नया इंडिया, 9 सितंबर 2011 : अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इतिहास में भारत और बांग्लादेश के संबंध एकदम अनूठे रहे हैं| दुनिया में ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं जबकि कोई राष्ट्र अपने पड़ौस में एक नए राष्ट्र को जन्म दे दे और उस पर कोई अहसान नहीं जताए या उसके साथ दादागीरी न करे| बांग्लादेश के कई तत्वों ने समय-समय पर भारत को तरह-तरह से चोट पहुंचाने की कोशिश जरूर की, इसके बावजूद 40 साल में भारत की यही कोशिश रही कि बांग्लादेश के साथ उसके संबंध गहन मैत्रीपूर्ण बन जाएं|
इस दृष्टि से प्रधानमंत्र्ी डॉ. मनमोहन सिंह की ढाका-यात्र का महत्व एतिहासिक है| 1999 में प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ढाका गए थे| इस अंतराल में दिल्ली-ढाका संबंधों में कई छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव आए| लेकिन इन दिनों ढाका में शेख हसीना वाजिद का प्रधानमंत्री होना भारत के लिए काफी अनुकूल रहा| 12 वर्ष बाद हुई प्रधानमंत्री की इस ढाका-यात्र के दौरान यदि तीस्ता और फेनी नदी के पानी का समझौता भी हो जाता तो दो पड़ौसियों का यह संबंध संपूर्ण दक्षिण एशिया के लिए अनुकरणीय आदर्श बन जाता| वह यूरोपीय समुदाय-जैसे किसी नए बहुराष्ट्रीय ढांचे की शुरूआत की नींव बन जाता| बांग्लादेश को पानी मिलता और भारत को रास्ते मिलते| भूटान, नेपाल, सिक्किम और असम पहुंचने के वे रास्ते खुल जाते जो 1965 और 1971 के युद्घों के समय से बंद पड़े हैं| ये वे रास्ते हैं, जो सदियों से खुले हुए थे| भारत के समय और पैसे की बचत होती और बांग्लादेश के लिए मोटी आमदनी का जुगाड़ भी बनता|
पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एन वक्त पर मुकर गई| उन्हें लगा कि तीस्ता का कुछ ज्यादा पानी बांग्लादेश को चला गया तो मार्क्सवादी पार्टी उन पर जबर्दस्त हमला कर देगी| उत्तरी बंगाल में उनका वोट बैंक दरक जाएगा| आखिरकार उन्हें चुनाव तो लड़ना ही है| माना यह भी जा रह है कि सिर्फ तीस्ता के पानी का ही सवाल नहीं है, बांग्लादेश के सामान को भारत में बेचने के लिए करमुक्त करने का फैसला भी उनके लिए खतरे की घंटी था| पं. बंगाल के कपड़ा उद्योग में खलबली मच गई थी| ममता की मजबूरियों को भारत सरकार ने भी समझ लिया और बांग्लादेश की सरकार ने भी! इसीलिए ज्यादा हल्ला नहीं मचा| लेकिन बांग्लादेश के विपक्षी दलों ने इस घटना-चक्र से लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी| उन्होंने भारत की दादागीरी और खुदगर्जी का स्थायी राग जमकर अलापा| वे भूल गए कि भारत-विरोधी माने जानेवाली खालिदा जिया के जमाने में प्रधानमंत्री हरदनहल्ली देवगौडा ने फरक्का-समझौता किया था| उस समय सारा ढाका देवगौड़ामय हो गया था| तीस्ता और फेनी नदी के पानी का सवाल तो फरक्का से कम उलझनभरा है| आशा है कि इस मुद्रदे पर भी शीघ्र ही बांग्ला-भावुकता के दुबारा दर्शन होंगे|
उक्त समझौता संपन्न न हो सका, इसके बावजूद प्रधानमंत्री की ढाका-यात्रi काफी सफल रही| 1974 से अधर में लटका हुआ सीमांकन का समझौता अब परवान चढ़ा| इंदिरा गांधी और शेख मुजीब ने दोनों देशों के बीच 4096 कि.