े, इस मुद्दे पर कुछ ठोस निर्णय हुए। जम्मू-कष्मीर नियंत्रण रेखा के आर-पार 21 वस्तुओं का व्यापार हो सकेगा। दोनों तरफ के लोगों को छह-छह माह के बहुप्रवेष वीजा मिलेंगे और आवेदनों की स्वीकृति में 45 दिन से ज्यादा नहीं लगेंगे। दोनों तरफ के लोग धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर भी आ-जा सकेंगे। इन समझौतों का दोनों कष्मीरों के लोगों ने स्वागत किया है लेकिन उनकी षिकायत यह है कि यह व्यापार, व्यापार नहीं है। यह आदिम वस्तु-विनिमय है। बिना मुद्रा बदले, बिना बैंकिंग सुविधा कोई भी व्यापारिक गतिविधि कैसे चल सकती है। इसके अलावा सारा व्यापार सिर्फ 21 वस्तुओं तक सीमित क्यों है ? दोनों पक्षों ने इस समस्याओं पर भी विचार करने के संकेत दिए हैं। अब व्यापार सिर्फ दो दिन ही नहीं, सप्ताह में चार दिन खुला रहेगा। भारत-पाक व्यापार, जो पिछले साल दो बिलियन डॉलर से भी ज्यादा था, अब घटकर डेढ़ बिलियन डॉलर रह गया है, उसे भी बढ़ाने का संकल्प किया गया है। दोनों पक्षों में सियाचिन, सरक्रीक, तुलबुल नौवहन आदि मुद्दों को भी शीघ्र सुलझाने की इच्छा व्यक्त की है।
इन सब तथ्यों के आधार पर माना जा सकता है कि भारत-पाक संबंधों में अब एक नया पेटर्न उभर सकता है। यह नया समीकरण उसी तर्ज का दिखाई पड़ता है, जो पिछले कुछ वर्षों से भारत और चीन के बीच चालू है। याने विवाद के मुद्दों को फिलहाल दरकिनार करे और सहयोग के मुद्दों पर लगातार काम करते रहें। यह समीकरण दोनों देषों के बीच अगर आनेवाले कुछ वर्षों तक लगातार चलता रहे और कोई भयंकर आतंकवादी घटना न घटे तो दोनों पड़ौसियों के बीच कामचलाऊ मित्रता का माहौल अपने आप बन सकता है। यह वह माहौल है, जिसमें दोनों राष्ट्र मिलकर अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण का संकल्प कर सकते हैं और ईरान को भी आर्यावर्त्त के इस बड़े सपने से जोड़ सकते है। यदि पाकिस्तान और अफगानिस्तान होकर जानेवाले मार्ग मध्य एषिया के लिए खुल सकें तो सिर्फ भारत ही नहीं, संपूर्ण दक्षिण एषिया ही निहाल हो जाएगा।
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