बिहार में चल रही नौंटकी भी अजीब है| जद-भाजपा गठबंधन बैठे-बिठाए संकट में आ फंसा है| जिस शालीनता से बिहार में यह गठबंधन चल रहा था, वह किसी भी गठबंधन सरकार के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकता था लेकिन जरूरत से ज्यादा चतुराई ने दोनों दलों को सांसत में फंसा दिया है| यह ठीक है कि नरेंद्र मोदी और नीतीश के हाथ थामे हुए विज्ञापन नहीं छपते तो भाजपा अधिवेशन विफल नहीं हो जाता लेकिन अगर वे छप गए तो भी क्या हो गया ? यदि गुजरात में पनपे-बढ़े बिहारियों ने मोदी के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन के तौर पर विज्ञापन छपवा दिए तो यह कैसे मान लिया गया कि वह बिहार का अपमान हो गया ? वे विज्ञापन मोदी या गुजरात सरकार ने छपवाए हों, ऐसा तो कोई प्रमाण नहीं है| इन विज्ञापनों के पीछे भाजपा का हाथ रहा हो, ऐसा भी नहीं है| अगर ऐसा होता तो अन्य भाजपा मुख्यमंत्रियों के विज्ञापन भी छपते, क्योंकि कोसी की बाढ़ के समय सभी प्रदेशों ने बिहार को सहायता भेजी थी| भारत के सारे प्रांत एक शरीर के विभिन्न अंगों की तरह हैं| वे एक-दूसरे के काम आएँ, खास तौर से संकट के समय, यह स्वाभाविक ही है| इसमें अहसान की बात क्या है ? अहसान जताने को मुद्दा बनाकर नीतीश ने वास्तव में विषयांतर किया है| इसी आधार पर पांच करोड़ रू. उन्होंने गुजरात को लौटा दिए हैं| पांच ही क्यों लौटाए ? गुजरात ने सिर्फ नगदी मदद ही नहीं भेजी थी| तरह-तरह की अन्य मददों की राशि लगभग 50 करोड़ बनेगी| यदि यह आत्म-सम्मान का मसला है तो वह राशि भी ब्याज समेत लौटाई जानी चाहिए| यदि वह राशि भी लौटा दी जाए तो क्या इससे बिहार की इज्ज़त बढ़ेगी ? यह तो एक प्रकार का अतिरंजित और असंतुलित आचरण ही माना जाएगा|
आखिर नीतीश ने ऐसा किया क्यों ? नीतिश तो अपने संयम और शिष्टाचार के लिए विख्यात हैं लेकिन उन्होंने यह खतरा क्यों मोल ले लिया ? उनकी छवि एक अहमन्य और अ-गंभीर शासक की बन जाए, यह किसी नेता के लिए छोटा-मोटा नुकसान नहीं है| इतना बड़ा जुआ उन्होंने इसीलिए खेला है कि वे अपने अल्पसंख्यक वोट के प्रति अति-संवेदनशील हैं| उन्हें चिंता हुई कि मोदी का सामीप्य उनके इस खजाने को कहीं लुटवा न दे| पिछले चुनाव में भी उन्होंने मोदी को बिहार से दूर रखने का आग्रह किया था| उन्हें मोदी से कोई व्यक्तिगत चिढ़ नहीं है| भाजपा और मोदी का क्या संबंध है और मोदी गुजरात में क्या कर रहे हैं या नहीं कर रहे हैं, इससे नीतीश का कुछ लेना देना नहीं है| अगर होता तो वे 2002 में ही मोदी की निंदा करते या भाजपा से कहते कि मोदी को निकालो वरना हम गठबंधन तोड़ते हैं| उन्हें तो सिर्फ बिहार में अपने वोट की चिंता है| अन्यथा, क्या वजह है कि 2008 में उन्होंने मोदी के गुजरात की मदद को बिहार आने दिया और यदि मोदी अछूत हैं तो 2009 में लुधियाना में उनके साथ हाथ हिलाते हुए अपने फोटो क्यों उतरने दिए ? मोदी और नीतीश के फोटो पहले से थे तो छपे| न होते तो कोई कैसे छापता ? अगर ये फोटो नकली होते तो उन पर एतराज़ करना ठीक होता लेकिन इन असली फोटुओं को छापने के लिए किसी की भी अनुमति की क्या जरूरत हे ? गांधी और जिन्ना या नेहरू और लोहिया के फोटो छापने के लिए किसकी अनुमति की जरूरत है ? यह अनुमति की बात घोर अलोकतांत्रिक है| इस तरह की बातें तो राजाओं और सुल्तानों की तानाशाहियों में ही सुनने में आती हैं|
