एक्सप्रेस न्यूज, 4 अप्रैल,2005 : लाहौर की नौ छात्राऍं और उनकी सात शिक्षिकाऍं याने 16 युवा पाकिस्तानी महिलाएं इस हफ्ते सड़क के रास्ते भारत आईं| उनके साथ कोई भी मर्द नहीं है| क्या यह अचरज की बात नहीं? क्या हम अपनी लड़कियों को इस तरह पाकिस्तान घूमने भेज सकते हैं? जब लाहौर के नाजि़म (गवर्नर) मियां आमेर महमूद ने मुझे फोन पर बताया कि उनके स्कूल की छात्राएं आ रही हैं तो मुझे थोड़ी चिंता हुई| मैंने पूछा आपने यह फैसला कैसे किया? क्या आपको कोई चिंता नहीं हो रही? उन्होंने तपाक से कहा कि “आप वहॉं हैं तो हमें चिंता किस बात की?” यह स्तर है, आज भारत-पाक सद्रभाव का ! दोनों देशों के नेता कश्मीर, एफ-16, सीमा-पार आतंकवाद आदि मुद्दों पर चाहे जितनी नोंक-झोंक करते रहें, दोनों देशों की जनता में प्रेम का सागर उमड़ा पड़ रहा है| इन छात्राओं के आने की खबर मैंने जैसे ही दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, उ.प्र. के मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को दी तो वे तीनों बोले “बताइए हमें उनके लिए क्या-क्या करना है?” ये छात्रएं आगरा, जयपुर और अजमेर घूम चुकी हैं और इस समय दिल्ली लौट रही हैं| हर एक-दो घंटे में फोन पर उनसे मेरी बात हो रही है| लाहौर से मियां आमेर और उनके मुख्य प्रशासक अनवर पाशा भी निरंतर उनसे सम्पर्क करते रहते हैं| सबका कहना है कि भारत में पाकिस्तानी लड़कियों का जैसा स्वागत हो रहा है, उसकी हम सपने में भी कल्पना नहीं कर सकते| लड़कियां इतनी खुश हैं कि वे इतनी जल्दी लौटना ही नहीं चाहतीं| परसों पाकिस्तानी सत्तारूढ़ दल मुस्लिम लीग के अध्यक्ष चौधरी शुजात हुसैन ने पत्रकारों की सभा में मुझे जैसे ही देखा, बोले “आपके राष्टरपति बोल रहे थे कि आप हमारी लड़कियों को उनसे मिलवाने ले गए थे| कहॉं हैं, हमारी लड़कियॉं? सुना है, आपके पास ठहरी हैं?” मेरे कहने पर वे श्रीमती शीला दीक्षित के घर चले आए, क्योंकि इन छात्राओं का रात्रि-भोज वहीं था| चौधरी शुजात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं और उनके छोटे भाई परवेज इलाही आजकल पाक-पंजाब के मुख्यमंत्री हैं| चौधरी शुजात ने अपनी लड़कियों से कहा, “कुडि़यों तुम्हारी तो लॉटरी खुल गई है| इतनी इज्जत और मुहब्बत तो बड़े-बड़े नेताओं को भी नहीं मिलती|” चौधरी साहब ने सच ही कहा| इन लड़कियों को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रतिपक्ष के नेता ला.कृ. आडवाणी ने अपने घर बुलाया और उनसे खुलकर बात की| डॉ. मुरली मनोहर जोशी के घर वे श्री अटलबिहारी वाजपेयी से मिलेंगी| कृष्णलीला देखेंगी और शाकाहारी भोजन का आनंद लेंगी| नजमा हेपतुल्ला ने बड़े पैमाने पर मध्यान्ह-भोज का आयोजन किया है| मेरे मित्र श्री लक्ष्मीनिवास झुनझुनवाला रात्रि-भोज और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं| आडवाणीजी की बेटी प्रतिभा ने इन लड़कियों को होली की फिल्म दिखाई| उसमें हिंदी सिनेमा के चुने हुए होली के गाने थे| उन्हें देखकर वे थिरकने लगीं| वे होली के दिन ही वागाह आनेवाली थीं| मैंने उनका आगमन एक दिन आगे बढ़वाया| वे बस से आईं और उन्होंने पैदल सीमा पार की| कस्टम में पॉंच घंटे लग गए, क्योंकि हमारे नेताओं और अन्य लोगों के लिए मियां आमेर ने काफी क़ीमती तोहफे भेजे थे| वे रात को 12 बजे पानीपत पहुंची| मेरे मित्र संदीप जैन के घर ! संदीपजी और उनकी पत्नी सुनीताजी ने अपना घर दीवाली पर सजे हुए महल की तरह दीप्तिमान कर रखा था| ‘लाहौर की बेटियां, पानीपत की बेटियां हैं’, आदि नारों से उनका स्वागत हुआ| शुद्घ शाकाहारी भोजन इन लड़कियों ने अपने जीवन में पहली बार किया| उन्हें लेने बेटा सुपर्ण पानीपत गया था| वह उनसे लाहौर में पहले भी मिल चुका था| वे सुबह पॉंच बजे दिल्ली पहॅुंची और प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह से मिलने के लिए आठ बजे तक तैयार हो गईं| प्रधानमंत्री ने जमकर फोटो खिंचवाए और मोरिशस जाने के पहले दर्जनों चित्रों और लड़कियों की डायरियों में हस्ताक्षर करवाकर भिजवाए| राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने उनसे लगभग पौन घंटे बात की| वे लगभग दो घंटे राष्ट्रपति भवन में घूमीं| बेटी अपर्णा ने बताया कि उन्हें वहां भी ले जाया गया, जहां आम तौर से दर्शकों को जाने की अनुमति नहीं है| श्रीमती शीला दीक्षित ने बहुत ही आत्मीय भोज दिया| कुछ पाक-अध्यापिकाओं के उस समय छक्के छूट गए, जब उनकी जूठी प्लेट खुद शीलाजी उठाकर अंदर ले जाने लगीं| वे सब चिल्ला पड़ीं कि “मेडम, आप ये क्या कर रही हैं?” शीलाजी ने कहा कि “मैं मुख्यमंत्री जरूर हॅूं लेकिन मॉं और बड़ी बहन भी तो हॅूं|”
