Dainik Bhaskar, 24 July 2004 : समझ में नहीं आता कि कॉंग्रेस पार्टी किधर जा रही है? क्या वही भूल वह अब भी दोहराना चाहती है, जो 1916 के लखनऊ-पेक्ट में कॉग्रेसी नेताओं ने दोहराई थी| मुस्लिम लीगियों के आगे उन्होंने घुटने टेके और यह मान लिया कि भारत के मुसलमानों के लिए अलग चुनाव-क्षेत्र बना दिए जाऍं, केंद्र में भी और राज्यों में भी! मुसलमान सिर्फ मुसलमानों को वोट दें| यह अलग चुनाव-क्षेत्र नहीं, अलग राष्ट्र का बीज-वपन था| यह भारत के मुसलमानों की तबाही का बिस्मिल्लाह था| यही खेल अब आंध्र की कॉंग्रेसी सरकार ने शुरू किया है| उसने रातों-रात शासकीय आदेश जारी किया और आंध्र के मुसलमानों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में पॉंच प्रतिशत आरक्षण दे दिया| विधानसभाओं और नौकरियों में आरक्षण की मॉंग से ही मुस्लिम लीग का जन्म हुआ था, शायद यह तथ्य आंध्र के मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी को पता नहीं है| 1907 में मुस्लिम लीग ने अपने पहले अधिवेशन में ही आरक्षण की बॉंग लगाई थी| न केवल 1928 की प्रसिद्घ नेहरू रिपोर्ट में इस मॉंग का स्पष्ट विरोध किया गया था बल्कि संविधान सभा ने भी इस मॉंग को पूरी तरह रद्द कर दिया था| कॉंग्रेसी नेताओं ने 1916 में जो भूल कर दी थी, उसे फिर कभी नहीं दोहराया लेकिन उसी एक भूल का परिणाम था, पाकिस्तान ! यदि यही भूल जो आंध्र ने की है, अगर केंद्र भी करेगा तो वह अब एक नहीं, अनेक पाकिस्तानों की नींव रखेगा|
यह ठीक है कि आंध्र के 65: मुसलमान बेहद गरीब हैं| उनकी आमदनी मुश्किल से 30 रु. रोज़ है| 100 में से 18 पुरुष और औरतें तो केवल चार ही साक्षर हैं| इतने गरीब और पिछड़ों को सरकारी संरक्षण तो मिलना ही चाहिए लेकिन इस सत्कार्य को सम्पन्न करने के लिए मज़हब को बीच में घसीटना क्यों जरूरी होना चाहिए? मज़हबी आरक्षण अनेक खतरों का पिटारा साबित हो सकता है| जितने प्रतिशत मुसलमान आंध्र में हैं, उससे कहीं ज्यादा देश के कई अन्य प्रांतों में हैं| उनकी दशा आंध्र में फिर भी बेहतर है, क्योंकि वहॉं कभी लंबे समय तक निज़ाम का राज्य रहा है लेकिन जिन राज्यों में वे पिछड़ों से भी अधिक पिछड़े हैं, उनमें भी आरक्षण का बवंडर उठ खड़ा होगा| आर्थिक लाभ और उस पर मज़हबी उन्माद ! इन दोनों का घोल बड़ा नशीला सिद्घ होगा| अविभाजित पंजाब और बंगाल में चाहे जमीन-आसमान का अंतर रहा हो लेकिन 1947 में दोनों ही मज़हबी नशे में डूब गए थे| 1971 में चाहे पंजाबी पाकिस्तान ने बंगाली पाकिस्तान की बोटी-बोटी नोच डाली लेकिन इस्लाम के नाम पर वे कभी पागल हो गए थे| क्या कॉंग्रेस सरकारें इसी मज़हबी पागलपन की गोलियॉं दुबारा बॉंटने पर आमादा है? यदि मज़हब को आरक्षण का आधार बनाया जाएगा तो जम्मू-कश्मीर, पंजाब और उत्तर-पूर्व के राज्यों में हिंदुओं के लिए क्या आरक्षण की व्यवस्था नहीं करना होगा? यदि मुसलमानों और हिंदुओं को आरक्षण मिलेगा तो ईसाइयों और सिखों ने क्या बिगाड़ा है| उन्हें भी आरक्षण क्यों न दिया जाए?