इसके अलावा क्या नीतीश को पता नहीं था कि यदि भाजपा का अधिवेशन पटना में होगा तो भाजपा के सभी मुख्यमंत्र्ी उसमें आएंगें| मोदी के बिना भाजपा का कोई अधिवेशन कैसे हो सकता है ? भाजपा को वे भोजन का न्यौता दें और मोदी को बाहर कर दें, क्या नीतीश-जैसे सज्जन नेता से कोई ऐसी आशा कर सकता है ? जिस नेता का उन्हें अपने घर में स्वागत करना था, उसके साथ फोटो छप गया तो कौनसा आसमान टूट गया ? यदि नीतीश को मोदी से इतना खतरा है तो उन्हें भाजपा का अधिवेशन पटना में होने ही नहीं देना था| यह कैसे हो सकता है कि आप गुड़ खाएं और गुलगुले से परहेज़ करें ? अगर वह चर्चित विज्ञापन नहीं छपता तो भोज अवश्य होता और उस भोज में मोदी के साथ रसगुल्ले खाते हुए नीतीश के फोटो जरूर छपते| तब क्या होता ? क्या नीतीश राजनीति से संन्यास लेने की बात करते ? भोज को स्थगित करके नीतीश ने क्या छवि पैदा की ? क्या ऐसा करने से बिहार का सम्मान बढ़ा ?
जहां तक भाजपा का प्रश्न है, उसका अनंत धैर्य दृष्टव्य है| वह मार खाती जा रही है और चुप है| किसी नेतृत्वविहीन पार्टी का हाल वैसा ही होता है, जैसा किसी शक्तिहीन रोगी का होता है| उसे पता है कि इस नौटंकी से नीतीश का अल्पसंख्यक वोट-बैंक तो पट गया है लेकिन जातियों में बंटा बिहार मोदी के अपमान पर शायद कोई खास प्रतिकि्रया न करे| यदि नीतीश मुस्लिम तुरूप चल रहे हैं तो क्या भाजपा बिहार में हिंदू तुरूप चल सकती है ? शायद नहीं| इसीलिए उसने अभी तक इस गठबंधन को एक झटके में तोड़कर नहीं फेंका| वह झारखंड के दूध की जली हुई है| वह बिहार की छाछ को फूंक-फूंककर पी रही है| लेकिन मोदी-कांड से अगर वह कोई सबक नहीं लेगी तो उसका भविष्य अंधकारमय होते देर नहीं लगेगी| उसे अब यह तय करना होगा कि वह मोदी के साथ कहां तक जाएगी ? नीतीश की तरह यदि उसके विशाल गठबंधन के अन्य सदस्य मोदी पर आपत्ति करेंगे तो भाजपा का जवाब क्या होगा ? मोदी भाजपा के सबसे सशक्त नेता के तौर पर उभर रहे हैं| कई लोक-सर्वेक्षणों में उन्हें देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री पाया गया है| वे जनसंघ और भाजपा के शायद ऐसे पहले नेता हैं, जो उर्ध्वमूल नहीं हैं, अधोमूल हैं याने जिसकी जड़ जनता में फैल चुकी है| गुजरात में फैली यह जड़ क्या पूरे भारत में फैल सकती है ? असली सवाल यह है कि भाजपा मोदी को अपना नेता मानती है या नहीं ? मोदी की खातिर अगर वह पटना में सरकार गिरा दे तो क्या मोदी के दम पर वह दिल्ली में सरकार बना सकती है ?
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