राष्ट्र्रीय सहारा, 11 दिसंबर 2005 : प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह की मास्को-यात्र खाली वार्षिक कर्मकांड बनकर रह जा सकती थी, जैसे कि पिछले साल रूसी राष्ट्र्रपति ब्लादिमीर पूतिन की दिल्ली-यात्र रही लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री की इस यात्र ने अनेक छोटे-मोटे लक्ष्य सिद्घ किए| पहले राजनीतिक लक्ष्यों को ही लें|
सबसे पहला लक्ष्य तो ईरान का ही था| ईरान के मसले पर हमारी वामपंथी पार्टियां इतनी ज्यादा गरमाई हुई थीं कि वे कांग्रेस-सरकार के लिए खतरा भी खड़ा कर सकती थीं| उसे पसोपेश में तो वे पहले ही डाल चुकी थीं| ईरान का मामला सुरक्षा परिषद में न जाए और ईरान का हाल एराक़ जैसा न हो जाए, इस काम में रूस की भूमिका बहुत उपयोगी हो सकती थी| इसीलिए भारत रूस के साथ सतत संपर्क बनाए हुए था| यदि अमेरिका वियना-अभिकरण को मजबूर करके ईरान को सुरक्षा परिषद में घसीट भी ले जाता तो रूस अपने वीटो का प्रयोग कर सकता था लेकिन वैसी नौबत न आए, इसका रास्ता भी रूस ने निकाल लिया| ईरानी परमाणु ईंधन, जिसे लेकर अमेरिका ने ईरान-विरोधी अभियान चलाया था, अब रूस के माध्यम से तैयार होगा| भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी मास्को-यात्र के दौरान रूस को इस पहल के लिए बधाई ही नहीं दी, रूस के साथ तैल और गैस के ऐसे नये आयाम भी खोल दिए, जिनमें ईरान की भागीदारी अपरिहार्य हो जाएगी|
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी वाशिंगटन-यात्र के दौरान ईरान-पाकिस्तान-भारत पाइप लाइन के बारे में जो राय जाहिर की थी, उसका अर्थ हमारे वामपंथी यह लगा रहे थे कि भारत अमेरिका से दब रहा है| क्योंकि अमेरिका ईरानसे नाराज़ है, इसीलिए भारत पाइपलाइन में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है| प्रधानमंत्री की मास्को-यात्र ने इस धारणा को निर्मूल सिद्घ कर दिया है| उन्होंने केवल इस पाइपलाइन की ही नहीं, उससे भी आगे जाकर रूसी उर्जा-स्रोतों को भारत तक ले आने की सख्त जरूरत बताई है| यह जरूरत किसी महापाइप लाइन के बिना कैसे पूरी होगी? अब सिर्फ मध्य एशिया से ही नहीं, चीन के उत्तर-पूर्व के रूसी क्षेत्र् से भी पाइप लाइन लाने की योजना बनानी होगी| यदि पूर्व में ईरान और पाकिस्तान के सहयोग की जरूरत होगी तो पश्चिम में चीन का सहयेाग नितांत आवश्यक होगा| यदि दो दिशाओं से पाइपलाइनें चलेंगी और भारत के जरिए वे हिंद महासागर पर खुलेंगी तो एशिया का नक्शा ही बदल जाएगा| न सिर्फ एशियाई देशों में घनिष्ट सहकार शुरू हो जाएगा बल्कि उर्जा की सहज पूर्ति बकरियों को शेर बना देगी| रूस दुनिया का दूसरा उर्जा का सबसे बड़ा भंडार है| उसके सुदूर पूर्व में स्थित सखालिन द्वीपों में तेल के अनेक अछूते स्रोत हैं| भारत ने पहले ही लगभग ढाई अरब डॉलर का विनियोग वहां कर रखा है| अब उसे सखालिन तृतीय में विनियोग का न्यौता मिला है, जो कि अपने आप में उपलब्धि है, क्योंकि वहां अब तक केवल रूसी कंपनियों को ही तेलोत्खनन की सुविधा प्राप्त थी| भारत का विनियोग 10 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है| जाहिर है कि सहयोग का यह सिलसिला दोनों सखा-देश मिलकर सखालिन से आगे तक ले जाएंगे| मध्य एशिया के पांचों राष्ट्र्रों में यदि भारत-रूस संयुक्त-उद्यम शुरू हो जाएं तो वे विश्व-राजनीति को नई दिशा देंगे|
