NavBharat Times, 18 Sept 2004 : इस समय पाकिस्तान में सबसे गर्म मुद्दा क्या है? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह मुद्दा भारत-पाक संबंध नहीं है बल्कि यह है कि जनरल मुशर्रफ इस साल के अंत तक अपनी वर्दी उतारेंगे या नहीं? वर्दी उतारने का मतलब क्या है? वर्दी उतारना मतलब अपना फौजी पद छोड़ना| याने अब उनके पास केवल राष्ट्रपति पद रहेगा या सर्वोच्च सेनापति पद भी? यह सवालों का सवाल है| यक्ष-प्रश्न है| पाकिसतान के किसी भी बड़े नेता, बुद्घिजीवी, अफसर या आम आदमी से बात कीजिए और वह सीधे या घूम-फिरकर इसी मुद्दे पर आ जाता है|
जनरल मुशर्रफ अपना फौजी पद छोड़ें, यह बात किसी बड़े जन-आंदोलन के कारण नहीं उठ रही है बल्कि इसलिए उठ रही है कि पिछले साल उन्होंने ही यह बहादुराना घोषणा कर दी थी| वे जबसे (12 अक्तू.’99) पाकिस्तान के सर्वेसर्वा बने हैं, उन्होंने कई बार कहा है कि वे अपने पद पर एक दिन भी फालतू नहीं रहेंगे| पिछले साल विरोधी दल ‘मजलिसे-मुत्तहिदा अमल’ के साथ हुए एक समझौते में उन्होंने अपने फौजी पद छोड़ने की तारीख बता दी| उन्होंने कहा ि क वे 31 दिसंबर 2004 के पहले अपनी वर्दी उतार देंगे| इतने बड़े त्याग के बदले मजलिस ने राष्ट्रपति को वायदा किया कि वह संविधान के 17वें संशोधन का समर्थन करेगी| सत्तारूढ़ दल मुस्लिम लीग (क़ा) के साथ मिलकर विरोधी दल मजलिस ने 17वें संशोधन को पास करवा दिया| यह टेढ़ी सौदेबाजी थी| 17वॉं संशोधन राष्ट्रपति को अनेक विशेषाधिकार देता है, शक्ति का विकेंद्रीकरण करता है तथा संसद और न्यायपालिका के मुकाबले राष्ट्रपति की स्थिति बेजोड़ बनाता है| मजलिस ने यह समझकर ये सब बातें मान लीं कि फौजी पद छोड़ने के बाद राष्ट्रपति का पद नरम पड़ जाएगा और राष्ट्रपति यदि मुस्लिम लीग (क़ा) को अपनी पार्टी बनाकर राजनीति करना चाहेंगे तो वह उन्हें बराबरी की टक्कर दे सकेगी|
लेकिन अब पासे पलट गए| ज्यों-ज्यों पद-त्याग की तारीख पास आती जा रही है, जनरल मुशर्रफ अपने दोनों पदों पर जमे रहने का तगड़ा संकल्प जाहिर कर रहे हैं| पाकिस्तान में राजनीतिक कोहराम मच गया है| पंजाब की विधानसभा ने प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति से अनुरोध किया है ि क वे सेनापति पद पर डटे रहें और सरहदी सूबे की विधानसभा ने इससे एक दम उलट प्रस्ताव पारित कर दिया है| पाकिस्तान की विधानसभाऍं एक-दूसरे से भिड़ गई हैं| संसद में बार-बार प्रस्ताव लाने की कोशिश हो रही है कि पंजाब विधानसभा की निंदा की जाए| यह सिद्घ किया जाए कि उसका प्रस्ताव असंवैधानिक है| कुछ लोग सर्वोच्च न्यायालय के द्वार खटखटाने पर भी तुले हुए हैं| मजलिस के नेता फजलुर रहमान और काज़ी हुसैन अहमद का कहना है कि अगर जनरल मुशर्रफ 31 दिसंबर तक अपनी फौजी वर्दी नहीं उतारेंगे तो वे इतना जबर्दस्त आंदोलन छोड़ेंगे कि वे अयूब खान की तरह भाग खड़े होंगे| उनके दोनों पद जाएंगे| यह भी कहा जा रहा है कि जैसे याह्रया खान ने अपनी हठधर्मी के कारण देश तुड़ा दिया और बांग्लादेश खड़ा कर दिया, वैसे ही मुशर्रफ सरहदी सूबे और बलूचिस्तान को तोड़ देंगे| इन दोनों प्रांतों में इस समय फौज बागियों के साथ बुरी तरह से उलझी हुई है| दक्षिण बजीरिस्तान में हुई बम-वर्षा में इस हफ्ते सैकड़ों लोग मारे गए हैं| सरकार कहती है ि कवे अल-क़ायदा के विदेशी जिहादी हैं और उस इलाके के सांसद कह रहे हैं कि जनरल मुशर्रफ अमेरिकियों को खुश करने के लिए अपने ही लोगों को मार रहे हैं| विरोधी-दल ‘मजलिस’ इसी अमेरिका-विरोधी लहर पर सवार है| मजलिस में शामिल मज़हबी पार्टियों को पहली बार इतनी सफलता इसीलिए मिली है कि वह अमेरिका-विरोधी जन-भावना का प्रतिनिधित्व कर रही है|
