R Sahara, 19 March 2005 : जनरल परवेज़ मुशर्रफ की माताजी ज़रीन और भाई जावेद आजकल भारत आए हुए हैं| अखबारों के मुखपृष्ठ उनकी खबरों से भरे हुए हैं| उनके आने के पहले अखबारों में खबर छपी थी कि डॉ. नावीद याने जनरल मुशर्रफ के सबसे छोटे भाई आ रहे हैं| डॉ. नावीद मुशर्रफ शिकागो के पॉश मोहल्ले ओकबु्रक में रहते हैं| मैंने उनके फोन पर संदेश छोड़ दिया| कल सुबह उनका फोन आया और लगभग 40 मिनिट बात हुई|
जनरल मुशर्रफ तीन भाई हैं – परवेज, जावेद और नावीद ! जावेद बरसों रोम में रहे हैं| वे एफ ए ओ के अधिकारी थे| नावीद भी बरसों से शिकागो में हैं| वे मेडिकल डॉक्टर हैं और एनेस्थीसिया के विशेषज्ञ हैं| वे मुशर्रफ के सबसे छोटे भाई हैं| उन्होंने ही पहली बार मुझे बताया था कि वे दरियागंज के रहनेवाले हैं| नावीद से दोस्ती कैसे हुई, यह बड़ा रोचक संयोग है|
मुझे अक्तूबर 1999 में भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर संयुक्तराष्ट्र संघ में जाना था| शिकागो के कुछ मित्रों ने मेरा भाषण पहले ही आयोजित कर दिया तो मैं पहले शिकागो चला गया| शिकागो हवाई अड्डे पर जहाज दिन के चार बजे उतरा| मुझे लेने आए मेरे हैदराबादी मित्र सय्रयद बदर क़ादिरी| क़ादिरी ने गले मिलते ही मुझसे पहला वाक्य यह बोला कि ‘आपके दोस्त मियॉं साहब तो गए’| मैंने पूछा ‘कौन मियॉं साहब?’ तो वे बोले ‘अभी-अभी पाकिस्तान में तख्ता-पलट हुआ है| फौज ने कब्जा कर लिया है| मियॉं नवाज शरीफ गिरफ्तार हो गए हैं|’ खैर, रास्ते में कादिरी ने कहा कि इफ्तार तो घर पर ही करेंगे लेकिन आपका डिनर किसी पाकिस्तानी डॉक्टर के घर होगा| यह डिनर साउथ एशिया फोरम वालों ने रखा है| मैंने कहा, ‘ठीक है, चलेंगे|’ यह थी 12 अक्तूबर 1999 की शाम ! टी वी पर तख्ता-पलट की खबरें बराबर चली आ रही थीं|
हम जैसे ही उस पाकिस्तानी डॉक्टर के घर पहॅुंचे, उसने बड़ी गर्मजोशी से डॉ. असलम मिर्जा और मेरा स्वागत किया और मुझे बोले ‘माय ब्रदर हेज़ टेकन ओवर टु डे|’ मैंने कहा, ‘बधाई|’ मैंने न तो यह पूछा कि आपके भाई कौन हैं, और न यह पूछा कि ‘उन्होंने क्या सम्हाल लिया है?’ और यह पूछना तो बड़ी धृष्टता होती कि ‘आपका नाम क्या है|’ मेरे लिए इतना ही काफी था कि वे पाकिस्तानी डॉक्टर हैं| दो-चार मिनिट में ही ये डॉक्टर साहब टी वी पर्दे की तरफ इशारा करके बोले, ‘देखिए, देखिए परवेज़, मेरा भाई|’ मैंने डॉक्टर की तरफ गौर से देखा और क्या देखा कि वह बिल्कुल जनरल मुशर्रफ की तरह लग रहे हैं| तब मैंने उनसे उनका नाम पूछा| उन्होंने कहा, ‘मैं नावीद मुशर्रफ हॅूं, जनरल का सबसे छोटा भाई|’ इस तरह उस एतिहासिक दिन डॉ. नावीद से दोस्ती हुई|
डॉ. नावीद का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, हालॉंकि वे शिकागो की दक्षिण एशियाई संस्था ‘सागर’ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं| उन्होंने भारत-पाक समस्याओं पर मेरे साथ खुलकर जो बातें की हैं और उनकी जो राय है, उसे मैं अपने तक सीमित रखॅूं, यह जरूरी है| डॉ. हरिंदर लांबा और उन्होंने मुझे व्याख्यानों और सम्वादों के लिए कई बार शिकागो बुलाया| इन पॉंच वर्षों में उनके साथ संबंध घनिष्टतर होते गए| उन्होंने भारत आने की गहरी इच्छा कई बार जताई| कल भी फोन पर यही पूछ रहे थे कि “क्या मुझे आपका कौंसुलेट वीज़ा दे देगा? क्या लाहौर और दिल्ली के बीच फोन पर बात हो सकती है? मैंने अपनी मम्मी और जावेद से राबिता करने की कोशिश करता हॅूं ताकि वे आपसे मिल सकें| मैं उनकी तरह दो-चार दिन के लिए नहीं, पूरे एक माह के लिए आना चाहता हॅूं| इंडिया में तो गज़ब की चीजें हैं, देखने के लिए !”
