Dainik Bhaskar (New Delhi), 21 July 2011 : यदि सर्वोच्च न्यायालय सरकार के कान नहीं खींचता तो बोफोर्स मामले की तरह यह मामला भी रफा-दफा हो जाता| यह मामला था, नोट देकर सांसदों के वोट खरीदने का| 22 जुलाई 2008 को सारी दुनिया ने टेलिविज़न चेनलों पर देखा कि संसद में किस तरह नोटों की गडि्रडयॉं लहराई जा रही थीं और बताया जा रहा था कि ये नोट कुछ सांसदों को रिश्वत के तौर पर दिए गए थे| दुनिया की किसी भी संसद में संसद का ऐसा अपमान कभी देखा या सुना नहीं गया| भारत के संसदीय लोकतंत्र् की सारी इज्जत धूल में मिल गई लेकिन उन व्यक्तियों को आज तक कोई सजा नहीं मिली, जिन्होंने सांसदों को भ्रष्ट करने की कोशिश की थी|
यह कुकर्म इतना भयंकर था कि इस की तुलना बोफोर्स, कॉमनवेल्थ गेम्स, आदर्श सोसायटी और स्पेक्ट्रम से भी नहीं की जा सकती| ये सब तो भ्रष्टाचार की शाखाऍं, फल-फूल और पत्तियॉं हैं| सदाचार का मूल तो हमारी संसद में है| अगर वही भ्रष्ट हो गई तो फिर बचा ही क्या ? यह तो भ्रष्टाचारों का भ्रष्टाचार हुआ| 22 जुलाई को नोटों की गडि्रडयॉं लहराए जाने के बावजूद लोकसभा में मतदान करवाया गया| यदि स्पीकर चाहते तो मतदान को रोक सकते थे और जॉंच का आदेश कर सकते थे लेकिन उन्होंने जांच का आदेश मतदान के बाद किया| यदि मतदान कुछ दिन आगे बढ़ जाता तो क्या होता ?
स्पीकर ने मक्खी ही नहीं निगली| पूरा मगर निगल लिया| खुद भी सरकार के पक्ष में वोट डाल दिया| आखिर क्यों ? इसीलिए कि सरकार समझ गई थी कि रिश्वत खिलाने के बावजूद सरकार की नैय्रया डूब सकती है| ‘विकीलीक्स’ से अब पता चला है कि कई सांसद करोड़ों रू. की रिश्वत भी खा गए और उन्होंने कांग्रेस को वोट भी नहीं दिया| सरकार घबराई हुई इसीलिए थी कि कांग्रेस पार्टी के गठबंधन के पास 14 वीं लोकसभा में सिर्फ 226 सदस्य थे| वामपंथियों के 63 सांसदों का समर्थन लेकर यह गठबंधन अपनी गाड़ी खींच रहा था| वामपंथियों ने भारत-अमेरिकी परमाणु-सौदे का विरोध किया और कांग्रेस-गठबंधन से अपना समर्थन खींच लिया| समाजवादी पार्टी के 36 और छोटे-मोटे दलों के सांसदों को मिलाकर सरकार का समर्थन 268 सदस्यों तक पहुंच गया| उसे अब कम से कम चार सांसदों की जरूरत थी| इन चार सांसदों का जुगाड़ भिड़ाने में कितने सांसदों का सतीत्व भंग किया गया, इसका पता तो कभी नहीं चल पाएगा लेकिन जिन तीन सांसदों ने नोटों की गडि्रडयॉं उछाली थीं, उन्होंने उसी वक्त इस तथ्य पर मुहर लगा दी थी कि सरकार की वह जीत घोर अनैतिक थी और संसद के साथ बलात्कार के अलावा कुछ नहीं थी| सरकार को 272 की जगह 275 वोट मिले थे|
स्पीकर द्वारा बिठाई गई जांच में से वही निकला, जो ऐसी जांचों से हमेशा निकलता है| सांसद ही सांसदों की जांच कर रहे हैं| खुद ही अपराधी और खुद ही न्यायाधीश ! इसीलिए लोकपाल जरूरी है, यह अब समझ में आ रहा है| सांसदों की जांच कमेटी को यह तो मानना पड़ा कि एक करोड़ के नोट तीन सांसदों को दिए गए और उन्होंने इन्हें सदन में लहरा दिया लेकिन कमेटी यह नहीं बता पाई कि ये रूपए किसने दिए और क्यों दिए| कमेटी ने जांच को आगे बढ़ाने की बात कहीं और सारा मामला पुलिस में दर्ज करवा दिया| पुलिस ने क्या किया ? वह लंबी चादर ओढ़कर सो गई| जो काम सांसद नहीं कर सके, वह पुलिस कैसे कर सकती है ? पुलिस तो सरकार की कठपुतली है|
कांग्रेस के सांसद वी. किशोर चंद्रदेव की अध्यक्षता में बनी इस कमेटी ने दो टूक शब्दों में कहा कि इस कांड में सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल का कोई हाथ नहीं है और अमरसिंह के विरूद्घ भी कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है| कमेटी ने अमरसिंह के सचिव संजय सक्सेना को जांच के लायक जरूर पाया और भाजपा से संबंधित उन दो लोगों की भी जांच की सिफारिश की, जिन्होंने इस रिश्वत का पर्दाफाश करने के लिए जाल बिछाया था| जब संसदीय कमेटी का यह हाल है तो संसद मार्ग पुलिस थाने की क्या बिसात थी कि वह इन बड़े-बड़े मगरमच्छों पर हाथ डाल देता ?
लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे.एम. लिंग्दोह ने कमाल कर दिया| उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में स्वतंत्र् और विशेष जांच की अर्जी लगा दी| न्यायमूर्ति आफताब आलम और आर एम. लोढ़ा ने पुलिस की जो खिंचाई की है, वह किसी भी सरकार के लिए काफी शर्म की बात है लेकिन हमारी सरकारों की खाल अब गेंडे से भी मोटी हो चुकी है| इसके बावजूद उसे मजबूरन संजीव सक्सेना को गिरफ्तार करना पड़ा है| सक्सेना ने सारे तथ्य उगल दिए हैं| अब पुलिस डर रही है, अमरसिंह तथा अन्य सांसदों से पूछताछ करने में| उसे दोनों सदनों के अध्यक्षों से अनुमति तो मिल जाएगी लेकिन वह अमरसिंह से क्या कुछ उगलवा पाएगी ? अमरसिंह का कितना ही राजनीतिक पराभाव हो चुका हो, लेकिन कांग्रेस ने अगर उन्हें फंसने दिया तो वे कांग्रेस के गले की घंटी बन सकते हैं| उन तीनों सांसदों ने अपनी रपट में साफ-साफ कहा है कि अमरसिंह ने अपने घर पर उन्हें बुलाकार प्रत्येक को एक-एक करोड़ की रिश्वत देने का वायदा किया और अहमद पटेल से भी फोन पर उनकी बात करवाई| इन सांसदों का कहना है कि अमरसिंह के घर पर जाने-आने के वीडियो टेप भी उपलब्ध हैं| इन टेपों और टेलिफोन-प्रमाणों को खंड-बंड करना किसी भी सरकार के बाएं हाथ का खेल है| यदि सर्वोच्च न्यायालय काले धन की विशेष जांच की तरह इस मामले की भी विशेष जांच स्वयं करवाए तो ही इसका सच उजागर हो सकता है| अन्यथा कोई सरकार इतनी बड़ी नासमझी क्यों करेगी कि वह ऐसी जांच होने दे, जिसके फलस्वरूप उसकी वैधता शून्य हो जाए, उसका मुंह काला हो जाए और उसे इस्तीफा देना पड़े| सरकार के जीवन-मरण का सवाल हो और यह सूत्र् सर्वोच्च नेतृत्व से न जुड़ा हो, यह कैसे हो सकता है ? क्या कोई सचिव और दलाल की हैसियतवाला व्यक्ति ऐसे नाजुक मामले को अपने दम पर चला सकता है ? भ्रष्टाचार के अन्य सभी मामलों से यह मामला इसीलिए अधिक गंभीर है कि इसमें ‘सबसे बड़े लोग’ एक दम सीधे फंसेंगे| यह मामला सिर्फ कुछ तथाकथित बड़े लोगों तक ही सीमित नहीं रहेगा| यह मामला हमारी संपूर्ण संसदीय व्यवस्था पर ग्रहण लगा देगा| लेकिन अगर इसका सच उजागर हो गया तो देश की भावी पीढि़यों के लिए वह जबर्दस्त सबक बनेगा| हमारी संसदीय व्यवस्था इस अग्नि-परीक्षा से गुजरने पर पहले से अधिक चमचमा उठेगी|
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