नया इंडिया, 13 मई 2014: मतदान के अंदाजी घोड़े अभी से दौड़ने शुरू हो गए हैँ। नरेंद्र मोदी को अपना दुश्मन मानने वाले टीवी चैनल भी यह कहने को मजबूर हो गए हैं कि भाजपा को कम से कम 250 सीटें तो मिलेंगी ही। कोई भी चैनल नहीं कह रहा है कि कांग्रेस को 100 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। याने भाजपा दुगुनी से भी ज्यादा हो जाएगी और कांग्रेस आधी से भी कम रह जाएगी। इसी तरह मतदान-सर्वेक्षण यह भी बता रहे हैं कि कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का तो सूपड़ा ही साफ हो रहा है। जैसे नीतिश के जनता दल का। और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां जैसे बसपा और सप भी आधी ही रह जाएंगी। दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियों को भी धक्का लगेगा। इसी प्रकार पं. बंगाल में भी ममता को झटका लगेगा। सबसे बुरा हाल आम आदमी पार्टी का हो रहा है। जिससे सबसे ज्यादा आशा थी, वह सबसे ज्यादा निराश कर रही है। कुल मिलाकर ज्यादातर चैनल अपने सर्वेक्षण के आधार पर कह रहे हैं कि भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है। किसी चैनल ने अभी तक यह नहीं कहा है कि भाजपा या उसके गठबंधन को 300 या उससे भी ज्यादा सीटें मिल सकती हैं।
ये सभी सर्वेक्षण कितने मतदाताओं से बात करते हैं। 55-60 करोड़ मतदाताओं में वे मुश्किल से कुछ ही लाख मतदाताओं से बात करते हैं। और मनुष्य, मनुष्य होता है, चावल नहीं होता। हंडी का एक चावल पक गया तो सभी चावलों को पका हुआ मान लिया जाता है लेकिन क्या मतदाताओं के बारे भी यही नियम लागू होता है? इसलिए इन मतदान सर्वेक्षणों को मैँ अंदाजी घोड़े कहता हूं। लेकिन ये अंदाजी घोड़े कभी-कभी खरगोश और कभी-कभी कछुए की चाल भी चलते हैं। इसलिए कोई भी सर्वेक्षण 300 से ऊपर सीटें भाजपा को नहीं दे रहा है लेकिन जो लोग लिफाफा देखकर खत का मजमून भांपने की कला के माहिर है, उनका सोचना है कि भाजपा-गठबंधन को 300 से भी ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए। वे न ता उम्मीदवारों से पूछते हैं, न मतदाताओं से। न वे थर्मामीटर लगाते हैं और न ही स्टेथस्कोप। वे तो मरीज का चेहरा देखकर मर्ज जान लेते हैं। 16वीं लोकसभा का यह मतदान, यह चुनाव अपने आप में अजूबा था इसलिए इसका नतीजा भी अजूबा होना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि मतदानों का यह नपैना छोटा पड़ जाए? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये अंदाजी घोड़े अपनी मंजिल पर पहुंचने के पहले ही हांपने लग गए।
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