नेपालकेयुवानेता
इस हफ्ते नेपाल के दो प्रमुख युवा नेताओं से भेंट हुई| सुजाता कोइराला और हृदयेश त्रिपाठी ! सुजाताजी पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजाप्रसाद कोइराला की बेटी हैं और नेपाली कॉंग्रेस की नेता हैं| हृदयेशजी सद्रभावना पार्टी के महासचिव हैं| पहले मंत्री और महत्वपूर्ण संसदीय समितियों के सदस्य रह चुके हैं| सद्रभावना पार्टी मूलत: मधेसियाई लोगों की पार्टी है| बिहार और उ.प्र. से गए और नेपाल में बसे लोगों को ‘मधेस’ कहा जाता है| इस पार्टी के संस्थापक स्व. गजेंद्रनारायण सिंह से 30-35 साल तक संबंध बना रहा| भारत और काठमांडों में उनसे अक्सर भेंट होती थी| सुजाता के पिता गिरिजा बाबू ही नहीं, उनके ताऊ प्रधानमंत्री बिशेशरप्रसाद कोइराला से भी लगभग 40 साल पहले सप्रू हाउस में परिचय हुआ था| वे प्रवासी के रूप में गुलमोहर पार्क में रहते थे और मेरे निमंत्रण पर हमारे छात्रावास (सप्रू हाउस) भोजन करने भी आते थे| कोईरालाजी से तो काठमांडो और दिल्ली में कई बार भेंट हुई लेकिन सुजाता से यह पहली भेंट थी|
सुजाताजी की बहादुरी के क्या कहने? नेपाल-नरेश ने जैसे ही आपात्काल ठोका, वे जंगलों में छिपती-छिपातीं भारत आ पहॅुंचीं| नई दिल्ली के गौतम नगर में एक कमरा किराए पर लेकर रह रही हैं और यहीं से आपात्काल के विरुद्घ जूझ रही हैं| आज फिर वे नेपाली सीमांत पर पहॅुंच रही हैं, जन-आंदोलन की तैयारी में| इसी प्रकार हृदयेश त्र्िापाठी भी पॉंच रात अंधेरे में पैदल चलकर भारत पहॅुंचे हैं| ये लोग भारत के नेताओं और बुद्घिजीवियों से भी मिल रहे हैं| फिलहाल उनका एक ही लक्ष्य है कि नेपाल से आपात्काल खत्म हो और बहुदलीय लोकतंत्र की बेल फिर से हरी हो| नेपाल से आए अन्य नेताओं ने भी जो अंदरूनी बातें बताई हैं अगर वे सत्य हैं तो नेपाली राजतंत्र का भविष्य अंधकारमय लगता है| राजा अपने पॉंवों पर खुद ही कुल्हाड़ी चला रहे हैं|
भिक्खुरतनश्री
श्रीलंका के प्रसिद्घ सांसद भिक्खु रतनश्री के साथ भोजन और सम्वाद दूसरी बार हुआ| उनकी पार्टी ‘हेल उरुमया’ (जनता की विरासत) के केवल नौ सांसद हैं लेकिन उनकी हैसियत बहुत बड़ी है, क्योंकि वे चाहें तो श्रीलंका की गठबंधन-सरकार को गिरा सकते हैं| भिक्खु रतनश्री 43 साल के हैं और उन्होंने अपनी पार्टी की स्थापना चुनाव के कुछ दिन पहले ही की| इसके बावजूद वे नौ उम्मीदवार जिता लाए| उनके सभी सांसद भिक्खु हैं| भगवा चीवरधारी ये सभी नौ सांसद अक्तूबर में कोलंबो के बंडारनायक-हॉल में हुए मेरे भाषण में मौजूद थे| अनेक मंत्री और अन्य पार्टियों के सांसद भी थे लेकिन भिक्खु सांसदों का जलवा अपने आप में अनूठा था| शायद दुनिया में आज तक कोई ऐसी पार्टी नहीं बनी है, जिसके सभी सांसद संन्यासी हों या भिक्खु हों या गं्रथी हों या पादरी हों या मुल्ला हों| संगठित धर्म अपने आप में बड़ा नशा है और फिर उसके प्रतिनिधि राजनीति करें तो उसका असर बड़ा चमत्कारी हो सकता है| ‘हेल उरुमया’ का असली मतलब है, सिंहल जनता की विरासत ! यह पार्टी उग्र सिंहलवाद की प्रवक्ता बन सकती है| इसीलिए ‘जनता विमुक्ति पेरामून’ नामक सबसे बड़ी पार्टी के साथ इसकी प्रतिद्वंद्विता चलती रहती है| श्रीलंका में बौद्घ धर्म का जैसा जोर है, उसे देखते हुए लगता है कि ‘हेल उरुमया’ जल्दी ही बड़ी पार्टी बन जाएगी| रतनश्रीजी मुझे हमेशा कहते हैं कि मैं आपको अपने ‘प्रधान भिक्खु’ की तरह मानता हॅूं| मैंने उनसे कहा कि मैं तो गृहस्थ हॅूं, इसीलिए आपके सामने सदैव छोटा और अकिंचन ही रहॅूंगा लेकिन आपसे यह पूछता हॅूं कि क्या किसी संन्यासी को केवल एक देश (श्रीलंका), केवल एक जाति (सिंहल) और केवल एक काल (सिर्फ वर्तमान) के लिए काम करना चाहिए? क्या सारा संसार ही उसका नहीं है? क्या उसे सर्वजनहिताय, सर्वजनसुखाय कार्य नहीं करना चाहिए? क्या उसका सोच सार्वकालिक और सार्वदेशिक नहीं होना चाहिए? जिस देश में हजारों भिक्खु हों, उस देश के सिंहल और तमिल एक-दूसरे के खून की नदियॉं बहाते रहें, यह बात समझ में नहीं आती| भिक्खुजी जब भी मिलते हैं, इस तरह के सवालों को सुनकर मौन में प्रविष्ट हो जाते हैं|
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