पाकिस्तान के नाम पर जिन्ना ने मुसलमानों को जो सब्जबाग दिखाए थे, क्या वे उन्हें मिल गए? भारत के मुसलमान तीन हिस्सों में बॅंट गए| भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश ! उनकी दरिद्रता और अशिक्षा का अनुपात घटा नहीं बल्कि बढ़ा| खास तौर से अन्य तथाकथित अल्पसंख्यकों के मुकाबले ! केवल उन्हें फायदा मिला जो पहले से सम्पन्न थे, सुशिक्षित थे या नेता लोगों की जमात में शामिल थे| इन तीनों मुल्कों में आम मुसलमान की वैसी ही दुर्दशा है, जैसी कि मुसलमान बनने के हजारों साल पहले थी|
मुसलमान लोग निश्चय ही गरीब और अशिक्षित हैं| क्या इसका कारण इस्लाम है? नहीं| मुसलमान होने के कारण वे गरीब और पिछड़े नहीं हैं बल्कि सदियों से गरीब और पिछड़े होने के कारण वे मुसलमान बने हैं| अगर इस्लाम ही कारण होता तो छह-सात सौ साल में कोई आशा की किरण क्यों नहीं चमकी? भारत में इस्लामी शासकों का राज्य था| उन्होंने अपने हममज़हब लोगों के लिए क्या किया? सिर्फ मुट्ठीभर अमीर-उमरां ने मौज की और बाक़ी मुसलमान ठगे गए| उन्हें क्या मिला? रोज़े, नमाज़, दाढ़ी, टोपी वगैरह उनके पेटे आए और माल-मत्ता, ठाट-बाट, रौब-रुतबा आदि सब मुट्ठीभर दरबारियों के खाते में चला गया| यही सिलसिला अब भी चला आ रहा है| यदि मुसलमानों को आरक्षण दिया गया तो फायदा सिर्फ उन्हीं मुसलमानों को मिलेगा, जो ऊंॅची जातियों के हैं, सम्पन्न हैं, शहरी हैं और सैकड़ों वर्षों से दरबारदारी करते रहे हैं| पिछड़ी जातियों के धोबी, चमार, ठठेरे, लुहार, सुतार, कुम्हार, बुनकर, जुलाहे आदि मुसलमानों को अब भी कुछ नहीं मिलना है| पूरे आंध्र प्रदेश में मानों हर साल पॉंच हजार नई नौकरियॉं निकलीं तो उसका पॉंच प्रतिशत कितना हुआ? ढाई सौ ! सिर्फ ढाई सौ नौकरियॉं मिल भी गईं तो क्या उनसे 75 लाख मुसलमानों का पेट भर जाएगा? सिर्फ ढाई सौ नौकरियों की खातिर लाखों मुसलमान ईर्ष्या और घृणा के शिकार क्यों बनें? असलियत तो यह है कि इस तरह के आरक्षणों से मुसलमानों का फायदा कम, नुक्सान ज्यादा है| जिन काबिल मुसलमानों को नौकरियॉं मिलेंगी, उनके बारे में भी यही कहा जाएगा कि यह इस्लाम की खा रहा है| यदि इस्लाम के नाम पर नौकरियॉं मिलेंगी तो लालच में फॅंसकर चतुर लोग खुद को मुसलमान घोषित कर देंगे| कोई हिन्दू या सिख या ईसाई से मुसलमान तो बन सकता है लेकिन कोई यादव से ब्राह्मण नहीं बन सकता और कोई बनिए से जाट नहीं बन सकता| धर्म-परिवर्तन संभव है, जाति-परिवर्तन असंभव है| नौकरियों के लिए किया गया धर्म-परिवर्तन इस्लामी समाज के अंदर तनाव पैदा करेगा और अन्य समाजों से भी उसके रिश्ते तनावपूर्ण हो जाऍंगे|
इसीलिए मज़हब के आधार पर दिया गया आरक्षण, जाति के आधार पर दिए गए आरक्षण से ज्यादा खतरनाक है| जाति-आधारित आरक्षण जातियों के बीच तनाव जरूर पैदा करता है लेकिन वह अराष्ट्रीय कभी नहीं होता जबकि मज़हबी आरक्षण अराष्ट्रीय शक्ल भी अख्तियार कर सकता है| इसका मतलब यह कतई नहीं कि जिन्हें आरक्षण दिया जा रहा है, वे अराष्ट्रीय लोग हैं या उनकी राष्ट्र-निष्ठा संदिग्ध है बल्कि डर यह होता है कि उनके मज़हबी भक्ति-भाव का बेजा फायदा उठाने के लिए कहीं बाहरी ताकतें सि़क्रय न हो जाऍं| वे लोग सिर्फ इन बाहरी ताकतों के औजार बनकर रह जाते हैं| अपने मुसलमानों को हम बाहरी ताकतों की भट्ठी में क्यों झोंकें? भाजपा इस कदम को मुस्लिम तुष्टिकरण कहती है लेकिन वास्तव में यह मुस्लिम नष्टीकरण है|
यदि हमारे नेतागण सचमुच मुसलमानों का भला चाहते हैं तो आरक्षण केवल उन्हीं लोगों को दें जो गरीब हैं और काबिल हैं| काबिलियत के बिना नौकरी किसी भी कीमत पर किसी को भी नहीं दी जानी चाहिए| गरीबी के आधार पर रोटी, कपड़ा और मकान तथा शिक्षा, चिकित्सा, यात्रा आदि के बॅंटवारे में आरक्षण जरूर रखा जा सकता है| यह सामाजिक न्याय और करुणा का प्रतीक है| इसमें जाति, मज़हब और क्षेत्र के अडंगे क्यों लगाए जाऍं? यह सच्चा भातृभाव है| अब तो यह विचार करने का समय भी आ गया है कि जातियों के आधार पर भी जो आरक्षण दिया जा रहा है, उसे कायम रखा जाए या रद्द किया जाए| हम यह न भूलें कि आरक्षण के मसीहा डॉ. लोहिया ने जब ‘पिछड़े पावें सौ में साठ’ का नारा लगाया था तो उन्होंने उसी शिद्दत के साथ ‘जात-तोड़ो’ अभियान भी चलाया था| आरक्षण ने जात को तोड़ा है या मजबूत बनाया है? आरक्षण जात तोड़ो नहीं, जात जोड़ो आंदोलन का आधार बन गया है| अभी जातीय आरक्षण का लेखा-जोखा पूरा भी नहीं हुआ और यह मज़हबी आरक्षण का नया शोशा छोड़ दिया गया है|
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