मी. की सीमा पर सहमति करके नक्शों का आदान-प्रदान कर लिया था लेकिन 6.5 किमी में फैले एक-दूसरे के प्रकोष्ठों पर सहमति नहीं हो पाई थी| बांग्लादेश में भारत के 111 प्रकोष्ठ हैं, जिनमें डेढ़ लाख लोग रहते हैं और वे 17158 एकड़ में बंटे हुए हैं| जबकि भारत की सीमा में बांग्लादेश के 51 प्रकोष्ठ हैं, जिनमें 50 हजार लोग रहते हैं और वे 7110 एकड़ में बंटे हुए हैं| इसी प्रकार भारतीय ज़मीन के 38 टुकड़े बांग्लादेश के 3000 एकड़ में फैले हुए है और बांग्लादेश के 50 टुकड़े भारत के 3345 एकड़ में फैले हुए हैं| इस भौगोलिक और राजनीतिक विचित्र्ता की जड़ें 18वीं सदी में उगी थीं| कूच बिहार और रंगपुर के राजाओं ने एक-दूसरे के क्षेत्रें में जो घुसपैंठ की थी, वह अभी तक चली आ रही थी| इसके कारण दोनों देशों में कई बार भारी तनाव पैदा होता रहा है| अब दोनों देशों ने पहली बार इन प्रकोष्ठों की अदला-बदली का स्पष्ट समझौता कर लिया है| इसके कारण दो लाख भारतीय और बांग्लादेशी नागरिकों को काफी राहत मिलेगी| पहले उन्हें अपने प्रकोष्ठ से बाहर निकलने के लिए भी विदेशयात्र जैसी तैयारी करनी पड़ती थी| अब वे अपना सहज जीवन जी सकेंगे| 2001 में हमारे 15 गार्डों की हत्या कर दी गई थी और उनके शवों को पशुओं की तरह बांसों पर टांगकर घुमाया गया था| आशा है, इस तरह की उत्तेजक घटनाएं अब नहीं दोहराई जाएंगी|
बांग्लादेश को शिकायत थी कि भारत के साथ उसके व्यापार में भारी असंतुलन हैं| यदि बांग्लादेश को भारत एक रू0 का माल बेचता है तो भारत उसे नौ रू0 का माल बेचता है| 900 प्रतिशत का यह असंतुलन किसी भी देश के लिए काफी चिंता का विषय हो सकता है| बांग्लादेश कई वर्षों से आग्रह कर रहा है कि भारत उसके माल को कर मुक्त करे ताकि भारत के बाजारों में वह ‘सस्ता और बढि़या’ होकर बिके| बांग्लादेश का कपड़ा सारी दुनिया में बहुत लोकपि्रय है लेकिन भारत में वह इसीलिए कम बिकता है कि उस पर कर ज्यादा लगता है| बांग्लादेश के कुल निर्यात में कपड़े का हिस्सा 75 प्रतिशत से भी ज्यादा है| अब भारत ने उसकी 61 चीजों को कर मुक्त कर दिया है, जिनमें से 46 कपड़ों से संबंधित हैं| इस कदम का बांग्लादेश में तो भरपूर स्वागत हुआ हैं लेकिन भारत के वस्त्र् उद्योग में थोड़ी बेचैनी जरूरी फैलेगी| आशा है कि बांग्लादेश के 50 करोड़ डॉलर के निर्यात और भारत के साढ़े चार सौ करोड़ के निर्यात में अब कुछ संतुलन बनेगा|
यद्यपि दोनों देशें ने अपनी संयुक्त विज्ञप्ति में आतंकवाद से लड़ने के अपने संकल्प को देाहराया हैं लेकिन दोनों के बीच इस बार प्रत्यर्पण-संधि संपन्न नहीं हो सकी है| कुछ अन्य समझौते जरूर हुए हैं, जिनसे सांस्कृतिक और शैक्षणिक सहयोग बढ़ेगा| इसमें शक नहीं कि प्रधानमंत्र्ी की इस ढाका-यात्र ने भारत-बांग्ला संबंधों को नए धरातल पर पहुंचाया है लेकिन हम यह न भूलें कि बांग्लादेश में भारत-विरोधी तत्वों का अब भी काफी प्रभाव है| वे भारत पर वार करने में कभी नहीं चूकेंगे| ये तत्व पाकिस्तान से प्रेरणा लेते हैं| नौकरशाही और प्रतिपक्ष में डटे हुए इन तत्वों की हरचंद कोशिश यही होती है कि बांग्लादेश पाकिस्तान और चीन की तरफ ज्यादा झुकता चला जाए| भारत ने बांग्लादेश को लगभग साढ़े चार हजार करोड़ रू. की सहायता दी हैं लेकिन इसके बावजूद जब भी म्यांमार से गैस लाने के लिए पाइपलाइन बिछाने की बात होती है या बांग्लादेश के रास्तों को इस्तेमाल करने की बात होती हैं, ढाका की सरकारें आनाकानी करने लगती है| आशा है कि शेख हसीना के इसी कार्यकाल में सिर्फ तीस्ता और फेनी ही नहीं शेष 51 नदियों के पानी के भी मसलों को हल कर लिया जाएगा ताकि जैसे बांग्लादेशियों के लिए व्यावहारिक तौर पर भारत की सीमाएं खुली ही हुई हैं, वैसे ही भारतीयों केलिए भी बांग्ला-सीमाएं खुल जाएं| बांग्लादेश के लाखों लोग जैसे पासपोर्ट और वीज़ा के बिना भारत में मुक्त विहार करते है, क्या किसी दिन यही स्थिति दक्षिण एशिया के सभी देशों के बीच हमें देखने को मिलेगी? इस विशाल भारतीय परिवार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शायद भारत और बांग्लादेश ही ऐसे दो राष्ट्र है जिन्हें कुछ कदम और आगे बढ़ाने होंगे|
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