पारस्परिक उर्जा ही नहीं, सौर और परमाणु उर्जा के बारे में भी कुछ ठोस नतीजे सामने आए हैं| सौर-उर्जा के मामले में तो द्विपक्षीय समझौता हुआ ही है| परमाणु-उर्जा के मामले में गत वर्ष रूस ने जो ढीला-ढाला रवैया दिखाया था उसमें थोड़ी कसावट आई है| माना जा रहा था कि अमेरिकी दबाव में आकर वह भारत को न तो तारापुर सयंत्र् के लिए ईंधनदेगा और न ही कुंडनकुलसंयंत्र् के लिए कुछ अतिरिक्त परमाणु भटि्रटयां देगा| अब रूस का रवैया यह है कि वह इन दोनों जरूरतों को पूरा करेगा, क्योंकि भारत अमेरिका के साथ जुलाई में हुए समझौते के तहत उन सब शर्तोंं को मानने को तैयार हो गया है, जो परमाणु सप्लायर ग्रुप की ओर से लगाई जाती हैं| प्रकारांतर से पूतिन ने भारत को यह संदेश भी दे दिया है कि आप पहले भारत अमेरिका समझौते को लागू कीजिए, फिर आपकी सभी परमाणु-जरूरतें पूरी की जाएंगी| रूस नहीं चाहता कि उसका पुराना ग्राहक उसके हाथ से निकल जाए| यदि भारत का परमाणु-बाजार खुलेगा तो रूस उस पर कब्जा करने की पूरी कोशिश करेगा| इस यात्र ने भारत-रूस परमाणु सहयोग के लिए कुछ नए दरवाजे खोल दिए हैं|
भारत-रूस रक्षा-सहयोग तो पहले से ही काफी अच्छा चल रहा था| दोनों राष्ट्र्र मिलकर ब्राह्रमोस मिसाइल बना रहे थे और परमाणु पनडुब्बियां भी| अब पांचवीं पीढ़ी के फौजी परिवहन हवाई जहाज बनाने का भी समझौता हुआ है| दोनों राष्ट्र्रों के बीच फौजी-तकनीकी सहयोग के दस-वर्षीय समझौते को भी परिपुष्ट किया गया है| दोनों राष्ट्र्रों की सेनाएं संयुक्त युद्घाभ्यास पहले से ही कर रही हैं| अंतरिक्ष में संयुक्त फौजी कार्यक्रम चलाने पर भी दोनों पक्षों में सहमति हुई है| ताजिकिस्तान में रूसी फौजें कई वर्षों से तैनात हैं| इधर भारत ने भी आइनी नामक स्थान पर सैनिक अड्रडे का निर्माण किया है| अब वहां रूस भी सकि्रय सहयोग करेगा| इस तरह के सहयोग से अमेरिका कुछ चिंतित हो सकता है, क्योंकि पिछले 15 वर्षों में अमेरिका ने पूर्व-सोवियत राष्ट्र्रों में जो भी सैनिक अड्रडे बनाए हैं,उनके विरुद्घ राजनीतिक अभियान जोरों से चल रहे हैं|
भारत, रूस और चीन के त्रिकोण का हव्वा खड़ा करके कुछ लोग अमेरिका को उकसाने का काम कर रहे हैं| लेकिन तीन देशों के शीर्षस्थ नेताओं ने इस धारणा को सर्वथा निराधार बताया है| भारतीय प्रधानमंत्र्ी को इस मसले पर अपनी राय बहुत स्पष्ट रूप् में दोहरानी पड़ी है| उनकी इस मास्को-यात्र का लक्ष्य दोनों राष्ट्र्रों की परम्परागत मैत्री को और अधिक सुदृढ़ बनाना था| इसके अलावा कुछ नहीं|
Leave a Reply