चौधरी शुजात हुसैन
चौधरी शुजात हुसैन के बारे में ऊपर बता चुका हॅूं| अभी सितंबर में जब मैं लाहौर में था तो चौधरी साहब के घर पर ही वर्तमान प्रधानमंत्री शौकत अज़ीज़ के साथ मेरा नाश्ता रखा गया| अज़ीज़ के पहले दो ढाई माह के लिए शुजात प्रधानमंत्री रहे| इतने कम समय वे इसलिए रहे कि अज़ीज़ को चुनाव लड़कर पहले सांसद बनना था| यदि शुजात चाहते तो प्रधानमंत्री बने रह सकते थे, क्योंकि मुस्लिम लीग के वे अध्यक्ष हैं और जनरल मुशर्रफ के बाद पाकिस्तान के सबसे ताकतवर नेता हैं| पहले वे नवाज़ शरीफ की पार्टी में थे लेकिन अब वे पंजाब के एकछत्र नेता हैं| असली बात यह है कि चौधरी शुजात प्रधानमंत्री पद के पिंजरे में क़ैद होना पसंद नहीं करते| इसके अलावा वे यों तो हैं 59 साल के लिए उनका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रहता| वे जाट हैं और लगभग देवीलालजी की तरह हैं| पारदर्शी और दरियादिल! सीधे इतने कि अपने डिनर में वे मेरे लिए खुद ही खाने की प्लेट लगा लाए और कहने लगे कि चेक कर लीजिए कि ‘शाकाहारी’ है कि नहीं? दिल्ली के सैकड़ों दिग्गजों के सामने यह दृश्य देखकर मैं सकपका गया| शीला दीक्षितजी को वह कह गए हैं कि आपको लेकर हमारे ये दोस्त जल्दी ही लाहौर पधारें| हमें कुछ खिदमत का मौका दीजिए| इस समय पाकिस्तान को तीन लोग चला रहे हैं और वे तीन मुद्दों को देख रहे हैं| जनरल मुशर्रफ सुरक्षा और विदेश नीति चला रहे हैं, शुजात हुसैन अंदरूनी राजनीति कर रहे हैं और शौकत अजीज़ अर्थ-व्यवस्था सम्हाल रहे हैं| शुजात हुसैन चाहते हैं कि भारत आकर दो-चार हफ्ते रहें और घूमें, साधारण नागरिक की तरह ! वे दूसरी बार भारत आए हैं लेकिन मुस्लिम लीग का कोई अध्यक्ष पहली बार ही भारत आया है|
जिंदलऔरसुरेंद्रसिंह
हरयाणा के दोनों मंत्री श्री ओमप्रकाश जिंदल और सुरिन्दर व्यक्तिगत मित्र थे| उनकी आकस्मिक मृत्यु ने मुझे गहरा झटका दिया है| अनेक स्मृतियां उभर रही हैं| अभी चार साल पहले हमारे मित्र माधवराज सिंधिया का जो जहाज गिरा था, वह भी जिंदलजी का ही था| 30 सितंबर 2001 को सुबह वह जहाज मुझे बिलासपुर से इंदौर लानेवाला था लेकिन माधवरावजी ने कानपुर जाने के लिए उसे कुछ घंटे पहले ही बुक कर लिया था| इंदौर में अपने भाषण के दौरान मैंने दुर्घटना की खबर सुनी | इधर जब जिंदलजी का हेलिकॉप्टर गिरा तो मैं चौधरी शुजात हुसैन के साथ था| मुझे इंदौर से कई फोन आए| जिंदलजी और उनके भाइयों के साथ पिछले 30-35 साल से गहरा संबंध रहा है| उनके बेटे नवीन ने (जो आजकल सांसद है) जब तिरंग को मुक्त करने का अभियान चलाया तो मैंने उसे बहुत प्रोत्साहित किया| जिंदलजी कहा करते थे कि ‘इस छोरे को आपने बिगाड़ दिया| यह नावॉं (पैसा) नहीं, नाम कमाने में फंस गया है|’ जिंदलजी की एक बेटी सारिका हॉंगकॉंग में रहती है| सारिका और उसके ससुर झुनझुनवालाजी का भी हमने एक बार बड़ा गर्मजोशीभरा आतिथ्य स्वीकार किया था| जिंदलजी कई वर्षों बंसीलाल के साथ लगे रहे| सात-आठ साल पहले उनके गहरे मतभेद हो गए| वे और भजनलाल दोस्त बन गए| अब ऊर्जा मंत्री के तौर पर वे हरयाणा का रूपान्तरण कर देते| वे ज्यादा प्ढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन उनके पास गॉंठ की जबर्दस्त बुद्घि थी| उनमें जितनी दृढ़ता थी, उतनी ही विनम्रता भी थी| उनके साथ अनगिनत बार भोजन हुआ| उस समय उनकी बाल-सुलभ सरलता देखने लायक होती थी| उनकी सज्जनता रह-रहकर याद आती है| हार्दिक श्रद्घांजलि !
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