नया इंडिया, 6 मार्च 2014 : राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्री लोग कितनी बेरहमी से जनता का पैसा पानी में बहाते हैं, इसका ताज़ा उदाहरण आज भी मिला। बर्मा में हो रहे पड़ौसी देशों के सम्मेलन (बिम्सटेक) में हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक विशेष विमान (बोइंग-147) ले गए। उनके साथ तथाकथित प्रतिनिधिमंडल में 100 लोग थे। इस बारात में 37 पत्रकार भी शामिल थे। इसमें कई दर्जन सुरक्षाकर्मी, चपरासी और बाबू लोग भी थे। जाहिर है इन तीन-चार सौ लोगों को पांच-सितारा होटलों में टिकाने का खर्च करोड़ों में होगा। भारत के प्रधानमंत्री की देखादेखी पड़ौसी देशों के प्रधानमंत्री भी जनता के पैसों से मौज उड़ाने में जरा भी नहीं चूकते। ऐसे-ऐसे देश, जो भारत के कुछ प्रांतों नहीं, जिलों के बराबर हैं, उनके प्रधानमंत्री भी अपनी विदेश-यात्राओं पर लाखों-करोड़ों खर्च करने में ज़रा भी संकोच नहीं करते। ये वे देश हैं, जिनमें घनघोर आर्थिक संकट है और जिनके अधिकांश नागरिक गरीबी की रेखा के नीचे अपना गुजर कर रहे हैं। इसी सम्मेलन में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंद्र राजपक्ष एक विशेष एयरबस ए-340 से बर्मा पहुंचे। वे अपने साथ 71 बाराती ले गए थे। इसी तरह बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने साथ 37 लोगों को ले गई।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पद पर बैठे हुए इन महापुरुषों का अविवेक देखिए कि ऐसी सरकारी यात्राओं में ये अपने रिश्तेदारों और कई अनाम कृपा-पात्रों को भी ढो कर ले जाते हैं। पत्रकारों को साथ में रखना जरुरी है लेकिन क्या सिर्फ दो एजेन्सियों के पत्रकारों से काम नहीं चल सकता? अपने चहेते अखबारों पर कृपा करने के लिए ये नेता लोग सरकारी खजाने को क्यों लुटवाते रहते हैं? हमारी संसद भी इस फिजूलखर्ची पर सोती रहती है। सांसद इस फिजूलखर्ची को क्यों नहीं रुकवाते? वे क्यों रूकवाएं? कैसे रुकवाएं? वे खुद सैर-सपाटे के लिए बाराती बनने को तैयार रहते हैं। उनकी एक-एक यात्रा पर लाखों रु. खर्च होते हैं। सारे कुए में ही भांग पड़ी रहती है। यदि प्रधानमंत्री की बारात में शामिल होने वालों से कुल खर्च का दस प्रतिशत भी मांगा जाए तो क्या वे देने को राजी होंगे? बिल्कुल नहीं। सबको सारी सुविधा मुफ्त चाहिए। कहा भी है- माले मुफ्त, दिले-बेरहम। ऐसे में ज़रा नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोईराला से कुछ सीखा जाए। वे अपने साथ सिर्फ सात लोगों को ले गए और बैंकाक से जहाज बदलकर साधारण जहाज से बर्मा पहुंचे जबकि हमारे प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल में 640 करोड़ रु. अपनी विदेश-यात्राओं पर फूंक दिए। इस बेशर्मी भरी फिजूलखर्ची को आखिर कब रोका जाएगा?
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