पाकिस्तान के इन मज़हबी तत्वों पर सदा फौज का वरद्र-हस्त रहा है| ये तत्व कह रहे हैं कि मुशर्रफ फौज का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं| ये तत्व फौज को मुशर्रफ से अलग हुआ देखना चाहते हैं| इसलिए नहीं कि वे लोकतंत्र के समर्थक हैं बल्कि इसलिए कि मुशर्रफ फौज से अलग होने पर बिल्कुल कमजोर पड़ जाएंगे| अभी तक उनका कोई जनाधार नहीं बना है| उनकी मुल्ला, मदरसा और आतंकवाद विरोधी नीति मजलिस को बिल्कुल भी नहीं सुहाती| मजलिस उनकी भारत-नीति पर भी प्रहार करती है| मजलिस के नेताओं का मानना है कि मुशर्रफ यदि अपनी वर्दी चढ़ाए रखेंगे तो वे संविधान का भी उल्लंघन करेंगे| यह ठीक है कि मजलिस के दबाव में आकर मुशर्रफ ने संविधान की धारा 63(1) और 43(1) में यह मान लिया था कि राष्ट्रपति केवल पॉंच साल तक अपने पद पर रहेगा तथा फायदे के दो पद पर एक साथ नहीं रहेगा| लेकिन मजलिस के नेता भूल गए कि इसी धारा में एक चोर-दरवाज़ा भी खुला रह गया| धारा पास करते समय उस परवाज़े पर उनका ध्यान नहीं गया| उसके मुताबिक यदि संसद चाहे तो साधारण कानून बनाकर राष्ट्रपति को उक्त प्रावधान से विमुक्ति दे सकती है| मुशर्रफ अब इसी दरवाज़े से बच निकलने की तदबीर कर रहे हैं| वे कहते हैं कि यह प्रावधान पास करते समय मजलिस के नेताओं ने क्या अपनी ऑंखें बंद कर रखी थींं? वे कहते हैं कि पाकिस्तान की 86 प्रतिशत जनता उनका समर्थन करती है| विरोधी दल इस ऑंकड़े का मजाक उड़ा रहे हैंं| मुशर्रफ के समर्थक कहते हैं कि उनके फौजी पद को ‘फायदा का दूसरा पद’ अघोषित करवाने के लिए संविधान में साधारण संशोधन शीघ्र ही करवा लिया जाएगा| उसके लिए दो-तिहाई बहुमत की जरूरत नहीं है| साधारण बहुमत मुशर्रफ के साथ है ही ! मुशर्रफ को अदालत का भी खास डर नहीं है| अदालत उक्त संशोधन पर मुहर ही लगाएगी| तात्पर्य यह कि 2007 तक मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सर्वोच्च सेनापति दोनों बने रहेंगे|
यदि मुशर्रफ दोनों पदों पर बने रहे तो क्या उनके विरुद्घ कोई जन-आंदोलन सफल हो पाएगा? उम्मीद बहुत कम है| इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान की स्थिरता का मूलाधार आज भी सिर्फ फौज है| यहॉं के राजनीतिक दल नहीं| पाकिस्तान की जनता के दिलो-दिमाग में यह बात कूट-कूटकर भर दी गई है कि भारत पाकिस्तान को तोड़ने पर आमादा है| इस खतरे से उसे नेता नहीं, फौज ही बचा सकती है| यदि मुशर्रफ फौज से अलग हट गए तो नए सेनापति के रूप् में शक्ति का एक नया केंद्र उभर आएगा| ऐसा होने पर ‘नेतृत्व की एकरूपता’ (यूनिटी ऑफ कमांड) भंग हो जाएगी और पाकिस्तान कमजोर पड़ जाएगा| पाकिस्तान की मजबूती के नाम पर मुशर्रफ का झंडा बुलंद रहने की पूरी संभावना है| उनके पक्ष में यह तर्क भी है कि यदि उन्होंने वर्दी उतार दी तो जैसा-तैसा लोकतंत्र अभी दिखाई पड़ रहा है, वह भी अन्तर्ध्यान हो जाएगा| पाकिस्तान का राजदंड किसी नए वर्दीधारी को थमाने की बजाय यह कहीं बेहतर नहीं कि एक आजमाए हुए वर्दीधारी को ही बनाए रखा जाए, ताकि वह अमेरिका, भारत और स्थानीय बगावतों के बीच पाकिस्तान की नाव खेता चला जाए?
(लेखक आजकल पाकिस्तान में हैं)
लाहौर
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